ਆਪੁ ਛੋਡਿ ਸੇਵਾ ਕਰੀ ਪਿਰੁ ਸਚੜਾ ਮਿਲੈ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਏ ॥
आपु छोडि सेवा करी पिरु सचड़ा मिलै सहजि सुभाए ॥
अपना अहंत्व मिटाकर मैं उनकी श्रद्धापूर्वक सेवा करती हूँ, इस तरह सहज स्वभाव ही सच्चा पति-प्रभु मुझे मिल जाएगा।
ਪਿਰੁ ਸਚਾ ਮਿਲੈ ਆਏ ਸਾਚੁ ਕਮਾਏ ਸਾਚਿ ਸਬਦਿ ਧਨ ਰਾਤੀ ॥
पिरु सचा मिलै आए साचु कमाए साचि सबदि धन राती ॥
जीव-स्त्री सत्य की साधना करती है एवं सच्चे शब्द में अनुरक्त हुई है। इस तरह सच्चा पति-परमेश्वर आकर उसे मिल जाता है।
ਕਦੇ ਨ ਰਾਂਡ ਸਦਾ ਸੋਹਾਗਣਿ ਅੰਤਰਿ ਸਹਜ ਸਮਾਧੀ ॥
कदे न रांड सदा सोहागणि अंतरि सहज समाधी ॥
वह कभी विधवा नहीं होती और सदा सुहागिन बनी रहती है।
ਪਿਰੁ ਰਹਿਆ ਭਰਪੂਰੇ ਵੇਖੁ ਹਦੂਰੇ ਰੰਗੁ ਮਾਣੇ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਏ ॥
पिरु रहिआ भरपूरे वेखु हदूरे रंगु माणे सहजि सुभाए ॥
पति-परमेश्वर सर्वव्यापक है, उसे प्रत्यक्ष देख कर वह सहज-स्वभाव ही उसके प्रेम का आनंद प्राप्त करती है।
ਜਿਨੀ ਆਪਣਾ ਕੰਤੁ ਪਛਾਣਿਆ ਹਉ ਤਿਨ ਪੂਛਉ ਸੰਤਾ ਜਾਏ ॥੩॥
जिनी आपणा कंतु पछाणिआ हउ तिन पूछउ संता जाए ॥३॥
जिन्होंने अपने पति-परमेश्वर को पहचान लिया है, मैं उन संतजनों के पास जाकर अपने स्वामी के बारे में पूछती हूँ॥३॥
ਪਿਰਹੁ ਵਿਛੁੰਨੀਆ ਭੀ ਮਿਲਹ ਜੇ ਸਤਿਗੁਰ ਲਾਗਹ ਸਾਚੇ ਪਾਏ ॥
पिरहु विछुंनीआ भी मिलह जे सतिगुर लागह साचे पाए ॥
पति-परमेश्वर से जुदा हुई जीव-स्त्रियों का अपने स्वामी से मिलन हो जाता है; यदि वे सतगुरु के चरणों में लग जाएँ।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸਦਾ ਦਇਆਲੁ ਹੈ ਅਵਗੁਣ ਸਬਦਿ ਜਲਾਏ ॥
सतिगुरु सदा दइआलु है अवगुण सबदि जलाए ॥
सतगुरु हमेशा दया का घर है, उसके शब्द द्वारा मनुष्य के अवगुण मिट जाते हैं।
ਅਉਗੁਣ ਸਬਦਿ ਜਲਾਏ ਦੂਜਾ ਭਾਉ ਗਵਾਏ ਸਚੇ ਹੀ ਸਚਿ ਰਾਤੀ ॥
अउगुण सबदि जलाए दूजा भाउ गवाए सचे ही सचि राती ॥
अपने अवगुणों को गुरु के शब्द द्वारा जला कर जीव मोह-माया को त्याग देता है और केवल सत्य में ही समाया रहता है।
ਸਚੈ ਸਬਦਿ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਹਉਮੈ ਗਈ ਭਰਾਤੀ ॥
सचै सबदि सदा सुखु पाइआ हउमै गई भराती ॥
सच्चे शब्द द्वारा हमेशा सुख प्राप्त होता है और अहंकार एवं भ्रांतियां दूर हो जाती हैं।
ਪਿਰੁ ਨਿਰਮਾਇਲੁ ਸਦਾ ਸੁਖਦਾਤਾ ਨਾਨਕ ਸਬਦਿ ਮਿਲਾਏ ॥
पिरु निरमाइलु सदा सुखदाता नानक सबदि मिलाए ॥
हे नानक ! पवित्र-पावन पति-परमेश्वर हमेशा ही सुख देने वाला है और वह शब्द द्वारा ही मिलता है।
ਪਿਰਹੁ ਵਿਛੁੰਨੀਆ ਭੀ ਮਿਲਹ ਜੇ ਸਤਿਗੁਰ ਲਾਗਹ ਸਾਚੇ ਪਾਏ ॥੪॥੧॥
पिरहु विछुंनीआ भी मिलह जे सतिगुर लागह साचे पाए ॥४॥१॥
पति-परमेश्वर से जुदा हुई जीव-स्त्रियों का भी अपने सच्चे स्वामी से मिलन हो जाता है, यदि वे सतगुरु के चरणों में लग जाएँ॥ ४॥ १॥
ਵਡਹੰਸੁ ਮਹਲਾ ੩ ॥
वडहंसु महला ३ ॥
वडहंसु महला ३ ॥
ਸੁਣਿਅਹੁ ਕੰਤ ਮਹੇਲੀਹੋ ਪਿਰੁ ਸੇਵਿਹੁ ਸਬਦਿ ਵੀਚਾਰਿ ॥
सुणिअहु कंत महेलीहो पिरु सेविहु सबदि वीचारि ॥
हे पति-परमेश्वर की स्त्रियों ! ध्यानपूर्वक सुनो, शब्द का विचार करके अपने प्रियतम प्रभु की सेवा करो।
ਅਵਗਣਵੰਤੀ ਪਿਰੁ ਨ ਜਾਣਈ ਮੁਠੀ ਰੋਵੈ ਕੰਤ ਵਿਸਾਰਿ ॥
अवगणवंती पिरु न जाणई मुठी रोवै कंत विसारि ॥
अवगुणों से भरी स्त्री अपने प्रियतम को नहीं जानती और वह मोह-माया में ठगी हुई अपने पति-प्रभु को विस्मृत करके रोती रहती है।
ਰੋਵੈ ਕੰਤ ਸੰਮਾਲਿ ਸਦਾ ਗੁਣ ਸਾਰਿ ਨਾ ਪਿਰੁ ਮਰੈ ਨ ਜਾਏ ॥
रोवै कंत समालि सदा गुण सारि ना पिरु मरै न जाए ॥
जो जीव-स्त्री अपने प्रभु के गुणों को याद करके वैराग में अश्रु बहाती है, उसका स्वामी न मरता है और न ही कहीं जाता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਾਤਾ ਸਬਦਿ ਪਛਾਤਾ ਸਾਚੈ ਪ੍ਰੇਮਿ ਸਮਾਏ ॥
गुरमुखि जाता सबदि पछाता साचै प्रेमि समाए ॥
जिस जीव-स्त्री ने गुरु के माध्यम से प्रभु को जान लिया है एवं शब्द द्वारा पहचान कर ली है, वह सच्चे प्रभु के प्रेम में समाई रहती है।
ਜਿਨਿ ਅਪਣਾ ਪਿਰੁ ਨਹੀ ਜਾਤਾ ਕਰਮ ਬਿਧਾਤਾ ਕੂੜਿ ਮੁਠੀ ਕੂੜਿਆਰੇ ॥
जिनि अपणा पिरु नही जाता करम बिधाता कूड़ि मुठी कूड़िआरे ॥
जिसने अपने प्रियतम कर्म विधाता को नहीं समझा, उस झूठी जीव-स्त्री को झूठ ने ठग लिया है।
ਸੁਣਿਅਹੁ ਕੰਤ ਮਹੇਲੀਹੋ ਪਿਰੁ ਸੇਵਿਹੁ ਸਬਦਿ ਵੀਚਾਰੇ ॥੧॥
सुणिअहु कंत महेलीहो पिरु सेविहु सबदि वीचारे ॥१॥
हे पति-परमेश्वर की स्त्रियों ! ध्यानपूर्वक सुनो, शब्द का विचार करके अपने प्रियतम प्रभु की सेवा करो ॥ १॥
ਸਭੁ ਜਗੁ ਆਪਿ ਉਪਾਇਓਨੁ ਆਵਣੁ ਜਾਣੁ ਸੰਸਾਰਾ ॥
सभु जगु आपि उपाइओनु आवणु जाणु संसारा ॥
सारे संसार की उत्पत्ति परमेश्वर ने स्वयं ही की है और यह संसार आवागमन अर्थात् जन्म-मरण के चक्र में पड़ा है।
ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਖੁਆਇਅਨੁ ਮਰਿ ਜੰਮੈ ਵਾਰੋ ਵਾਰਾ ॥
माइआ मोहु खुआइअनु मरि जमै वारो वारा ॥
माया के मोह ने जीव-स्त्री को नष्ट कर दिया है और वह बार-बार मरती एवं जन्म लेती है।
ਮਰਿ ਜੰਮੈ ਵਾਰੋ ਵਾਰਾ ਵਧਹਿ ਬਿਕਾਰਾ ਗਿਆਨ ਵਿਹੂਣੀ ਮੂਠੀ ॥
मरि जमै वारो वारा वधहि बिकारा गिआन विहूणी मूठी ॥
वह बार-बार मरती एवं दुनिया में जन्म लेती है, उसके पाप-विकार बढ़ते जाते हैं एवं ज्ञान के बिना वह ठगी गई है।
ਬਿਨੁ ਸਬਦੈ ਪਿਰੁ ਨ ਪਾਇਓ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇਓ ਰੋਵੈ ਅਵਗੁਣਿਆਰੀ ਝੂਠੀ ॥
बिनु सबदै पिरु न पाइओ जनमु गवाइओ रोवै अवगुणिआरी झूठी ॥
शब्द के बिना उसे प्रियतम प्राप्त नहीं होता और अपना अमूल्य जीवन व्यर्थ गंवा देती है। इस प्रकार गुणों से विहीन झूठी जीव-स्त्री विलाप करती है।
ਪਿਰੁ ਜਗਜੀਵਨੁ ਕਿਸ ਨੋ ਰੋਈਐ ਰੋਵੈ ਕੰਤੁ ਵਿਸਾਰੇ ॥
पिरु जगजीवनु किस नो रोईऐ रोवै कंतु विसारे ॥
प्रियतम-प्रभु तो जगत का जीवन है तो फिर किसके लिए विलाप करना। जीव-स्त्री अपने पति-प्रभु को विस्मृत करने पर ही रुदन करती है।
ਸਭੁ ਜਗੁ ਆਪਿ ਉਪਾਇਓਨੁ ਆਵਣੁ ਜਾਣੁ ਸੰਸਾਰੇ ॥੨॥
सभु जगु आपि उपाइओनु आवणु जाणु संसारे ॥२॥
सारा जगत परमात्मा ने स्वयं उत्पन्न किया है और यह संसार जन्मता-मरता रहता है॥ २॥
ਸੋ ਪਿਰੁ ਸਚਾ ਸਦ ਹੀ ਸਾਚਾ ਹੈ ਨਾ ਓਹੁ ਮਰੈ ਨ ਜਾਏ ॥
सो पिरु सचा सद ही साचा है ना ओहु मरै न जाए ॥
वह पति-प्रभु सदैव सत्य है। वह अनश्वर है अर्थात् न ही वह मरता है एवं न ही कहीं जाता है।
ਭੂਲੀ ਫਿਰੈ ਧਨ ਇਆਣੀਆ ਰੰਡ ਬੈਠੀ ਦੂਜੈ ਭਾਏ ॥
भूली फिरै धन इआणीआ रंड बैठी दूजै भाए ॥
भूली हुई जीव-स्त्री भटकती रहती है और द्वैतभाव द्वारा विधवा बनी बैठी है।
ਰੰਡ ਬੈਠੀ ਦੂਜੈ ਭਾਏ ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਦੁਖੁ ਪਾਏ ਆਵ ਘਟੈ ਤਨੁ ਛੀਜੈ ॥
रंड बैठी दूजै भाए माइआ मोहि दुखु पाए आव घटै तनु छीजै ॥
द्वैतभाव द्वारा वह विधवा की भाँति बैठी हुई है; माया के मोह के कारण वह दुःख प्राप्त करती है, उसकी आयु कम होती जा रही है और शरीर भी नाश होता जा रहा है।
ਜੋ ਕਿਛੁ ਆਇਆ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਜਾਸੀ ਦੁਖੁ ਲਾਗਾ ਭਾਇ ਦੂਜੈ ॥
जो किछु आइआ सभु किछु जासी दुखु लागा भाइ दूजै ॥
जो कुछ भी उत्पन्न हुआ है, वह सब कुछ नाश हो जाएगा। सांसारिक आकर्षण के कारण मनुष्य दु:ख प्राप्त करता है।
ਜਮਕਾਲੁ ਨ ਸੂਝੈ ਮਾਇਆ ਜਗੁ ਲੂਝੈ ਲਬਿ ਲੋਭਿ ਚਿਤੁ ਲਾਏ ॥
जमकालु न सूझै माइआ जगु लूझै लबि लोभि चितु लाए ॥
दुनिया माया की लालसा में हमेशा उलझती रहती है, उसे इसी लालसा में मृत्यु का भी ध्यान नहीं आता और अपने चित्त को लोभ एवं लालच में लगाती रहती है।
ਸੋ ਪਿਰੁ ਸਾਚਾ ਸਦ ਹੀ ਸਾਚਾ ਨਾ ਓਹੁ ਮਰੈ ਨ ਜਾਏ ॥੩॥
सो पिरु साचा सद ही साचा ना ओहु मरै न जाए ॥३॥
वह पति-प्रभु सदैव सत्य है, वह अनश्वर है अर्थात् न ही वह मरता है और न ही कहीं जाता है॥ ३॥
ਇਕਿ ਰੋਵਹਿ ਪਿਰਹਿ ਵਿਛੁੰਨੀਆ ਅੰਧੀ ਨਾ ਜਾਣੈ ਪਿਰੁ ਨਾਲੇ ॥
इकि रोवहि पिरहि विछुंनीआ अंधी ना जाणै पिरु नाले ॥
अपने पति-परमेश्वर से बिछुड़ी हुई कई जीव-स्त्रियों रोती रहती हैं।अज्ञानता में अंधी हुई वे यह नहीं जानती कि उनका पति-परमेश्वर तो उनके साथ ही निवास करता है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਸਾਚਾ ਪਿਰੁ ਮਿਲੈ ਅੰਤਰਿ ਸਦਾ ਸਮਾਲੇ ॥
गुर परसादी साचा पिरु मिलै अंतरि सदा समाले ॥
गुरु की कृपा से सच्चा पति-परमेश्वर मिलता है और जीव-स्त्री अपने हृदय में सर्वदा उसे याद करती है।
ਪਿਰੁ ਅੰਤਰਿ ਸਮਾਲੇ ਸਦਾ ਹੈ ਨਾਲੇ ਮਨਮੁਖਿ ਜਾਤਾ ਦੂਰੇ ॥
पिरु अंतरि समाले सदा है नाले मनमुखि जाता दूरे ॥
प्रियतम प्रभु को सर्वदा अपने साथ समझकर वह अपने हृदय में उसे स्मरण करती है। लेकिन मनमुख जीव-स्त्रियाँ उसे दूर ही समझती हैं।
ਇਹੁ ਤਨੁ ਰੁਲੈ ਰੁਲਾਇਆ ਕਾਮਿ ਨ ਆਇਆ ਜਿਨਿ ਖਸਮੁ ਨ ਜਾਤਾ ਹਦੂਰੇ ॥
इहु तनु रुलै रुलाइआ कामि न आइआ जिनि खसमु न जाता हदूरे ॥
जिन्होंने परमेश्वर को अपने पास अनुभव नहीं किया, उनका यह शरीर मिट्टी में मिलकर खराब हो जाता है और किसी काम में नहीं आता।