ਸੁਣਿਐ ਦੂਖ ਪਾਪ ਕਾ ਨਾਸੁ ॥੯॥
सुणिऐ दूख पाप का नासु ॥९॥
परमात्मा का नाम सुनने से समस्त दुखों व दुष्कर्मो का नाश होता है II ९ II
ਸੁਣਿਐ ਸਤੁ ਸੰਤੋਖੁ ਗਿਆਨੁ ॥
सुणिऐ सतु संतोखु गिआनु ॥
नाम सुनने से मनुष्य को सत्य, संतोष व ज्ञान जैसे मूल धमों की प्राप्ति होती है।
ਸੁਣਿਐ ਅਠਸਠਿ ਕਾ ਇਸਨਾਨੁ ॥
सुणिऐ अठसठि का इसनानु ॥
नाम को सुनने मात्र से समस्त तीर्थों में श्रेष्ठ अठसठ तीथों के स्नान का फल प्राप्त हो जाता है।
ਸੁਣਿਐ ਪੜਿ ਪੜਿ ਪਾਵਹਿ ਮਾਨੁ ॥
सुणिऐ पड़ि पड़ि पावहि मानु ॥
निरंकार के नाम को सुनने के बाद बार-बार रसना पर लाने वाले मनुष्य को उसके दरबार में सम्मान प्राप्त होता है।
ਸੁਣਿਐ ਲਾਗੈ ਸਹਜਿ ਧਿਆਨੁ ॥
सुणिऐ लागै सहजि धिआनु ॥
नाम सुनने से परमात्मा में लीनता सरलता से हो जाती है, क्योंकि इससे आत्मिक शुद्धि होकर ज्ञान प्राप्त होता है।
ਨਾਨਕ ਭਗਤਾ ਸਦਾ ਵਿਗਾਸੁ ॥
नानक भगता सदा विगासु ॥
हे नानक ! प्रभु के भक्तों को सदैव आत्मिक आनंद का प्रकाश रहता है।
ਸੁਣਿਐ ਦੂਖ ਪਾਪ ਕਾ ਨਾਸੁ ॥੧੦॥
सुणिऐ दूख पाप का नासु ॥१०॥
परमात्मा का नाम सुनने से समस्त दुखों व दुष्कर्मो का नाश होता है॥ १०॥
ਸੁਣਿਐ ਸਰਾ ਗੁਣਾ ਕੇ ਗਾਹ ॥
सुणिऐ सरा गुणा के गाह ॥
नाम सुनने से गुणों के सागर श्री हरि में लीन हुआ जा सकता है।
ਸੁਣਿਐ ਸੇਖ ਪੀਰ ਪਾਤਿਸਾਹ ॥
सुणिऐ सेख पीर पातिसाह ॥
नाम-श्रवण के प्रभाव से ही शेख, पीर और बादशाह अपने पद पर शोभायमान हैं।
ਸੁਣਿਐ ਅੰਧੇ ਪਾਵਹਿ ਰਾਹੁ ॥
सुणिऐ अंधे पावहि राहु ॥
अज्ञानी मनुष्य प्रभु-भक्ति का मार्ग नाम-श्रवण करने से ही प्राप्त कर सकते हैं।
ਸੁਣਿਐ ਹਾਥ ਹੋਵੈ ਅਸਗਾਹੁ ॥
सुणिऐ हाथ होवै असगाहु ॥
इस भव-सागर की अथाह गहराई को जान पाना भी नाम-श्रवण की शक्ति से सम्भव हो सकता है।
ਨਾਨਕ ਭਗਤਾ ਸਦਾ ਵਿਗਾਸੁ ॥
नानक भगता सदा विगासु ॥
हे नानक ! सद्-पुरुषों के अंतर में सदैव आनंद का प्रकाश रहता है।
ਸੁਣਿਐ ਦੂਖ ਪਾਪ ਕਾ ਨਾਸੁ ॥੧੧॥
सुणिऐ दूख पाप का नासु ॥११॥
परमात्मा का नाम सुनने से समस्त दुखों व दुष्कर्मो का नाश होता है।॥ ११॥
ਮੰਨੇ ਕੀ ਗਤਿ ਕਹੀ ਨ ਜਾਇ ॥
मंने की गति कही न जाइ ॥
उस अकाल पुरुष का नाम सुनने के पश्चात उसे मानने वाले अर्थात् उसे अपने हृदय में बसाने वाले मनुष्य की अवस्था कथन नहीं की जा सकती।
ਜੇ ਕੋ ਕਹੈ ਪਿਛੈ ਪਛੁਤਾਇ ॥
जे को कहै पिछै पछुताइ ॥
जो भी उसकी अवस्था का बखान करता है तो उसे अंत में पछताना पड़ता है क्योंकि यह सच कर लेना सरल नहीं है, ऐसी कोई रचना नहीं जो नाम से प्राप्त होने वाले आनन्द का रहस्योद्घाटन कर सके।
ਕਾਗਦਿ ਕਲਮ ਨ ਲਿਖਣਹਾਰੁ ॥
कागदि कलम न लिखणहारु ॥
ऐसी अवस्था को यदि लिखा भी जाए तो इसके लिए न कागज़ है, न कलम और न ही लिखने वाला कोई जिज्ञासु,
ਮੰਨੇ ਕਾ ਬਹਿ ਕਰਨਿ ਵੀਚਾਰੁ ॥
मंने का बहि करनि वीचारु ॥
जो वाहिगुरु में लिवलीन होने वाले का विचार कर सकें।
ਐਸਾ ਨਾਮੁ ਨਿਰੰਜਨੁ ਹੋਇ ॥
ऐसा नामु निरंजनु होइ ॥
परमात्मा का नाम सर्वश्रेष्ठ व मायातीत है।
ਜੇ ਕੋ ਮੰਨਿ ਜਾਣੈ ਮਨਿ ਕੋਇ ॥੧੨॥
जे को मंनि जाणै मनि कोइ ॥१२॥
यदि कोई उसे अपने हृदय में बसा कर उसका चिन्तन करेII १२ ॥
ਮੰਨੈ ਸੁਰਤਿ ਹੋਵੈ ਮਨਿ ਬੁਧਿ ॥
मंनै सुरति होवै मनि बुधि ॥
परमात्मा का नाम सुनकर उसका चिन्तन करने से मन और बुद्धि में उत्तम प्रीति पैदा हो जाती है।
ਮੰਨੈ ਸਗਲ ਭਵਣ ਕੀ ਸੁਧਿ ॥
मंनै सगल भवण की सुधि ॥
चिन्तन करने से सम्पूर्ण सृष्टि का ज्ञान-बोध होता है।
ਮੰਨੈ ਮੁਹਿ ਚੋਟਾ ਨਾ ਖਾਇ ॥
मंनै मुहि चोटा ना खाइ ॥
चिन्तन करने वाला मनुष्य कभी सांसारिक कष्टों अथवा परलोक में यमों के दण्ड का भोगी नहीं होता।
ਮੰਨੈ ਜਮ ਕੈ ਸਾਥਿ ਨ ਜਾਇ ॥
मंनै जम कै साथि न जाइ ॥
चिन्तनशील मनुष्य अंतकाल में यमों के साथ नरकों में नहीं जाता, बल्कि देवगणों के साथ स्वर्ग-लोक को जाता है।
ਐਸਾ ਨਾਮੁ ਨਿਰੰਜਨੁ ਹੋਇ ॥
ऐसा नामु निरंजनु होइ ॥
परमात्मा का नाम बहुत ही श्रेष्ठ एवं मायातीत है।
ਜੇ ਕੋ ਮੰਨਿ ਜਾਣੈ ਮਨਿ ਕੋਇ ॥੧੩॥
जे को मंनि जाणै मनि कोइ ॥१३॥
यदि कोई उसे अपने हृदय में लीन करके उसका चिन्तन करे॥ १३॥
ਮੰਨੈ ਮਾਰਗਿ ਠਾਕ ਨ ਪਾਇ ॥
मंनै मारगि ठाक न पाइ ॥
निरंकार के नाम का चिन्तन करने वाले मानव जीव के मार्ग में किसी प्रकार की कोई बाधा नहीं आती।
ਮੰਨੈ ਪਤਿ ਸਿਉ ਪਰਗਟੁ ਜਾਇ ॥
मंनै पति सिउ परगटु जाइ ॥
चिन्तनशील मनुष्य संसार में शोभा का पात्र होता है।
ਮੰਨੈ ਮਗੁ ਨ ਚਲੈ ਪੰਥੁ ॥
मंनै मगु न चलै पंथु ॥
ऐसा व्यक्ति दुविधापूर्ण मार्ग अथवा साम्प्रदायिकता को छोड़ धर्म-पथ पर चलता है।
ਮੰਨੈ ਧਰਮ ਸੇਤੀ ਸਨਬੰਧੁ ॥
मंनै धरम सेती सनबंधु ॥
चिन्तनशील का धर्म-कार्यों से सुदृढ़ सम्बन्ध होता है।
ਐਸਾ ਨਾਮੁ ਨਿਰੰਜਨੁ ਹੋਇ ॥
ऐसा नामु निरंजनु होइ ॥
परमात्मा का नाम बहुत ही श्रेष्ठ एवं मायातीत है।
ਜੇ ਕੋ ਮੰਨਿ ਜਾਣੈ ਮਨਿ ਕੋਇ ॥੧੪॥
जे को मंनि जाणै मनि कोइ ॥१४॥
यदि कोई उसे अपने हृदय में लीन करके उसका चिन्तन करे II १४ II
ਮੰਨੈ ਪਾਵਹਿ ਮੋਖੁ ਦੁਆਰੁ ॥
मंनै पावहि मोखु दुआरु ॥
प्रभु के नाम का चिन्तन करने वाले मनुष्य मोक्ष द्वार को प्राप्त कर लेते हैं।
ਮੰਨੈ ਪਰਵਾਰੈ ਸਾਧਾਰੁ ॥
मंनै परवारै साधारु ॥
चिन्तन करने वाले अपने समस्त परिजनों को भी उस नाम का आश्रय देते हैं।
ਮੰਨੈ ਤਰੈ ਤਾਰੇ ਗੁਰੁ ਸਿਖ ॥
मंनै तरै तारे गुरु सिख ॥
चिन्तनशील गुरसिख स्वयं तो इस भव-सागर को पार करता ही है तथा अन्य संगियों को भी पार करवा देता है।
ਮੰਨੈ ਨਾਨਕ ਭਵਹਿ ਨ ਭਿਖ ॥
मंनै नानक भवहि न भिख ॥
चिन्तन करने वाला मानव जीव, हे नानक ! दर-दर का भिखारी नहीं बनता।
ਐਸਾ ਨਾਮੁ ਨਿਰੰਜਨੁ ਹੋਇ ॥
ऐसा नामु निरंजनु होइ ॥
परमात्मा का नाम बहुत ही श्रेष्ठ एवं मायातीत है।
ਜੇ ਕੋ ਮੰਨਿ ਜਾਣੈ ਮਨਿ ਕੋਇ ॥੧੫॥
जे को मंनि जाणै मनि कोइ ॥१५॥
यदि कोई उसे अपने हृदय में लीन करके उसका चिन्तन करे II १५II
ਪੰਚ ਪਰਵਾਣ ਪੰਚ ਪਰਧਾਨੁ ॥
पंच परवाण पंच परधानु ॥
जिन्होंने प्रभु-नाम का चिन्तन किया है वे श्रेष्ठ संतजन निरंकार के द्वार पर स्वीकृत होते हैं, वे ही वहाँ पर प्रमुख होते हैं।
ਪੰਚੇ ਪਾਵਹਿ ਦਰਗਹਿ ਮਾਨੁ ॥
पंचे पावहि दरगहि मानु ॥
ऐसे गुरुमुख प्यारे अकाल पुरुष की सभा में सम्मान पाते हैं।
ਪੰਚੇ ਸੋਹਹਿ ਦਰਿ ਰਾਜਾਨੁ ॥
पंचे सोहहि दरि राजानु ॥
ऐसे सद्-पुरुष राज दरबार में शोभावान होते हैं।
ਪੰਚਾ ਕਾ ਗੁਰੁ ਏਕੁ ਧਿਆਨੁ ॥
पंचा का गुरु एकु धिआनु ॥
सद्गुणी मानव का ध्यान उस एक सतगुरु (निरंकार) में ही दृढ़ रहता है।
ਜੇ ਕੋ ਕਹੈ ਕਰੈ ਵੀਚਾਰੁ ॥
जे को कहै करै वीचारु ॥
यदि कोई व्यक्ति उस सृजनहार के बारे में कहना चाहे अथवा उसकी रचना का लेखा करे
ਕਰਤੇ ਕੈ ਕਰਣੈ ਨਾਹੀ ਸੁਮਾਰੁ ॥
करते कै करणै नाही सुमारु ॥
तो उस रचयिता की कुदरत का आकलन नहीं किया जा सकता।
ਧੌਲੁ ਧਰਮੁ ਦਇਆ ਕਾ ਪੂਤੁ ॥
धौलु धरमु दइआ का पूतु ॥
निरंकार द्वारा रची गई सृष्टि धर्म रूपी वृषभ (धौला बैल) ने अपने ऊपर टिका कर रखी हुई है जो कि दया का पुत्र है (क्योंकि मन में दया-भाव होगा तभी धर्म-कार्य इस मानव जीव से सम्भव होगा।)
ਸੰਤੋਖੁ ਥਾਪਿ ਰਖਿਆ ਜਿਨਿ ਸੂਤਿ ॥
संतोखु थापि रखिआ जिनि सूति ॥
जिसे संतोष रूपी सूत्र के साथ बांधा हुआ है।
ਜੇ ਕੋ ਬੁਝੈ ਹੋਵੈ ਸਚਿਆਰੁ ॥
जे को बुझै होवै सचिआरु ॥
यदि कोई परमात्मा के इस रहस्य को जान ले तो वह सत्यनिष्ठ हो सकता है।
ਧਵਲੈ ਉਪਰਿ ਕੇਤਾ ਭਾਰੁ ॥
धवलै उपरि केता भारु ॥
कितना बोझ है, वह कितना बोझ उठाने की समर्था रखता है।
ਧਰਤੀ ਹੋਰੁ ਪਰੈ ਹੋਰੁ ਹੋਰੁ ॥
धरती होरु परै होरु होरु ॥
क्योंकि इस धरती पर सृजनहार ने जो रचना की है वह परे से परे है, अनन्त है।
ਤਿਸ ਤੇ ਭਾਰੁ ਤਲੈ ਕਵਣੁ ਜੋਰੁ ॥
तिस ते भारु तलै कवणु जोरु ॥
फिर उस बैल का बोझ किस शक्ति पर आश्रित है।
ਜੀਅ ਜਾਤਿ ਰੰਗਾ ਕੇ ਨਾਵ ॥
जीअ जाति रंगा के नाव ॥
सृजनहार की इस रचना में अनेक जातियों, रंगों तथा अलग-अलग नाम से जाने जाने वाले लोग मौजूद हैं।
ਏਹੁ ਲੇਖਾ ਲਿਖਿ ਜਾਣੈ ਕੋਇ ॥
एहु लेखा लिखि जाणै कोइ ॥
किन्तु यदि कोई जन-साधारण इस कर्म-लेख को लिखने की बात कहे तो
ਸਭਨਾ ਲਿਖਿਆ ਵੁੜੀ ਕਲਾਮ ॥
सभना लिखिआ वुड़ी कलाम ॥
जिनके मस्तिष्क पर परमात्मा की आज्ञा में चलने वाली कलम से कर्मो का लेखा लिखा गया है।
ਲੇਖਾ ਲਿਖਿਆ ਕੇਤਾ ਹੋਇ ॥
लेखा लिखिआ केता होइ ॥
वह यह भी नहीं जान पाएगा कि यह लिखा जाने वाला लेखा कितना होगा।
ਕੇਤਾ ਤਾਣੁ ਸੁਆਲਿਹੁ ਰੂਪੁ ॥
केता ताणु सुआलिहु रूपु ॥
लिखने वाले उस परमात्मा में कितनी शक्ति होगी, उसका रूप कितना सुन्दर है।
ਕੇਤੀ ਦਾਤਿ ਜਾਣੈ ਕੌਣੁ ਕੂਤੁ ॥
केती दाति जाणै कौणु कूतु ॥
उसकी कितनी दात है, ऐसा कौन है जो उसका सम्पूर्ण अनुमान लगा सकता है।
ਕੀਤਾ ਪਸਾਉ ਏਕੋ ਕਵਾਉ ॥
कीता पसाउ एको कवाउ ॥
अकाल पुरुष के मात्र एक शब्द से समस्त सृष्टि का प्रसार हुआ है।
ਤਿਸ ਤੇ ਹੋਏ ਲਖ ਦਰੀਆਉ ॥
तिस ते होए लख दरीआउ ॥
उस एक शब्द रूपी आदेश से ही सृष्टि में एक से अनेक जीव-जन्तु, तथा अन्य पदार्थों के प्रवाह चल पड़े हैं।
ਕੁਦਰਤਿ ਕਵਣ ਕਹਾ ਵੀਚਾਰੁ ॥
कुदरति कवण कहा वीचारु ॥
इसलिए मुझ में इतनी बुद्धि कहाँ कि मैं उस अकथनीय प्रभु की समर्था का विचार कर सकूं।
ਵਾਰਿਆ ਨ ਜਾਵਾ ਏਕ ਵਾਰ ॥
वारिआ न जावा एक वार ॥
हे अनन्त स्वरूप ! मैं तुझ पर एक बार भी कुर्बान होने के लायक नहीं हूँ।
ਜੋ ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਸਾਈ ਭਲੀ ਕਾਰ ॥
जो तुधु भावै साई भली कार ॥
जो तुझे भला लगता है वही कार्य श्रेष्ठ है।
ਤੂ ਸਦਾ ਸਲਾਮਤਿ ਨਿਰੰਕਾਰ ॥੧੬॥
तू सदा सलामति निरंकार ॥१६॥
हे निरंकार ! हे पारब्रह्म ! तू सदा शाश्वत रूप हैं ॥ १६॥
ਅਸੰਖ ਜਪ ਅਸੰਖ ਭਾਉ ॥
असंख जप असंख भाउ ॥
इस सृष्टि में असंख्य लोग उस सृजनहार का जाप करते हैं, असंख्य ही उसको प्रीत करने वाले हैं।
ਅਸੰਖ ਪੂਜਾ ਅਸੰਖ ਤਪ ਤਾਉ ॥
असंख पूजा असंख तप ताउ ॥
असंख्य उसकी अर्चना करते हैं, असंख्य तपी तपस्या कर रहे है।
ਅਸੰਖ ਗਰੰਥ ਮੁਖਿ ਵੇਦ ਪਾਠ ॥
असंख गरंथ मुखि वेद पाठ ॥
असंख्य लोग धार्मिक ग्रंथों व वेदों आदि का मुंह द्वारा पाठ कर रहे हैं।
ਅਸੰਖ ਜੋਗ ਮਨਿ ਰਹਹਿ ਉਦਾਸ ॥
असंख जोग मनि रहहि उदास ॥
असंख्य ही योग-साधना में लीन रह कर मन को आसक्तियों से मुक्त रखते हैं।