Hindi Page 518

ਜਿਸੁ ਸਿਮਰਤ ਸੁਖੁ ਹੋਇ ਸਗਲੇ ਦੂਖ ਜਾਹਿ ॥੨॥
जिसु सिमरत सुखु होइ सगले दूख जाहि ॥२॥
जिसकी आराधना करने से सुख प्राप्त होता है और सभी दुःख दूर हो जाते हैं ॥२॥

ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥

ਅਕੁਲ ਨਿਰੰਜਨ ਪੁਰਖੁ ਅਗਮੁ ਅਪਾਰੀਐ ॥
अकुल निरंजन पुरखु अगमु अपारीऐ ॥
परमात्मा कुल रहित, मायातीत, सर्वशक्तिमान, अगम्य एवं अपार है।

ਸਚੋ ਸਚਾ ਸਚੁ ਸਚੁ ਨਿਹਾਰੀਐ ॥
सचो सचा सचु सचु निहारीऐ ॥
वास्तव में सत्य का पुंज, परम-सत्य परमात्मा सत्य का रूप बनकर ही दिखाई देता है।

ਕੂੜੁ ਨ ਜਾਪੈ ਕਿਛੁ ਤੇਰੀ ਧਾਰੀਐ ॥
कूड़ु न जापै किछु तेरी धारीऐ ॥
हे प्रभु ! यह सृष्टि तेरी पैदा की हुई है मगर कोई भी वस्तु काल्पनिक नहीं लगती।

ਸਭਸੈ ਦੇ ਦਾਤਾਰੁ ਜੇਤ ਉਪਾਰੀਐ ॥
सभसै दे दातारु जेत उपारीऐ ॥
वह दाता सभी को भोजन देता है, जिन्हें उसने पैदा किया है और

ਇਕਤੁ ਸੂਤਿ ਪਰੋਇ ਜੋਤਿ ਸੰਜਾਰੀਐ ॥
इकतु सूति परोइ जोति संजारीऐ ॥
सभी को एक ही हुक्म रूपी धागे में पिरोकर उसने उनके भीतर अपनी ज्योति प्रकाशमान की है।

ਹੁਕਮੇ ਭਵਜਲ ਮੰਝਿ ਹੁਕਮੇ ਤਾਰੀਐ ॥
हुकमे भवजल मंझि हुकमे तारीऐ ॥
उसके हुक्म से कई भवसागर में डूब जाते हैं और कई पार हो जाते हैं।

ਪ੍ਰਭ ਜੀਉ ਤੁਧੁ ਧਿਆਏ ਸੋਇ ਜਿਸੁ ਭਾਗੁ ਮਥਾਰੀਐ ॥
प्रभ जीउ तुधु धिआए सोइ जिसु भागु मथारीऐ ॥
हे पूज्य प्रभु ! जिसके मस्तक पर भाग्य होता है, वही मनुष्य तुझे याद करता है।

ਤੇਰੀ ਗਤਿ ਮਿਤਿ ਲਖੀ ਨ ਜਾਇ ਹਉ ਤੁਧੁ ਬਲਿਹਾਰੀਐ ॥੧॥
तेरी गति मिति लखी न जाइ हउ तुधु बलिहारीऐ ॥१॥
तेरी गति एवं अनुमान (शक्ति) जाने नहीं जा सकते, इसलिए मैं तुझ पर बलिहारी जाता हूँ ॥१॥

ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੫ ॥
सलोकु मः ५ ॥
श्लोक महला ५॥

ਜਾ ਤੂੰ ਤੁਸਹਿ ਮਿਹਰਵਾਨ ਅਚਿੰਤੁ ਵਸਹਿ ਮਨ ਮਾਹਿ ॥
जा तूं तुसहि मिहरवान अचिंतु वसहि मन माहि ॥
हे मेहरबान परमात्मा ! यदि तू खुश हो जाए तो अचिंत ही हमारे मन में निवास कर लेता है।

ਜਾ ਤੂੰ ਤੁਸਹਿ ਮਿਹਰਵਾਨ ਨਉ ਨਿਧਿ ਘਰ ਮਹਿ ਪਾਹਿ ॥
जा तूं तुसहि मिहरवान नउ निधि घर महि पाहि ॥
हे मेहरबान ! यदि तू खुश हो जाए तो हमारे हृदय रूपी घर में ही नवनिधियाँ प्राप्त हो जाती हैं।

ਜਾ ਤੂੰ ਤੁਸਹਿ ਮਿਹਰਵਾਨ ਤਾ ਗੁਰ ਕਾ ਮੰਤ੍ਰੁ ਕਮਾਹਿ ॥
जा तूं तुसहि मिहरवान ता गुर का मंत्रु कमाहि ॥
हे दयालु प्रभु ! यदि तू प्रसन्न हो जाए तो मैं गुरु के मंत्र की साधना करता हूँ।

ਜਾ ਤੂੰ ਤੁਸਹਿ ਮਿਹਰਵਾਨ ਤਾ ਨਾਨਕ ਸਚਿ ਸਮਾਹਿ ॥੧॥
जा तूं तुसहि मिहरवान ता नानक सचि समाहि ॥१॥
नानक प्रार्थना करता है कि हे मेहरबान ! जब तू प्रसन्न हो जाता है तो मैं सत्य में ही समा जाता हूँ ॥१॥

ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥

ਕਿਤੀ ਬੈਹਨੑਿ ਬੈਹਣੇ ਮੁਚੁ ਵਜਾਇਨਿ ਵਜ ॥
किती बैहन्हि बैहणे मुचु वजाइनि वज ॥
कितने ही राज सिंहासन पर बैठते हैं और उनके लिए अनेक वाद्ययन्त्र बजते हैं।

ਨਾਨਕ ਸਚੇ ਨਾਮ ਵਿਣੁ ਕਿਸੈ ਨ ਰਹੀਆ ਲਜ ॥੨॥
नानक सचे नाम विणु किसै न रहीआ लज ॥२॥
हे नानक ! सत्यनाम के बिना किसी की भी मान-प्रतिष्ठा नहीं बची ॥२॥

ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥

ਤੁਧੁ ਧਿਆਇਨੑਿ ਬੇਦ ਕਤੇਬਾ ਸਣੁ ਖੜੇ ॥
तुधु धिआइन्हि बेद कतेबा सणु खड़े ॥
हे स्वामी ! वेद तथा कतेब साथ खड़े तेरी स्तुति कर रहे हैं।

ਗਣਤੀ ਗਣੀ ਨ ਜਾਇ ਤੇਰੈ ਦਰਿ ਪੜੇ ॥
गणती गणी न जाइ तेरै दरि पड़े ॥
जो तेरे द्वार पर नतमस्तक पड़े हुए हैं, उनकी गणना नहीं की जा सकती।

ਬ੍ਰਹਮੇ ਤੁਧੁ ਧਿਆਇਨੑਿ ਇੰਦ੍ਰ ਇੰਦ੍ਰਾਸਣਾ ॥
ब्रहमे तुधु धिआइन्हि इंद्र इंद्रासणा ॥
ब्रह्मा भी तेरी वन्दना करता है तथा इन्द्रासन पर विराजमान इन्द्र भी तुझे याद करता है।

ਸੰਕਰ ਬਿਸਨ ਅਵਤਾਰ ਹਰਿ ਜਸੁ ਮੁਖਿ ਭਣਾ ॥
संकर बिसन अवतार हरि जसु मुखि भणा ॥
शंकर, विष्णु अवतार अपने मुख से हरि यश करते हैं।

ਪੀਰ ਪਿਕਾਬਰ ਸੇਖ ਮਸਾਇਕ ਅਉਲੀਏ ॥
पीर पिकाबर सेख मसाइक अउलीए ॥
हे प्रभु ! पीर-पैगम्बरं, शेख और औलिया तुझे ही स्मरण करते हैं।

ਓਤਿ ਪੋਤਿ ਨਿਰੰਕਾਰ ਘਟਿ ਘਟਿ ਮਉਲੀਏ ॥
ओति पोति निरंकार घटि घटि मउलीए ॥
हे निराकार परमात्मा ! ताने-पेटे की भाँति हरेक जीव में तू ओत-प्रोत है।

ਕੂੜਹੁ ਕਰੇ ਵਿਣਾਸੁ ਧਰਮੇ ਤਗੀਐ ॥
कूड़हु करे विणासु धरमे तगीऐ ॥
झूठ के कारण मानव का विनाश हो जाता है तथा धर्म के मार्ग पर वह प्रफुल्लित होता है।

ਜਿਤੁ ਜਿਤੁ ਲਾਇਹਿ ਆਪਿ ਤਿਤੁ ਤਿਤੁ ਲਗੀਐ ॥੨॥
जितु जितु लाइहि आपि तितु तितु लगीऐ ॥२॥
जहाँ-कहीं भी परमात्मा जीव को लगाता है, उधर ही वह लग जाता है ॥२॥

ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੫ ॥
सलोकु मः ५ ॥
श्लोक महला ५॥

ਚੰਗਿਆਈਂ ਆਲਕੁ ਕਰੇ ਬੁਰਿਆਈਂ ਹੋਇ ਸੇਰੁ ॥
चंगिआईं आलकु करे बुरिआईं होइ सेरु ॥
अज्ञानी मानव (शुभ कर्म) अच्छाई करने में आलस्य करता है लेकिन बुरा करने में शेर बन जाता है।

ਨਾਨਕ ਅਜੁ ਕਲਿ ਆਵਸੀ ਗਾਫਲ ਫਾਹੀ ਪੇਰੁ ॥੧॥
नानक अजु कलि आवसी गाफल फाही पेरु ॥१॥
हे नानक ! आज अथवा कल मृत्यु ने आना ही है और मूर्ख मनुष्य के पैर में मौत का फंदा पड़ना ही है ॥१॥

ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥

ਕਿਤੀਆ ਕੁਢੰਗ ਗੁਝਾ ਥੀਐ ਨ ਹਿਤੁ ॥
कितीआ कुढंग गुझा थीऐ न हितु ॥
हमारे अनेक दुष्कर्मों का हित तुम से छिपा हुआ नहीं।

ਨਾਨਕ ਤੈ ਸਹਿ ਢਕਿਆ ਮਨ ਮਹਿ ਸਚਾ ਮਿਤੁ ॥੨॥
नानक तै सहि ढकिआ मन महि सचा मितु ॥२॥
हे नानक के परमेश्वर ! तुम ही हमारे मन में सच्चे मित्र हो और तूने ही हमारी बुराइयों को ढंका हुआ है ॥२॥

ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥

ਹਉ ਮਾਗਉ ਤੁਝੈ ਦਇਆਲ ਕਰਿ ਦਾਸਾ ਗੋਲਿਆ ॥
हउ मागउ तुझै दइआल करि दासा गोलिआ ॥
हे दयालु परमेश्वर ! मैं तुझसे यह दान माँगता हूँ कि मुझे अपने दासों का सेवक बना दो।

ਨਉ ਨਿਧਿ ਪਾਈ ਰਾਜੁ ਜੀਵਾ ਬੋਲਿਆ ॥
नउ निधि पाई राजु जीवा बोलिआ ॥
हे दाता ! तेरा नाम-स्मरण करने से ही मैं जीवित हूँ और नवनिधियाँ एवं राज प्राप्त करता हूँ।

ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਦਾਸਾ ਘਰਿ ਘਣਾ ॥
अम्रित नामु निधानु दासा घरि घणा ॥
प्रभु के दासों के घर में अमृत नाम का भारी भण्डार है,

ਤਿਨ ਕੈ ਸੰਗਿ ਨਿਹਾਲੁ ਸ੍ਰਵਣੀ ਜਸੁ ਸੁਣਾ ॥
तिन कै संगि निहालु स्रवणी जसु सुणा ॥
उनकी संगति में विराज कर मैं अपने कानों से तेरा यश सुनकर आनंदित हो जाता हूँ।

ਕਮਾਵਾ ਤਿਨ ਕੀ ਕਾਰ ਸਰੀਰੁ ਪਵਿਤੁ ਹੋਇ ॥
कमावा तिन की कार सरीरु पवितु होइ ॥
उनकी सेवा करने से मेरा शरीर पवित्र हो गया है।

ਪਖਾ ਪਾਣੀ ਪੀਸਿ ਬਿਗਸਾ ਪੈਰ ਧੋਇ ॥
पखा पाणी पीसि बिगसा पैर धोइ ॥
मैं उनके लिए पंखा करता हूँ, उनके लिए जल लाता हूँ, उनके लिए चक्की पीसता हूँ और उनके चरण धोकर खुश होता हूँ।

ਆਪਹੁ ਕਛੂ ਨ ਹੋਇ ਪ੍ਰਭ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲੀਐ ॥
आपहु कछू न होइ प्रभ नदरि निहालीऐ ॥
हे प्रभु! मुझ पर अपनी कृपा-दृष्टि कर दीजिए, चूंकि अपने आप मैं कुछ भी नहीं कर सकता।

ਮੋਹਿ ਨਿਰਗੁਣ ਦਿਚੈ ਥਾਉ ਸੰਤ ਧਰਮ ਸਾਲੀਐ ॥੩॥
मोहि निरगुण दिचै थाउ संत धरम सालीऐ ॥३॥
मुझ निर्गुण को संतों की धर्मशाला में शरण दीजिए ॥३॥

ਸਲੋਕ ਮਃ ੫ ॥
सलोक मः ५ ॥
श्लोक महला ५॥

ਸਾਜਨ ਤੇਰੇ ਚਰਨ ਕੀ ਹੋਇ ਰਹਾ ਸਦ ਧੂਰਿ ॥
साजन तेरे चरन की होइ रहा सद धूरि ॥
हे मेरे साजन ! मैं सदा ही तेरे चरणों की धूलि बना रहूँ।

ਨਾਨਕ ਸਰਣਿ ਤੁਹਾਰੀਆ ਪੇਖਉ ਸਦਾ ਹਜੂਰਿ ॥੧॥
नानक सरणि तुहारीआ पेखउ सदा हजूरि ॥१॥
नानक की प्रार्थना है कि हे प्रभु जी ! मैंने तेरी ही शरण ली है और मैं हमेशा ही तुझे अपने पास देखता रहूँ ॥१॥

ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥

ਪਤਿਤ ਪੁਨੀਤ ਅਸੰਖ ਹੋਹਿ ਹਰਿ ਚਰਣੀ ਮਨੁ ਲਾਗ ॥
पतित पुनीत असंख होहि हरि चरणी मनु लाग ॥
हरि के चरणों में अपने मन को लगाकर असंख्य पतित जीव पवित्र-पावन हो गए हैं।

ਅਠਸਠਿ ਤੀਰਥ ਨਾਮੁ ਪ੍ਰਭ ਜਿਸੁ ਨਾਨਕ ਮਸਤਕਿ ਭਾਗ ॥੨॥
अठसठि तीरथ नामु प्रभ जिसु नानक मसतकि भाग ॥२॥
हे नानक ! प्रभु का नाम ही अड़सठ तीर्थ (के समान) है लेकिन यह उसे ही प्राप्त होता है जिसके मस्तक पर भाग्य लिखा होता है ॥२॥

ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी।

ਨਿਤ ਜਪੀਐ ਸਾਸਿ ਗਿਰਾਸਿ ਨਾਉ ਪਰਵਦਿਗਾਰ ਦਾ ॥
नित जपीऐ सासि गिरासि नाउ परवदिगार दा ॥
अपनी प्रत्येक सांस एवं ग्रास से परवरदिगार का नाम जपना चाहिए।

ਜਿਸ ਨੋ ਕਰੇ ਰਹੰਮ ਤਿਸੁ ਨ ਵਿਸਾਰਦਾ ॥
जिस नो करे रहम तिसु न विसारदा ॥
जिस पर वह रहम करता है, वह उसे नहीं भुलाता।

ਆਪਿ ਉਪਾਵਣਹਾਰ ਆਪੇ ਹੀ ਮਾਰਦਾ ॥
आपि उपावणहार आपे ही मारदा ॥
वह स्वयं ही दुनिया की रचना करने वाला है और स्वयं ही विनाशक है।

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