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ਕੀਮਤਿ ਪਾਇ ਨ ਕਹਿਆ ਜਾਇ ॥
कीमति पाइ न कहिआ जाइ ॥
वास्तव में उस सर्गुण स्वरूप परमात्मा की न तो कोई कीमत आंक सकता है और न ही उसका कोई अंत कह सकता है, क्योंकि वह अनन्त व असीम है।

ਕਹਣੈ ਵਾਲੇ ਤੇਰੇ ਰਹੇ ਸਮਾਇ ॥੧॥
कहणै वाले तेरे रहे समाइ ॥१॥
जिन्होंने तेरी महिमा का अंत पाया है अर्थात् तेरे सच्चिदानन्द स्वरूप को जाना है वे तुझ में ही अभेद हो जाते हैं।॥ १॥

ਵਡੇ ਮੇਰੇ ਸਾਹਿਬਾ ਗਹਿਰ ਗੰਭੀਰਾ ਗੁਣੀ ਗਹੀਰਾ ॥
वडे मेरे साहिबा गहिर ग्मभीरा गुणी गहीरा ॥
हे मेरे अकालपुरुष ! तुम सर्वोच्च हो, स्वभाव में स्थिर व गुणों के निधान हो।

ਕੋਈ ਨ ਜਾਣੈ ਤੇਰਾ ਕੇਤਾ ਕੇਵਡੁ ਚੀਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
कोई न जाणै तेरा केता केवडु चीरा ॥१॥ रहाउ ॥
तुम्हारा कितना विस्तार है, इस तथ्य का ज्ञान किसी को भी नहीं है॥ १॥ रहाउ ॥

ਸਭਿ ਸੁਰਤੀ ਮਿਲਿ ਸੁਰਤਿ ਕਮਾਈ ॥
सभि सुरती मिलि सुरति कमाई ॥
समस्त ध्यान-मग्न होने वाले व्यक्तियों ने मिलकर अपनी वृति लगाई।

ਸਭ ਕੀਮਤਿ ਮਿਲਿ ਕੀਮਤਿ ਪਾਈ ॥
सभ कीमति मिलि कीमति पाई ॥
समस्त विद्वानों ने मिलकर तुम्हारा अन्त जानने की कोशिश की।

ਗਿਆਨੀ ਧਿਆਨੀ ਗੁਰ ਗੁਰ ਹਾਈ ॥
गिआनी धिआनी गुर गुर हाई ॥
शास्त्रवेता, प्राणायामी, गुरु व गुरुओं के भी गुरु

ਕਹਣੁ ਨ ਜਾਈ ਤੇਰੀ ਤਿਲੁ ਵਡਿਆਈ ॥੨॥
कहणु न जाई तेरी तिलु वडिआई ॥२॥
तेरी महिमा का तिनका मात्र भी व्याख्यान नहीं कर सकते॥ २॥

ਸਭਿ ਸਤ ਸਭਿ ਤਪ ਸਭਿ ਚੰਗਿਆਈਆ ॥
सभि सत सभि तप सभि चंगिआईआ ॥
सभी शुभ-गुण, सभी तप और सभी शुभ कर्म;”

ਸਿਧਾ ਪੁਰਖਾ ਕੀਆ ਵਡਿਆਈਆਂ ॥
सिधा पुरखा कीआ वडिआईआं ॥
सिद्ध-पुरुषों सिद्धि समान महानता;

ਤੁਧੁ ਵਿਣੁ ਸਿਧੀ ਕਿਨੈ ਨ ਪਾਈਆ ॥
तुधु विणु सिधी किनै न पाईआ ॥
तुम्हारी कृपा के बिना पूर्वोक्त गुणों की जो सिद्धियाँ हैं वे किसी ने भी प्राप्त नहीं की।

ਕਰਮਿ ਮਿਲੈ ਨਾਹੀ ਠਾਕਿ ਰਹਾਈਆ ॥੩॥
करमि मिलै नाही ठाकि रहाईआ ॥३॥
यदि परमेश्वर की कृपा से ये शुभ-गुण प्राप्त हो जाएँ तो फिर किसी के रोके रुक नहीं सकते ॥ ३॥

ਆਖਣ ਵਾਲਾ ਕਿਆ ਬੇਚਾਰਾ ॥
आखण वाला किआ बेचारा ॥
यदि कोई कहे किं हे अकालपुरुष ! मैं तुम्हारी महिमा कथन कर सकता हूँ तो वह बेचारा क्या कह सकता है।

ਸਿਫਤੀ ਭਰੇ ਤੇਰੇ ਭੰਡਾਰਾ ॥
सिफती भरे तेरे भंडारा ॥
क्योंकि हे परमेश्वर ! तेरी स्तुति के भण्डार तो वेदों, ग्रंथों व तेरे भक्तों के हृदय में भरे पड़े हैं।

ਜਿਸੁ ਤੂੰ ਦੇਹਿ ਤਿਸੈ ਕਿਆ ਚਾਰਾ ॥
जिसु तूं देहि तिसै किआ चारा ॥
जिन को तुम अपनी स्तुति करने की बुद्धि प्रदान करते हो, उनके साथ किसी का क्या जोर चल सकता है।

ਨਾਨਕ ਸਚੁ ਸਵਾਰਣਹਾਰਾ ॥੪॥੧॥
नानक सचु सवारणहारा ॥४॥१॥
गुरु नानक जी कहते हैं कि वह सत्यस्वरूप परमात्मा ही सबको शोभायमान करने वाला है॥ ४ ॥ १॥

ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥
आसा महला १ ॥
आसा महला १ ॥

ਆਖਾ ਜੀਵਾ ਵਿਸਰੈ ਮਰਿ ਜਾਉ ॥
आखा जीवा विसरै मरि जाउ ॥
जब मुझे यह नाम विरमृत हो जाता है तो मैं स्वयं को मृत समझता हूँ ; अर्थात् मैं प्रभु के नाम में ही-सुख अनुभव करता हूँ, वरन् मैं दुखी होता हूँ।

ਆਖਣਿ ਅਉਖਾ ਸਾਚਾ ਨਾਉ ॥
आखणि अउखा साचा नाउ ॥
किंतु यह सत्य नाम कथन करना बहुत कठिन है।

ਸਾਚੇ ਨਾਮ ਕੀ ਲਾਗੈ ਭੂਖ ॥
साचे नाम की लागै भूख ॥
यदि प्रभु के सत्य नाम की (भूख) चाहत हो तो

ਤਿਤੁ ਭੂਖੈ ਖਾਇ ਚਲੀਅਹਿ ਦੂਖ ॥੧॥
तितु भूखै खाइ चलीअहि दूख ॥१॥
वह चाहत ही समस्त दुखों को नष्ट कर देती हैl ॥१॥

ਸੋ ਕਿਉ ਵਿਸਰੈ ਮੇਰੀ ਮਾਇ ॥
सो किउ विसरै मेरी माइ ॥
सो हे माता जी ! ऐसा नाम फिर मुझे विस्मृत क्यों हो।

ਸਾਚਾ ਸਾਹਿਬੁ ਸਾਚੈ ਨਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
साचा साहिबु साचै नाइ ॥१॥ रहाउ ॥
वह स्वामी सत्य है और उसका नाम भी सत्य है ॥१॥ रहाउ ॥

ਸਾਚੇ ਨਾਮ ਕੀ ਤਿਲੁ ਵਡਿਆਈ ॥
साचे नाम की तिलु वडिआई ॥
परमात्मा के सत्य नाम की तिनका मात्र महिमाः

ਆਖਿ ਥਕੇ ਕੀਮਤਿ ਨਹੀ ਪਾਈ ॥
आखि थके कीमति नही पाई ॥
“(व्यासादि मुनि) कह कर थक गए हैं, किंतु वे उसके महत्व को नहीं जान पाए हैं।

ਜੇ ਸਭਿ ਮਿਲਿ ਕੈ ਆਖਣ ਪਾਹਿ ॥
जे सभि मिलि कै आखण पाहि ॥
यदि सृष्टि के समस्त जीव मिलकर परमेश्वर की स्तुति करने लगें तो

ਵਡਾ ਨ ਹੋਵੈ ਘਾਟਿ ਨ ਜਾਇ ॥੨॥
वडा न होवै घाटि न जाइ ॥२॥
वह स्तुति करने से न बड़ा होता है और न निन्दा करने से घटता है॥ २ ॥

ਨਾ ਓਹੁ ਮਰੈ ਨ ਹੋਵੈ ਸੋਗੁ ॥
ना ओहु मरै न होवै सोगु ॥
वह निरंकार न तो कभी मरता है और न ही उसे कभी शोक होता है।

ਦੇਂਦਾ ਰਹੈ ਨ ਚੂਕੈ ਭੋਗੁ ॥
देंदा रहै न चूकै भोगु ॥
वह संसार के जीवों को खान-पान देता रहता है जो केि उसके भण्डार में कभी भी समाप्त नहीं होता।

ਗੁਣੁ ਏਹੋ ਹੋਰੁ ਨਾਹੀ ਕੋਇ ॥
गुणु एहो होरु नाही कोइ ॥
दानेश्वर परमात्मा जैसा गुण सिर्फ उसी में ही है, अन्य किसी में नहीं।

ਨਾ ਕੋ ਹੋਆ ਨਾ ਕੋ ਹੋਇ ॥੩॥
ना को होआ ना को होइ ॥३॥
ऐसे परमेश्वर जैर्सा न पहले कभी हुआ है और न ही आगे कोई होगा ॥ ३॥

ਜੇਵਡੁ ਆਪਿ ਤੇਵਡ ਤੇਰੀ ਦਾਤਿ ॥
जेवडु आपि तेवड तेरी दाति ॥
जितना महान् परमात्मा स्वयं है उतनी ही महान् उसकी बख्शिश है।

ਜਿਨਿ ਦਿਨੁ ਕਰਿ ਕੈ ਕੀਤੀ ਰਾਤਿ ॥
जिनि दिनु करि कै कीती राति ॥
जिसने दिन बनाकर फिर रात की रचना की है।

ਖਸਮੁ ਵਿਸਾਰਹਿ ਤੇ ਕਮਜਾਤਿ ॥
खसमु विसारहि ते कमजाति ॥
ऐसे परमेश्वर को जो विस्मृत कर दे वह नीच है।

ਨਾਨਕ ਨਾਵੈ ਬਾਝੁ ਸਨਾਤਿ ॥੪॥੨॥
नानक नावै बाझु सनाति ॥४॥२॥
गुरु नानक जी कहते हैं कि परमात्मा के नाम-सिमरन के बिना मनुष्य संकीर्ण जाति का होता है।ll ४॥ २॥

ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥
आसा महला १ ॥
आसा महला १ ॥

ਜੇ ਦਰਿ ਮਾਂਗਤੁ ਕੂਕ ਕਰੇ ਮਹਲੀ ਖਸਮੁ ਸੁਣੇ ॥
जे दरि मांगतु कूक करे महली खसमु सुणे ॥
यदि कोई भिखारी प्रभु के द्वार पर पुकार करे तो महल का मालिक प्रभु उसकी पुकार को सुन लेता है।

ਭਾਵੈ ਧੀਰਕ ਭਾਵੈ ਧਕੇ ਏਕ ਵਡਾਈ ਦੇਇ ॥੧॥
भावै धीरक भावै धके एक वडाई देइ ॥१॥
हे प्रभु ! अपने भिखारी को एक सम्मान प्रदान कर अथवा आदर-धैर्य दे अथवा धक्के मार दे ॥ १॥

ਜਾਣਹੁ ਜੋਤਿ ਨ ਪੂਛਹੁ ਜਾਤੀ ਆਗੈ ਜਾਤਿ ਨ ਹੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जाणहु जोति न पूछहु जाती आगै जाति न हे ॥१॥ रहाउ ॥
सब जीवों में प्रभु ज्योति ही समाई हुई समझो और किसी को जाति-वर्ण बारे मत पूछो क्योंकि परलोक में कोई जाति नहीं है।॥१॥ रहाउ॥

ਆਪਿ ਕਰਾਏ ਆਪਿ ਕਰੇਇ ॥
आपि कराए आपि करेइ ॥
ईश्वर स्वयं ही सबकुछ करता है और स्वयं ही जीवों से करवाता है।

ਆਪਿ ਉਲਾਮ੍ਹ੍ਹੇ ਚਿਤਿ ਧਰੇਇ ॥
आपि उलाम्हे चिति धरेइ ॥
वह स्वयं ही भक्तों की शिकायत की ओर ध्यान देता है।

ਜਾ ਤੂੰ ਕਰਣਹਾਰੁ ਕਰਤਾਰੁ ॥
जा तूं करणहारु करतारु ॥
हे कर्तार ! जब तुम ही करने वाले हो तो

ਕਿਆ ਮੁਹਤਾਜੀ ਕਿਆ ਸੰਸਾਰੁ ॥੨॥
किआ मुहताजी किआ संसारु ॥२॥
मैं संसार का मोहताज क्यों बनूं और किसके लिए होऊँ ? ॥ २॥

ਆਪਿ ਉਪਾਏ ਆਪੇ ਦੇਇ ॥
आपि उपाए आपे देइ ॥
हे प्रभु ! तुम ने स्वयं जीवों को पैदा किया है और स्वयं ही सबकुछ देते हो।

ਆਪੇ ਦੁਰਮਤਿ ਮਨਹਿ ਕਰੇਇ ॥
आपे दुरमति मनहि करेइ ॥
हे ठाकुर ! तुम स्वयं ही दुर्मति को रोकते हो।

ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਵਸੈ ਮਨਿ ਆਇ ॥
गुर परसादि वसै मनि आइ ॥
जब गुरु के प्रसाद से प्रभु आकर मनुष्य के हृदय में बसेरा कर लेता है

ਦੁਖੁ ਅਨੑੇਰਾ ਵਿਚਹੁ ਜਾਇ ॥੩॥
दुखु अन्हेरा विचहु जाइ ॥३॥
तो उसका दुःख एवं अन्धेरा भीतर से दौड़ जाते हैं।॥ ३॥

ਸਾਚੁ ਪਿਆਰਾ ਆਪਿ ਕਰੇਇ ॥
साचु पिआरा आपि करेइ ॥
वह स्वयं ही भीतर सत्य के लिए प्रेम उत्पन्न करता है।

ਅਵਰੀ ਕਉ ਸਾਚੁ ਨ ਦੇਇ ॥
अवरी कउ साचु न देइ ॥
दूसरों (स्वेच्छाचारी) को वह सत्य प्रदान नहीं करता।

ਜੇ ਕਿਸੈ ਦੇਇ ਵਖਾਣੈ ਨਾਨਕੁ ਆਗੈ ਪੂਛ ਨ ਲੇਇ ॥੪॥੩॥
जे किसै देइ वखाणै नानकु आगै पूछ न लेइ ॥४॥३॥
हे नानक ! यदि वह किसी को सत्य प्रदान करता है, तो उससे बाद में कर्मों का हिसाब-किताब नहीं मॉगता॥ ४ ॥ ३॥

ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥
आसा महला १ ॥
आसा महला १ ॥

ਤਾਲ ਮਦੀਰੇ ਘਟ ਕੇ ਘਾਟ ॥
ताल मदीरे घट के घाट ॥
मन के संकल्प ताल एवं धुंघरुओं की भाँति हैं और

ਦੋਲਕ ਦੁਨੀਆ ਵਾਜਹਿ ਵਾਜ ॥
दोलक दुनीआ वाजहि वाज ॥
उनसे दुनिया का मोह रूपी ढोल रस बज रहा है।

ਨਾਰਦੁ ਨਾਚੈ ਕਲਿ ਕਾ ਭਾਉ ॥
नारदु नाचै कलि का भाउ ॥
कलियुग के प्रभाव से मन रूपी नारद नृत्य कर रहे हैं।

ਜਤੀ ਸਤੀ ਕਹ ਰਾਖਹਿ ਪਾਉ ॥੧॥
जती सती कह राखहि पाउ ॥१॥
फिर ब्रह्मचारी एवं सत्यवादी मनुष्य अपने पैर कहाँ रखें ? ॥ १॥

ਨਾਨਕ ਨਾਮ ਵਿਟਹੁ ਕੁਰਬਾਣੁ ॥
नानक नाम विटहु कुरबाणु ॥
हे नानक ! मैं प्रभु के नाम पर कुर्बान जाता हूँ।

ਅੰਧੀ ਦੁਨੀਆ ਸਾਹਿਬੁ ਜਾਣੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अंधी दुनीआ साहिबु जाणु ॥१॥ रहाउ ॥
यह दुनिया (मोह-माया में फँसने के कारण) अन्धी (ज्ञानहीन) बनी हुई है परन्तु प्रभु सबकुछ जानने वाला है॥ १॥ रहाउ॥

ਗੁਰੂ ਪਾਸਹੁ ਫਿਰਿ ਚੇਲਾ ਖਾਇ ॥
गुरू पासहु फिरि चेला खाइ ॥
देखो, कैसी विपरीत रीति चल पड़ी है कि चेला ही गुरु से खाता है ?”

ਤਾਮਿ ਪਰੀਤਿ ਵਸੈ ਘਰਿ ਆਇ ॥
तामि परीति वसै घरि आइ ॥
वह रोटी खाने के लोभ में गुरु के घर आकर रहता है अर्थात् उसका चेला बन जाता है।

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