ਅਨਦਿਨੁ ਜਲਦੀ ਫਿਰੈ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਬਿਨੁ ਪਿਰ ਬਹੁ ਦੁਖੁ ਪਾਵਣਿਆ ॥੨॥
अनदिनु जलदी फिरै दिनु राती बिनु पिर बहु दुखु पावणिआ ॥२॥
वह दिन-रात तृष्णाग्नि में जलती रहती है और पति-प्रभु के बिना बहुत दुखी रहती है॥२ ॥
ਦੇਹੀ ਜਾਤਿ ਨ ਆਗੈ ਜਾਏ ॥
देही जाति न आगै जाए ॥
मनुष्य का शरीर एवं जाति परलोक में नहीं जाते।
ਜਿਥੈ ਲੇਖਾ ਮੰਗੀਐ ਤਿਥੈ ਛੁਟੈ ਸਚੁ ਕਮਾਏ ॥
जिथै लेखा मंगीऐ तिथै छुटै सचु कमाए ॥
जहाँ कर्मों का लेखा तलब किया जाता है, वहाँ सत्य की कमाई द्वारा ही वह मोक्ष को प्राप्त होगा।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਨਿ ਸੇ ਧਨਵੰਤੇ ਐਥੈ ਓਥੈ ਨਾਮਿ ਸਮਾਵਣਿਆ ॥੩॥
सतिगुरु सेवनि से धनवंते ऐथै ओथै नामि समावणिआ ॥३॥
जो सतिगुरु की श्रद्धापूर्वक सेवा करते हैं, वह धनवान हैं। वह लोक तथा परलोक में हरिनाम में विलीन रहते हैं॥३॥
ਭੈ ਭਾਇ ਸੀਗਾਰੁ ਬਣਾਏ ॥
भै भाइ सीगारु बणाए ॥
जो जीव-स्त्री प्रभु के भय एवं प्रेम को अपना हार-श्रृंगार बनाती है,
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਮਹਲੁ ਘਰੁ ਪਾਏ ॥
गुर परसादी महलु घरु पाए ॥
वह गुरु की दया से अपने घर में ही उसकी उपस्थिति को पा लेती है।
ਅਨਦਿਨੁ ਸਦਾ ਰਵੈ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਮਜੀਠੈ ਰੰਗੁ ਬਣਾਵਣਿਆ ॥੪॥
अनदिनु सदा रवै दिनु राती मजीठै रंगु बणावणिआ ॥४॥
वह दिन-रात हमेशा उपने प्रियतम के साथ रमण करती है और मजीठ जैसे पक्की रंगत निश्चित कर लेती है॥४॥
ਸਭਨਾ ਪਿਰੁ ਵਸੈ ਸਦਾ ਨਾਲੇ ॥
सभना पिरु वसै सदा नाले ॥
समस्त जीव-स्त्रियों का प्रियतम प्रभु हमेशा ही सभी के साथ रहता है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਕੋ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲੇ ॥
गुर परसादी को नदरि निहाले ॥
गुरु की दया से कोई विरला ही अपने नेत्रों से उसके दर्शन करता है।
ਮੇਰਾ ਪ੍ਰਭੁ ਅਤਿ ਊਚੋ ਊਚਾ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਆਪਿ ਮਿਲਾਵਣਿਆ ॥੫॥
मेरा प्रभु अति ऊचो ऊचा करि किरपा आपि मिलावणिआ ॥५॥
मेरा प्रभु सर्वश्रेष्ठ है। वह अपनी कृपा करके स्वयं ही जीव-स्त्री को अपने साथ मिला लेता है॥ ५॥
ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਇਹੁ ਜਗੁ ਸੁਤਾ ॥
माइआ मोहि इहु जगु सुता ॥
यह जगत् मोह-माया में फँसकर अज्ञानता की निद्रा में सोया हुआ है।
ਨਾਮੁ ਵਿਸਾਰਿ ਅੰਤਿ ਵਿਗੁਤਾ ॥
नामु विसारि अंति विगुता ॥
प्रभु के नाम को विस्मृत करके यह अंतः नष्ट हो जाता है।
ਜਿਸ ਤੇ ਸੁਤਾ ਸੋ ਜਾਗਾਏ ਗੁਰਮਤਿ ਸੋਝੀ ਪਾਵਣਿਆ ॥੬॥
जिस ते सुता सो जागाए गुरमति सोझी पावणिआ ॥६॥
जिस परमात्मा के हुक्म से यह जगत् निद्रामग्न है, वही इसे ज्ञान प्रदान करके जगाता है। गुरु के उपदेश द्वारा इसको सूझ प्राप्त होती है॥६॥
ਅਪਿਉ ਪੀਐ ਸੋ ਭਰਮੁ ਗਵਾਏ ॥
अपिउ पीऐ सो भरमु गवाए ॥
जो व्यक्ति नाम रूपी अमृत पान करता है, वह अपना भ्रम निवृत्त कर देता है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਮੁਕਤਿ ਗਤਿ ਪਾਏ ॥
गुर परसादि मुकति गति पाए ॥
गुरु की दया से वह मोक्ष की पदवी को प्राप्त कर लेता है।
ਭਗਤੀ ਰਤਾ ਸਦਾ ਬੈਰਾਗੀ ਆਪੁ ਮਾਰਿ ਮਿਲਾਵਣਿਆ ॥੭॥
भगती रता सदा बैरागी आपु मारि मिलावणिआ ॥७॥
जो परमेश्वर की भक्ति में मग्न रहता है, वह सदैव ही निर्लेप है। अपने अंह को मारकर वह अपने प्रभु को मिल जाता है।॥७॥
ਆਪਿ ਉਪਾਏ ਧੰਧੈ ਲਾਏ ॥
आपि उपाए धंधै लाए ॥
हे ईश्वर ! तूने स्वयं ही सृष्टि की रचना करके प्राणी उत्पन्न किए हैं और अपने-अपने कर्म में लगा दिया है।
ਲਖ ਚਉਰਾਸੀ ਰਿਜਕੁ ਆਪਿ ਅਪੜਾਏ ॥
लख चउरासी रिजकु आपि अपड़ाए ॥
हे प्रभु ! चौरासी लाख योनियों को स्वयं ही तुम जीविका पहुँचाते हो।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ਸਚਿ ਰਾਤੇ ਜੋ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਸੁ ਕਾਰ ਕਰਾਵਣਿਆ ॥੮॥੪॥੫॥
नानक नामु धिआइ सचि राते जो तिसु भावै सु कार करावणिआ ॥८॥४॥५॥
हे नानक ! जो व्यक्ति प्रभु का नाम-सिमरन करते रहते हैं, वे सत्य प्रभु के प्रेम में मग्न रहते हैं। वह वहीं कार्य करते हैं, जो प्रभु को अच्छा लगता है ॥८॥४॥५॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੩ ॥
माझ महला ३ ॥
माझ महला ३ ॥
ਅੰਦਰਿ ਹੀਰਾ ਲਾਲੁ ਬਣਾਇਆ ॥
अंदरि हीरा लालु बणाइआ ॥
भगवान ने आत्मस्वरूप में हीरे एवं लाल जैसा अमूल्य नाम रखा हुआ है।
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਪਰਖਿ ਪਰਖਾਇਆ ॥
गुर कै सबदि परखि परखाइआ ॥
गुरु के शब्द द्वारा इसकी परख की तथा करवाई जाती है।
ਜਿਨ ਸਚੁ ਪਲੈ ਸਚੁ ਵਖਾਣਹਿ ਸਚੁ ਕਸਵਟੀ ਲਾਵਣਿਆ ॥੧॥
जिन सचु पलै सचु वखाणहि सचु कसवटी लावणिआ ॥१॥
जिनके पास सत्यनाम है, वह सत्य-नाम का ही बखान करते हैं तथा इसकी परख करने के लिए सत्यनाम की ही कसौटी लगानी पड़ती है॥१॥
ਹਉ ਵਾਰੀ ਜੀਉ ਵਾਰੀ ਗੁਰ ਕੀ ਬਾਣੀ ਮੰਨਿ ਵਸਾਵਣਿਆ ॥
हउ वारी जीउ वारी गुर की बाणी मंनि वसावणिआ ॥
जिन्होंने गुरु की वाणी को अपने मन में बसा लिया है, मैं उन पर तन-मन से न्योछावर हूँ।
ਅੰਜਨ ਮਾਹਿ ਨਿਰੰਜਨੁ ਪਾਇਆ ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਮਿਲਾਵਣਿਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अंजन माहि निरंजनु पाइआ जोती जोति मिलावणिआ ॥१॥ रहाउ ॥
वह माया के अंजन में ही निरंजन प्रभु को पा लेते हैं। वह अपनी ज्योति को प्रभु की परम-ज्योति में मिला देते हैं ॥१॥ रहाउ ॥
ਇਸੁ ਕਾਇਆ ਅੰਦਰਿ ਬਹੁਤੁ ਪਸਾਰਾ ॥
इसु काइआ अंदरि बहुतु पसारा ॥
जैसे ब्रह्माण्ड में परमात्मा ने अपना प्रसार किया हुआ है, वैसे ही उसने मनुष्य की काया में अपना अत्यधिक प्रसार किया हुआ है।
ਨਾਮੁ ਨਿਰੰਜਨੁ ਅਤਿ ਅਗਮ ਅਪਾਰਾ ॥
नामु निरंजनु अति अगम अपारा ॥
प्रभु का निरंजन नाम अत्यंत अगम्य एवं अपरंपार है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਵੈ ਸੋਈ ਪਾਏ ਆਪੇ ਬਖਸਿ ਮਿਲਾਵਣਿਆ ॥੨॥
गुरमुखि होवै सोई पाए आपे बखसि मिलावणिआ ॥२॥
जो व्यक्ति गुरु के सान्निध्य में रहता है, इस नाम की लब्धि उसे ही हो सकती है। प्रभु गुरमुख व्यक्ति को क्षमा करके स्वयं ही अपने साथ मिला लेता है॥२॥
ਮੇਰਾ ਠਾਕੁਰੁ ਸਚੁ ਦ੍ਰਿੜਾਏ ॥
मेरा ठाकुरु सचु द्रिड़ाए ॥
मेरा ठाकुर प्रभु जिस व्यक्ति के हृदय में सत्य नाम बसा देता है
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਸਚਿ ਚਿਤੁ ਲਾਏ ॥
गुर परसादी सचि चितु लाए ॥
और गुरु की कृपा से वह सत्य में ही अपना चित्त लगाता है।
ਸਚੋ ਸਚੁ ਵਰਤੈ ਸਭਨੀ ਥਾਈ ਸਚੇ ਸਚਿ ਸਮਾਵਣਿਆ ॥੩॥
सचो सचु वरतै सभनी थाई सचे सचि समावणिआ ॥३॥
सत्य का पुंज परमेश्वर स्वयं ही सर्वव्यापक है। वह मनुष्य सत्य प्रभु में ही लीन रहता है॥३॥
ਵੇਪਰਵਾਹੁ ਸਚੁ ਮੇਰਾ ਪਿਆਰਾ ॥
वेपरवाहु सचु मेरा पिआरा ॥
मेरा प्रिय प्रभु सदैव सत्य एवं बेपरवाह है।
ਕਿਲਵਿਖ ਅਵਗਣ ਕਾਟਣਹਾਰਾ ॥
किलविख अवगण काटणहारा ॥
वह जीवों के पापों एवं अवगुणों को नाश करने वाला है।
ਪ੍ਰੇਮ ਪ੍ਰੀਤਿ ਸਦਾ ਧਿਆਈਐ ਭੈ ਭਾਇ ਭਗਤਿ ਦ੍ਰਿੜਾਵਣਿਆ ॥੪॥
प्रेम प्रीति सदा धिआईऐ भै भाइ भगति द्रिड़ावणिआ ॥४॥
अतः प्रेमपूर्वक सदैव ही उसका सिमरन करते रहना चाहिए। उसका भय मानते हुए प्रेमपूर्वक उसकी भक्ति को अपने हृदय में बसाना चाहिए॥४॥
ਤੇਰੀ ਭਗਤਿ ਸਚੀ ਜੇ ਸਚੇ ਭਾਵੈ ॥
तेरी भगति सची जे सचे भावै ॥
हे भगवान ! तेरी भक्ति सदैव सत्य है और इसकी देन जीव को तेरी इच्छानुसार ही मिलती है।
ਆਪੇ ਦੇਇ ਨ ਪਛੋਤਾਵੈ ॥
आपे देइ न पछोतावै ॥
तू स्वयं ही अपनी भक्ति की देन प्रदान करता है परन्तु देन देकर तू पश्चाताप नहीं करता।
ਸਭਨਾ ਜੀਆ ਕਾ ਏਕੋ ਦਾਤਾ ਸਬਦੇ ਮਾਰਿ ਜੀਵਾਵਣਿਆ ॥੫॥
सभना जीआ का एको दाता सबदे मारि जीवावणिआ ॥५॥
समस्त जीव-जन्तुओं का दाता एक प्रभु ही है। वह नाम द्वारा जीवों के अहंकार को नष्ट करके उन्हें सत्य जीवन प्रदान करने वाला है॥ ५॥
ਹਰਿ ਤੁਧੁ ਬਾਝਹੁ ਮੈ ਕੋਈ ਨਾਹੀ ॥
हरि तुधु बाझहु मै कोई नाही ॥
हे भगवान ! तेरे सिवाय मेरा अन्य कोई नहीं।
ਹਰਿ ਤੁਧੈ ਸੇਵੀ ਤੈ ਤੁਧੁ ਸਾਲਾਹੀ ॥
हरि तुधै सेवी तै तुधु सालाही ॥
में तेरी ही भक्ति करता हूँ और तेरी ही महिमा-स्तुति करता हूँ।
ਆਪੇ ਮੇਲਿ ਲੈਹੁ ਪ੍ਰਭ ਸਾਚੇ ਪੂਰੈ ਕਰਮਿ ਤੂੰ ਪਾਵਣਿਆ ॥੬॥
आपे मेलि लैहु प्रभ साचे पूरै करमि तूं पावणिआ ॥६॥
हे सत्य परमेश्वर ! आप ही मुझे अपने साथ मिला लो। तेरी पूर्ण कृपा से ही तुझे पाया जा सकता है॥ ६॥
ਮੈ ਹੋਰੁ ਨ ਕੋਈ ਤੁਧੈ ਜੇਹਾ ॥
मै होरु न कोई तुधै जेहा ॥
हे भगवान ! मुझे तेरे जैसा अन्य कोई नजर नहीं आता।
ਤੇਰੀ ਨਦਰੀ ਸੀਝਸਿ ਦੇਹਾ ॥
तेरी नदरी सीझसि देहा ॥
तेरी कृपा-दृष्टि से मेरा शरीर सफल हो सकता है।
ਅਨਦਿਨੁ ਸਾਰਿ ਸਮਾਲਿ ਹਰਿ ਰਾਖਹਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਹਜਿ ਸਮਾਵਣਿਆ ॥੭॥
अनदिनु सारि समालि हरि राखहि गुरमुखि सहजि समावणिआ ॥७॥
भगवान प्रतिदिन जीवों की देखरेख करके उनकी रक्षा करता है। अतः गुरमुख सहज ही प्रभु में लीन रहते हैं। ७॥
ਤੁਧੁ ਜੇਵਡੁ ਮੈ ਹੋਰੁ ਨ ਕੋਈ ॥
तुधु जेवडु मै होरु न कोई ॥
हे भगवान ! तेरे जैसा महान मुझे अन्य कोई भी नहीं दिखता।
ਤੁਧੁ ਆਪੇ ਸਿਰਜੀ ਆਪੇ ਗੋਈ ॥
तुधु आपे सिरजी आपे गोई ॥
तू स्वयं ही सृष्टि की रचना करता है और स्वयं ही इसका विनाश करता है