Hindi Page 526

ਭਰਮੇ ਭੂਲੀ ਰੇ ਜੈ ਚੰਦਾ ॥
भरमे भूली रे जै चंदा ॥
हे जय चन्द ! सारा संसार भ्रम में पड़कर कुमार्गगामी हो गया है और

ਨਹੀ ਨਹੀ ਚੀਨੑਿਆ ਪਰਮਾਨੰਦਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
नही नही चीन्हिआ परमानंदा ॥१॥ रहाउ ॥
इसने परमानंद प्रभु को अनुभव नहीं किया ॥ १॥ रहाउ॥

ਘਰਿ ਘਰਿ ਖਾਇਆ ਪਿੰਡੁ ਬਧਾਇਆ ਖਿੰਥਾ ਮੁੰਦਾ ਮਾਇਆ ॥
घरि घरि खाइआ पिंडु बधाइआ खिंथा मुंदा माइआ ॥
घर-घर से भिक्षा लेकर खा-खाकर पेट को मोटा कर लिया है और माया की लालसा में गुदड़ी एवं कानों में कुण्डल धारण करके घूमते फिरते हो।

ਭੂਮਿ ਮਸਾਣ ਕੀ ਭਸਮ ਲਗਾਈ ਗੁਰ ਬਿਨੁ ਤਤੁ ਨ ਪਾਇਆ ॥੨॥
भूमि मसाण की भसम लगाई गुर बिनु ततु न पाइआ ॥२॥
तूने अपने शरीर पर श्मशानघाट की भस्म लगाई हुई है किन्तु गुरु के बिना तुझे सत्य का पता नहीं लगा ॥२॥

ਕਾਇ ਜਪਹੁ ਰੇ ਕਾਇ ਤਪਹੁ ਰੇ ਕਾਇ ਬਿਲੋਵਹੁ ਪਾਣੀ ॥
काइ जपहु रे काइ तपहु रे काइ बिलोवहु पाणी ॥
किसे जप रहे हो, कैसी तपस्या-साधना में मगन हो और क्यों जल का मंथन कर रहे हो ?

ਲਖ ਚਉਰਾਸੀਹ ਜਿਨੑਿ ਉਪਾਈ ਸੋ ਸਿਮਰਹੁ ਨਿਰਬਾਣੀ ॥੩॥
लख चउरासीह जिन्हि उपाई सो सिमरहु निरबाणी ॥३॥
उस निर्लिप्त परमात्मा का सिमरन कर, जिसने चौरासी लाख योनियों को पैदा किया है।॥३॥

ਕਾਇ ਕਮੰਡਲੁ ਕਾਪੜੀਆ ਰੇ ਅਠਸਠਿ ਕਾਇ ਫਿਰਾਹੀ ॥
काइ कमंडलु कापड़ीआ रे अठसठि काइ फिराही ॥
हे भगवा वेषधारी योगी ! तू क्यों हाथ में कमंडल लेकर अड़सठ तीर्थों पर भटक रहा है ?

ਬਦਤਿ ਤ੍ਰਿਲੋਚਨੁ ਸੁਨੁ ਰੇ ਪ੍ਰਾਣੀ ਕਣ ਬਿਨੁ ਗਾਹੁ ਕਿ ਪਾਹੀ ॥੪॥੧॥
बदति त्रिलोचनु सुनु रे प्राणी कण बिनु गाहु कि पाही ॥४॥१॥
त्रिलोचन का कथन है कि हे नश्वर जीव ! ध्यानपूर्वक सुन, यदि अन्न के दाने नहीं हैं तो इसे गहाने का कोई अभिप्राय नहीं ॥ ४॥ १॥

ਗੂਜਰੀ ॥
गूजरी ॥
गूजरी ॥

ਅੰਤਿ ਕਾਲਿ ਜੋ ਲਛਮੀ ਸਿਮਰੈ ਐਸੀ ਚਿੰਤਾ ਮਹਿ ਜੇ ਮਰੈ ॥
अंति कालि जो लछमी सिमरै ऐसी चिंता महि जे मरै ॥
जो व्यक्ति अन्तकाल लक्ष्मी (धन-दौलत) को याद करता है और इसी चिन्ता में डूबकर (लोभ विकार के बस मे ) प्राण त्याग देता है तो

ਸਰਪ ਜੋਨਿ ਵਲਿ ਵਲਿ ਅਉਤਰੈ ॥੧॥
सरप जोनि वलि वलि अउतरै ॥१॥
मरकर बार-बार सर्पयोनि में आता रहता है॥ १॥

ਅਰੀ ਬਾਈ ਗੋਬਿਦ ਨਾਮੁ ਮਤਿ ਬੀਸਰੈ ॥ ਰਹਾਉ ॥
अरी बाई गोबिद नामु मति बीसरै ॥ रहाउ ॥
अरी बहन ! मुझे गोबिन्द का नाम कदापि न भूले॥ रहाउ॥

ਅੰਤਿ ਕਾਲਿ ਜੋ ਇਸਤ੍ਰੀ ਸਿਮਰੈ ਐਸੀ ਚਿੰਤਾ ਮਹਿ ਜੇ ਮਰੈ ॥
अंति कालि जो इसत्री सिमरै ऐसी चिंता महि जे मरै ॥
जो व्यक्ति मृत्यु के समय स्त्री को याद करता रहता है और इसी चिन्ता में (काम विकार के बस मे ) उसके प्राण पखेरू हो जाते हैं तो

ਬੇਸਵਾ ਜੋਨਿ ਵਲਿ ਵਲਿ ਅਉਤਰੈ ॥੨॥
बेसवा जोनि वलि वलि अउतरै ॥२॥
वह बार-बार वेश्या की योनि में जन्म लेता रहता है ॥२॥

ਅੰਤਿ ਕਾਲਿ ਜੋ ਲੜਿਕੇ ਸਿਮਰੈ ਐਸੀ ਚਿੰਤਾ ਮਹਿ ਜੇ ਮਰੈ ॥
अंति कालि जो लड़िके सिमरै ऐसी चिंता महि जे मरै ॥
जिन्दगी के अन्तिम क्षणों में जो व्यक्ति अपने पुत्रों को ही याद करता रहता है और इसी स्मृति में (मोह विकार के बस मे ) मर जाता है तो

ਸੂਕਰ ਜੋਨਿ ਵਲਿ ਵਲਿ ਅਉਤਰੈ ॥੩॥
सूकर जोनि वलि वलि अउतरै ॥३॥
वह बार-बार सूअर की योनि में जन्म लेता रहता है।॥ ३॥

ਅੰਤਿ ਕਾਲਿ ਜੋ ਮੰਦਰ ਸਿਮਰੈ ਐਸੀ ਚਿੰਤਾ ਮਹਿ ਜੇ ਮਰੈ ॥
अंति कालि जो मंदर सिमरै ऐसी चिंता महि जे मरै ॥
जीवन के अन्तिम क्षणों में जो व्यक्ति घर-महल में ही ध्यान लगाए रखता है और इसी चिंता में (अहंकार विकार के बस मे ) प्राण त्याग देता है तो

ਪ੍ਰੇਤ ਜੋਨਿ ਵਲਿ ਵਲਿ ਅਉਤਰੈ ॥੪॥
प्रेत जोनि वलि वलि अउतरै ॥४॥
वह बार-बार प्रेत योनि में अवतरित होता है।॥ ४॥

ਅੰਤਿ ਕਾਲਿ ਨਾਰਾਇਣੁ ਸਿਮਰੈ ਐਸੀ ਚਿੰਤਾ ਮਹਿ ਜੇ ਮਰੈ ॥
अंति कालि नाराइणु सिमरै ऐसी चिंता महि जे मरै ॥
अन्तकाल (मृत्यु के क्षणों में) जो मनुष्य नारायण का सिमरन करता है और इसी स्मृति में (भक्ति के बस मे ) प्राण त्याग देता है तो

ਬਦਤਿ ਤਿਲੋਚਨੁ ਤੇ ਨਰ ਮੁਕਤਾ ਪੀਤੰਬਰੁ ਵਾ ਕੇ ਰਿਦੈ ਬਸੈ ॥੫॥੨॥
बदति तिलोचनु ते नर मुकता पीत्मबरु वा के रिदै बसै ॥५॥२॥
त्रिलोचन का कथन है कि वह मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर लेता है तथा उसके हृदय में आकर ईश्वर निवास कर लेता है ॥५॥२॥

ਗੂਜਰੀ ਸ੍ਰੀ ਜੈਦੇਵ ਜੀਉ ਕਾ ਪਦਾ ਘਰੁ ੪
गूजरी स्री जैदेव जीउ का पदा घरु ४
गूजरी श्री जैदेव जीउ का पदा घरु ४

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।

ਪਰਮਾਦਿ ਪੁਰਖਮਨੋਪਿਮੰ ਸਤਿ ਆਦਿ ਭਾਵ ਰਤੰ ॥
परमादि पुरखमनोपिमं सति आदि भाव रतं ॥
आदिपुरुष परमात्मा परम पवित्र है, वह उपमा से रहित है, वह सदैव सत्य एवं सर्वगुण सम्पन्न है।

ਪਰਮਦਭੁਤੰ ਪਰਕ੍ਰਿਤਿ ਪਰੰ ਜਦਿਚਿੰਤਿ ਸਰਬ ਗਤੰ ॥੧॥
परमदभुतं परक्रिति परं जदिचिंति सरब गतं ॥१॥
वह परम अदभुत परमात्मा प्रकृति से परे है, जिसका चिन्तन करने से सभी परमगति प्राप्त कर लेते हैं, वह सर्वव्यापक है॥ १॥

ਕੇਵਲ ਰਾਮ ਨਾਮ ਮਨੋਰਮੰ ॥
केवल राम नाम मनोरमं ॥
केवल राम के सुन्दर नाम का सुमिरन करो जो

ਬਦਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਤਤ ਮਇਅੰ ॥
बदि अम्रित तत मइअं ॥
अमृत से भरपूर एवं परम तत्व यथार्थ का स्वरूप है।

ਨ ਦਨੋਤਿ ਜਸਮਰਣੇਨ ਜਨਮ ਜਰਾਧਿ ਮਰਣ ਭਇਅੰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
न दनोति जसमरणेन जनम जराधि मरण भइअं ॥१॥ रहाउ ॥
जिसका सिमरन करने से जन्म-मरण, बुढ़ापा, चिन्ता एवं मृत्यु का डर दुःखी नहीं करता ॥ १॥ रहाउ॥

ਇਛਸਿ ਜਮਾਦਿ ਪਰਾਭਯੰ ਜਸੁ ਸ੍ਵਸਤਿ ਸੁਕ੍ਰਿਤ ਕ੍ਰਿਤੰ ॥
इछसि जमादि पराभयं जसु स्वसति सुक्रित क्रितं ॥
यदि यमदूत इत्यादि को पराजित करना चाहते हो, तो स्वरित स्वरूप प्रभु का यशोगान करने के शुभ कर्म करता जा।

ਭਵ ਭੂਤ ਭਾਵ ਸਮਬੵਿਅੰ ਪਰਮੰ ਪ੍ਰਸੰਨਮਿਦੰ ॥੨॥
भव भूत भाव समब्यिअं परमं प्रसंनमिदं ॥२॥
प्रभु वर्तमान काल, भूतकाल एवं भविष्य काल में सदैव ही पूर्ण रूप से व्यापक एवं परम प्रसन्न स्वरूप है ॥२॥

ਲੋਭਾਦਿ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਪਰ ਗ੍ਰਿਹੰ ਜਦਿਬਿਧਿ ਆਚਰਣੰ ॥
लोभादि द्रिसटि पर ग्रिहं जदिबिधि आचरणं ॥
यदि शुभ आचरण का मार्ग पाना चाहते हो तो लोभ एवं पराए घर पर दृष्टि रखना त्याग दो।

ਤਜਿ ਸਕਲ ਦੁਹਕ੍ਰਿਤ ਦੁਰਮਤੀ ਭਜੁ ਚਕ੍ਰਧਰ ਸਰਣੰ ॥੩॥
तजि सकल दुहक्रित दुरमती भजु चक्रधर सरणं ॥३॥
सभी दुष्कर्म एवं दुर्मति को त्याग दो और चक्रधर प्रभु की शरण में आ जाओ।॥ ३॥

ਹਰਿ ਭਗਤ ਨਿਜ ਨਿਹਕੇਵਲਾ ਰਿਦ ਕਰਮਣਾ ਬਚਸਾ ॥
हरि भगत निज निहकेवला रिद करमणा बचसा ॥
हरि के प्रिय भक्त मन, वचन एवं कर्म से पावन होते हैं इसलिए मन, वचन एवं कर्म द्वारा हरि की भक्ति करो।

ਜੋਗੇਨ ਕਿੰ ਜਗੇਨ ਕਿੰ ਦਾਨੇਨ ਕਿੰ ਤਪਸਾ ॥੪॥
जोगेन किं जगेन किं दानेन किं तपसा ॥४॥
योग-तपस्या, दान-पुण्य एवं यज्ञ इत्यादि का इस दुनिया में क्या अभिप्राय है॥ ४॥

ਗੋਬਿੰਦ ਗੋਬਿੰਦੇਤਿ ਜਪਿ ਨਰ ਸਕਲ ਸਿਧਿ ਪਦੰ ॥
गोबिंद गोबिंदेति जपि नर सकल सिधि पदं ॥
हे मानव ! गोविन्द का ही नाम-सुमिरन एवं जाप करो क्योंकि वही सर्व सिद्धियों का श्रेष्ठ स्थान है।

ਜੈਦੇਵ ਆਇਉ ਤਸ ਸਫੁਟੰ ਭਵ ਭੂਤ ਸਰਬ ਗਤੰ ॥੫॥੧॥
जैदेव आइउ तस सफुटं भव भूत सरब गतं ॥५॥१॥
जयदेव भी उस प्रभु की शरण में आया है जो वर्तमान काल, भूतकाल एवं भविष्यकाल में सब की मुक्ति करने वाला है॥ ५॥ १॥

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