ਲਖ ਚਉਰਾਸੀਹ ਜੀਅ ਉਪਾਏ ॥
लख चउरासीह जीअ उपाए ॥
पारब्रह्म-प्रभु ने चौरासी लाख योनियों में अनंत जीव उत्पन्न किए हैं।
ਜਿਸ ਨੋ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਤਿਸੁ ਗੁਰੂ ਮਿਲਾਏ ॥
जिस नो नदरि करे तिसु गुरू मिलाए ॥
जिस जीव पर वह अपनी दया-दृष्टि करता है, उसको गुरु से मिला देता है।
ਕਿਲਬਿਖ ਕਾਟਿ ਸਦਾ ਜਨ ਨਿਰਮਲ ਦਰਿ ਸਚੈ ਨਾਮਿ ਸੁਹਾਵਣਿਆ ॥੬॥
किलबिख काटि सदा जन निरमल दरि सचै नामि सुहावणिआ ॥६॥
वह जीव अपने पापों को धोकर हमेशा के लिए पवित्र हो जाता है और सत्य दरबार के अन्दर नाम से सुहावना लगता है॥६॥
ਲੇਖਾ ਮਾਗੈ ਤਾ ਕਿਨਿ ਦੀਐ ॥
लेखा मागै ता किनि दीऐ ॥
यदि प्रभु कर्मो का हिसाब मांगेगा, वह तब कौन दे सकेगा?
ਸੁਖੁ ਨਾਹੀ ਫੁਨਿ ਦੂਐ ਤੀਐ ॥
सुखु नाही फुनि दूऐ तीऐ ॥
तब द्वैत अथवा त्रिगुणी अवस्था में कोई सुख प्राप्त नहीं होना।
ਆਪੇ ਬਖਸਿ ਲਏ ਪ੍ਰਭੁ ਸਾਚਾ ਆਪੇ ਬਖਸਿ ਮਿਲਾਵਣਿਆ ॥੭॥
आपे बखसि लए प्रभु साचा आपे बखसि मिलावणिआ ॥७॥
सत्यस्वरूप परमात्मा स्वयं क्षमाशील है और क्षमा करके अपने आप से मिला लेता है॥७॥
ਆਪਿ ਕਰੇ ਤੈ ਆਪਿ ਕਰਾਏ ॥
आपि करे तै आपि कराए ॥
प्रभु स्वयं ही सब कुछ करता है और स्वयं ही जीवों से करवाता है।
ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਮਿਲਾਏ ॥
पूरे गुर कै सबदि मिलाए ॥
पूर्ण गुरु के उपदेश से ही प्रभु अपने साथ मिला लेता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਮਿਲੈ ਵਡਿਆਈ ਆਪੇ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਵਣਿਆ ॥੮॥੨॥੩॥
नानक नामु मिलै वडिआई आपे मेलि मिलावणिआ ॥८॥२॥३॥
हे नानक ! जिस जीव को प्रभु के नाम की शोभा मिलती है, सृष्टि का स्वामी स्वयं ही उसे अपने मिलाप में मिलाता है ॥८॥२॥३॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੩ ॥
माझ महला ३ ॥
माझ महला ३ ॥
ਇਕੋ ਆਪਿ ਫਿਰੈ ਪਰਛੰਨਾ ॥
इको आपि फिरै परछंना ॥
एक परमेश्वर ही अदृष्य होकर सर्वत्र भ्रमण करता रहता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਵੇਖਾ ਤਾ ਇਹੁ ਮਨੁ ਭਿੰਨਾ ॥
गुरमुखि वेखा ता इहु मनु भिंना ॥
जिस व्यक्ति ने गुरु के माध्यम से उसके दर्शन कर लिए हैं, उसका मन उसके प्रेम में भीग गया है।
ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਤਜਿ ਸਹਜ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਏਕੋ ਮੰਨਿ ਵਸਾਵਣਿਆ ॥੧॥
त्रिसना तजि सहज सुखु पाइआ एको मंनि वसावणिआ ॥१॥
उसने अपनी तृष्णा को त्यागकर सहज सुख प्राप्त कर लिया है। फिर उसने एक प्रभु को ही अपने मन में बसाया है॥१॥
ਹਉ ਵਾਰੀ ਜੀਉ ਵਾਰੀ ਇਕਸੁ ਸਿਉ ਚਿਤੁ ਲਾਵਣਿਆ ॥
हउ वारी जीउ वारी इकसु सिउ चितु लावणिआ ॥
मैं उन पर कुर्बान हूँ, मेरी आत्मा कुर्बान है, जो एक ईश्वर से अपनी सुरति लगाते हैं।
ਗੁਰਮਤੀ ਮਨੁ ਇਕਤੁ ਘਰਿ ਆਇਆ ਸਚੈ ਰੰਗਿ ਰੰਗਾਵਣਿਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरमती मनु इकतु घरि आइआ सचै रंगि रंगावणिआ ॥१॥ रहाउ ॥
गुरु की मति द्वारा उसका मन एक ही आत्मस्वरूप घर में आकर बसता है और सत्य प्रभु के प्रेम में मग्न हो जाता है।॥१॥ रहाउ॥
ਇਹੁ ਜਗੁ ਭੂਲਾ ਤੈਂ ਆਪਿ ਭੁਲਾਇਆ ॥
इहु जगु भूला तैं आपि भुलाइआ ॥
हे प्रभु ! यह संसार भ्रम में पड़ा हुआ है और तूने स्वयं ही इसे भ्रम में डाल दिया है।
ਇਕੁ ਵਿਸਾਰਿ ਦੂਜੈ ਲੋਭਾਇਆ ॥
इकु विसारि दूजै लोभाइआ ॥
एक ईश्वर को विस्मृत करके यह लोभ लालच में ग्रस्त हुआ पड़ा है।
ਅਨਦਿਨੁ ਸਦਾ ਫਿਰੈ ਭ੍ਰਮਿ ਭੂਲਾ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਦੁਖੁ ਪਾਵਣਿਆ ॥੨॥
अनदिनु सदा फिरै भ्रमि भूला बिनु नावै दुखु पावणिआ ॥२॥
रात-दिन यह भ्रम का भ्रमित हुआ हमेशा भटकता रहता है और नाम के बिना कष्ट उठाता है॥२ ॥
ਜੋ ਰੰਗਿ ਰਾਤੇ ਕਰਮ ਬਿਧਾਤੇ ॥
जो रंगि राते करम बिधाते ॥
जो भाग्य विधाता के प्रेम में मग्न रहते हैं,
ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਤੇ ਜੁਗ ਚਾਰੇ ਜਾਤੇ ॥
गुर सेवा ते जुग चारे जाते ॥
वह गुरु की सेवा करके चारों युगों में प्रसिद्ध हो जाते हैं।
ਜਿਸ ਨੋ ਆਪਿ ਦੇਇ ਵਡਿਆਈ ਹਰਿ ਕੈ ਨਾਮਿ ਸਮਾਵਣਿਆ ॥੩॥
जिस नो आपि देइ वडिआई हरि कै नामि समावणिआ ॥३॥
जिस प्राणी को प्रभु स्वयं महानता प्रदान करता है, वह ईश्वर के नाम में लीन हो जाता है।॥३॥
ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਹਰਿ ਚੇਤੈ ਨਾਹੀ ॥
माइआ मोहि हरि चेतै नाही ॥
माया-मोह में ग्रस्त मनुष्य परमेश्वर को स्मरण नहीं करता।
ਜਮਪੁਰਿ ਬਧਾ ਦੁਖ ਸਹਾਹੀ ॥
जमपुरि बधा दुख सहाही ॥
फिर यमदूतों की नगरी में जकड़ा हुआ वह कष्ट सहन करता है।
ਅੰਨਾ ਬੋਲਾ ਕਿਛੁ ਨਦਰਿ ਨ ਆਵੈ ਮਨਮੁਖ ਪਾਪਿ ਪਚਾਵਣਿਆ ॥੪॥
अंना बोला किछु नदरि न आवै मनमुख पापि पचावणिआ ॥४॥
मनमुख व्यक्ति अन्धा एवं बहरा है, उसे कुछ भी दृष्टिगोचर नहीं होता और गुनाहों में ही नष्ट हो जाता है॥४॥
ਇਕਿ ਰੰਗਿ ਰਾਤੇ ਜੋ ਤੁਧੁ ਆਪਿ ਲਿਵ ਲਾਏ ॥
इकि रंगि राते जो तुधु आपि लिव लाए ॥
हे प्रभु! कई जीव तेरे प्रेम में मग्न रहते हैं, जिन्हें तूने ही नाम के साथ लगाया है।
ਭਾਇ ਭਗਤਿ ਤੇਰੈ ਮਨਿ ਭਾਏ ॥
भाइ भगति तेरै मनि भाए ॥
प्रेमा-भक्ति द्वारा वह तेरे हृदय को अच्छे लगते हैं।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਨਿ ਸਦਾ ਸੁਖਦਾਤਾ ਸਭ ਇਛਾ ਆਪਿ ਪੁਜਾਵਣਿਆ ॥੫॥
सतिगुरु सेवनि सदा सुखदाता सभ इछा आपि पुजावणिआ ॥५॥
वह सदैव सुखदाता सतिगुरु की सेवा करते रहते हैं और ईश्वर स्वयं ही उनकी समस्त मनोकामनाएँ पूरी करता है॥५॥
ਹਰਿ ਜੀਉ ਤੇਰੀ ਸਦਾ ਸਰਣਾਈ ॥
हरि जीउ तेरी सदा सरणाई ॥
हे पूज्य परमेश्वर ! जो व्यक्ति सदैव तेरी शरण में रहता है,
ਆਪੇ ਬਖਸਿਹਿ ਦੇ ਵਡਿਆਈ ॥
आपे बखसिहि दे वडिआई ॥
तू स्वयं ही उसे क्षमादान करके शोभा प्रदान करते हो।
ਜਮਕਾਲੁ ਤਿਸੁ ਨੇੜਿ ਨ ਆਵੈ ਜੋ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਵਣਿਆ ॥੬॥
जमकालु तिसु नेड़ि न आवै जो हरि हरि नामु धिआवणिआ ॥६॥
जो व्यक्ति भगवान का नाम-सिमरन करता रहता है, यम उसके निकट नहीं आता ॥६ ॥
ਅਨਦਿਨੁ ਰਾਤੇ ਜੋ ਹਰਿ ਭਾਏ ॥
अनदिनु राते जो हरि भाए ॥
जो व्यक्ति भगवान को अच्छे लगते हैं, वह रात-दिन भगवान के प्रेम में मग्न रहते हैं।
ਮੇਰੈ ਪ੍ਰਭਿ ਮੇਲੇ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਏ ॥
मेरै प्रभि मेले मेलि मिलाए ॥
मेरे प्रभु ने उनका सतिगुरु से मिलाप करवा कर अपने साथ मिला लिया है।
ਸਦਾ ਸਦਾ ਸਚੇ ਤੇਰੀ ਸਰਣਾਈ ਤੂੰ ਆਪੇ ਸਚੁ ਬੁਝਾਵਣਿਆ ॥੭॥
सदा सदा सचे तेरी सरणाई तूं आपे सचु बुझावणिआ ॥७॥
हे सत्य स्वरूप परमेश्वर ! जो व्यक्ति सदैव तेरी शरण में हैं। तुम स्वयं ही उन्हें सत्य का ज्ञान प्रदान करते हो।॥७॥
ਜਿਨ ਸਚੁ ਜਾਤਾ ਸੇ ਸਚਿ ਸਮਾਣੇ ॥
जिन सचु जाता से सचि समाणे ॥
जो व्यक्ति सत्य प्रभु को समझ लेते हैं, वे सत्य में ही लीन रहते हैं।
ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵਹਿ ਸਚੁ ਵਖਾਣੇ ॥
हरि गुण गावहि सचु वखाणे ॥
वह हरि का यशोगान करते हैं और सत्य का ही बखान करते हैं।
ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਬੈਰਾਗੀ ਨਿਜ ਘਰਿ ਤਾੜੀ ਲਾਵਣਿਆ ॥੮॥੩॥੪॥
नानक नामि रते बैरागी निज घरि ताड़ी लावणिआ ॥८॥३॥४॥
हे नानक ! जो नाम में मग्न रहते हैं, वे निर्लेप हैं और अपने निज घर आत्मस्वरूप में समाधि लगाते हैं ॥८॥३॥४॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੩ ॥
माझ महला ३ ॥
माझ महला ३ ॥
ਸਬਦਿ ਮਰੈ ਸੁ ਮੁਆ ਜਾਪੈ ॥
सबदि मरै सु मुआ जापै ॥
जो व्यक्ति शब्द द्वारा अपने अहंकार को नष्ट कर देता है, वही मृत माना जाता है।
ਕਾਲੁ ਨ ਚਾਪੈ ਦੁਖੁ ਨ ਸੰਤਾਪੈ ॥
कालु न चापै दुखु न संतापै ॥
उसे काल (मृत्यु) भी नहीं कुचलता और न ही कोई कष्ट दुखी करता है।
ਜੋਤੀ ਵਿਚਿ ਮਿਲਿ ਜੋਤਿ ਸਮਾਣੀ ਸੁਣਿ ਮਨ ਸਚਿ ਸਮਾਵਣਿਆ ॥੧॥
जोती विचि मिलि जोति समाणी सुणि मन सचि समावणिआ ॥१॥
उसकी ज्योत परम ज्योति में मिलकर उस में ही समा जाती है। उसका मन भी सत्य नाम को सुनकर सत्य में ही समा जाता है॥१॥
ਹਉ ਵਾਰੀ ਜੀਉ ਵਾਰੀ ਹਰਿ ਕੈ ਨਾਇ ਸੋਭਾ ਪਾਵਣਿਆ ॥
हउ वारी जीउ वारी हरि कै नाइ सोभा पावणिआ ॥
मैं उन पर कुर्बान हूँ, जो ईश्वर के नाम द्वारा जगत् में शोभा पाते हैं।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਿ ਸਚਿ ਚਿਤੁ ਲਾਇਆ ਗੁਰਮਤੀ ਸਹਜਿ ਸਮਾਵਣਿਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सतिगुरु सेवि सचि चितु लाइआ गुरमती सहजि समावणिआ ॥१॥ रहाउ ॥
जो व्यक्ति सतिगुरु की सेवा करते हैं एवं सत्य प्रभु में अपना चित्त लगाते हैं, वह गुरु के उपदेश द्वारा सहज अवस्था में लीन रहते हैं।॥१॥ रहाउ॥
ਕਾਇਆ ਕਚੀ ਕਚਾ ਚੀਰੁ ਹੰਢਾਏ ॥
काइआ कची कचा चीरु हंढाए ॥
मनुष्य का शरीर कच्चा अर्थात् क्षणभंगुर है। शरीर जीवात्मा का वस्त्र है और जीवात्मा इस क्षणभंगुर वस्त्र को पहनकर रखती है।
ਦੂਜੈ ਲਾਗੀ ਮਹਲੁ ਨ ਪਾਏ ॥
दूजै लागी महलु न पाए ॥
जीवात्मा माया के मोह में लीन रहने के कारण अपने आत्मस्वरूप को नहीं पा सकती।