ਤਿਨ ਤੂੰ ਵਿਸਰਹਿ ਜਿ ਦੂਜੈ ਭਾਏ ॥
तिन तूं विसरहि जि दूजै भाए ॥
तू उन्हें ही विस्मृत होता है जो माया के मोह में लीन रहते हैं।
ਮਨਮੁਖ ਅਗਿਆਨੀ ਜੋਨੀ ਪਾਏ ॥੨॥
मनमुख अगिआनी जोनी पाए ॥२॥
तू ज्ञानहीन स्वेच्छाचारी जीवों को योनियों में डालकर रखता है॥ २॥
ਜਿਨ ਇਕ ਮਨਿ ਤੁਠਾ ਸੇ ਸਤਿਗੁਰ ਸੇਵਾ ਲਾਏ ॥
जिन इक मनि तुठा से सतिगुर सेवा लाए ॥
जिन प्राणियों पर परमात्मा प्रसन्न होता है, उनको वह सतिगुरु की सेवा में लगा देता है।
ਜਿਨ ਇਕ ਮਨਿ ਤੁਠਾ ਤਿਨ ਹਰਿ ਮੰਨਿ ਵਸਾਏ ॥
जिन इक मनि तुठा तिन हरि मंनि वसाए ॥
जिन प्राणियों पर भगवान बड़ा प्रसन्न होता है, भगवान स्वयं को उनके मन में बसा देता है।
ਗੁਰਮਤੀ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਸਮਾਏ ॥੩॥
गुरमती हरि नामि समाए ॥३॥
गुरु के उपदेश से वह हरि के नाम में लीन हो जाते हैं।॥ ३ ॥
ਜਿਨਾ ਪੋਤੈ ਪੁੰਨੁ ਸੇ ਗਿਆਨ ਬੀਚਾਰੀ ॥
जिना पोतै पुंनु से गिआन बीचारी ॥
जिन्होंने पुण्य-कर्म किए हुए हैं, वे ज्ञान का चिंतन करते रहते हैं
ਜਿਨਾ ਪੋਤੈ ਪੁੰਨੁ ਤਿਨ ਹਉਮੈ ਮਾਰੀ ॥
जिना पोतै पुंनु तिन हउमै मारी ॥
और अपने अहंकार को नष्ट कर देते हैं।
ਨਾਨਕ ਜੋ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਤਿਨ ਕਉ ਬਲਿਹਾਰੀ ॥੪॥੭॥੨੭॥
नानक जो नामि रते तिन कउ बलिहारी ॥४॥७॥२७॥
हे नानक ! जो ईश्वर के नाम में मग्न रहते हैं, मैं उन पर बलिहारी जाता हूँ॥ ४॥ ७॥ २७॥
ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ ਮਹਲਾ ੩ ॥
गउड़ी गुआरेरी महला ३ ॥
गउड़ी गुआरेरी महला ३ ॥
ਤੂੰ ਅਕਥੁ ਕਿਉ ਕਥਿਆ ਜਾਹਿ ॥
तूं अकथु किउ कथिआ जाहि ॥
हे भगवान ! तू अकथनीय है। फिर तुझे किस तरह कथन किया जा सकता है?
ਗੁਰ ਸਬਦੁ ਮਾਰਣੁ ਮਨ ਮਾਹਿ ਸਮਾਹਿ ॥
गुर सबदु मारणु मन माहि समाहि ॥
जो व्यक्ति गुरु के शब्द से अपने मन को वश में कर लेते हैं, भगवान उसके मन में आ बसता है।
ਤੇਰੇ ਗੁਣ ਅਨੇਕ ਕੀਮਤਿ ਨਹ ਪਾਹਿ ॥੧॥
तेरे गुण अनेक कीमति नह पाहि ॥१॥
हे ईश्वर ! तेरे गुण अनेक हैं और उनका मूल्यांकन नहीं किया जा सकता ॥ १॥
ਜਿਸ ਕੀ ਬਾਣੀ ਤਿਸੁ ਮਾਹਿ ਸਮਾਣੀ ॥
जिस की बाणी तिसु माहि समाणी ॥
यह गुरुवाणी जिस (परमेश्वर) की है, उस (प्रभु) में ही लीन रहती है।
ਤੇਰੀ ਅਕਥ ਕਥਾ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਵਖਾਣੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तेरी अकथ कथा गुर सबदि वखाणी ॥१॥ रहाउ ॥
हे प्रभु ! तेरी अकथनीय कथा को गुरु के शब्द द्वारा ही वर्णन किया गया है॥ १॥ रहाउ ॥
ਜਹ ਸਤਿਗੁਰੁ ਤਹ ਸਤਸੰਗਤਿ ਬਣਾਈ ॥
जह सतिगुरु तह सतसंगति बणाई ॥
जहाँ सतिगुरु जी होते हैं, वहाँ सत्संगति हो जाती है।
ਜਹ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸਹਜੇ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਈ ॥
जह सतिगुरु सहजे हरि गुण गाई ॥
सतिगुरु सत्संगति में सहज ही भगवान की गुणस्तुति करते हैं।
ਜਹ ਸਤਿਗੁਰੁ ਤਹਾ ਹਉਮੈ ਸਬਦਿ ਜਲਾਈ ॥੨॥
जह सतिगुरु तहा हउमै सबदि जलाई ॥२॥
जहाँ सतिगुरु जी होते हैं, वहाँ नाम द्वारा प्राणियों का अहंकार जल जाता है। २॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸੇਵਾ ਮਹਲੀ ਥਾਉ ਪਾਏ ॥
गुरमुखि सेवा महली थाउ पाए ॥
गुरमुख ईश्वर की सेवा-भक्ति करके उसके आत्म-स्वरूप में स्थान प्राप्त कर लेता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਅੰਤਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਵਸਾਏ ॥
गुरमुखि अंतरि हरि नामु वसाए ॥
गुरमुख ही अपने हृदय में भगवान के नाम को बसा लेता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਭਗਤਿ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਸਮਾਏ ॥੩॥
गुरमुखि भगति हरि नामि समाए ॥३॥
गुरमुख भक्ति द्वारा भगवान के नाम में ही समा जाता है॥ ३॥
ਆਪੇ ਦਾਤਿ ਕਰੇ ਦਾਤਾਰੁ ॥
आपे दाति करे दातारु ॥
दाता प्रभु जिस व्यक्ति को नाम की देन प्रदान करता है,
ਪੂਰੇ ਸਤਿਗੁਰ ਸਿਉ ਲਗੈ ਪਿਆਰੁ ॥
पूरे सतिगुर सिउ लगै पिआरु ॥
उस व्यक्ति का पूर्ण सतिगुरु से प्रेम हो जाता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਤਿਨ ਕਉ ਜੈਕਾਰੁ ॥੪॥੮॥੨੮॥
नानक नामि रते तिन कउ जैकारु ॥४॥८॥२८॥
हे नानक ! जो व्यक्ति नाम में मग्न रहते हैं, उनकी लोक-परलोक में जय-जयकार होती है ॥ ४ ॥ ८ ॥ २८ ॥
ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ ਮਹਲਾ ੩ ॥
गउड़ी गुआरेरी महला ३ ॥
गउड़ी गुआरेरी महला ३ ॥
ਏਕਸੁ ਤੇ ਸਭਿ ਰੂਪ ਹਹਿ ਰੰਗਾ ॥
एकसु ते सभि रूप हहि रंगा ॥
एक ईश्वर से ही समस्त रूप एवं रंग उत्पन्न हुए हैं।
ਪਉਣੁ ਪਾਣੀ ਬੈਸੰਤਰੁ ਸਭਿ ਸਹਲੰਗਾ ॥
पउणु पाणी बैसंतरु सभि सहलंगा ॥
पवन, जल एवं अग्नि सब में मिले हुए हैं।
ਭਿੰਨ ਭਿੰਨ ਵੇਖੈ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਰੰਗਾ ॥੧॥
भिंन भिंन वेखै हरि प्रभु रंगा ॥१॥
हरि-प्रभु इन भिन्न-भिन्न रंगों वाले जीवों एवं पदार्थों को देखकर प्रसन्न होता है॥ १॥
ਏਕੁ ਅਚਰਜੁ ਏਕੋ ਹੈ ਸੋਈ ॥
एकु अचरजु एको है सोई ॥
यह एक अदभुत कौतुक है कि यह सारा जगत-प्रसार एक ईश्वर का ही है और वह स्वयं इसमें विद्यमान है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਵੀਚਾਰੇ ਵਿਰਲਾ ਕੋਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरमुखि वीचारे विरला कोई ॥१॥ रहाउ ॥
कोई विरला पुरुष ही गुरु के माध्यम से इस कौतुक पर विचार करता है॥ १॥ रहाउ ॥
ਸਹਜਿ ਭਵੈ ਪ੍ਰਭੁ ਸਭਨੀ ਥਾਈ ॥
सहजि भवै प्रभु सभनी थाई ॥
परमेश्वर सहज ही सर्वव्यापक हो रहा है।
ਕਹਾ ਗੁਪਤੁ ਪ੍ਰਗਟੁ ਪ੍ਰਭਿ ਬਣਤ ਬਣਾਈ ॥
कहा गुपतु प्रगटु प्रभि बणत बणाई ॥
परमेश्वर ने ऐसी सृष्टि रचना की है कि किसी स्थान पर वह लुप्त है और कहीं प्रत्यक्ष है।
ਆਪੇ ਸੁਤਿਆ ਦੇਇ ਜਗਾਈ ॥੨॥
आपे सुतिआ देइ जगाई ॥२॥
भगवान स्वयं ही अज्ञानता की निद्रा में सोए हुए जीवों को ज्ञान देकर जगा देता है॥ २॥
ਤਿਸ ਕੀ ਕੀਮਤਿ ਕਿਨੈ ਨ ਹੋਈ ॥
तिस की कीमति किनै न होई ॥
उसका मूल्यांकन कोई नहीं कर सका
ਕਹਿ ਕਹਿ ਕਥਨੁ ਕਹੈ ਸਭੁ ਕੋਈ ॥
कहि कहि कथनु कहै सभु कोई ॥
चाहे सभी लोग उसके गुणों को कह-कहकर कथन कर रहे हैं।
ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਸਮਾਵੈ ਬੂਝੈ ਹਰਿ ਸੋਈ ॥੩॥
गुर सबदि समावै बूझै हरि सोई ॥३॥
जो प्राणी गुरु के शब्द में लीन होता है, वह भगवान को समझ लेता है॥ ३॥
ਸੁਣਿ ਸੁਣਿ ਵੇਖੈ ਸਬਦਿ ਮਿਲਾਏ ॥
सुणि सुणि वेखै सबदि मिलाए ॥
भगवान जीवों की प्रार्थना सुन-सुनकर उनकी जरुरतों को देखता और उन्हें नाम द्वारा अपने साथ मिला लेता है।
ਵਡੀ ਵਡਿਆਈ ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਤੇ ਪਾਏ ॥
वडी वडिआई गुर सेवा ते पाए ॥
गुरु की सेवा करने से मनुष्य को बड़ी शोभा प्राप्त होती है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਸਮਾਏ ॥੪॥੯॥੨੯॥
नानक नामि रते हरि नामि समाए ॥४॥९॥२९॥
हे नानक ! जो व्यक्ति नाम में मग्न रहते हैं, वह भगवान के नाम में ही समा जाते हैं॥ ४॥ ६ ॥ २९ ॥
ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ ਮਹਲਾ ੩ ॥
गउड़ी गुआरेरी महला ३ ॥
गउड़ी गुआरेरी महला ३ ॥
ਮਨਮੁਖਿ ਸੂਤਾ ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਪਿਆਰਿ ॥
मनमुखि सूता माइआ मोहि पिआरि ॥
स्वेच्छाचारी जीव माया के मोह एवं प्रेम में फंस कर अज्ञानता की निदा में सोया रहता है
ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਾਗੇ ਗੁਣ ਗਿਆਨ ਬੀਚਾਰਿ ॥
गुरमुखि जागे गुण गिआन बीचारि ॥
परन्तु गुरमुख भगवान के गुणों का चिंतन करके ज्ञान द्वारा जागता रहता है।
ਸੇ ਜਨ ਜਾਗੇ ਜਿਨ ਨਾਮ ਪਿਆਰਿ ॥੧॥
से जन जागे जिन नाम पिआरि ॥१॥
जो व्यक्ति प्रभु के नाम से प्रेम करते हैं, वहीं जागते रहते हैं।॥ १॥
ਸਹਜੇ ਜਾਗੈ ਸਵੈ ਨ ਕੋਇ ॥
सहजे जागै सवै न कोइ ॥
जो व्यक्ति सहज ही जागता रहता है, वह अज्ञानता की निद्रा में नहीं सोता।
ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਤੇ ਬੂਝੈ ਜਨੁ ਕੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
पूरे गुर ते बूझै जनु कोइ ॥१॥ रहाउ ॥
इस तथ्य को कोई पुरुष पूर्ण गुरु द्वारा समझता है॥ १॥ रहाउ॥
ਅਸੰਤੁ ਅਨਾੜੀ ਕਦੇ ਨ ਬੂਝੈ ॥
असंतु अनाड़ी कदे न बूझै ॥
दुष्ट एवं अनाड़ी व्यक्ति समझाने से कभी भी नहीं समझता।
ਕਥਨੀ ਕਰੇ ਤੈ ਮਾਇਆ ਨਾਲਿ ਲੂਝੈ ॥
कथनी करे तै माइआ नालि लूझै ॥
वह बातें तो बहुत करता रहता है परन्तु माया से ही उलझा रहता है।
ਅੰਧੁ ਅਗਿਆਨੀ ਕਦੇ ਨ ਸੀਝੈ ॥੨॥
अंधु अगिआनी कदे न सीझै ॥२॥
मोह-माया में अन्धा हुआ ज्ञानहीन व्यक्ति कभी भी अपने जीवन-मनोरथ में सफल नहीं होता ॥ २॥
ਇਸੁ ਜੁਗ ਮਹਿ ਰਾਮ ਨਾਮਿ ਨਿਸਤਾਰਾ ॥
इसु जुग महि राम नामि निसतारा ॥
इस युग में राम के नाम द्वारा ही मोक्ष संभव है।
ਵਿਰਲਾ ਕੋ ਪਾਏ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਵੀਚਾਰਾ ॥
विरला को पाए गुर सबदि वीचारा ॥
कोई विरला पुरुष ही गुरु के शब्द द्वारा इस तथ्य को समझता है।
ਆਪਿ ਤਰੈ ਸਗਲੇ ਕੁਲ ਉਧਾਰਾ ॥੩॥
आपि तरै सगले कुल उधारा ॥३॥
वह स्वयं तो भवसागर से पार होता है और अपने समूचे वंश को भी बचा लेता है॥ ३॥