ਠਾਕੁਰ ਕੇ ਸੇਵਕ ਹਰਿ ਰੰਗ ਮਾਣਹਿ ॥
ठाकुर के सेवक हरि रंग माणहि ॥
परमात्मा के सेवक ईश्वर की प्रीति का आनन्द भोगते हैं।
ਜੋ ਕਿਛੁ ਠਾਕੁਰ ਕਾ ਸੋ ਸੇਵਕ ਕਾ ਸੇਵਕੁ ਠਾਕੁਰ ਹੀ ਸੰਗਿ ਜਾਹਰੁ ਜੀਉ ॥੩॥
जो किछु ठाकुर का सो सेवक का सेवकु ठाकुर ही संगि जाहरु जीउ ॥३॥
जो कुछ परमात्मा का है, वही उसके सेवक का है। सेवक अपने परमात्मा की संगति में जगत् में लोकप्रिय होता है। ॥३॥
ਅਪੁਨੈ ਠਾਕੁਰਿ ਜੋ ਪਹਿਰਾਇਆ ॥
अपुनै ठाकुरि जो पहिराइआ ॥
जिसको उसका परमात्मा प्रतिष्ठा की पोशाक पहनाता है,
ਬਹੁਰਿ ਨ ਲੇਖਾ ਪੁਛਿ ਬੁਲਾਇਆ ॥
बहुरि न लेखा पुछि बुलाइआ ॥
उसे फिर बुलाकर उसके कर्मों का लेखा नहीं पूछता।
ਤਿਸੁ ਸੇਵਕ ਕੈ ਨਾਨਕ ਕੁਰਬਾਣੀ ਸੋ ਗਹਿਰ ਗਭੀਰਾ ਗਉਹਰੁ ਜੀਉ ॥੪॥੧੮॥੨੫॥
तिसु सेवक कै नानक कुरबाणी सो गहिर गभीरा गउहरु जीउ ॥४॥१८॥२५॥
हे नानक ! मैं उस सेवक पर सदैव कुर्बान हूँ जो प्रभु की तरह अथाह, गंभीर एवं अमूल्य मोती बन जाता है।॥४॥१८॥२५॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥
माझ महला ५ ॥
माझ महला ५ ॥
ਸਭ ਕਿਛੁ ਘਰ ਮਹਿ ਬਾਹਰਿ ਨਾਹੀ ॥
सभ किछु घर महि बाहरि नाही ॥
सब कुछ शरीर रूपी घर में ही है और शरीर से बाहर कुछ भी नहीं है।
ਬਾਹਰਿ ਟੋਲੈ ਸੋ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਹੀ ॥
बाहरि टोलै सो भरमि भुलाही ॥
जो व्यक्ति भगवान को हृदय से बाहर ढूंढता है, वह भ्रम में पड़कर भटकता रहता है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਜਿਨੀ ਅੰਤਰਿ ਪਾਇਆ ਸੋ ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਸੁਹੇਲਾ ਜੀਉ ॥੧॥
गुर परसादी जिनी अंतरि पाइआ सो अंतरि बाहरि सुहेला जीउ ॥१॥
गुरु की दया से जिसने भगवान को हृदय में पाया है, वह अन्दर एवं बाहर से सुखी है॥ १॥
ਝਿਮਿ ਝਿਮਿ ਵਰਸੈ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਧਾਰਾ ॥
झिमि झिमि वरसै अम्रित धारा ॥
उसके अन्दर नाम रूपी अमृत की धारा रिमझिम कर बरसती है।
ਮਨੁ ਪੀਵੈ ਸੁਨਿ ਸਬਦੁ ਬੀਚਾਰਾ ॥
मनु पीवै सुनि सबदु बीचारा ॥
मन उस नाम रूपी अमृत का पान करता है।
ਅਨਦ ਬਿਨੋਦ ਕਰੇ ਦਿਨ ਰਾਤੀ ਸਦਾ ਸਦਾ ਹਰਿ ਕੇਲਾ ਜੀਉ ॥੨॥
अनद बिनोद करे दिन राती सदा सदा हरि केला जीउ ॥२॥
अनहद शब्द को सुनकर मन उस बारे चिन्तन करता है। मेरा मन दिन-रात आनंद प्राप्त करता है और भगवान के साथ विलास करता है॥२॥
ਜਨਮ ਜਨਮ ਕਾ ਵਿਛੁੜਿਆ ਮਿਲਿਆ ॥
जनम जनम का विछुड़िआ मिलिआ ॥
मैं भगवान से जन्म-जन्मांतरों का बिछुड़ा हुआ उससे मिल गया हूँ।
ਸਾਧ ਕ੍ਰਿਪਾ ਤੇ ਸੂਕਾ ਹਰਿਆ ॥
साध क्रिपा ते सूका हरिआ ॥
साधु की कृपा से मेरा मुरझाया हुआ मन प्रफुल्लित हो गया है।
ਸੁਮਤਿ ਪਾਏ ਨਾਮੁ ਧਿਆਏ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਏ ਮੇਲਾ ਜੀਉ ॥੩॥
सुमति पाए नामु धिआए गुरमुखि होए मेला जीउ ॥३॥
गुरु से सुमति प्राप्त करके नाम-सिमरन करने से मेरा भगवान से मिलाप हो गया है ॥३ ॥
ਜਲ ਤਰੰਗੁ ਜਿਉ ਜਲਹਿ ਸਮਾਇਆ ॥
जल तरंगु जिउ जलहि समाइआ ॥
जिस तरह जल की लहरें जल में मिल जाती हैं,
ਤਿਉ ਜੋਤੀ ਸੰਗਿ ਜੋਤਿ ਮਿਲਾਇਆ ॥
तिउ जोती संगि जोति मिलाइआ ॥
इसी तरह मेरी ज्योति परमात्मा की ज्योति में मिल गई है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਭ੍ਰਮ ਕਟੇ ਕਿਵਾੜਾ ਬਹੁੜਿ ਨ ਹੋਈਐ ਜਉਲਾ ਜੀਉ ॥੪॥੧੯॥੨੬॥
कहु नानक भ्रम कटे किवाड़ा बहुड़ि न होईऐ जउला जीउ ॥४॥१९॥२६॥
हे नानक ! भगवान ने भ्रम रूपी किवाड़ काट दिए हैं और अब मेरा मन पुनः माया के पीछे नहीं भटकता ॥४॥१६॥२६॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥
माझ महला ५ ॥
माझ महला ५ ॥
ਤਿਸੁ ਕੁਰਬਾਣੀ ਜਿਨਿ ਤੂੰ ਸੁਣਿਆ ॥
तिसु कुरबाणी जिनि तूं सुणिआ ॥
हे ईश्वर ! मैं उस महापुरुष पर कुर्बान जाता हूँ, जिसने तेरा नाम श्रवण किया है।
ਤਿਸੁ ਬਲਿਹਾਰੀ ਜਿਨਿ ਰਸਨਾ ਭਣਿਆ ॥
तिसु बलिहारी जिनि रसना भणिआ ॥
जिसने अपनी जिव्हा से तेरे नाम का उच्चारण किया है, मैं उस महापुरुष पर कुर्बान जाता हूँ।
ਵਾਰਿ ਵਾਰਿ ਜਾਈ ਤਿਸੁ ਵਿਟਹੁ ਜੋ ਮਨਿ ਤਨਿ ਤੁਧੁ ਆਰਾਧੇ ਜੀਉ ॥੧॥
वारि वारि जाई तिसु विटहु जो मनि तनि तुधु आराधे जीउ ॥१॥
हे प्रभु! जो प्राणी मन-तन से तेरी आराधना करता है, मैं सदैव ही तन-मन से उस पर न्योछावर हूँ॥१॥
ਤਿਸੁ ਚਰਣ ਪਖਾਲੀ ਜੋ ਤੇਰੈ ਮਾਰਗਿ ਚਾਲੈ ॥
तिसु चरण पखाली जो तेरै मारगि चालै ॥
मैं उस व्यक्ति के चरण धोता हूँ जो तेरे मार्ग पर चलता है।
ਨੈਨ ਨਿਹਾਲੀ ਤਿਸੁ ਪੁਰਖ ਦਇਆਲੈ ॥
नैन निहाली तिसु पुरख दइआलै ॥
मैं उस दयालु महापुरुष के नयनों से दर्शन करता हूँ।
ਮਨੁ ਦੇਵਾ ਤਿਸੁ ਅਪੁਨੇ ਸਾਜਨ ਜਿਨਿ ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਲਾਧੇ ਜੀਉ ॥੨॥
मनु देवा तिसु अपुने साजन जिनि गुर मिलि सो प्रभु लाधे जीउ ॥२॥
मैं अपना मन अपने उस मित्र को अर्पण करता हूँ, जिसने गुरु से मिलकर उस प्रभु को ढूंढ लिया है॥२॥
ਸੇ ਵਡਭਾਗੀ ਜਿਨਿ ਤੁਮ ਜਾਣੇ ॥
से वडभागी जिनि तुम जाणे ॥
हे भगवान ! वे मनुष्य बड़े भाग्यशाली हैं, जिन्होंने तुझे समझ लिया है।
ਭ ਕੈ ਮਧੇ ਅਲਿਪਤ ਨਿਰਬਾਣੇ ॥
सभ कै मधे अलिपत निरबाणे ॥
वे पुरुष सबके मध्य निर्लिप्त और निर्विकार हैं।
ਸਾਧ ਕੈ ਸੰਗਿ ਉਨਿ ਭਉਜਲੁ ਤਰਿਆ ਸਗਲ ਦੂਤ ਉਨਿ ਸਾਧੇ ਜੀਉ ॥੩॥
साध कै संगि उनि भउजलु तरिआ सगल दूत उनि साधे जीउ ॥३॥
संतों की संगति करके वे भवसागर से पार हो जाते हैं और काम आदि सकल दूत वश में कर लिए हैं।॥३॥
ਤਿਨ ਕੀ ਸਰਣਿ ਪਰਿਆ ਮਨੁ ਮੇਰਾ ॥
तिन की सरणि परिआ मनु मेरा ॥
मेरा मन उनकी शरण में आ गया है,”
ਮਾਣੁ ਤਾਣੁ ਤਜਿ ਮੋਹੁ ਅੰਧੇਰਾ ॥
माणु ताणु तजि मोहु अंधेरा ॥
और अहंकार, बल एवं अँधेरा पैदा करने वाले मोह को त्याग दिया है ।
ਨਾਮੁ ਦਾਨੁ ਦੀਜੈ ਨਾਨਕ ਕਉ ਤਿਸੁ ਪ੍ਰਭ ਅਗਮ ਅਗਾਧੇ ਜੀਉ ॥੪॥੨੦॥੨੭॥
नामु दानु दीजै नानक कउ तिसु प्रभ अगम अगाधे जीउ ॥४॥२०॥२७॥
हे प्रभु! नानक को अगम्य, अगोचर परमात्मा के नाम का दान प्रदान कीजिए॥४॥२० ॥२७ ॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥
माझ महला ५ ॥
माझ महला ५ ॥
ਤੂੰ ਪੇਡੁ ਸਾਖ ਤੇਰੀ ਫੂਲੀ ॥
तूं पेडु साख तेरी फूली ॥
हे पूज्य परमेश्वर ! तू एक पेड़ है और यह सृष्टि तेरी प्रफुल्लित हुई शाखा है।
ਤੂੰ ਸੂਖਮੁ ਹੋਆ ਅਸਥੂਲੀ ॥
तूं सूखमु होआ असथूली ॥
तू सूक्ष्म रूप से स्थूल रूप में बदल गया है।
ਤੂੰ ਜਲਨਿਧਿ ਤੂੰ ਫੇਨੁ ਬੁਦਬੁਦਾ ਤੁਧੁ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਭਾਲੀਐ ਜੀਉ ॥੧॥
तूं जलनिधि तूं फेनु बुदबुदा तुधु बिनु अवरु न भालीऐ जीउ ॥१॥
तू जल का सागर है और तू ही इसकी झाग से पैदा हुआ बुलबुला है। तेरे अलावा जगत् में मुझे अन्य कोई दिखाई नहीं देता॥१॥
ਤੂੰ ਸੂਤੁ ਮਣੀਏ ਭੀ ਤੂੰਹੈ ॥
तूं सूतु मणीए भी तूंहै ॥
हे ईश्वर ! देहि रूपी माला के लिए तुम ही प्राण रूपी सूत हो।
ਤੂੰ ਗੰਠੀ ਮੇਰੁ ਸਿਰਿ ਤੂੰਹੈ ॥
तूं गंठी मेरु सिरि तूंहै ॥
उस माला की गांठ भी तुम हो और सब मनकों के ऊपर मेरु मनका भी तुम ही हो।
ਆਦਿ ਮਧਿ ਅੰਤਿ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਈ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ਦਿਖਾਲੀਐ ਜੀਉ ॥੨॥
आदि मधि अंति प्रभु सोई अवरु न कोइ दिखालीऐ जीउ ॥२॥
जगत् के आदि, मध्य और अंत में वही परमेश्वर है, तुझ से अलग कोई दृष्टिगोचर नहीं होता ॥२॥
ਤੂੰ ਨਿਰਗੁਣੁ ਸਰਗੁਣੁ ਸੁਖਦਾਤਾ ॥
तूं निरगुणु सरगुणु सुखदाता ॥
हे सुखदाता परमेश्वर ! तू ही निर्गुण एवं तू ही सगुण है।
ਤੂੰ ਨਿਰਬਾਣੁ ਰਸੀਆ ਰੰਗਿ ਰਾਤਾ ॥
तूं निरबाणु रसीआ रंगि राता ॥
तू स्वयं ही निर्लेप, आनंदकारी और समस्त रंगों में अनुरक्त है।
ਅਪਣੇ ਕਰਤਬ ਆਪੇ ਜਾਣਹਿ ਆਪੇ ਤੁਧੁ ਸਮਾਲੀਐ ਜੀਉ ॥੩॥
अपणे करतब आपे जाणहि आपे तुधु समालीऐ जीउ ॥३॥
हे प्रभु ! अपनी कला में तुम स्वयं ही दक्ष हो और तुम स्वयं ही अपना सिमरन करते हो। ॥२१॥
ਤੂੰ ਠਾਕੁਰੁ ਸੇਵਕੁ ਫੁਨਿ ਆਪੇ ॥
तूं ठाकुरु सेवकु फुनि आपे ॥
तुम ठाकुर हो और फिर तुम स्वयं ही सेवक।
ਤੂੰ ਗੁਪਤੁ ਪਰਗਟੁ ਪ੍ਰਭ ਆਪੇ ॥
तूं गुपतु परगटु प्रभ आपे ॥
हे पारब्रह्म ! तू स्वयं ही गुप्त भी है और तू ही प्रगट भी है।
ਨਾਨਕ ਦਾਸੁ ਸਦਾ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਇਕ ਭੋਰੀ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲੀਐ ਜੀਉ ॥੪॥੨੧॥੨੮॥
नानक दासु सदा गुण गावै इक भोरी नदरि निहालीऐ जीउ ॥४॥२१॥२८॥
सेवक नानक सदैव ही प्रभु का यशोगान करता है। कृपया, बस एक पल के लिए, उसे अपनी दया दृष्टि से देख आशीर्वाद दें ॥४॥२१॥२८॥