ਹਉਮੈ ਮਮਤਾ ਕਰਦਾ ਆਇਆ ॥
हउमै ममता करदा आइआ ॥
तू अभिमान एवं ममत्व करता हुआ जगत् में आया है,
ਆਸਾ ਮਨਸਾ ਬੰਧਿ ਚਲਾਇਆ ॥
आसा मनसा बंधि चलाइआ ॥
तेरी आशा एवं लालसाओं ने तुझे बांधकर चलाया है।
ਮੇਰੀ ਮੇਰੀ ਕਰਤ ਕਿਆ ਲੇ ਚਾਲੇ ਬਿਖੁ ਲਾਦੇ ਛਾਰ ਬਿਕਾਰਾ ਹੇ ॥੧੫॥
मेरी मेरी करत किआ ले चाले बिखु लादे छार बिकारा हे ॥१५॥
‘मैं-मेरी’ करके यहाँ क्या लेकर चले हो। तुम तो माया रूपी विकारों की राख लादकर ले चले हो॥ १५॥
ਹਰਿ ਕੀ ਭਗਤਿ ਕਰਹੁ ਜਨ ਭਾਈ ॥
हरि की भगति करहु जन भाई ॥
हे मेरे भाई ! भगवान की भक्ति करो;
ਅਕਥੁ ਕਥਹੁ ਮਨੁ ਮਨਹਿ ਸਮਾਈ ॥
अकथु कथहु मनु मनहि समाई ॥
अकथनीय प्रभु की कथा करो ताकेि असंयमित मन मन में ही समा जाए।
ਉਠਿ ਚਲਤਾ ਠਾਕਿ ਰਖਹੁ ਘਰਿ ਅਪੁਨੈ ਦੁਖੁ ਕਾਟੇ ਕਾਟਣਹਾਰਾ ਹੇ ॥੧੬॥
उठि चलता ठाकि रखहु घरि अपुनै दुखु काटे काटणहारा हे ॥१६॥
इधर-उधर भटकते मन को हृदय-घर में स्थिर करके रखो, ईश्वर ही सब दुख काटने वाला है॥ १६॥
ਹਰਿ ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਕੀ ਓਟ ਪਰਾਤੀ ॥
हरि गुर पूरे की ओट पराती ॥
जिसने पूर्ण गुरु की ओट ले ली है,
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਲਿਵ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਾਤੀ ॥
गुरमुखि हरि लिव गुरमुखि जाती ॥
उसकी गुरु के सान्निध्य में परमात्मा में लगन लगी रहती है और उसने मुक्ति की विधि जान ली है।
ਨਾਨਕ ਰਾਮ ਨਾਮਿ ਮਤਿ ਊਤਮ ਹਰਿ ਬਖਸੇ ਪਾਰਿ ਉਤਾਰਾ ਹੇ ॥੧੭॥੪॥੧੦॥
नानक राम नामि मति ऊतम हरि बखसे पारि उतारा हे ॥१७॥४॥१०॥
हे नानक ! राम नाम द्वारा जिसकी मति उत्तम हो जाती है, परमात्मा क्षमा करके उसका उध्दार कर देता है।॥१७॥४॥१०॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੧ ॥
मारू महला १ ॥
मारू महला १॥
ਸਰਣਿ ਪਰੇ ਗੁਰਦੇਵ ਤੁਮਾਰੀ ॥
सरणि परे गुरदेव तुमारी ॥
हे गुरुदेव ! हम तुम्हारी शरण में आए हैं,
ਤੂ ਸਮਰਥੁ ਦਇਆਲੁ ਮੁਰਾਰੀ ॥
तू समरथु दइआलु मुरारी ॥
तू सर्वशक्तिमान एवं दयालु है।
ਤੇਰੇ ਚੋਜ ਨ ਜਾਣੈ ਕੋਈ ਤੂ ਪੂਰਾ ਪੁਰਖੁ ਬਿਧਾਤਾ ਹੇ ॥੧॥
तेरे चोज न जाणै कोई तू पूरा पुरखु बिधाता हे ॥१॥
तेरी लीलाएँ कोई नहीं जानता, तू पूर्ण पुरुष विधाता है॥ १॥
ਤੂ ਆਦਿ ਜੁਗਾਦਿ ਕਰਹਿ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਾ ॥
तू आदि जुगादि करहि प्रतिपाला ॥
तू युग-युगांतरों रो सबका पोषण कर रहा है,
ਘਟਿ ਘਟਿ ਰੂਪੁ ਅਨੂਪੁ ਦਇਆਲਾ ॥
घटि घटि रूपु अनूपु दइआला ॥
हे अनुपम रूप वाले दयालु प्रभु ! तू सब में समाया हुआ है,
ਜਿਉ ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਤਿਵੈ ਚਲਾਵਹਿ ਸਭੁ ਤੇਰੋ ਕੀਆ ਕਮਾਤਾ ਹੇ ॥੨॥
जिउ तुधु भावै तिवै चलावहि सभु तेरो कीआ कमाता हे ॥२॥
जैसा तुझे मंजूर है, वैसे ही जीवों को चलाता है, सब कुछ तेरा किया ही हो रहा है॥ २॥
ਅੰਤਰਿ ਜੋਤਿ ਭਲੀ ਜਗਜੀਵਨ ॥
अंतरि जोति भली जगजीवन ॥
हे संसार के जीवनदाता ! सब के अन्तर्मन में तेरी ही ज्योति विद्यमान है,
ਸਭਿ ਘਟ ਭੋਗੈ ਹਰਿ ਰਸੁ ਪੀਵਨ ॥
सभि घट भोगै हरि रसु पीवन ॥
तू खुद ही सब शरीरों को भोगता है और आनंद करता है।
ਆਪੇ ਲੇਵੈ ਆਪੇ ਦੇਵੈ ਤਿਹੁ ਲੋਈ ਜਗਤ ਪਿਤ ਦਾਤਾ ਹੇ ॥੩॥
आपे लेवै आपे देवै तिहु लोई जगत पित दाता हे ॥३॥
जगत्-पिता प्रभु तीनों लोकों का दाता है, वह खुद ही नियामतें देता और खुद ही वापिस ले लेता है॥ ३॥
ਜਗਤੁ ਉਪਾਇ ਖੇਲੁ ਰਚਾਇਆ ॥
जगतु उपाइ खेलु रचाइआ ॥
उसने जगत् को उत्पन्न करके एक खेल रचाया हुआ है और
ਪਵਣੈ ਪਾਣੀ ਅਗਨੀ ਜੀਉ ਪਾਇਆ ॥
पवणै पाणी अगनी जीउ पाइआ ॥
पवन, पानी, अग्नि इत्यादि पंच तत्वों से शरीर का निर्माण करके इसमें प्राण डाल दिए।
ਦੇਹੀ ਨਗਰੀ ਨਉ ਦਰਵਾਜੇ ਸੋ ਦਸਵਾ ਗੁਪਤੁ ਰਹਾਤਾ ਹੇ ॥੪॥
देही नगरी नउ दरवाजे सो दसवा गुपतु रहाता हे ॥४॥
शरीर रूपी नगर को दो आँखें, दो कान, मुँह, नाक इत्यादि नौ द्वार लगा दिए परन्तु दसम द्वार उसने गुप्त रखा॥ ४॥
ਚਾਰਿ ਨਦੀ ਅਗਨੀ ਅਸਰਾਲਾ ॥
चारि नदी अगनी असराला ॥
शरीर में हिंसा, मोह, लोभ एवं क्रोध रूपी भयानक अग्नि की चार नदियां बहती हैं और
ਕੋਈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੂਝੈ ਸਬਦਿ ਨਿਰਾਲਾ ॥
कोई गुरमुखि बूझै सबदि निराला ॥
माया से निर्लिप्त कोई विरला गुरुमुख ही शब्द द्वारा इस भेद को समझता है।
ਸਾਕਤ ਦੁਰਮਤਿ ਡੂਬਹਿ ਦਾਝਹਿ ਗੁਰਿ ਰਾਖੇ ਹਰਿ ਲਿਵ ਰਾਤਾ ਹੇ ॥੫॥
साकत दुरमति डूबहि दाझहि गुरि राखे हरि लिव राता हे ॥५॥
पदार्थवादी जीव दुर्मति के कारण इन नदियों में डूबता एवं जलता रहता है, लेकिन परमात्मा की लगन में लीन रहने वाले की गुरु स्वयं रक्षा करता है॥ ५॥
ਅਪੁ ਤੇਜੁ ਵਾਇ ਪ੍ਰਿਥਮੀ ਆਕਾਸਾ ॥ ਤਿਨ ਮਹਿ ਪੰਚ ਤਤੁ ਘਰਿ ਵਾਸਾ ॥
अपु तेजु वाइ प्रिथमी आकासा ॥ तिन महि पंच ततु घरि वासा ॥
जगत्-रचना जल, अग्नि, पवन, पृथ्वी एवं आकाश इन पंच तत्वों से हुई है और इन पंच तत्वों से बने हुए शरीर रूपी घर में ही आत्मा का निवास है।
ਸਤਿਗੁਰ ਸਬਦਿ ਰਹਹਿ ਰੰਗਿ ਰਾਤਾ ਤਜਿ ਮਾਇਆ ਹਉਮੈ ਭ੍ਰਾਤਾ ਹੇ ॥੬॥
सतिगुर सबदि रहहि रंगि राता तजि माइआ हउमै भ्राता हे ॥६॥
जो सतगुरु के शब्द द्वारा प्रभु-रंग में लीन रहता है, वह माया, अभिमान, भ्रांतियों को त्याग देता है। ६॥
ਇਹੁ ਮਨੁ ਭੀਜੈ ਸਬਦਿ ਪਤੀਜੈ ॥
इहु मनु भीजै सबदि पतीजै ॥
यह मन ब्रह्म-शब्द में भीगकर ही संतुष्ट होता है,
ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਕਿਆ ਟੇਕ ਟਿਕੀਜੈ ॥
बिनु नावै किआ टेक टिकीजै ॥
नाम के बिना क्या सहारा ले सकता है।
ਅੰਤਰਿ ਚੋਰੁ ਮੁਹੈ ਘਰੁ ਮੰਦਰੁ ਇਨਿ ਸਾਕਤਿ ਦੂਤੁ ਨ ਜਾਤਾ ਹੇ ॥੭॥
अंतरि चोरु मुहै घरु मंदरु इनि साकति दूतु न जाता हे ॥७॥
पदार्थवादी जीव माया के उन दूतों से परिचित ही नहीं जो अहम् रूपी चोर हृदय-घर एवं शरीर रूपी मन्दिर को लूटता जा रहा है॥ ७॥
ਦੁੰਦਰ ਦੂਤ ਭੂਤ ਭੀਹਾਲੇ ॥
दुंदर दूत भूत भीहाले ॥
कामादिक के भयानक भूत रूपी दूत शरीर में ही हैं,
ਖਿੰਚੋਤਾਣਿ ਕਰਹਿ ਬੇਤਾਲੇ ॥
खिंचोताणि करहि बेताले ॥
जो प्रेत की तरह खींचतान करते हैं।
ਸਬਦ ਸੁਰਤਿ ਬਿਨੁ ਆਵੈ ਜਾਵੈ ਪਤਿ ਖੋਈ ਆਵਤ ਜਾਤਾ ਹੇ ॥੮॥
सबद सुरति बिनु आवै जावै पति खोई आवत जाता हे ॥८॥
शब्द-सुरति का अभ्यास किए बिना जीव आता-जाता है और अपनी प्रतिष्ठा गॅवा कर आवागमन में पड़ा रहता है॥ ८॥
ਕੂੜੁ ਕਲਰੁ ਤਨੁ ਭਸਮੈ ਢੇਰੀ ॥
कूड़ु कलरु तनु भसमै ढेरी ॥
यह तन नाशवान है, जो रेत की तरह भस्म बनकर ढेरी हो जाता है।
ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਕੈਸੀ ਪਤਿ ਤੇਰੀ ॥
बिनु नावै कैसी पति तेरी ॥
हे भाई ! नाम के बिना तेरी कैसी प्रतिष्ठा है ?
ਬਾਧੇ ਮੁਕਤਿ ਨਾਹੀ ਜੁਗ ਚਾਰੇ ਜਮਕੰਕਰਿ ਕਾਲਿ ਪਰਾਤਾ ਹੇ ॥੯॥
बाधे मुकति नाही जुग चारे जमकंकरि कालि पराता हे ॥९॥
बन्धनों में फँसा हुआ चारों युग मुक्ति नहीं पा सकता, काल एवं यमदूतों ने बाखूबी पहचाना होता है॥ ९॥
ਜਮ ਦਰਿ ਬਾਧੇ ਮਿਲਹਿ ਸਜਾਈ ॥
जम दरि बाधे मिलहि सजाई ॥
यम के द्वार पर बँधे हुए को कठोर सजा मिलती है और
ਤਿਸੁ ਅਪਰਾਧੀ ਗਤਿ ਨਹੀ ਕਾਈ ॥
तिसु अपराधी गति नही काई ॥
उस अपराधी की कोई गति नहीं होती।
ਕਰਣ ਪਲਾਵ ਕਰੇ ਬਿਲਲਾਵੈ ਜਿਉ ਕੁੰਡੀ ਮੀਨੁ ਪਰਾਤਾ ਹੇ ॥੧੦॥
करण पलाव करे बिललावै जिउ कुंडी मीनु पराता हे ॥१०॥
वह गिड़गिड़ाकर बहुत रोता-चिल्लाता है, जैसे कुण्डी में फँसी हुई मछली तड़पती है॥ १०॥
ਸਾਕਤੁ ਫਾਸੀ ਪੜੈ ਇਕੇਲਾ ॥
साकतु फासी पड़ै इकेला ॥
पदार्थवादी जीव अकेला ही यम की फाँसी में पड़ता है।
ਜਮ ਵਸਿ ਕੀਆ ਅੰਧੁ ਦੁਹੇਲਾ ॥
जम वसि कीआ अंधु दुहेला ॥
यम उसे अपने वश में कर लेता है और वह अन्धा बहुत दुखी होता है।
ਰਾਮ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਮੁਕਤਿ ਨ ਸੂਝੈ ਆਜੁ ਕਾਲਿ ਪਚਿ ਜਾਤਾ ਹੇ ॥੧੧॥
राम नाम बिनु मुकति न सूझै आजु कालि पचि जाता हे ॥११॥
राम नाम के बिना मुक्ति पाने का कोई साधन नहीं सूझता और आज अथवा कल में ही नष्ट हो जाता है॥ ११॥
ਸਤਿਗੁਰ ਬਾਝੁ ਨ ਬੇਲੀ ਕੋਈ ॥
सतिगुर बाझु न बेली कोई ॥
सच्चे गुरु के बिना अन्य कोई साथी नहीं है,
ਐਥੈ ਓਥੈ ਰਾਖਾ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਈ ॥
ऐथै ओथै राखा प्रभु सोई ॥
लोक-परलोक दोनों में प्रभु ही रक्षा करता है।
ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਦੇਵੈ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਇਉ ਸਲਲੈ ਸਲਲ ਮਿਲਾਤਾ ਹੇ ॥੧੨॥
राम नामु देवै करि किरपा इउ सललै सलल मिलाता हे ॥१२॥
गुरु कृपा करके राम नाम देता है और परमात्मा से यूँ मिलाता है, जैसे जल जल में मिलकर एक रूप हो जाता है ॥१२॥