ਇਸ ਹੀ ਮਧੇ ਬਸਤੁ ਅਪਾਰ ॥
इस ही मधे बसतु अपार ॥
इस मन्दिर में अनन्त प्रभु की नाम-रूपी वस्तु विद्यमान है।
ਇਸ ਹੀ ਭੀਤਰਿ ਸੁਨੀਅਤ ਸਾਹੁ ॥
इस ही भीतरि सुनीअत साहु ॥
संतों से सुनते हैं कि इस मन्दिर में ही नाम देने वाला साहूकार प्रभु निवास करता है |
ਕਵਨੁ ਬਾਪਾਰੀ ਜਾ ਕਾ ਊਹਾ ਵਿਸਾਹੁ ॥੧॥
कवनु बापारी जा का ऊहा विसाहु ॥१॥
वह कौन सा व्यापारी है जिसका वँहा विश्वास किया जाता है ॥१ ॥
ਨਾਮ ਰਤਨ ਕੋ ਕੋ ਬਿਉਹਾਰੀ ॥
नाम रतन को को बिउहारी ॥
कोई विरला ही व्यापारी है, जो नाम रत्न का व्यापार करता है।
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਭੋਜਨੁ ਕਰੇ ਆਹਾਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अम्रित भोजनु करे आहारी ॥१॥ रहाउ ॥
वह व्यापारी नाम रूपी अमृत को अपना आहार बनाता है। ॥१॥ रहाउ॥
ਮਨੁ ਤਨੁ ਅਰਪੀ ਸੇਵ ਕਰੀਜੈ ॥
मनु तनु अरपी सेव करीजै ॥
मैं अपना मन एवं तन उसे अर्पण करके उसकी सेवा करूंगा
ਕਵਨ ਸੁ ਜੁਗਤਿ ਜਿਤੁ ਕਰਿ ਭੀਜੈ ॥
कवन सु जुगति जितु करि भीजै ॥
जो मुझे यह बताए कि वह कौन-सी युक्ति है जिससे परमात्मा हर्षित होता है।
ਪਾਇ ਲਗਉ ਤਜਿ ਮੇਰਾ ਤੇਰੈ ॥
पाइ लगउ तजि मेरा तेरै ॥
अपना अहंत्व मेरी-तेरी गंवा कर मैं उसके चरण स्पर्श करता हूँ।
ਕਵਨੁ ਸੁ ਜਨੁ ਜੋ ਸਉਦਾ ਜੋਰੈ ॥੨॥
कवनु सु जनु जो सउदा जोरै ॥२॥
वह कौन-सा मनुष्य है, जो मुझे भी नाम के व्यापार में लगा दे॥ २॥
ਮਹਲੁ ਸਾਹ ਕਾ ਕਿਨ ਬਿਧਿ ਪਾਵੈ ॥
महलु साह का किन बिधि पावै ॥
किस विधि से मैं उस व्यापारी के मन्दिर पहुँच सकता हूँ।
ਕਵਨ ਸੁ ਬਿਧਿ ਜਿਤੁ ਭੀਤਰਿ ਬੁਲਾਵੈ ॥
कवन सु बिधि जितु भीतरि बुलावै ॥
वह कौन-सी विधि है जिस द्वारा वह मुझे अन्दर बुलवा ले ?
ਤੂੰ ਵਡ ਸਾਹੁ ਜਾ ਕੇ ਕੋਟਿ ਵਣਜਾਰੇ ॥
तूं वड साहु जा के कोटि वणजारे ॥
हे प्रभु! तू बड़ा व्यापारी है, जिसके करोड़ों ही दुकानदार हैं।
ਕਵਨੁ ਸੁ ਦਾਤਾ ਲੇ ਸੰਚਾਰੇ ॥੩॥
कवनु सु दाता ले संचारे ॥३॥
वह कौन-सा दाता है जो मुझे हाथ से पकड़ कर उसके मन्दिर में पहुँचा दे। ३॥
ਖੋਜਤ ਖੋਜਤ ਨਿਜ ਘਰੁ ਪਾਇਆ ॥
खोजत खोजत निज घरु पाइआ ॥
खोजते-खोजते मैंने अपना धाम (गृह) पा लिया है।
ਅਮੋਲ ਰਤਨੁ ਸਾਚੁ ਦਿਖਲਾਇਆ ॥
अमोल रतनु साचु दिखलाइआ ॥
सत्यस्वरूप प्रभु ने मुझे अमूल्य रत्न दिखा दिया है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਜਬ ਮੇਲੇ ਸਾਹਿ ॥
करि किरपा जब मेले साहि ॥
जब व्यापारी (प्रभु) कृपा करता है, वह प्राणी को अपने साथ मिला लेता है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਕੈ ਵੇਸਾਹਿ ॥੪॥੧੬॥੮੫॥
कहु नानक गुर कै वेसाहि ॥४॥१६॥८५॥
हे नानक ! यह तब होता है, जब प्राणी गुरु जी पर विश्वास धारण कर लेता है ॥४॥१६॥८५॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ਗੁਆਰੇਰੀ ॥
गउड़ी महला ५ गुआरेरी ॥
गउड़ी महला ५ गुआरेरी ॥
ਰੈਣਿ ਦਿਨਸੁ ਰਹੈ ਇਕ ਰੰਗਾ ॥
रैणि दिनसु रहै इक रंगा ॥
जो व्यक्ति दिन-रात भगवान के प्रेम में मग्न रहते हैं
ਪ੍ਰਭ ਕਉ ਜਾਣੈ ਸਦ ਹੀ ਸੰਗਾ ॥
प्रभ कउ जाणै सद ही संगा ॥
और प्रभु को हमेशा अपने आसपास समझते हैं,
ਠਾਕੁਰ ਨਾਮੁ ਕੀਓ ਉਨਿ ਵਰਤਨਿ ॥
ठाकुर नामु कीओ उनि वरतनि ॥
उन्होंने ठाकुर के नाम को अपना जीवन-आचरण बना लिया है।
ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਅਘਾਵਨੁ ਹਰਿ ਕੈ ਦਰਸਨਿ ॥੧॥
त्रिपति अघावनु हरि कै दरसनि ॥१॥
वह ईश्वर के दर्शनों द्वारा संतुष्ट एवं तृप्त हो जाते हैं। १॥
ਹਰਿ ਸੰਗਿ ਰਾਤੇ ਮਨ ਤਨ ਹਰੇ ॥
हरि संगि राते मन तन हरे ॥
ईश्वर के साथ अनुरक्त होने से उनका मन एवं तन प्रफुल्लित हो जाते हैं।
ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਕੀ ਸਰਨੀ ਪਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुर पूरे की सरनी परे ॥१॥ रहाउ ॥
वे पूर्ण गुरु की शरण लेते हैं। १॥ रहाउ ॥
ਚਰਣ ਕਮਲ ਆਤਮ ਆਧਾਰ ॥
चरण कमल आतम आधार ॥
ईश्वर के चरण कमल उनकी आत्मा का आधार बन जाता है।
ਏਕੁ ਨਿਹਾਰਹਿ ਆਗਿਆਕਾਰ ॥
एकु निहारहि आगिआकार ॥
वह एक ईश्वर को ही देखते हैं और उसके आज्ञाकारी बन जाते हैं।
ਏਕੋ ਬਨਜੁ ਏਕੋ ਬਿਉਹਾਰੀ ॥
एको बनजु एको बिउहारी ॥
वे एक नाम का ही व्यापार करते हैं और नाम-सिमरन ही उनका व्यवसाय बन जाता है।
ਅਵਰੁ ਨ ਜਾਨਹਿ ਬਿਨੁ ਨਿਰੰਕਾਰੀ ॥੨॥
अवरु न जानहि बिनु निरंकारी ॥२॥
निरंकार परमेश्वर के बिना वह किसी को भी नहीं जानते। ॥२॥
ਹਰਖ ਸੋਗ ਦੁਹਹੂੰ ਤੇ ਮੁਕਤੇ ॥
हरख सोग दुहहूं ते मुकते ॥
वे हर्ष एवं शोक दोनों से मुक्त हैं।
ਸਦਾ ਅਲਿਪਤੁ ਜੋਗ ਅਰੁ ਜੁਗਤੇ ॥
सदा अलिपतु जोग अरु जुगते ॥
हमेशा ही संसार से निर्लिप्त और प्रभु से जुड़े रहने की विधि उनको आती है।
ਦੀਸਹਿ ਸਭ ਮਹਿ ਸਭ ਤੇ ਰਹਤੇ ॥
दीसहि सभ महि सभ ते रहते ॥
वे सबसे प्रेम करते दिखाई देते हैं और सबसे अलग भी दिखाई देते हैं।
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਕਾ ਓਇ ਧਿਆਨੁ ਧਰਤੇ ॥੩॥
पारब्रहम का ओइ धिआनु धरते ॥३॥
वे पारब्रह्म-प्रभु के स्मरण में वृत्ति लगाकर रखते हैं। ॥३॥
ਸੰਤਨ ਕੀ ਮਹਿਮਾ ਕਵਨ ਵਖਾਨਉ ॥
संतन की महिमा कवन वखानउ ॥
संतों की महिमा का मैं क्या-क्या वर्णन कर सकता हूँ।
ਅਗਾਧਿ ਬੋਧਿ ਕਿਛੁ ਮਿਤਿ ਨਹੀ ਜਾਨਉ ॥
अगाधि बोधि किछु मिति नही जानउ ॥
उनका बोध अनन्त है लेकिन मैं उनका मूल्य नहीं जानता।
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਮੋਹਿ ਕਿਰਪਾ ਕੀਜੈ ॥
पारब्रहम मोहि किरपा कीजै ॥
हे पारब्रह्म-परमेश्वर ! मुझ पर कृपा कीजिए,
ਧੂਰਿ ਸੰਤਨ ਕੀ ਨਾਨਕ ਦੀਜੈ ॥੪॥੧੭॥੮੬॥
धूरि संतन की नानक दीजै ॥४॥१७॥८६॥
नानक को संतों की चरण-धूलि प्रदान करो ॥४॥१७॥८६॥
ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी गुआरेरी महला ५ ॥
गउड़ी गुआरेरी महला ५ ॥
ਤੂੰ ਮੇਰਾ ਸਖਾ ਤੂੰਹੀ ਮੇਰਾ ਮੀਤੁ ॥
तूं मेरा सखा तूंही मेरा मीतु ॥
हे ईश्वर ! तू ही मेरा साथी है और तू ही मेरा मित्र।
ਤੂੰ ਮੇਰਾ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਤੁਮ ਸੰਗਿ ਹੀਤੁ ॥
तूं मेरा प्रीतमु तुम संगि हीतु ॥
तू ही मेरा प्रियतम है और तेरे साथ ही मेरा प्रेम है।
ਤੂੰ ਮੇਰੀ ਪਤਿ ਤੂਹੈ ਮੇਰਾ ਗਹਣਾ ॥
तूं मेरी पति तूहै मेरा गहणा ॥
तू ही मेरी प्रतिष्ठा है और तू ही मेरा आभूषण है।
ਤੁਝ ਬਿਨੁ ਨਿਮਖੁ ਨ ਜਾਈ ਰਹਣਾ ॥੧॥
तुझ बिनु निमखु न जाई रहणा ॥१॥
तेरे बिना में एक क्षण भर भी नहीं रह सकता ॥ १ ॥
ਤੂੰ ਮੇਰੇ ਲਾਲਨ ਤੂੰ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰਾਨ ॥
तूं मेरे लालन तूं मेरे प्रान ॥
हे प्रभु! तू ही मेरा सुन्दर लाल है और तू ही मेरे प्राण है।
ਤੂੰ ਮੇਰੇ ਸਾਹਿਬ ਤੂੰ ਮੇਰੇ ਖਾਨ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तूं मेरे साहिब तूं मेरे खान ॥१॥ रहाउ ॥
तू मेरा स्वामी है और तू ही मेरा सामन्त है। १॥ रहाउ॥
ਜਿਉ ਤੁਮ ਰਾਖਹੁ ਤਿਵ ਹੀ ਰਹਨਾ ॥
जिउ तुम राखहु तिव ही रहना ॥
हे ठाकुर ! जैसे तुम मुझे रखते हो, वैसे ही मैं रहता हूँ।
ਜੋ ਤੁਮ ਕਹਹੁ ਸੋਈ ਮੋਹਿ ਕਰਨਾ ॥
जो तुम कहहु सोई मोहि करना ॥
जो कुछ तुम कहते हो, वही में करता हूँ।
ਜਹ ਪੇਖਉ ਤਹਾ ਤੁਮ ਬਸਨਾ ॥
जह पेखउ तहा तुम बसना ॥
जहाँ कहीं भी मैं देखता हूँ, उधर ही मैं तेरा निवास पाता हूँ।
ਨਿਰਭਉ ਨਾਮੁ ਜਪਉ ਤੇਰਾ ਰਸਨਾ ॥੨॥
निरभउ नामु जपउ तेरा रसना ॥२॥
हे निर्भय प्रभु! अपनी जिह्म से मैं तेरे नाम का जाप करता रहता हूँ। ॥२॥
ਤੂੰ ਮੇਰੀ ਨਵ ਨਿਧਿ ਤੂੰ ਭੰਡਾਰੁ ॥
तूं मेरी नव निधि तूं भंडारु ॥
हे प्रभु! तू मेरी नवनिधि है और तू ही मेरा भण्डार है।
ਰੰਗ ਰਸਾ ਤੂੰ ਮਨਹਿ ਅਧਾਰੁ ॥
रंग रसा तूं मनहि अधारु ॥
हे स्वामी ! तेरे प्रेम से मैं साँचा हुआ हूँ और तू मेरे मन का आधार है।
ਤੂੰ ਮੇਰੀ ਸੋਭਾ ਤੁਮ ਸੰਗਿ ਰਚੀਆ ॥
तूं मेरी सोभा तुम संगि रचीआ ॥
तू ही मेरी शोभा है और तेरे साथ ही मैं सुरति लगाकर रखता हूँ।
ਤੂੰ ਮੇਰੀ ਓਟ ਤੂੰ ਹੈ ਮੇਰਾ ਤਕੀਆ ॥੩॥
तूं मेरी ओट तूं है मेरा तकीआ ॥३॥
तू मेरी शरण है और तू ही मेरा आश्रय है। ॥३॥
ਮਨ ਤਨ ਅੰਤਰਿ ਤੁਹੀ ਧਿਆਇਆ ॥
मन तन अंतरि तुही धिआइआ ॥
हे प्रभु! मैं अपने मन एवं तन में तेरा ही ध्यान करता रहता हूँ।
ਮਰਮੁ ਤੁਮਾਰਾ ਗੁਰ ਤੇ ਪਾਇਆ ॥
मरमु तुमारा गुर ते पाइआ ॥
तेरा भेद मैंने गुरु जी से प्राप्त किया है।
ਸਤਿਗੁਰ ਤੇ ਦ੍ਰਿੜਿਆ ਇਕੁ ਏਕੈ ॥
सतिगुर ते द्रिड़िआ इकु एकै ॥
सतिगुरु से मैंने एक ईश्वर का नाम-सिमरन ही दृढ़ किया है।
ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਟੇਕੈ ॥੪॥੧੮॥੮੭॥
नानक दास हरि हरि हरि टेकै ॥४॥१८॥८७॥
हे नानक ! हरि-परमेश्वर का नाम ही मेरा एक आधार हैं ॥४॥१८॥८७॥
ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी गुआरेरी महला ५ ॥
गउड़ी गुआरेरी महला ५ ॥