Hindi Page 531

ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ੫ ॥
देवगंधारी ५ ॥
देवगंधारी ५ ॥

ਮਾਈ ਜੋ ਪ੍ਰਭ ਕੇ ਗੁਨ ਗਾਵੈ ॥
माई जो प्रभ के गुन गावै ॥
हे माँ! जो व्यक्ति प्रभु के गुण गाता है,

ਸਫਲ ਆਇਆ ਜੀਵਨ ਫਲੁ ਤਾ ਕੋ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਲਿਵ ਲਾਵੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सफल आइआ जीवन फलु ता को पारब्रहम लिव लावै ॥१॥ रहाउ ॥
उसका दुनिया में जन्म लेना सफल है,उसे जीवन का फल प्राप्त हो जाता है और वह परब्रह्म में लगन लगाता है ॥१॥ रहाउ॥

ਸੁੰਦਰੁ ਸੁਘੜੁ ਸੂਰੁ ਸੋ ਬੇਤਾ ਜੋ ਸਾਧੂ ਸੰਗੁ ਪਾਵੈ ॥
सुंदरु सुघड़ु सूरु सो बेता जो साधू संगु पावै ॥
जो व्यक्ति साध संगत प्राप्त करता है, वह सुन्दर, बुद्धिमान, शूरवीर तथा ज्ञानवान है।

ਨਾਮੁ ਉਚਾਰੁ ਕਰੇ ਹਰਿ ਰਸਨਾ ਬਹੁੜਿ ਨ ਜੋਨੀ ਧਾਵੈ ॥੧॥
नामु उचारु करे हरि रसना बहुड़ि न जोनी धावै ॥१॥
अपनी रसना से वह हरि के नाम को उच्चरित करता है तथा दोबारा योनियों में नहीं भटकता ॥ १॥

ਪੂਰਨ ਬ੍ਰਹਮੁ ਰਵਿਆ ਮਨ ਤਨ ਮਹਿ ਆਨ ਨ ਦ੍ਰਿਸਟੀ ਆਵੈ ॥
पूरन ब्रहमु रविआ मन तन महि आन न द्रिसटी आवै ॥
उसके मन एवं तन में पूर्ण ब्रह्म बसा रहता है और उसके अलावा उसे कोई दिखाई नहीं देता।

ਨਰਕ ਰੋਗ ਨਹੀ ਹੋਵਤ ਜਨ ਸੰਗਿ ਨਾਨਕ ਜਿਸੁ ਲੜਿ ਲਾਵੈ ॥੨॥੧੪॥
नरक रोग नही होवत जन संगि नानक जिसु लड़ि लावै ॥२॥१४॥
हे नानक ! जिसे प्रभु अपने साथ मिला लेता है, उसे संतजनों की संगति करने से नरक का रोग नहीं लगता ॥२॥१४॥

ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ੫ ॥
देवगंधारी ५ ॥
देवगंधारी ५ ॥

ਚੰਚਲੁ ਸੁਪਨੈ ਹੀ ਉਰਝਾਇਓ ॥
चंचलु सुपनै ही उरझाइओ ॥
यह चंचल मन स्वप्न (रूपी जगत) में ही उलझा हुआ है।

ਇਤਨੀ ਨ ਬੂਝੈ ਕਬਹੂ ਚਲਨਾ ਬਿਕਲ ਭਇਓ ਸੰਗਿ ਮਾਇਓ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
इतनी न बूझै कबहू चलना बिकल भइओ संगि माइओ ॥१॥ रहाउ ॥
यह इतनी बात भी नहीं बूझता कि किसी दिन उसने दुनिया से चल देना है, किन्तु माया में मोह लगा कर परेशान हो गया है ॥१॥ रहाउ ॥

ਕੁਸਮ ਰੰਗ ਸੰਗ ਰਸਿ ਰਚਿਆ ਬਿਖਿਆ ਏਕ ਉਪਾਇਓ ॥
कुसम रंग संग रसि रचिआ बिखिआ एक उपाइओ ॥
यह कुसुम के रंग वाली माया के साथ प्रेम लगाकर उसके आस्वादन में लीन है और विषय-विकारों में ही प्रयासरत रहता है।

ਲੋਭ ਸੁਨੈ ਮਨਿ ਸੁਖੁ ਕਰਿ ਮਾਨੈ ਬੇਗਿ ਤਹਾ ਉਠਿ ਧਾਇਓ ॥੧॥
लोभ सुनै मनि सुखु करि मानै बेगि तहा उठि धाइओ ॥१॥
जहाँ-कहीं भी वह कोई लोभ की बात सुनता है तो अपने मन में सुख की अनुभूति करता है और तुरंत ही उधर दौड़कर जाता है।॥ १॥

ਫਿਰਤ ਫਿਰਤ ਬਹੁਤੁ ਸ੍ਰਮੁ ਪਾਇਓ ਸੰਤ ਦੁਆਰੈ ਆਇਓ ॥
फिरत फिरत बहुतु स्रमु पाइओ संत दुआरै आइओ ॥
फिरते-फिरते इसने बहुत पीड़ा सहन की है और अब संत के द्वार में आ गया है।

ਕਰੀ ਕ੍ਰਿਪਾ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮਿ ਸੁਆਮੀ ਨਾਨਕ ਲੀਓ ਸਮਾਇਓ ॥੨॥੧੫॥
करी क्रिपा पारब्रहमि सुआमी नानक लीओ समाइओ ॥२॥१५॥
हे नानक ! परब्रह्म स्वामी ने कृपा करके इसे अपने साथ मिला लिया है ॥२॥१५॥

ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ੫ ॥
देवगंधारी ५ ॥
देवगंधारी ५ ॥

ਸਰਬ ਸੁਖਾ ਗੁਰ ਚਰਨਾ ॥
सरब सुखा गुर चरना ॥
सर्व सुख गुरु के चरणों में मौजूद हैं।

ਕਲਿਮਲ ਡਾਰਨ ਮਨਹਿ ਸਧਾਰਨ ਇਹ ਆਸਰ ਮੋਹਿ ਤਰਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
कलिमल डारन मनहि सधारन इह आसर मोहि तरना ॥१॥ रहाउ ॥
यह पापों का नाश कर देते हैं, मन को आधार देते हैं और इनके सहारे मैंने संसार-सागर से पार हो जाना है ॥१॥ रहाउ ॥

ਪੂਜਾ ਅਰਚਾ ਸੇਵਾ ਬੰਦਨ ਇਹੈ ਟਹਲ ਮੋਹਿ ਕਰਨਾ ॥
पूजा अरचा सेवा बंदन इहै टहल मोहि करना ॥
में केवल यही सेवा करता हूँ, गुरु-चरणों की सेवा ही मेरी पूजा-अर्चना, भक्ति एवं वंदना है।

ਬਿਗਸੈ ਮਨੁ ਹੋਵੈ ਪਰਗਾਸਾ ਬਹੁਰਿ ਨ ਗਰਭੈ ਪਰਨਾ ॥੧॥
बिगसै मनु होवै परगासा बहुरि न गरभै परना ॥१॥
इन में मेरा मन खिलकर आलोकित हो जाता है, जिसके फलस्वरूप मुझे गर्भ-योनि में नहीं जाना पड़ेगा ॥ १॥

ਸਫਲ ਮੂਰਤਿ ਪਰਸਉ ਸੰਤਨ ਕੀ ਇਹੈ ਧਿਆਨਾ ਧਰਨਾ ॥
सफल मूरति परसउ संतन की इहै धिआना धरना ॥
अपने मन में मैंने यही ध्यान धारण किया है कि संत रूपी गुरु के सफल दर्शन की प्राप्ति करूँ।

ਭਇਓ ਕ੍ਰਿਪਾਲੁ ਠਾਕੁਰੁ ਨਾਨਕ ਕਉ ਪਰਿਓ ਸਾਧ ਕੀ ਸਰਨਾ ॥੨॥੧੬॥
भइओ क्रिपालु ठाकुरु नानक कउ परिओ साध की सरना ॥२॥१६॥
जगत का ठाकुर परमात्मा नानक पर कृपालु हो गया है और अब वह साधु (रूपी गुरु) की शरण में पड़ गया है॥ २॥ १६ ॥

ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
देवगंधारी महला ५ ॥
देवगंधारी ५ ॥

ਅਪੁਨੇ ਹਰਿ ਪਹਿ ਬਿਨਤੀ ਕਹੀਐ ॥
अपुने हरि पहि बिनती कहीऐ ॥
हे जीव ! अपने भगवान से ही विनती करनी चाहिए।

ਚਾਰਿ ਪਦਾਰਥ ਅਨਦ ਮੰਗਲ ਨਿਧਿ ਸੂਖ ਸਹਜ ਸਿਧਿ ਲਹੀਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
चारि पदारथ अनद मंगल निधि सूख सहज सिधि लहीऐ ॥१॥ रहाउ ॥
विनती करने से चार पदार्थ-धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, आनंद, खुशी का खजाना, सहज सुख एवं सिद्धियां मिल जाती हैं।॥ १॥ रहाउ ॥

ਮਾਨੁ ਤਿਆਗਿ ਹਰਿ ਚਰਨੀ ਲਾਗਉ ਤਿਸੁ ਪ੍ਰਭ ਅੰਚਲੁ ਗਹੀਐ ॥
मानु तिआगि हरि चरनी लागउ तिसु प्रभ अंचलु गहीऐ ॥
अपना अहंकार त्याग कर हरि के चरणों में लग जाओ और उस प्रभु का आंचल (आश्रय) जकड़ कर पकड़ लो।

ਆਂਚ ਨ ਲਾਗੈ ਅਗਨਿ ਸਾਗਰ ਤੇ ਸਰਨਿ ਸੁਆਮੀ ਕੀ ਅਹੀਐ ॥੧॥
आंच न लागै अगनि सागर ते सरनि सुआमी की अहीऐ ॥१॥
यदि जगत के स्वामी की शरण की कामना की जाए तो माया रूपी अग्नि सागर की आँच नहीं लगती ॥ १॥

ਕੋਟਿ ਪਰਾਧ ਮਹਾ ਅਕ੍ਰਿਤਘਨ ਬਹੁਰਿ ਬਹੁਰਿ ਪ੍ਰਭ ਸਹੀਐ ॥
कोटि पराध महा अक्रितघन बहुरि बहुरि प्रभ सहीऐ ॥
प्रभु इतना दयावान है कि वह महा कृतघ्न लोगों के करोड़ों ही अपराध बार-बार सहन करता है।

ਕਰੁਣਾ ਮੈ ਪੂਰਨ ਪਰਮੇਸੁਰ ਨਾਨਕ ਤਿਸੁ ਸਰਨਹੀਐ ॥੨॥੧੭॥
करुणा मै पूरन परमेसुर नानक तिसु सरनहीऐ ॥२॥१७॥
हे नानक ! करुणामय पूर्ण परमेश्वर की शरणागत (हमें) जाना चाहिए ॥२॥१७॥

ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ੫ ॥
देवगंधारी ५ ॥
देवगंधारी ५ ॥

ਗੁਰ ਕੇ ਚਰਨ ਰਿਦੈ ਪਰਵੇਸਾ ॥
गुर के चरन रिदै परवेसा ॥
गुरु के सुन्दर चरण हृदय में बसाने से

ਰੋਗ ਸੋਗ ਸਭਿ ਦੂਖ ਬਿਨਾਸੇ ਉਤਰੇ ਸਗਲ ਕਲੇਸਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
रोग सोग सभि दूख बिनासे उतरे सगल कलेसा ॥१॥ रहाउ ॥
रोग, शोक एवं सभी दु:ख विनष्ट हो जाते हैं तथा सभी क्लेश-संताप मिट जाते हैं॥ १॥ रहाउ॥

ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੇ ਕਿਲਬਿਖ ਨਾਸਹਿ ਕੋਟਿ ਮਜਨ ਇਸਨਾਨਾ ॥
जनम जनम के किलबिख नासहि कोटि मजन इसनाना ॥
इससे जन्म-जन्मांतरों के पाप मिट जाते हैं एवं करोड़ों ही तीर्थों पर स्नान एवं डुबकी लगाने का फल मिल जाता है।

ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਗਾਵਤ ਗੁਣ ਗੋਬਿੰਦ ਲਾਗੋ ਸਹਜਿ ਧਿਆਨਾ ॥੧॥
नामु निधानु गावत गुण गोबिंद लागो सहजि धिआना ॥१॥
नाम के भण्डार गोविन्द के गुण गाते हुए मनुष्य का ध्यान सहज ही उस में लग जाता है॥ १॥

ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਅਪੁਨਾ ਦਾਸੁ ਕੀਨੋ ਬੰਧਨ ਤੋਰਿ ਨਿਰਾਰੇ ॥
करि किरपा अपुना दासु कीनो बंधन तोरि निरारे ॥
प्रभु ने कृपा करके मुझे अपना दास बना लिया है और मेरे बन्धन तोड़ कर मुझे मुक्त कर दिया है।

ਜਪਿ ਜਪਿ ਨਾਮੁ ਜੀਵਾ ਤੇਰੀ ਬਾਣੀ ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਬਲਿਹਾਰੇ ॥੨॥੧੮॥ ਛਕੇ ੩ ॥
जपि जपि नामु जीवा तेरी बाणी नानक दास बलिहारे ॥२॥१८॥ छके ३ ॥
हे प्रभु ! तेरा नाम जप-जपकर एवं तेरी वाणी उच्चरित करने से मैं जीवित हूँ, दास नानक तुझ पर बलिहारी जाता है ॥२॥१८॥छके ३॥

ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
देवगंधारी महला ५ ॥
देवगंधारी महला ५ ॥

ਮਾਈ ਪ੍ਰਭ ਕੇ ਚਰਨ ਨਿਹਾਰਉ ॥
माई प्रभ के चरन निहारउ ॥
हे माता ! मैं सदा प्रभु के चरण ही देखता रहूँ।

error: Content is protected !!