ਸਲੋਕ ਮਃ ੫ ॥
सलोक मः ५ ॥
श्लोक महला ५॥
ਪ੍ਰੇਮ ਪਟੋਲਾ ਤੈ ਸਹਿ ਦਿਤਾ ਢਕਣ ਕੂ ਪਤਿ ਮੇਰੀ ॥
प्रेम पटोला तै सहि दिता ढकण कू पति मेरी ॥
हे मेरे मालिक ! तूने मेरी लाज बचाने के लिए अपने प्रेम का रेशमी वस्त्र दिया है।
ਦਾਨਾ ਬੀਨਾ ਸਾਈ ਮੈਡਾ ਨਾਨਕ ਸਾਰ ਨ ਜਾਣਾ ਤੇਰੀ ॥੧॥
दाना बीना साई मैडा नानक सार न जाणा तेरी ॥१॥
नानक का कथन है कि हे मेरे साँई ! तू बड़ा चतुर एवं प्रवीण है किन्तु मैं तेरी महिमा नहीं जानता ॥१॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਤੈਡੈ ਸਿਮਰਣਿ ਹਭੁ ਕਿਛੁ ਲਧਮੁ ਬਿਖਮੁ ਨ ਡਿਠਮੁ ਕੋਈ ॥
तैडै सिमरणि हभु किछु लधमु बिखमु न डिठमु कोई ॥
हे ईश्वर ! तेरा नाम-सुमिरन करने से मुझे सब कुछ मिल गया है तथा मुझे कोई मुश्किल नहीं आई।
ਜਿਸੁ ਪਤਿ ਰਖੈ ਸਚਾ ਸਾਹਿਬੁ ਨਾਨਕ ਮੇਟਿ ਨ ਸਕੈ ਕੋਈ ॥੨॥
जिसु पति रखै सचा साहिबु नानक मेटि न सकै कोई ॥२॥
हे नानक ! जिसकी प्रतिष्ठा की रक्षा सच्चा मालिक परमात्मा करता है, उसे कोई मिटा नहीं सकता ॥२॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी।
ਹੋਵੈ ਸੁਖੁ ਘਣਾ ਦਯਿ ਧਿਆਇਐ ॥
होवै सुखु घणा दयि धिआइऐ ॥
भगवान का ध्यान करने से मनुष्य को महासुख मिलता है।
ਵੰਞੈ ਰੋਗਾ ਘਾਣਿ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਇਐ ॥
वंञै रोगा घाणि हरि गुण गाइऐ ॥
हरि का गुणगान करने से हर प्रकार के रोग लुप्त हो जाते हैं।
ਅੰਦਰਿ ਵਰਤੈ ਠਾਢਿ ਪ੍ਰਭਿ ਚਿਤਿ ਆਇਐ ॥
अंदरि वरतै ठाढि प्रभि चिति आइऐ ॥
यदि प्रभु चित्त में आ जाए तो अन्तर्मन में ठंडक आ जाती है।
ਪੂਰਨ ਹੋਵੈ ਆਸ ਨਾਇ ਮੰਨਿ ਵਸਾਇਐ ॥
पूरन होवै आस नाइ मंनि वसाइऐ ॥
नाम को मन में बसाने से आशा पूर्ण हो जाती है।
ਕੋਇ ਨ ਲਗੈ ਬਿਘਨੁ ਆਪੁ ਗਵਾਇਐ ॥
कोइ न लगै बिघनु आपु गवाइऐ ॥
यदि जीव अपना अहंत्व मिटा दे तो उसे कोई विघ्न नहीं आता।
ਗਿਆਨ ਪਦਾਰਥੁ ਮਤਿ ਗੁਰ ਤੇ ਪਾਇਐ ॥
गिआन पदारथु मति गुर ते पाइऐ ॥
ज्ञान रूपी पदार्थ एवं बुद्धि गुरु से प्राप्त होते हैं।
ਤਿਨਿ ਪਾਏ ਸਭੇ ਥੋਕ ਜਿਸੁ ਆਪਿ ਦਿਵਾਇਐ ॥
तिनि पाए सभे थोक जिसु आपि दिवाइऐ ॥
जिसे प्रभु स्वयं देता है, वह सबकुछ प्राप्त कर लेता है।
ਤੂੰ ਸਭਨਾ ਕਾ ਖਸਮੁ ਸਭ ਤੇਰੀ ਛਾਇਐ ॥੮॥
तूं सभना का खसमु सभ तेरी छाइऐ ॥८॥
हे परमेश्वर ! तू सबका मालिक है और सभी तेरी छत्रछाया में हैं ॥८॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੫ ॥
सलोक मः ५ ॥
श्लोक महला ५॥
ਨਦੀ ਤਰੰਦੜੀ ਮੈਡਾ ਖੋਜੁ ਨ ਖੁੰਭੈ ਮੰਝਿ ਮੁਹਬਤਿ ਤੇਰੀ ॥
नदी तरंदड़ी मैडा खोजु न खु्मभै मंझि मुहबति तेरी ॥
हे परमेश्वर ! जगत रूपी नदिया तैरते हुए मेरा पैर नहीं धंसता, क्योंकि मेरी तुझ से ही मोहब्बत है।
ਤਉ ਸਹ ਚਰਣੀ ਮੈਡਾ ਹੀਅੜਾ ਸੀਤਮੁ ਹਰਿ ਨਾਨਕ ਤੁਲਹਾ ਬੇੜੀ ॥੧॥
तउ सह चरणी मैडा हीअड़ा सीतमु हरि नानक तुलहा बेड़ी ॥१॥
तेरे चरणों में मेरा मन सिला हुआ है, जगत रूपी नदिया पार करने के लिए तू ही नानक की तुलहा एवं नाव है॥ १॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਜਿਨੑਾ ਦਿਸੰਦੜਿਆ ਦੁਰਮਤਿ ਵੰਞੈ ਮਿਤ੍ਰ ਅਸਾਡੜੇ ਸੇਈ ॥
जिन्हा दिसंदड़िआ दुरमति वंञै मित्र असाडड़े सेई ॥
जिनके दर्शन करने से दुर्मति नाश हो जाती है, वही हमारे मित्र हैं।
ਹਉ ਢੂਢੇਦੀ ਜਗੁ ਸਬਾਇਆ ਜਨ ਨਾਨਕ ਵਿਰਲੇ ਕੇਈ ॥੨॥
हउ ढूढेदी जगु सबाइआ जन नानक विरले केई ॥२॥
हे नानक ! मैंने सारा जगत खोज लिया परन्तु ऐसे विरले ही पुरुष मिलते हैं।॥२॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥
ਆਵੈ ਸਾਹਿਬੁ ਚਿਤਿ ਤੇਰਿਆ ਭਗਤਾ ਡਿਠਿਆ ॥
आवै साहिबु चिति तेरिआ भगता डिठिआ ॥
हे मालिक ! तेरे भक्तों के दर्शन करने से तुम स्वयं ही हमारे मन में आ जाते हो।
ਮਨ ਕੀ ਕਟੀਐ ਮੈਲੁ ਸਾਧਸੰਗਿ ਵੁਠਿਆ ॥
मन की कटीऐ मैलु साधसंगि वुठिआ ॥
साधसंगति में रहने से मन की मैल दूर हो जाती है।
ਜਨਮ ਮਰਣ ਭਉ ਕਟੀਐ ਜਨ ਕਾ ਸਬਦੁ ਜਪਿ ॥
जनम मरण भउ कटीऐ जन का सबदु जपि ॥
भक्तजनों के शब्द को जपने से जन्म-मरण का डर दूर हो जाता है।
ਬੰਧਨ ਖੋਲਨੑਿ ਸੰਤ ਦੂਤ ਸਭਿ ਜਾਹਿ ਛਪਿ ॥
बंधन खोलन्हि संत दूत सभि जाहि छपि ॥
संत माया संबंधी तमाम बन्धन खोल देते हैं, जिसके फलस्वरूप माया के दूत-काम, क्रोध, लोभ मोह इत्यादि लुप्त हो जाते हैं।
ਤਿਸੁ ਸਿਉ ਲਾਇਨੑਿ ਰੰਗੁ ਜਿਸ ਦੀ ਸਭ ਧਾਰੀਆ ॥
तिसु सिउ लाइन्हि रंगु जिस दी सभ धारीआ ॥
संतजन उस ईश्वर के साथ हमारा प्रेम उत्पन्न कर देते हैं, जिसने इस सृष्टि की रचना की है।
ਊਚੀ ਹੂੰ ਊਚਾ ਥਾਨੁ ਅਗਮ ਅਪਾਰੀਆ ॥
ऊची हूं ऊचा थानु अगम अपारीआ ॥
उस परमात्मा का निवास स्थान सबसे ऊँचा है, जो अगम्य एवं अपार है।
ਰੈਣਿ ਦਿਨਸੁ ਕਰ ਜੋੜਿ ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਧਿਆਈਐ ॥
रैणि दिनसु कर जोड़ि सासि सासि धिआईऐ ॥
हाथ जोड़कर रात-दिन अपनी प्रत्येक सांस से उसका ध्यान करना चाहिए।
ਜਾ ਆਪੇ ਹੋਇ ਦਇਆਲੁ ਤਾਂ ਭਗਤ ਸੰਗੁ ਪਾਈਐ ॥੯॥
जा आपे होइ दइआलु तां भगत संगु पाईऐ ॥९॥
जब परमेश्वर स्वयं दयालु होता है तो भक्तों की संगति प्राप्त होती है ॥६॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੫ ॥
सलोक मः ५ ॥
श्लोक महला ५॥
ਬਾਰਿ ਵਿਡਾਨੜੈ ਹੁੰਮਸ ਧੁੰਮਸ ਕੂਕਾ ਪਈਆ ਰਾਹੀ ॥
बारि विडानड़ै हुमस धुमस कूका पईआ राही ॥
इस आश्चर्यजनक जगत रूपी जंगल में कोलाहल एवं मार्ग में लोग त्राहि-त्राहि कर रहे हैं।
ਤਉ ਸਹ ਸੇਤੀ ਲਗੜੀ ਡੋਰੀ ਨਾਨਕ ਅਨਦ ਸੇਤੀ ਬਨੁ ਗਾਹੀ ॥੧॥
तउ सह सेती लगड़ी डोरी नानक अनद सेती बनु गाही ॥१॥
हे मेरे पति-परमेश्वर ! मुझ नानक के चित्त की डोर तुझसे लगी हुई है, इसलिए मैं आनंद से जगत जंगल को पार कर रहा हूँ ॥१॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਸਚੀ ਬੈਸਕ ਤਿਨੑਾ ਸੰਗਿ ਜਿਨ ਸੰਗਿ ਜਪੀਐ ਨਾਉ ॥
सची बैसक तिन्हा संगि जिन संगि जपीऐ नाउ ॥
उनकी संगति सच्ची है, जिनके साथ बैठकर भगवान का नाम-सिमरन किया जाता है।
ਤਿਨੑ ਸੰਗਿ ਸੰਗੁ ਨ ਕੀਚਈ ਨਾਨਕ ਜਿਨਾ ਆਪਣਾ ਸੁਆਉ ॥੨॥
तिन्ह संगि संगु न कीचई नानक जिना आपणा सुआउ ॥२॥
हे नानक ! उनके साथ कदापि संगति नहीं करनी चाहिए, जिन्हें अपना ही कोई स्वार्थ होता है ॥२॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥
ਸਾ ਵੇਲਾ ਪਰਵਾਣੁ ਜਿਤੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਭੇਟਿਆ ॥
सा वेला परवाणु जितु सतिगुरु भेटिआ ॥
वही समय स्वीकार होता है, जब सच्चे गुरु से भेंट होती है।
ਹੋਆ ਸਾਧੂ ਸੰਗੁ ਫਿਰਿ ਦੂਖ ਨ ਤੇਟਿਆ ॥
होआ साधू संगु फिरि दूख न तेटिआ ॥
यदि मनुष्य साधु से संगति कर ले तो उसे दुःख नहीं लगते।
ਪਾਇਆ ਨਿਹਚਲੁ ਥਾਨੁ ਫਿਰਿ ਗਰਭਿ ਨ ਲੇਟਿਆ ॥
पाइआ निहचलु थानु फिरि गरभि न लेटिआ ॥
यदि मनुष्य को निश्चित स्थान मिल जाए तो वह दोबारा गर्भयोनि में नहीं आता।
ਨਦਰੀ ਆਇਆ ਇਕੁ ਸਗਲ ਬ੍ਰਹਮੇਟਿਆ ॥
नदरी आइआ इकु सगल ब्रहमेटिआ ॥
उसे एक ब्रह्म ही सर्वत्र दिखाई देता है और
ਤਤੁ ਗਿਆਨੁ ਲਾਇ ਧਿਆਨੁ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਸਮੇਟਿਆ ॥
ततु गिआनु लाइ धिआनु द्रिसटि समेटिआ ॥
सब ओर से दृष्टि समेटकर वह अपना ध्यान तत्व-ज्ञान से लगाता है।
ਸਭੋ ਜਪੀਐ ਜਾਪੁ ਜਿ ਮੁਖਹੁ ਬੋਲੇਟਿਆ ॥
सभो जपीऐ जापु जि मुखहु बोलेटिआ ॥
जो कुछ भी वह मुँह से बोलता है, वह सब प्रभु का ही जाप जपता है।
ਹੁਕਮੇ ਬੁਝਿ ਨਿਹਾਲੁ ਸੁਖਿ ਸੁਖੇਟਿਆ ॥
हुकमे बुझि निहालु सुखि सुखेटिआ ॥
प्रभु के हुक्म को समझ कर मनुष्य आनंदित हो जाता है और सुखपूर्वक रहता है।
ਪਰਖਿ ਖਜਾਨੈ ਪਾਏ ਸੇ ਬਹੁੜਿ ਨ ਖੋਟਿਆ ॥੧੦॥
परखि खजानै पाए से बहुड़ि न खोटिआ ॥१०॥
जिन्हें परखकर परमात्मा ने अपने भण्डार में डाल दिया है, वे दोबारा खोटे घोषित नहीं होते।
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੫ ॥
सलोकु मः ५ ॥
श्लोक महला ५॥
ਵਿਛੋਹੇ ਜੰਬੂਰ ਖਵੇ ਨ ਵੰਞਨਿ ਗਾਖੜੇ ॥
विछोहे ज्मबूर खवे न वंञनि गाखड़े ॥
विरह की पीड़ा जंबूर की भाँति इतनी असह्य है कि सहन नहीं की जा सकती।
ਜੇ ਸੋ ਧਣੀ ਮਿਲੰਨਿ ਨਾਨਕ ਸੁਖ ਸੰਬੂਹ ਸਚੁ ॥੧॥
जे सो धणी मिलंनि नानक सुख स्मबूह सचु ॥१॥
हे नानक ! यदि मालिक-प्रभु मिल जाए तो सारे सच्चे सुख मिल जाते हैं।॥१॥