ਇਸੁ ਕਲਿਜੁਗ ਮਹਿ ਕਰਮ ਧਰਮੁ ਨ ਕੋਈ ॥
इसु कलिजुग महि करम धरमु न कोई ॥
इस कलियुग में कोई भी व्यक्ति धर्म-कर्म करने में सफल नहीं होता।
ਕਲੀ ਕਾ ਜਨਮੁ ਚੰਡਾਲ ਕੈ ਘਰਿ ਹੋਈ ॥
कली का जनमु चंडाल कै घरि होई ॥
कलियुग का जन्म चंडाल के घर में हुआ है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਕੋ ਮੁਕਤਿ ਨ ਹੋਈ ॥੪॥੧੦॥੩੦॥
नानक नाम बिना को मुकति न होई ॥४॥१०॥३०॥
हे नानक ! परमात्मा के नाम बिना कोई भी मोक्ष नहीं पा सकता ॥ ४ ॥ १० ॥ ३० ॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੩ ਗੁਆਰੇਰੀ ॥
गउड़ी महला ३ गुआरेरी ॥
गउड़ी महला ३ गुआरेरी ॥
ਸਚਾ ਅਮਰੁ ਸਚਾ ਪਾਤਿਸਾਹੁ ॥
सचा अमरु सचा पातिसाहु ॥
भगवान विश्व का सच्चा बादशाह है और उसका हुक्म भी सत्य अर्थात् अटल है।
ਮਨਿ ਸਾਚੈ ਰਾਤੇ ਹਰਿ ਵੇਪਰਵਾਹੁ ॥
मनि साचै राते हरि वेपरवाहु ॥
जो व्यक्ति अपने मन से सत्यस्वरूप एवं बेपरवाह भगवान के प्रेम में मग्न रहते हैं।
ਸਚੈ ਮਹਲਿ ਸਚਿ ਨਾਮਿ ਸਮਾਹੁ ॥੧॥
सचै महलि सचि नामि समाहु ॥१॥
वे उसके सच्चे महल में निवास प्राप्त कर लेते है और उसके सत्य-नाम में ही समा जाते हैं।॥ १॥
ਸੁਣਿ ਮਨ ਮੇਰੇ ਸਬਦੁ ਵੀਚਾਰਿ ॥
सुणि मन मेरे सबदु वीचारि ॥
हे मेरे मन ! सुनो, प्रभु का चिन्तन करो।
ਰਾਮ ਜਪਹੁ ਭਵਜਲੁ ਉਤਰਹੁ ਪਾਰਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
राम जपहु भवजलु उतरहु पारि ॥१॥ रहाउ ॥
राम का भजन करो और भवसागर से पार हो जाओ ॥ १॥ रहाउ ॥
ਭਰਮੇ ਆਵੈ ਭਰਮੇ ਜਾਇ ॥
भरमे आवै भरमे जाइ ॥
जीव मोह-माया के भ्रम में फँसने के कारण जन्मता एवं मरता रहता है।
ਇਹੁ ਜਗੁ ਜਨਮਿਆ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ॥
इहु जगु जनमिआ दूजै भाइ ॥
इस जगत् के जीवों ने माया के प्रेम कारण जन्म लिया है।
ਮਨਮੁਖਿ ਨ ਚੇਤੈ ਆਵੈ ਜਾਇ ॥੨॥
मनमुखि न चेतै आवै जाइ ॥२॥
स्वेच्छाचारी मनुष्य प्रभु को स्मरण नहीं करता इसलिए वह जन्मता-मरता रहता है।॥ २॥
ਆਪਿ ਭੁਲਾ ਕਿ ਪ੍ਰਭਿ ਆਪਿ ਭੁਲਾਇਆ ॥
आपि भुला कि प्रभि आपि भुलाइआ ॥
क्या प्राणी स्वयं कुमार्गगामी होता है अथवा ईश्वर स्वयं उसको कुमार्गगामी करता है ?
ਇਹੁ ਜੀਉ ਵਿਡਾਣੀ ਚਾਕਰੀ ਲਾਇਆ ॥
इहु जीउ विडाणी चाकरी लाइआ ॥
यह आत्मा माया की सेवा में लिप्त हुई है।
ਮਹਾ ਦੁਖੁ ਖਟੇ ਬਿਰਥਾ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇਆ ॥੩॥
महा दुखु खटे बिरथा जनमु गवाइआ ॥३॥
भगवान ने इस जीव को माया की सेवा में लगाया है, जिसके फलस्वरूप यह भारी दुःख प्राप्त करता है और अपना अनमोल जीवन व्यर्थ ही गंवा देता है॥ ३॥
ਕਿਰਪਾ ਕਰਿ ਸਤਿਗੁਰੂ ਮਿਲਾਏ ॥
किरपा करि सतिगुरू मिलाए ॥
प्रभु अपनी कृपा करके मनुष्य का सतिगुरु से मिलन करवाता है।
ਏਕੋ ਨਾਮੁ ਚੇਤੇ ਵਿਚਹੁ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਏ ॥
एको नामु चेते विचहु भरमु चुकाए ॥
वह तब, केवल नाम का ही स्मरण करता है और अपने अन्तर्मन से वह भ्रम को निकाल देता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਜਪੇ ਨਾਉ ਨਉ ਨਿਧਿ ਪਾਏ ॥੪॥੧੧॥੩੧॥
नानक नामु जपे नाउ नउ निधि पाए ॥४॥११॥३१॥
हे नानक ! वह नाम का जाप करता है और ईश्वर के नाम की नवनिधि प्राप्त कर लेता है॥ ४ ॥ ११ ॥ ३१ ॥
ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ ਮਹਲਾ ੩ ॥
गउड़ी गुआरेरी महला ३ ॥
गउड़ी गुआरेरी महला ३ ॥
ਜਿਨਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਧਿਆਇਆ ਤਿਨ ਪੂਛਉ ਜਾਇ ॥
जिना गुरमुखि धिआइआ तिन पूछउ जाइ ॥
जिन लोगों ने गुरु की प्रेरणा से भगवान के नाम का ध्यान किया है, मैं उन से जाकर पूछता हूँ।
ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਤੇ ਮਨੁ ਪਤੀਆਇ
गुर सेवा ते मनु पतीआइ ॥
गुरु की सेवा करने से मन संतुष्ट हो जाता है।
ਸੇ ਧਨਵੰਤ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਕਮਾਇ ॥
से धनवंत हरि नामु कमाइ ॥
वहीं धनवान हैं जो हरि का नाम धन कमाते हैं।
ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਤੇ ਸੋਝੀ ਪਾਇ ॥੧॥
पूरे गुर ते सोझी पाइ ॥१॥
इस बात का ज्ञान पूर्ण-गुरु से ही प्राप्त होता है॥ १॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪਹੁ ਮੇਰੇ ਭਾਈ ॥
हरि हरि नामु जपहु मेरे भाई ॥
हे मेरे भाई ! हरि-परमेश्वर के नाम का जाप करते रहो।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸੇਵਾ ਹਰਿ ਘਾਲ ਥਾਇ ਪਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरमुखि सेवा हरि घाल थाइ पाई ॥१॥ रहाउ ॥
गुरु की प्रेरणा से की हुई सेवा-भक्ति के परिश्रम को भगवान स्वीकार कर लेता है॥ १॥ रहाउ॥
ਆਪੁ ਪਛਾਣੈ ਮਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਹੋਇ ॥
आपु पछाणै मनु निरमलु होइ ॥
अपने स्वरूप की पहचान करने से मन निर्मल हो जाता है।
ਜੀਵਨ ਮੁਕਤਿ ਹਰਿ ਪਾਵੈ ਸੋਇ ॥
जीवन मुकति हरि पावै सोइ ॥
वह अपने जीवन में माया के बंधनों से मुक्त होकर भगवान को पा लेता है।
ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਮਤਿ ਊਤਮ ਹੋਇ ॥
हरि गुण गावै मति ऊतम होइ ॥
जो व्यक्ति भगवान की गुणस्तुति करता है, उसकी बुद्धि श्रेष्ठ हो जाती है।
ਸਹਜੇ ਸਹਜਿ ਸਮਾਵੈ ਸੋਇ ॥੨॥
सहजे सहजि समावै सोइ ॥२॥
वह सहज ही ईश्वर में लीन हो जाता है।॥ २ ॥
ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਨ ਸੇਵਿਆ ਜਾਇ ॥
दूजै भाइ न सेविआ जाइ ॥
मोह-माया में फंसने से परमात्मा की सेवा-भक्ति नहीं की जा सकती।
ਹਉਮੈ ਮਾਇਆ ਮਹਾ ਬਿਖੁ ਖਾਇ ॥
हउमै माइआ महा बिखु खाइ ॥
मनुष्य अहंकारवश माया रूपी महा विष सेवन करता है।
ਪੁਤਿ ਕੁਟੰਬਿ ਗ੍ਰਿਹਿ ਮੋਹਿਆ ਮਾਇ ॥
पुति कुट्मबि ग्रिहि मोहिआ माइ ॥
उसके पुत्र, कुटुंब एवं घर इत्यादि के मोह के कारण माया उसे ठगती रहती है
ਮਨਮੁਖਿ ਅੰਧਾ ਆਵੈ ਜਾਇ ॥੩॥
मनमुखि अंधा आवै जाइ ॥३॥
और वह ज्ञानहीन स्वेच्छाचारी व्यक्ति जन्मता-मरता रहता है॥ ३॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਦੇਵੈ ਜਨੁ ਸੋਇ ॥
हरि हरि नामु देवै जनु सोइ ॥
जिस मनुष्य को हरि-प्रभु अपना नाम देता है,
ਅਨਦਿਨੁ ਭਗਤਿ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਹੋਇ ॥
अनदिनु भगति गुर सबदी होइ ॥
वह उसका भक्त बन जाता है। भगवान की भक्ति रात-दिन सदैव ही गुरु के शब्द से होती है।
ਗੁਰਮਤਿ ਵਿਰਲਾ ਬੂਝੈ ਕੋਇ ॥
गुरमति विरला बूझै कोइ ॥
परन्तु कोई विरला पुरुष ही गुरु की मति द्वारा इस भेद को समझता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਸਮਾਵੈ ਸੋਇ ॥੪॥੧੨॥੩੨॥
नानक नामि समावै सोइ ॥४॥१२॥३२॥
हे नानक ! ऐसा व्यक्ति हमेशा ही ईश्वर के नाम में लीन रहता है॥ ४ ॥ १२ ॥ ३२ ॥
ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ ਮਹਲਾ ੩ ॥
गउड़ी गुआरेरी महला ३ ॥
गउड़ी गुआरेरी महला ३ ॥
ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਜੁਗ ਚਾਰੇ ਹੋਈ ॥
गुर सेवा जुग चारे होई ॥
गुरु की सेवा चारों युगों (सतियुग, त्रैता, द्वापर एवं कलियुग) में सफल हुई है।
ਪੂਰਾ ਜਨੁ ਕਾਰ ਕਮਾਵੈ ਕੋਈ ॥
पूरा जनु कार कमावै कोई ॥
कोई पूर्ण मनुष्य ही गुरु अनुसार कार्य करता है।
ਅਖੁਟੁ ਨਾਮ ਧਨੁ ਹਰਿ ਤੋਟਿ ਨ ਹੋਈ ॥
अखुटु नाम धनु हरि तोटि न होई ॥
सेवा करने वाला मनुष्य अक्षय हरि-नाम रूपी धन संचित कर लेता है और उस नाम-धन में कभी कोई कमी नहीं आती।
ਐਥੈ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਦਰਿ ਸੋਭਾ ਹੋਈ ॥੧॥
ऐथै सदा सुखु दरि सोभा होई ॥१॥
उस मनुष्य को इहलोक में सदैव सुख मिलता है और वह प्रभु के दरबार में भी शोभा प्राप्त करता है॥ १॥
ਏ ਮਨ ਮੇਰੇ ਭਰਮੁ ਨ ਕੀਜੈ ॥
ए मन मेरे भरमु न कीजै ॥
हे मेरे मन ! इसके बारे कोई शंका मत कर।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸੇਵਾ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਰਸੁ ਪੀਜੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरमुखि सेवा अम्रित रसु पीजै ॥१॥ रहाउ ॥
अमृत रस गुरु की सेवा करके ही पान किया जाता है।॥ १॥ रहाउ॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਹਿ ਸੇ ਮਹਾਪੁਰਖ ਸੰਸਾਰੇ ॥
सतिगुरु सेवहि से महापुरख संसारे ॥
जो व्यक्ति सतिगुरु की तन-मन से सेवा करते हैं, वह इस संसार में महापुरुष हैं।
ਆਪਿ ਉਧਰੇ ਕੁਲ ਸਗਲ ਨਿਸਤਾਰੇ ॥
आपि उधरे कुल सगल निसतारे ॥
वह स्वयं भवसागर से पार हो जाते हैं और अपने समूचे वंशों को भी पार कर देते हैं।
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਰਖਹਿ ਉਰ ਧਾਰੇ ॥
हरि का नामु रखहि उर धारे ॥
हरि के नाम को वह अपने हृदय में धारण करके रखते हैं।
ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਭਉਜਲ ਉਤਰਹਿ ਪਾਰੇ ॥੨॥
नामि रते भउजल उतरहि पारे ॥२॥
हरि के नाम में मग्न हुए वह भवसागर से पार हो जाते हैं। २॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਹਿ ਸਦਾ ਮਨਿ ਦਾਸਾ ॥
सतिगुरु सेवहि सदा मनि दासा ॥
जो व्यक्ति मन में विनीत भावना रखकर अपने सतिगुरु की श्रद्धापूर्वक सेवा करते हैं,
ਹਉਮੈ ਮਾਰਿ ਕਮਲੁ ਪਰਗਾਸਾ ॥
हउमै मारि कमलु परगासा ॥
वे अपने अहंत्व को नष्ट कर देते हैं और उनका हृदय कमल प्रफुल्लित हो जाता है।
ਅਨਹਦੁ ਵਾਜੈ ਨਿਜ ਘਰਿ ਵਾਸਾ ॥
अनहदु वाजै निज घरि वासा ॥
उनके मन में अनहद शब्द गूंजने लगता है और वे आत्म-स्वरूप में निवास कर लेते हैं।
ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਘਰ ਮਾਹਿ ਉਦਾਸਾ ॥੩॥
नामि रते घर माहि उदासा ॥३॥
नाम के साथ अनुरक्त हुए वे अपने घर में निर्लिप्त रहते हैं।॥ ३॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਹਿ ਤਿਨ ਕੀ ਸਚੀ ਬਾਣੀ ॥
सतिगुरु सेवहि तिन की सची बाणी ॥
उनकी वाणी सत्य है जो सतिगुरु की सेवा करते हैं।
ਜੁਗੁ ਜੁਗੁ ਭਗਤੀ ਆਖਿ ਵਖਾਣੀ ॥
जुगु जुगु भगती आखि वखाणी ॥
प्रत्येक युग में भगवान के भक्तों ने वाणी की रचना करके उसका बखान किया है।
ਅਨਦਿਨੁ ਜਪਹਿ ਹਰਿ ਸਾਰੰਗਪਾਣੀ ॥
अनदिनु जपहि हरि सारंगपाणी ॥
वे दिन-रात सारंगपाणि प्रभु का सिमरन करते रहते हैं।