ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਅੰਤਰਿ ਮਲੁ ਲਾਗੈ ਮਾਇਆ ਕੇ ਵਾਪਾਰਾ ਰਾਮ ॥
माइआ मोहु अंतरि मलु लागै माइआ के वापारा राम ॥
माया-मोह की मैल इनके हृदय में विद्यमान है और ये केवल माया का ही व्यापार करने में सक्रिय हैं।
ਮਾਇਆ ਕੇ ਵਾਪਾਰਾ ਜਗਤਿ ਪਿਆਰਾ ਆਵਣਿ ਜਾਣਿ ਦੁਖੁ ਪਾਈ ॥
माइआ के वापारा जगति पिआरा आवणि जाणि दुखु पाई ॥
जगत में इन्हें तो माया के व्यापार से ही प्रेम है और परिणामस्वरूप जन्म-मरण के चक्र में फँसकर दुःख ही भोगते हैं।
ਬਿਖੁ ਕਾ ਕੀੜਾ ਬਿਖੁ ਸਿਉ ਲਾਗਾ ਬਿਸ੍ਟਾ ਮਾਹਿ ਸਮਾਈ ॥
बिखु का कीड़ा बिखु सिउ लागा बिस्टा माहि समाई ॥
विष का कीड़ा विष से ही लगा हुआ है और विष्टा में ही नष्ट हो जाता है।
ਜੋ ਧੁਰਿ ਲਿਖਿਆ ਸੋਇ ਕਮਾਵੈ ਕੋਇ ਨ ਮੇਟਣਹਾਰਾ ॥
जो धुरि लिखिआ सोइ कमावै कोइ न मेटणहारा ॥
जो उसके लिए परमात्मा ने कर्म लिखा है, वह वही कार्य करता है और उसके लिखे लेख को कोई मिटा नहीं सकता।
ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਤਿਨ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਹੋਰਿ ਮੂਰਖ ਕੂਕਿ ਮੁਏ ਗਾਵਾਰਾ ॥੩॥
नानक नामि रते तिन सदा सुखु पाइआ होरि मूरख कूकि मुए गावारा ॥३॥
हे नानक ! जो व्यक्ति परमात्मा के नाम में लीन रहते हैं, वे सर्वदा सुख प्राप्त करते हैं, अन्यथा शेष मूर्ख एवं गंवार चिल्लाते हुए मर जाते हैं।॥ ३॥
ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਮਨੁ ਰੰਗਿਆ ਮੋਹਿ ਸੁਧਿ ਨ ਕਾਈ ਰਾਮ ॥
माइआ मोहि मनु रंगिआ मोहि सुधि न काई राम ॥
जिसका मन माया के मोह में लीन रहता है, उसे मोहवश कोई सूझ नहीं रहती।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਇਹੁ ਮਨੁ ਰੰਗੀਐ ਦੂਜਾ ਰੰਗੁ ਜਾਈ ਰਾਮ ॥
गुरमुखि इहु मनु रंगीऐ दूजा रंगु जाई राम ॥
लेकिन यदि यह मन गुरु के माध्यम से परमात्मा के नाम में लीन हो जाए तो द्वैतभाव का रंग दूर हो जाता है।
ਦੂਜਾ ਰੰਗੁ ਜਾਈ ਸਾਚਿ ਸਮਾਈ ਸਚਿ ਭਰੇ ਭੰਡਾਰਾ ॥
दूजा रंगु जाई साचि समाई सचि भरे भंडारा ॥
इस प्रकार द्वैतभाव का प्रेम निवृत्त हो जाता है और मन सच्चे परमेश्वर में विलीन हो जाता है। फिर सच्चे परमेश्वर के नाम द्वारा उसके भण्डार भरपूर हो जाते हैं।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਵੈ ਸੋਈ ਬੂਝੈ ਸਚਿ ਸਵਾਰਣਹਾਰਾ ॥
गुरमुखि होवै सोई बूझै सचि सवारणहारा ॥
जो मनुष्य गुरुमुख बन जाता है, वही इस भेद को समझता है और सच्चा परमेश्वर जीव को नाम से सुशोभित कर देता है।
ਆਪੇ ਮੇਲੇ ਸੋ ਹਰਿ ਮਿਲੈ ਹੋਰੁ ਕਹਣਾ ਕਿਛੂ ਨ ਜਾਏ ॥
आपे मेले सो हरि मिलै होरु कहणा किछू न जाए ॥
जिसे परमेश्वर स्वयं मिलाता है, वही प्राणी उससे मिलता है, शेष कुछ भी कथन नहीं किया जा सकता।
ਨਾਨਕ ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਇਆ ਇਕਿ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਰੰਗੁ ਲਾਏ ॥੪॥੫॥
नानक विणु नावै भरमि भुलाइआ इकि नामि रते रंगु लाए ॥४॥५॥
हे नानक ! परमात्मा के नाम के बिना मनुष्य भ्रम में ही भूला रहता है और कई व्यक्ति प्रभु के प्रेम में मग्न होकर नाम में लीन रहते हैं।॥ ४॥ ५॥
ਵਡਹੰਸੁ ਮਹਲਾ ੩ ॥
वडहंसु महला ३ ॥
वडहंसु महला ३ ॥
ਏ ਮਨ ਮੇਰਿਆ ਆਵਾ ਗਉਣੁ ਸੰਸਾਰੁ ਹੈ ਅੰਤਿ ਸਚਿ ਨਿਬੇੜਾ ਰਾਮ ॥
ए मन मेरिआ आवा गउणु संसारु है अंति सचि निबेड़ा राम ॥
हे मेरे मन ! यह दुनिया आवागमन अर्थात् जन्म-मरण का चक्र ही है, अन्ततः इस आवागमन से मुक्ति सच्चे परमेश्वर के नाम से ही मिलती है।
ਆਪੇ ਸਚਾ ਬਖਸਿ ਲਏ ਫਿਰਿ ਹੋਇ ਨ ਫੇਰਾ ਰਾਮ ॥
आपे सचा बखसि लए फिरि होइ न फेरा राम ॥
जब सच्चा परमेश्वर स्वयं क्षमा कर देता है तो मनुष्य का दोबारा इहलोक में जन्म-मरण का चक्र नहीं पड़ता।
ਫਿਰਿ ਹੋਇ ਨ ਫੇਰਾ ਅੰਤਿ ਸਚਿ ਨਿਬੇੜਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਿਲੈ ਵਡਿਆਈ ॥
फिरि होइ न फेरा अंति सचि निबेड़ा गुरमुखि मिलै वडिआई ॥
वह दोबारा जन्म-मरण के चक्र में नहीं आता और अन्ततः सत्यनाम द्वारा मोक्ष मिल जाता है एवं गुरु के माध्यम से प्रशंसा प्राप्त करता है।
ਸਾਚੈ ਰੰਗਿ ਰਾਤੇ ਸਹਜੇ ਮਾਤੇ ਸਹਜੇ ਰਹੇ ਸਮਾਈ ॥
साचै रंगि राते सहजे माते सहजे रहे समाई ॥
जो मनुष्य सच्चे परमेश्वर के रंग में लीन हो जाते हैं, वे सहज अवस्था में मस्त रहते हैं और सहज ही सत्य में समा जाते हैं।
ਸਚਾ ਮਨਿ ਭਾਇਆ ਸਚੁ ਵਸਾਇਆ ਸਬਦਿ ਰਤੇ ਅੰਤਿ ਨਿਬੇਰਾ ॥
सचा मनि भाइआ सचु वसाइआ सबदि रते अंति निबेरा ॥
सच्चा परमेश्वर उसके मन को अच्छा लगता है और सत्य ही उसके भीतर निवास करता है और शब्द से रंग कर वह अंत में मुक्ति प्राप्त कर लेता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਸੇ ਸਚਿ ਸਮਾਣੇ ਬਹੁਰਿ ਨ ਭਵਜਲਿ ਫੇਰਾ ॥੧॥
नानक नामि रते से सचि समाणे बहुरि न भवजलि फेरा ॥१॥
हे नानक ! जो परमात्मा के नाम में रंगे हुए हैं, वह सत्य में ही समा जाते हैं और दोबारा भवसागर के चक्र में नहीं पड़ते॥ १॥
ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਸਭੁ ਬਰਲੁ ਹੈ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਖੁਆਈ ਰਾਮ ॥
माइआ मोहु सभु बरलु है दूजै भाइ खुआई राम ॥
माया का मोह केवल पागलपन ही है, चूंकि द्वैतभाव के कारण मनुष्य नष्ट हो जाता है।
ਮਾਤਾ ਪਿਤਾ ਸਭੁ ਹੇਤੁ ਹੈ ਹੇਤੇ ਪਲਚਾਈ ਰਾਮ ॥
माता पिता सभु हेतु है हेते पलचाई राम ॥
माता-पिता का रिश्ता भी निरा मोह ही है और इस मोह में सारी दुनिया उलझी हुई है।
ਹੇਤੇ ਪਲਚਾਈ ਪੁਰਬਿ ਕਮਾਈ ਮੇਟਿ ਨ ਸਕੈ ਕੋਈ ॥
हेते पलचाई पुरबि कमाई मेटि न सकै कोई ॥
पूर्व जन्म में किए कर्मों के फलस्वरूप ही दुनिया मोह में उलझी हुई है। (परमात्मा के अतिरिक्त) कोई भी कर्मो को मिटा नहीं सकता।
ਜਿਨਿ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਸਾਜੀ ਸੋ ਕਰਿ ਵੇਖੈ ਤਿਸੁ ਜੇਵਡੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ॥
जिनि स्रिसटि साजी सो करि वेखै तिसु जेवडु अवरु न कोई ॥
जिस परमेश्वर ने सृष्टि रचना की है, वही इसे रचकर देख रहा है और उस जैसा महान् दूसरा कोई नहीं।
ਮਨਮੁਖਿ ਅੰਧਾ ਤਪਿ ਤਪਿ ਖਪੈ ਬਿਨੁ ਸਬਦੈ ਸਾਂਤਿ ਨ ਆਈ ॥
मनमुखि अंधा तपि तपि खपै बिनु सबदै सांति न आई ॥
ज्ञानहीन मनमुख प्राणी जल-जल कर नष्ट हो जाता है और शब्द के बिना उसे शांति नहीं मिलती।
ਨਾਨਕ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਸਭੁ ਕੋਈ ਭੁਲਾ ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਖੁਆਈ ॥੨॥
नानक बिनु नावै सभु कोई भुला माइआ मोहि खुआई ॥२॥
हे नानक ! भगवान के नाम से विहीन सभी भटके हुए हैं और माया के मोह ने उन्हें नष्ट कर दिया है॥ २॥
ਏਹੁ ਜਗੁ ਜਲਤਾ ਦੇਖਿ ਕੈ ਭਜਿ ਪਏ ਹਰਿ ਸਰਣਾਈ ਰਾਮ ॥
एहु जगु जलता देखि कै भजि पए हरि सरणाई राम ॥
इस जगत को मोह-माया में जलता देखकर मैं भागकर भगवान की शरण में आया हूँ।
ਅਰਦਾਸਿ ਕਰੀਂ ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਆਗੈ ਰਖਿ ਲੇਵਹੁ ਦੇਹੁ ਵਡਾਈ ਰਾਮ ॥
अरदासि करीं गुर पूरे आगै रखि लेवहु देहु वडाई राम ॥
मैं अपने पूर्ण गुरु के समक्ष प्रार्थना करता हूँ कि मेरी रक्षा करो एवं मुझे नाम की बड़ाई प्रदान करें।
ਰਖਿ ਲੇਵਹੁ ਸਰਣਾਈ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਵਡਾਈ ਤੁਧੁ ਜੇਵਡੁ ਅਵਰੁ ਨ ਦਾਤਾ ॥
रखि लेवहु सरणाई हरि नामु वडाई तुधु जेवडु अवरु न दाता ॥
मेरे गुरुदेव मुझे अपनी शरण में रखें और हरि-नाम की बड़ाई प्रदान करें, तुझ जैसा अन्य कोई दाता नहीं।
ਸੇਵਾ ਲਾਗੇ ਸੇ ਵਡਭਾਗੇ ਜੁਗਿ ਜੁਗਿ ਏਕੋ ਜਾਤਾ ॥
सेवा लागे से वडभागे जुगि जुगि एको जाता ॥
वे बड़े भाग्यशाली हैं, जो तेरी सेवा करते हैं और युग-युगान्तरों में वह एक ईश्वर को ही जानते हैं।
ਜਤੁ ਸਤੁ ਸੰਜਮੁ ਕਰਮ ਕਮਾਵੈ ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਗਤਿ ਨਹੀ ਪਾਈ ॥
जतु सतु संजमु करम कमावै बिनु गुर गति नही पाई ॥
मनुष्य ब्रह्मचर्य, सत्य, संयम एवं कर्मकाण्ड करता है परन्तु गुरु के बिना उसकी गति नहीं होती।
ਨਾਨਕ ਤਿਸ ਨੋ ਸਬਦੁ ਬੁਝਾਏ ਜੋ ਜਾਇ ਪਵੈ ਹਰਿ ਸਰਣਾਈ ॥੩॥
नानक तिस नो सबदु बुझाए जो जाइ पवै हरि सरणाई ॥३॥
हे नानक ! जो जाकर भगवान की शरण में आते हैं, उन्हें वह शब्द की सूझ प्रदान करता है॥ ३॥
ਜੋ ਹਰਿ ਮਤਿ ਦੇਇ ਸਾ ਊਪਜੈ ਹੋਰ ਮਤਿ ਨ ਕਾਈ ਰਾਮ ॥
जो हरि मति देइ सा ऊपजै होर मति न काई राम ॥
हरि जैसी सुमति प्रदान करता है, वैसे ही मनुष्य के भीतर उत्पन्न होती है और शेष कोई सुमति उत्पन्न नहीं होती।
ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਏਕੁ ਤੂ ਆਪੇ ਦੇਹਿ ਬੁਝਾਈ ਰਾਮ ॥
अंतरि बाहरि एकु तू आपे देहि बुझाई राम ॥
हे हरि ! अन्तर्मन में एवं बाहर तुम ही मौजूद हो और इस बात की सूझ भी तुम स्वयं ही प्रदान करते हो।
ਆਪੇ ਦੇਹਿ ਬੁਝਾਈ ਅਵਰ ਨ ਭਾਈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਰਸੁ ਚਾਖਿਆ ॥
आपे देहि बुझाई अवर न भाई गुरमुखि हरि रसु चाखिआ ॥
जिसे तुम यह सूझ प्रदान करते हो, वह किसी अन्य से प्रेम नहीं करता और गुरु के माध्यम से वह हरि-रस को चखता है।
ਦਰਿ ਸਾਚੈ ਸਦਾ ਹੈ ਸਾਚਾ ਸਾਚੈ ਸਬਦਿ ਸੁਭਾਖਿਆ ॥
दरि साचै सदा है साचा साचै सबदि सुभाखिआ ॥
परमात्मा के सच्चे दरबार में सर्वदा सत्य ही रहता है। और सच्चे शब्द का वह प्रेमपूर्वक स्तुतिगान करता है।