ਮੁੰਧੇ ਕੂੜਿ ਮੁਠੀ ਕੂੜਿਆਰਿ ॥
मुंधे कूड़ि मुठी कूड़िआरि ॥
जीव रूपी मुग्ध स्त्री! तू झूठ द्वारा तगी हुई झूठी बन रही है।
ਪਿਰੁ ਪ੍ਰਭੁ ਸਾਚਾ ਸੋਹਣਾ ਪਾਈਐ ਗੁਰ ਬੀਚਾਰਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
पिरु प्रभु साचा सोहणा पाईऐ गुर बीचारि ॥१॥ रहाउ ॥
सत्य व सुन्दर पति-परमात्मा गुरु के उपदेश द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है ॥ १॥ रहाउ॥
ਮਨਮੁਖਿ ਕੰਤੁ ਨ ਪਛਾਣਈ ਤਿਨ ਕਿਉ ਰੈਣਿ ਵਿਹਾਇ ॥
मनमुखि कंतु न पछाणई तिन किउ रैणि विहाइ ॥
स्वेच्छाचारी जीव रूपी स्त्रियों पति-परमेश्वर को नहीं पहचानती, इसलिए उनकी जीवन रूपी रात कैसे व्यतीत हो ?
ਗਰਬਿ ਅਟੀਆ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਜਲਹਿ ਦੁਖੁ ਪਾਵਹਿ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ॥
गरबि अटीआ त्रिसना जलहि दुखु पावहि दूजै भाइ ॥
अहंकार में पूर्ण रूप से भरी हुई वह स्त्री, तृष्णाग्नि में जलती है तथा द्वैत-भाव में दुख पाती है।
ਸਬਦਿ ਰਤੀਆ ਸੋਹਾਗਣੀ ਤਿਨ ਵਿਚਹੁ ਹਉਮੈ ਜਾਇ ॥
सबदि रतीआ सोहागणी तिन विचहु हउमै जाइ ॥
जो सुहागवती स्त्रियाँ गुरु-उपदेश में रत हैं, उनके हृदय में से अहंत्व नष्ट हो जाता है।
ਸਦਾ ਪਿਰੁ ਰਾਵਹਿ ਆਪਣਾ ਤਿਨਾ ਸੁਖੇ ਸੁਖਿ ਵਿਹਾਇ ॥੨॥
सदा पिरु रावहि आपणा तिना सुखे सुखि विहाइ ॥२॥
वह अपने पति-परमेश्वर के आनंद को सदैव भोगती हैं, इसलिए उनका जीवन पूर्ण सुख में व्यतीत होता है ॥२॥
ਗਿਆਨ ਵਿਹੂਣੀ ਪਿਰ ਮੁਤੀਆ ਪਿਰਮੁ ਨ ਪਾਇਆ ਜਾਇ ॥
गिआन विहूणी पिर मुतीआ पिरमु न पाइआ जाइ ॥
जो स्त्रियाँ (जीव) ज्ञान-रहित हैं, उनको पति-परमात्मा द्वारा परित्यक्त किया हुआ है और वह पति-परमात्मा का प्रेम ग्रहण नहीं कर पाती।
ਅਗਿਆਨ ਮਤੀ ਅੰਧੇਰੁ ਹੈ ਬਿਨੁ ਪਿਰ ਦੇਖੇ ਭੁਖ ਨ ਜਾਇ ॥
अगिआन मती अंधेरु है बिनु पिर देखे भुख न जाइ ॥
उनकी बुद्धि में अज्ञानता का अंधकार है, परमात्मा को देखे बिना भौतिक पदार्थों की भूख नहीं जाती।
ਆਵਹੁ ਮਿਲਹੁ ਸਹੇਲੀਹੋ ਮੈ ਪਿਰੁ ਦੇਹੁ ਮਿਲਾਇ ॥
आवहु मिलहु सहेलीहो मै पिरु देहु मिलाइ ॥
हे सत्संगिनों ! सत्संग में आओ और मिल कर विनती करो कि मुझे भी परमात्मा से मिला दो।
ਪੂਰੈ ਭਾਗਿ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਿਲੈ ਪਿਰੁ ਪਾਇਆ ਸਚਿ ਸਮਾਇ ॥੩॥
पूरै भागि सतिगुरु मिलै पिरु पाइआ सचि समाइ ॥३॥
जिस जीव रूपी स्त्री को सौभाग्य से सतिगुरु की प्राप्ति होती है, उसने ही पति-परमात्मा को प्राप्त किंया है और वह सत्य स्वरूप में समा जाती है ॥ २॥
ਸੇ ਸਹੀਆ ਸੋਹਾਗਣੀ ਜਿਨ ਕਉ ਨਦਰਿ ਕਰੇਇ ॥
से सहीआ सोहागणी जिन कउ नदरि करेइ ॥
वे सखियाँ सुहागिन होती हैं, जिन पर परमात्मा कृपा-दृष्टि करता है।
ਖਸਮੁ ਪਛਾਣਹਿ ਆਪਣਾ ਤਨੁ ਮਨੁ ਆਗੈ ਦੇਇ ॥
खसमु पछाणहि आपणा तनु मनु आगै देइ ॥
वह अपना तन-मन अर्पण करके अपने पति-परमात्मा को पहचानती हैं।
ਘਰਿ ਵਰੁ ਪਾਇਆ ਆਪਣਾ ਹਉਮੈ ਦੂਰਿ ਕਰੇਇ ॥
घरि वरु पाइआ आपणा हउमै दूरि करेइ ॥
गुरु कृपा द्वारा अहंकार दूर करके अपने हृदय रूपी घर में पति-परमात्मा पा लेती हैं।
ਨਾਨਕ ਸੋਭਾਵੰਤੀਆ ਸੋਹਾਗਣੀ ਅਨਦਿਨੁ ਭਗਤਿ ਕਰੇਇ ॥੪॥੨੮॥੬੧॥
नानक सोभावंतीआ सोहागणी अनदिनु भगति करेइ ॥४॥२८॥६१॥
गुरु जी कथन करते हैं कि वह यशस्वी सुहागिनें होती हैं जो प्रतिदिन पति-परमात्मा का चिन्तन करती है ॥४॥२८॥६१॥
ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੩ ॥
सिरीरागु महला ३ ॥
श्रीरागु महला ३ ॥
ਇਕਿ ਪਿਰੁ ਰਾਵਹਿ ਆਪਣਾ ਹਉ ਕੈ ਦਰਿ ਪੂਛਉ ਜਾਇ ॥
इकि पिरु रावहि आपणा हउ कै दरि पूछउ जाइ ॥
कई जीव रूपी स्त्रियाँ अपने पति-परमेश्वर के साथ सुख मान रही हैं परन्तु मैं किसके द्वार पर जाकर प्रभु-मिलन की युक्ति पूछू ?
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵੀ ਭਾਉ ਕਰਿ ਮੈ ਪਿਰੁ ਦੇਹੁ ਮਿਲਾਇ ॥
सतिगुरु सेवी भाउ करि मै पिरु देहु मिलाइ ॥
गुरु जी कथन करते हैं कि हे प्राणी ! तू श्रद्धापूर्वक सच्चे हृदय से अपने सतिगुरु की सेवा कर और सतिगुरु तुझ पर अपार कृपा करके तेरा परमेश्वर-पति से मिलन करवा देगा।
ਸਭੁ ਉਪਾਏ ਆਪੇ ਵੇਖੈ ਕਿਸੁ ਨੇੜੈ ਕਿਸੁ ਦੂਰਿ ॥
सभु उपाए आपे वेखै किसु नेड़ै किसु दूरि ॥
अकाल पुरुष समस्त जीवों का रक्षक है और उसके लिए कोई निकट एवं दूर नहीं।
ਜਿਨਿ ਪਿਰੁ ਸੰਗੇ ਜਾਣਿਆ ਪਿਰੁ ਰਾਵੇ ਸਦਾ ਹਦੂਰਿ ॥੧॥
जिनि पिरु संगे जाणिआ पिरु रावे सदा हदूरि ॥१॥
जिस प्राणी ने अपने पति-परमेश्वर को पा लिया है, वह उसकी संगति का सदैव आनंद प्राप्त करता है ॥१॥
ਮੁੰਧੇ ਤੂ ਚਲੁ ਗੁਰ ਕੈ ਭਾਇ ॥
मुंधे तू चलु गुर कै भाइ ॥
हे ज्ञानहीन प्राणी ! तू अपने गुरु की आज्ञानुसार कर्म करता रह, गुरु के उपदेशानुसार चलने से हे प्राणी !
ਅਨਦਿਨੁ ਰਾਵਹਿ ਪਿਰੁ ਆਪਣਾ ਸਹਜੇ ਸਚਿ ਸਮਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अनदिनु रावहि पिरु आपणा सहजे सचि समाइ ॥१॥ रहाउ ॥
तुझे परमात्मा का रात-दिन सुख अनुभव होगा और तू प्रभु के हृदय में समा जाएगा ॥१॥रहाउ॥
ਸਬਦਿ ਰਤੀਆ ਸੋਹਾਗਣੀ ਸਚੈ ਸਬਦਿ ਸੀਗਾਰਿ ॥
सबदि रतीआ सोहागणी सचै सबदि सीगारि ॥
जो जीवात्माएँ गुरु-शब्दों में लीन हैं, वही सुहागिनें हैं। वे सत्यनाम से श्रृंगार करती हैं।
ਹਰਿ ਵਰੁ ਪਾਇਨਿ ਘਰਿ ਆਪਣੈ ਗੁਰ ਕੈ ਹੇਤਿ ਪਿਆਰਿ ॥
हरि वरु पाइनि घरि आपणै गुर कै हेति पिआरि ॥
वे गुरु के साथ प्रेम में रहने से अपने अन्तर में हरि-रूपी वर प्राप्त कर लेती हैं।
ਸੇਜ ਸੁਹਾਵੀ ਹਰਿ ਰੰਗਿ ਰਵੈ ਭਗਤਿ ਭਰੇ ਭੰਡਾਰ ॥
सेज सुहावी हरि रंगि रवै भगति भरे भंडार ॥
उनकी सेज अति सुन्दर है, जिस पर परमात्मा रूपी पति से उनका मिलन होता है और उनके पास भक्ति के अमूल्य भण्डार विद्यमान होते हैं।
ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਮਨਿ ਵਸੈ ਜਿ ਸਭਸੈ ਦੇਇ ਅਧਾਰੁ ॥੨॥
सो प्रभु प्रीतमु मनि वसै जि सभसै देइ अधारु ॥२॥
वह प्रीतम प्रभु जो संसार के समस्त जीवों का आश्रय है, वह उनके हृदय में निवास करता है॥ २॥
ਪਿਰੁ ਸਾਲਾਹਨਿ ਆਪਣਾ ਤਿਨ ਕੈ ਹਉ ਸਦ ਬਲਿਹਾਰੈ ਜਾਉ ॥
पिरु सालाहनि आपणा तिन कै हउ सद बलिहारै जाउ ॥
गुरु जी कथन करते हैं कि मैं उन जीवात्माओं (प्रभु-भक्तों) पर बलिहारी जाता हूँ, जो अपने स्वामी की प्रशंसा करती हैं।
ਮਨੁ ਤਨੁ ਅਰਪੀ ਸਿਰੁ ਦੇਈ ਤਿਨ ਕੈ ਲਾਗਾ ਪਾਇ ॥
मनु तनु अरपी सिरु देई तिन कै लागा पाइ ॥
मैं उन प्रभु-भक्तों पर अपना तन-मन समर्पित करता हूँ और अपना शीश निवाता (झुकता) हूँ।
ਜਿਨੀ ਇਕੁ ਪਛਾਣਿਆ ਦੂਜਾ ਭਾਉ ਚੁਕਾਇ ॥
जिनी इकु पछाणिआ दूजा भाउ चुकाइ ॥
जिन्होंने विषय-विकार एवं द्वैत भावना त्यागकर एक पारब्रह्म को पहचान कर अपना लिया है, वह द्वैतवाद के प्रेम को अस्वीकृत कर देते हैं।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਪਛਾਣੀਐ ਨਾਨਕ ਸਚਿ ਸਮਾਇ ॥੩॥੨੯॥੬੨॥
गुरमुखि नामु पछाणीऐ नानक सचि समाइ ॥३॥२९॥६२॥
गुरु जी वचन करते हैं कि हे नानक ! गुरु-उपदेश से ही पारब्रह्म का ज्ञान प्राप्त होता है और गुरु की कृपा से वह ईश्वर में लीन हो जाता है।॥३॥२९॥६२॥
ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੩ ॥
सिरीरागु महला ३ ॥
श्रीरागु महला ३ ॥
ਹਰਿ ਜੀ ਸਚਾ ਸਚੁ ਤੂ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਤੇਰੈ ਚੀਰੈ ॥
हरि जी सचा सचु तू सभु किछु तेरै चीरै ॥
हे पूज्य-परमेश्वर ! तू ही सत्य है और सब कुछ तेरे ही वश में है।
ਲਖ ਚਉਰਾਸੀਹ ਤਰਸਦੇ ਫਿਰੇ ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਭੇਟੇ ਪੀਰੈ ॥
लख चउरासीह तरसदे फिरे बिनु गुर भेटे पीरै ॥
चौरासी लाख योनियों में प्राणी गुरु-मिलन के बिना सर्वत्र भटकता रहता है और प्रभु प्राप्ति के लिए डगमगाता फिरता है।
ਹਰਿ ਜੀਉ ਬਖਸੇ ਬਖਸਿ ਲਏ ਸੂਖ ਸਦਾ ਸਰੀਰੈ ॥
हरि जीउ बखसे बखसि लए सूख सदा सरीरै ॥
परमात्मा की कृपा-दृष्टि हो तो क्षमा करने पर मनुष्य देह दुखों से निवृत्त होकर सदा सुख सागर में रहती है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਸੇਵ ਕਰੀ ਸਚੁ ਗਹਿਰ ਗੰਭੀਰੈ ॥੧॥
गुर परसादी सेव करी सचु गहिर ग्मभीरै ॥१॥
गुरु की दया-दृष्टि से ही प्राणी सच्चे, गहर, गंभीर परम सत्य को प्राप्त करता है॥ १॥
ਮਨ ਮੇਰੇ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਸੁਖੁ ਹੋਇ ॥
मन मेरे नामि रते सुखु होइ ॥
इसलिए हे मेरे मन ! भगवान के नाम में मग्न होने से सुख की उपलब्धि होती है।
ਗੁਰਮਤੀ ਨਾਮੁ ਸਲਾਹੀਐ ਦੂਜਾ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरमती नामु सलाहीऐ दूजा अवरु न कोइ ॥१॥ रहाउ ॥
गुरु उपदेशानुसार परमात्मा के नाम का यश गान करता जा, क्योकि इसके अतिरिक्त और कोई अन्य उपाय नहीं ॥ १॥ रहाउ॥
ਧਰਮ ਰਾਇ ਨੋ ਹੁਕਮੁ ਹੈ ਬਹਿ ਸਚਾ ਧਰਮੁ ਬੀਚਾਰਿ ॥
धरम राइ नो हुकमु है बहि सचा धरमु बीचारि ॥
धर्मराज को सच्चे न्याय का उपदेश उसी परमात्मा ने प्रदान किया था केि सबके साथ बैठ कर एक सच्चा-न्याय कर।
ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਦੁਸਟੁ ਆਤਮਾ ਓਹੁ ਤੇਰੀ ਸਰਕਾਰ ॥
दूजै भाइ दुसटु आतमा ओहु तेरी सरकार ॥
उस महान् परमात्मा ने धर्मराज को अधिकार प्रदान किया था कि दुष्ट आत्माएँ जो लोभ, मोह, अहंकार इत्यादि विकारों में ग्रस्त हैं वह तेरे नरकों की प्रजा है।
ਅਧਿਆਤਮੀ ਹਰਿ ਗੁਣ ਤਾਸੁ ਮਨਿ ਜਪਹਿ ਏਕੁ ਮੁਰਾਰਿ ॥
अधिआतमी हरि गुण तासु मनि जपहि एकु मुरारि ॥
आध्यात्मिक प्राणी जो गुणों के भण्डार से ओतप्रोत हैं तथा परमेश्वर का सिमरन करते हैं।