ਪਵਣੁ ਪਾਣੀ ਅਗਨਿ ਤਿਨਿ ਕੀਆ ਬ੍ਰਹਮਾ ਬਿਸਨੁ ਮਹੇਸ ਅਕਾਰ ॥
पवणु पाणी अगनि तिनि कीआ ब्रहमा बिसनु महेस अकार ॥
उस ईश्वर ने ही पवन, पानी, अग्नि की रचना की है और ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश उसी की रचना हैं।
ਸਰਬੇ ਜਾਚਿਕ ਤੂੰ ਪ੍ਰਭੁ ਦਾਤਾ ਦਾਤਿ ਕਰੇ ਅਪੁਨੈ ਬੀਚਾਰ ॥੪॥
सरबे जाचिक तूं प्रभु दाता दाति करे अपुनै बीचार ॥४॥
हे प्रभु ! तू दाता हैं शेष सभी याचक हैं तथा अपनी रज़ा अनुसार यथायोग्य दान देता है॥ ४॥
ਕੋਟਿ ਤੇਤੀਸ ਜਾਚਹਿ ਪ੍ਰਭ ਨਾਇਕ ਦੇਦੇ ਤੋਟਿ ਨਾਹੀ ਭੰਡਾਰ ॥
कोटि तेतीस जाचहि प्रभ नाइक देदे तोटि नाही भंडार ॥
तेतीस करोड़ देवता भी उस नायक प्रभु से याचना करते हैं, जिसके भण्डार में दान की कोई कभी नहीं आती।
ਊਂਧੈ ਭਾਂਡੈ ਕਛੁ ਨ ਸਮਾਵੈ ਸੀਧੈ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪਰੈ ਨਿਹਾਰ ॥੫॥
ऊंधै भांडै कछु न समावै सीधै अम्रितु परै निहार ॥५॥
उल्टे रखे बर्तन में कुछ भी डाला नहीं जा सकता और सीधे बर्तन में अमृत भरा दिखाई देता है॥ ५॥
ਸਿਧ ਸਮਾਧੀ ਅੰਤਰਿ ਜਾਚਹਿ ਰਿਧਿ ਸਿਧਿ ਜਾਚਿ ਕਰਹਿ ਜੈਕਾਰ ॥
सिध समाधी अंतरि जाचहि रिधि सिधि जाचि करहि जैकार ॥
सिद्ध लोग अपनी समाधि में लीन होकर प्रभु से ऋद्धियों-सिद्धियों का दान माँगते हैं और उसकी जय-जयकार करते हैं।
ਜੈਸੀ ਪਿਆਸ ਹੋਇ ਮਨ ਅੰਤਰਿ ਤੈਸੋ ਜਲੁ ਦੇਵਹਿ ਪਰਕਾਰ ॥੬॥
जैसी पिआस होइ मन अंतरि तैसो जलु देवहि परकार ॥६॥
हे प्रभु ! मनुष्य के हृदय में जैसी प्यास होती है, वैसे ही प्रकार का जल तुम उसे देते हो॥ ६॥
ਬਡੇ ਭਾਗ ਗੁਰੁ ਸੇਵਹਿ ਅਪੁਨਾ ਭੇਦੁ ਨਾਹੀ ਗੁਰਦੇਵ ਮੁਰਾਰ ॥
बडे भाग गुरु सेवहि अपुना भेदु नाही गुरदेव मुरार ॥
अहोभाग्य से ही अपने गुरु की सेवा होती है तथा गुरुदेव एवं प्रभु के बीच कोई भेद नहीं।
ਤਾ ਕਉ ਕਾਲੁ ਨਾਹੀ ਜਮੁ ਜੋਹੈ ਬੂਝਹਿ ਅੰਤਰਿ ਸਬਦੁ ਬੀਚਾਰ ॥੭॥
ता कउ कालु नाही जमु जोहै बूझहि अंतरि सबदु बीचार ॥७॥
जो प्राणी अपने अन्तर्मन में शब्द पर विचार करते हैं, उन्हें यमदूत की कुदृष्टि भी नाश नहीं कर सकती ॥ ७॥
ਅਬ ਤਬ ਅਵਰੁ ਨ ਮਾਗਉ ਹਰਿ ਪਹਿ ਨਾਮੁ ਨਿਰੰਜਨ ਦੀਜੈ ਪਿਆਰਿ ॥
अब तब अवरु न मागउ हरि पहि नामु निरंजन दीजै पिआरि ॥
हे हरि ! मुझे अपने निरंजन नाम का प्रेम प्रदान करो, अब मैं तुझ से अन्य कुछ भी नहीं माँगता।
ਨਾਨਕ ਚਾਤ੍ਰਿਕੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਜਲੁ ਮਾਗੈ ਹਰਿ ਜਸੁ ਦੀਜੈ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰਿ ॥੮॥੨॥
नानक चात्रिकु अम्रित जलु मागै हरि जसु दीजै किरपा धारि ॥८॥२॥
नानक रूपी चातक तेरे अमृत जल की अभिलाषा करता है, कृपा करके उसे अपने हरियश का दान दीजिए ॥८॥२॥
ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
गूजरी महला १ ॥
गूजरी महला १ ॥
ਐ ਜੀ ਜਨਮਿ ਮਰੈ ਆਵੈ ਫੁਨਿ ਜਾਵੈ ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਗਤਿ ਨਹੀ ਕਾਈ ॥
ऐ जी जनमि मरै आवै फुनि जावै बिनु गुर गति नही काई ॥
हे प्रिय ! जीव जन्मता-मरता और बार-बार जगत में आता-जाता रहता है। किन्तु गुरु के बिना किसी की गति नहीं होती।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਪ੍ਰਾਣੀ ਨਾਮੇ ਰਾਤੇ ਨਾਮੇ ਗਤਿ ਪਤਿ ਪਾਈ ॥੧॥
गुरमुखि प्राणी नामे राते नामे गति पति पाई ॥१॥
गुरुमुख व्यक्ति प्रभु-नाम में रंगे रहते हैं और नाम के माध्यम से ही वह गति एवं मान-सम्मान प्राप्त करते हैं। १ ॥
ਭਾਈ ਰੇ ਰਾਮ ਨਾਮਿ ਚਿਤੁ ਲਾਈ ॥
भाई रे राम नामि चितु लाई ॥
हे भाई ! अपना चित्त राम-नाम के साथ लगाओ।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਜਾਚੇ ਐਸੀ ਨਾਮ ਬਡਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुर परसादी हरि प्रभ जाचे ऐसी नाम बडाई ॥१॥ रहाउ ॥
नाम की ऐसी महिमा है कि मनुष्य गुरु की कृपा से केवल हरि-प्रभु को ही माँगता है॥ १॥ रहाउ ॥
ਐ ਜੀ ਬਹੁਤੇ ਭੇਖ ਕਰਹਿ ਭਿਖਿਆ ਕਉ ਕੇਤੇ ਉਦਰੁ ਭਰਨ ਕੈ ਤਾਈ ॥
ऐ जी बहुते भेख करहि भिखिआ कउ केते उदरु भरन कै ताई ॥
हे महोदय ! कितने ही लोग अपना पेट भरने के लिए भिक्षा मांगने के लिए अनेक वेष धारण करते हैं।
ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਨਾਹੀ ਸੁਖੁ ਪ੍ਰਾਨੀ ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਗਰਬੁ ਨ ਜਾਈ ॥੨॥
बिनु हरि भगति नाही सुखु प्रानी बिनु गुर गरबु न जाई ॥२॥
हे प्राणी ! हरि की भक्ति के बिना कहीं सुख नहीं और गुरु के बिना अभिमान दूर नहीं होता ॥ २॥
ਐ ਜੀ ਕਾਲੁ ਸਦਾ ਸਿਰ ਊਪਰਿ ਠਾਢੇ ਜਨਮਿ ਜਨਮਿ ਵੈਰਾਈ ॥
ऐ जी कालु सदा सिर ऊपरि ठाढे जनमि जनमि वैराई ॥
हे जिज्ञासु ! काल सदा प्राणी के सिर पर खड़ा है और वह जन्म-जन्मांतरों से उसका वैरी है।
ਸਾਚੈ ਸਬਦਿ ਰਤੇ ਸੇ ਬਾਚੇ ਸਤਿਗੁਰ ਬੂਝ ਬੁਝਾਈ ॥੩॥
साचै सबदि रते से बाचे सतिगुर बूझ बुझाई ॥३॥
सच्चे गुरु ने मुझे यह ज्ञान प्रदान किया है जो प्राणी सत्यनाम में लीन होते हैं, वे बच जाते हैं। ३॥
ਗੁਰ ਸਰਣਾਈ ਜੋਹਿ ਨ ਸਾਕੈ ਦੂਤੁ ਨ ਸਕੈ ਸੰਤਾਈ ॥
गुर सरणाई जोहि न साकै दूतु न सकै संताई ॥
गुरु की शरण में आने से यमदूत प्राणी को दु:खी नहीं कर सकता, अपितु उसकी ओर दृष्टि भी नहीं कर सकता।
ਅਵਿਗਤ ਨਾਥ ਨਿਰੰਜਨਿ ਰਾਤੇ ਨਿਰਭਉ ਸਿਉ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥੪॥
अविगत नाथ निरंजनि राते निरभउ सिउ लिव लाई ॥४॥
मैं अविगत एवं निरंजन नाथ में लीन हो गया हूँ और निर्भय प्रभु के साथ मैंने वृति लगा ली है॥ ४॥
ਐ ਜੀਉ ਨਾਮੁ ਦਿੜਹੁ ਨਾਮੇ ਲਿਵ ਲਾਵਹੁ ਸਤਿਗੁਰ ਟੇਕ ਟਿਕਾਈ ॥
ऐ जीउ नामु दिड़हु नामे लिव लावहु सतिगुर टेक टिकाई ॥
हे जीव ! प्रभु-नाम को अपने भीतर दृढ़ करो, नाम के साथ ही वृति लगाओ और सच्चे गुरु की शरण में आओ।
ਜੋ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਸੋਈ ਕਰਸੀ ਕਿਰਤੁ ਨ ਮੇਟਿਆ ਜਾਈ ॥੫॥
जो तिसु भावै सोई करसी किरतु न मेटिआ जाई ॥५॥
जो कुछ परमात्मा को भला लगता है, वह वही करता है। उसके किए हुए को कोई भी मिटा नहीं सकता ॥ ५ ॥
ਐ ਜੀ ਭਾਗਿ ਪਰੇ ਗੁਰ ਸਰਣਿ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰੀ ਮੈ ਅਵਰ ਨ ਦੂਜੀ ਭਾਈ ॥
ऐ जी भागि परे गुर सरणि तुम्हारी मै अवर न दूजी भाई ॥
हे मेरे गुरुदेव ! मैं दौड़कर तेरी शरण में आ गया हूँ, क्योंकि किसी अन्य की शरण मुझे अच्छी नहीं लगती।
ਅਬ ਤਬ ਏਕੋ ਏਕੁ ਪੁਕਾਰਉ ਆਦਿ ਜੁਗਾਦਿ ਸਖਾਈ ॥੬॥
अब तब एको एकु पुकारउ आदि जुगादि सखाई ॥६॥
मैं सदैव उस एक ईश्वर को ही पुकारता हूँ, जो युग-युग से मेरा सहायक है॥ ६॥
ਐ ਜੀ ਰਾਖਹੁ ਪੈਜ ਨਾਮ ਅਪੁਨੇ ਕੀ ਤੁਝ ਹੀ ਸਿਉ ਬਨਿ ਆਈ ॥
ऐ जी राखहु पैज नाम अपुने की तुझ ही सिउ बनि आई ॥
हे प्रभु जी ! तुम अपने नाम की लाज रखना, तेरे साथ ही मेरी प्रीति बनी हुई है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਗੁਰ ਦਰਸੁ ਦਿਖਾਵਹੁ ਹਉਮੈ ਸਬਦਿ ਜਲਾਈ ॥੭॥
करि किरपा गुर दरसु दिखावहु हउमै सबदि जलाई ॥७॥
हे गुरुदेव ! कृपा करके मुझे अपने दर्शन दीजिए क्योंकि नाम द्वारा मैंने अपना अहंकार जला दिया है॥ ७॥
ਐ ਜੀ ਕਿਆ ਮਾਗਉ ਕਿਛੁ ਰਹੈ ਨ ਦੀਸੈ ਇਸੁ ਜਗ ਮਹਿ ਆਇਆ ਜਾਈ ॥
ऐ जी किआ मागउ किछु रहै न दीसै इसु जग महि आइआ जाई ॥
हे प्रभु जी ! मैं क्या माँगूं? क्योंकि इस सृष्टि में सब कुछ नश्वर है। जो कोई भी इस दुनिया में आया है, वह चला जाता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਦੀਜੈ ਹਿਰਦੈ ਕੰਠਿ ਬਣਾਈ ॥੮॥੩॥
नानक नामु पदारथु दीजै हिरदै कंठि बणाई ॥८॥३॥
हे स्वामी ! नानक को नाम-पदार्थ प्रदान दीजिए, अपने हृदय एवं गले से इसे श्रृंगार बना कर स्मरण करूगा ॥ ८ ॥ ३॥
ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
गूजरी महला १ ॥
गूजरी महला १ ॥
ਐ ਜੀ ਨਾ ਹਮ ਉਤਮ ਨੀਚ ਨ ਮਧਿਮ ਹਰਿ ਸਰਣਾਗਤਿ ਹਰਿ ਕੇ ਲੋਗ ॥
ऐ जी ना हम उतम नीच न मधिम हरि सरणागति हरि के लोग ॥
हे प्रिय ! न हम उत्तम हैं, न ही नीच एवं न ही मध्यम श्रेणी के हैं। हम तो हरि की शरणागत, हरि के सेवक हैं।
ਨਾਮ ਰਤੇ ਕੇਵਲ ਬੈਰਾਗੀ ਸੋਗ ਬਿਜੋਗ ਬਿਸਰਜਿਤ ਰੋਗ ॥੧॥
नाम रते केवल बैरागी सोग बिजोग बिसरजित रोग ॥१॥
हम तो केवल हरि-नाम में लीन होने के कारण वैरागी हैं और हमने शोक, वियोग एवं रोग को विसर्जित कर दिया है॥ १॥
ਭਾਈ ਰੇ ਗੁਰ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਭਗਤਿ ਠਾਕੁਰ ਕੀ ॥
भाई रे गुर किरपा ते भगति ठाकुर की ॥
हे भाई ! गुरु की कृपा से ही ठाकुर जी की भक्ति होती है।