ਪਿਰੁ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਭਰਪੂਰੇ ਵੇਖੁ ਹਜੂਰੇ ਜੁਗਿ ਜੁਗਿ ਏਕੋ ਜਾਤਾ ॥
पिरु रवि रहिआ भरपूरे वेखु हजूरे जुगि जुगि एको जाता ॥
पति-परमेश्वर प्रत्येक हृदय में विद्यमान है; तू उसे प्रत्यक्ष देख और युग-युगान्तरों में उसे एक समान ही अनुभव कर।
ਧਨ ਬਾਲੀ ਭੋਲੀ ਪਿਰੁ ਸਹਜਿ ਰਾਵੈ ਮਿਲਿਆ ਕਰਮ ਬਿਧਾਤਾ ॥
धन बाली भोली पिरु सहजि रावै मिलिआ करम बिधाता ॥
मासूम जीव-स्त्री भोलेपन में सहज ही अपने पति-प्रभु के साथ रमण करती है एवं अपने कर्म विधाता प्रभु को मिल जाती है।
ਜਿਨਿ ਹਰਿ ਰਸੁ ਚਾਖਿਆ ਸਬਦਿ ਸੁਭਾਖਿਆ ਹਰਿ ਸਰਿ ਰਹੀ ਭਰਪੂਰੇ ॥
जिनि हरि रसु चाखिआ सबदि सुभाखिआ हरि सरि रही भरपूरे ॥
जो जीव-स्त्री हरि-रस को चखती है, वह प्रेमपूर्वक नाम का उच्चारण करती है और वह परमेश्वर के अमृत सरोवर में लीन रहती है।
ਨਾਨਕ ਕਾਮਣਿ ਸਾ ਪਿਰ ਭਾਵੈ ਸਬਦੇ ਰਹੈ ਹਦੂਰੇ ॥੨॥
नानक कामणि सा पिर भावै सबदे रहै हदूरे ॥२॥
हे नानक ! प्रिय-प्रभु को वही जीव-स्त्री लुभाती है, जो गुरु के शब्द द्वारा प्रत्यक्ष रहती है॥ २॥
ਸੋਹਾਗਣੀ ਜਾਇ ਪੂਛਹੁ ਮੁਈਏ ਜਿਨੀ ਵਿਚਹੁ ਆਪੁ ਗਵਾਇਆ ॥
सोहागणी जाइ पूछहु मुईए जिनी विचहु आपु गवाइआ ॥
हे जीवात्मा ! उन सुहागिनों से भी जाकर पूछ लो, जिन्होंने अपना अहंत्व मिटा दिया है।
ਪਿਰ ਕਾ ਹੁਕਮੁ ਨ ਪਾਇਓ ਮੁਈਏ ਜਿਨੀ ਵਿਚਹੁ ਆਪੁ ਨ ਗਵਾਇਆ ॥
पिर का हुकमु न पाइओ मुईए जिनी विचहु आपु न गवाइआ ॥
जिन्होंने अपना अहंत्व नहीं मिटाया, उन्होंने अपने पति-प्रभु के हुक्म को अनुभव नहीं किया।
ਜਿਨੀ ਆਪੁ ਗਵਾਇਆ ਤਿਨੀ ਪਿਰੁ ਪਾਇਆ ਰੰਗ ਸਿਉ ਰਲੀਆ ਮਾਣੈ ॥
जिनी आपु गवाइआ तिनी पिरु पाइआ रंग सिउ रलीआ माणै ॥
लेकिन जिन्होंने अपना अहंत्व मिटा दिया है, उन्हें अपना पति-प्रभु मिल गया है और प्रेम-रंग में लीन होकर रमण करती हैं।
ਸਦਾ ਰੰਗਿ ਰਾਤੀ ਸਹਜੇ ਮਾਤੀ ਅਨਦਿਨੁ ਨਾਮੁ ਵਖਾਣੈ ॥
सदा रंगि राती सहजे माती अनदिनु नामु वखाणै ॥
अपने प्रभु के प्रेम में सदैव रंगी और सहज ही मतवाली हुई वह रात-दिन उसका नाम जपती रहती है।
ਕਾਮਣਿ ਵਡਭਾਗੀ ਅੰਤਰਿ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ਹਰਿ ਕਾ ਪ੍ਰੇਮੁ ਸੁਭਾਇਆ ॥
कामणि वडभागी अंतरि लिव लागी हरि का प्रेमु सुभाइआ ॥
वह जीव-स्त्री बड़ी भाग्यशाली है, जिसके हृदय में पति-प्रभु की ही सुरति लगी हुई है और परमेश्वर का प्रेम मीठा लगता है।
ਨਾਨਕ ਕਾਮਣਿ ਸਹਜੇ ਰਾਤੀ ਜਿਨਿ ਸਚੁ ਸੀਗਾਰੁ ਬਣਾਇਆ ॥੩॥
नानक कामणि सहजे राती जिनि सचु सीगारु बणाइआ ॥३॥
हे नानक ! जिस जीव-स्त्री ने सत्य के साथ श्रृंगार किया है, वह सहज ही अपने पति-प्रभु के प्रेम में लीन रहती है ॥३॥
ਹਉਮੈ ਮਾਰਿ ਮੁਈਏ ਤੂ ਚਲੁ ਗੁਰ ਕੈ ਭਾਏ ॥
हउमै मारि मुईए तू चलु गुर कै भाए ॥
हे नाशवान् जीवात्मा ! तू अपना अहंकार नष्ट कर दे और गुरु की रज़ा पर अनुसरण कर।
ਹਰਿ ਵਰੁ ਰਾਵਹਿ ਸਦਾ ਮੁਈਏ ਨਿਜ ਘਰਿ ਵਾਸਾ ਪਾਏ ॥
हरि वरु रावहि सदा मुईए निज घरि वासा पाए ॥
इस तरह तू परमेश्वर के साथ हमेशा आनंद उपभोग करेगी और अपने मूल घर आत्म स्वरूप में निवास प्राप्त कर लेगी।
ਨਿਜ ਘਰਿ ਵਾਸਾ ਪਾਏ ਸਬਦੁ ਵਜਾਏ ਸਦਾ ਸੁਹਾਗਣਿ ਨਾਰੀ ॥
निज घरि वासा पाए सबदु वजाए सदा सुहागणि नारी ॥
अपने मूल निवास प्रभु के पास रहकर वह नाम का उच्चारण करती है और सदा सुहागिन नारी हो जाती है।
ਪਿਰੁ ਰਲੀਆਲਾ ਜੋਬਨੁ ਬਾਲਾ ਅਨਦਿਨੁ ਕੰਤਿ ਸਵਾਰੀ ॥
पिरु रलीआला जोबनु बाला अनदिनु कंति सवारी ॥
प्रिय-प्रभु बड़ा रंगीला एवं यौवन सम्पन्न है; वह रात-दिन अपनी पत्नी को संवारता है।
ਹਰਿ ਵਰੁ ਸੋਹਾਗੋ ਮਸਤਕਿ ਭਾਗੋ ਸਚੈ ਸਬਦਿ ਸੁਹਾਏ ॥
हरि वरु सोहागो मसतकि भागो सचै सबदि सुहाए ॥
अपने सुहाग हरि-परमेश्वर द्वारा उसके माथे के भाग्य उदय हो जाते हैं और वह सच्चे शब्द से शोभावान हो जाती है।
ਨਾਨਕ ਕਾਮਣਿ ਹਰਿ ਰੰਗਿ ਰਾਤੀ ਜਾ ਚਲੈ ਸਤਿਗੁਰ ਭਾਏ ॥੪॥੧॥
नानक कामणि हरि रंगि राती जा चलै सतिगुर भाए ॥४॥१॥
हे नानक ! जब जीव-स्त्री सतिगुरु की शिक्षा पर अनुसरण करती है तो वह परमेश्वर के प्रेम-रंग में लीन हो जाती है ॥४॥१॥
ਵਡਹੰਸੁ ਮਹਲਾ ੩ ॥
वडहंसु महला ३ ॥
वडहंसु महला ३ ॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਭੁ ਵਾਪਾਰੁ ਭਲਾ ਜੇ ਸਹਜੇ ਕੀਜੈ ਰਾਮ ॥
गुरमुखि सभु वापारु भला जे सहजे कीजै राम ॥
गुरुमुख बनकर सभी व्यापार भले हैं, यदि ये सहज अवस्था द्वारा किए जाएँ।
ਅਨਦਿਨੁ ਨਾਮੁ ਵਖਾਣੀਐ ਲਾਹਾ ਹਰਿ ਰਸੁ ਪੀਜੈ ਰਾਮ ॥
अनदिनु नामु वखाणीऐ लाहा हरि रसु पीजै राम ॥
हर समय परमात्मा के नाम का जाप करना चाहिए और हरि रस को पान करने का लाभ प्राप्त करना चाहिए।
ਲਾਹਾ ਹਰਿ ਰਸੁ ਲੀਜੈ ਹਰਿ ਰਾਵੀਜੈ ਅਨਦਿਨੁ ਨਾਮੁ ਵਖਾਣੈ ॥
लाहा हरि रसु लीजै हरि रावीजै अनदिनु नामु वखाणै ॥
हरि-रस का लाभ प्राप्त करना चाहिए, हरि का सुमिरन करना चाहिए और रात-दिन नाम का चिंतन करते रहना चाहिए।
ਗੁਣ ਸੰਗ੍ਰਹਿ ਅਵਗਣ ਵਿਕਣਹਿ ਆਪੈ ਆਪੁ ਪਛਾਣੈ ॥
गुण संग्रहि अवगण विकणहि आपै आपु पछाणै ॥
जो व्यक्ति गुणों का संग्रह करता है और अवगुणों को मिटा देता है; इस तरह वह अपने आत्म स्वरूप को पहचान लेता है।
ਗੁਰਮਤਿ ਪਾਈ ਵਡੀ ਵਡਿਆਈ ਸਚੈ ਸਬਦਿ ਰਸੁ ਪੀਜੈ ॥
गुरमति पाई वडी वडिआई सचै सबदि रसु पीजै ॥
वह गुरु की मति द्वारा नाम रूपी बड़ी शोभा पा लेता है और सच्चे शब्द द्वारा हरि-रस का पान करता रहता है।
ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਕੀ ਭਗਤਿ ਨਿਰਾਲੀ ਗੁਰਮੁਖਿ ਵਿਰਲੈ ਕੀਜੈ ॥੧॥
नानक हरि की भगति निराली गुरमुखि विरलै कीजै ॥१॥
हे नानक ! हरि की भक्ति बड़ी विलक्षण है और कोई विरला गुरुमुख ही भक्ति करता है॥ १॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਖੇਤੀ ਹਰਿ ਅੰਤਰਿ ਬੀਜੀਐ ਹਰਿ ਲੀਜੈ ਸਰੀਰਿ ਜਮਾਏ ਰਾਮ ॥
गुरमुखि खेती हरि अंतरि बीजीऐ हरि लीजै सरीरि जमाए राम ॥
गुरुमुख बनकर अपने अन्तर्मन में परमेश्वर रूपी खेती बोनी चाहिए और अपने शरीर में नाम रूपी बीज उगाना चाहिए।
ਆਪਣੇ ਘਰ ਅੰਦਰਿ ਰਸੁ ਭੁੰਚੁ ਤੂ ਲਾਹਾ ਲੈ ਪਰਥਾਏ ਰਾਮ ॥
आपणे घर अंदरि रसु भुंचु तू लाहा लै परथाए राम ॥
इस तरह तुम अपने हृदय-घर में ही हरि के नाम रस को चख लोक और परलोक में भी इसका लाभ प्राप्त करोगे।
ਲਾਹਾ ਪਰਥਾਏ ਹਰਿ ਮੰਨਿ ਵਸਾਏ ਧਨੁ ਖੇਤੀ ਵਾਪਾਰਾ ॥
लाहा परथाए हरि मंनि वसाए धनु खेती वापारा ॥
हरि-परमेश्वर को अपने अन्तर्मन में बसाने की खेती एवं व्यापार धन्य है, जिस द्वारा परलोक में लाभ होता है।
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਏ ਮੰਨਿ ਵਸਾਏ ਬੂਝੈ ਗੁਰ ਬੀਚਾਰਾ ॥
हरि नामु धिआए मंनि वसाए बूझै गुर बीचारा ॥
जो व्यक्ति हरि-नाम का ध्यान करता है और इसे अपने मन में बसाता है, वह गुरु के उपदेश को समझ लेता है।
ਮਨਮੁਖ ਖੇਤੀ ਵਣਜੁ ਕਰਿ ਥਾਕੇ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਭੁਖ ਨ ਜਾਏ ॥
मनमुख खेती वणजु करि थाके त्रिसना भुख न जाए ॥
मनमुख प्राणी सांसारिक मोह-माया की खेती एवं व्यापार करके थक गए हैं और उनकी तृष्णा एवं भूख दूर नहीं होती।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਬੀਜਿ ਮਨ ਅੰਦਰਿ ਸਚੈ ਸਬਦਿ ਸੁਭਾਏ ॥੨॥
नानक नामु बीजि मन अंदरि सचै सबदि सुभाए ॥२॥
हे नानक ! अपने मन के भीतर परमात्मा के नाम का बीज बोया कर और सच्चे शब्द द्वारा शोभायमान हो जा ॥२॥
ਹਰਿ ਵਾਪਾਰਿ ਸੇ ਜਨ ਲਾਗੇ ਜਿਨਾ ਮਸਤਕਿ ਮਣੀ ਵਡਭਾਗੋ ਰਾਮ ॥
हरि वापारि से जन लागे जिना मसतकि मणी वडभागो राम ॥
वही लोग हरि-परमेश्वर के नाम-व्यापार में सक्रिय हैं, जिनके माथे पर सौभाग्य की मणि उदय होती है।
ਗੁਰਮਤੀ ਮਨੁ ਨਿਜ ਘਰਿ ਵਸਿਆ ਸਚੈ ਸਬਦਿ ਬੈਰਾਗੋ ਰਾਮ ॥
गुरमती मनु निज घरि वसिआ सचै सबदि बैरागो राम ॥
गुरु-उपदेश द्वारा मन अपने मूल घर प्रभु-चरणों में बसता है और सच्चे शब्द के माध्यम से मोह-माया से निर्लिप्त हो जाता है।
ਮੁਖਿ ਮਸਤਕਿ ਭਾਗੋ ਸਚਿ ਬੈਰਾਗੋ ਸਾਚਿ ਰਤੇ ਵੀਚਾਰੀ ॥
मुखि मसतकि भागो सचि बैरागो साचि रते वीचारी ॥
जिनके मुख-मस्तक पर भाग्य उदय हो जाते हैं, वही सच्चे बैराग को प्राप्त होते हैं और वही विचारवान सच्चे नाम में लीन हो जाते हैं।
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਸਭੁ ਜਗੁ ਬਉਰਾਨਾ ਸਬਦੇ ਹਉਮੈ ਮਾਰੀ ॥
नाम बिना सभु जगु बउराना सबदे हउमै मारी ॥
हरि-नाम बिना सारी दुनिया मोह-माया में फँसकर बावली हो रही है और शब्द द्वारा ही अहंकार का नाश होता है।
ਸਾਚੈ ਸਬਦਿ ਲਾਗਿ ਮਤਿ ਉਪਜੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਸੋਹਾਗੋ ॥
साचै सबदि लागि मति उपजै गुरमुखि नामु सोहागो ॥
सत्यनाम में लीन होने से सुमति उत्पन्न होती है और गुरु के माध्यम से हरि-नाम रूपी सुहाग मिल जाता है।