ਐਸਾ ਨਾਮੁ ਨਿਰੰਜਨ ਦੇਉ ॥
ऐसा नामु निरंजन देउ ॥
हे पावनस्वरूप ! तेरा नाम सर्वसुख व मुक्ति प्रदाता है, अतः यही देना !
ਹਉ ਜਾਚਿਕੁ ਤੂ ਅਲਖ ਅਭੇਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हउ जाचिकु तू अलख अभेउ ॥१॥ रहाउ ॥
तू अदृष्ट एवं अभेद है और मैं तेरे नाम का याचक हूँ॥ १॥ रहाउ॥
ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਧਰਕਟੀ ਨਾਰਿ ॥
माइआ मोहु धरकटी नारि ॥
माया का मोह उस कुलटा स्त्री के प्रेम जैसा है,
ਭੂੰਡੀ ਕਾਮਣਿ ਕਾਮਣਿਆਰਿ ॥
भूंडी कामणि कामणिआरि ॥
जो बदशक्ल एवं जादू-टोने करती रहती है।
ਰਾਜੁ ਰੂਪੁ ਝੂਠਾ ਦਿਨ ਚਾਰਿ ॥
राजु रूपु झूठा दिन चारि ॥
राज्य एवं सौन्दर्य झूठे हैं और यह चार दिन ही रहते हैं।
ਨਾਮੁ ਮਿਲੈ ਚਾਨਣੁ ਅੰਧਿਆਰਿ ॥੨॥
नामु मिलै चानणु अंधिआरि ॥२॥
जिसे नाम मिल जाता है, उसके अंधेरे हृदय में उजाला हो जाता है॥ २॥
ਚਖਿ ਛੋਡੀ ਸਹਸਾ ਨਹੀ ਕੋਇ ॥
चखि छोडी सहसा नही कोइ ॥
मैंने चखकर माया छोड़ दी है और मेरे मन में इस बारे कोई सन्देह नहीं है।
ਬਾਪੁ ਦਿਸੈ ਵੇਜਾਤਿ ਨ ਹੋਇ ॥
बापु दिसै वेजाति न होइ ॥
जिस बच्चे का पिता पास है, उसे कोई अवैध संतान नहीं कहता।
ਏਕੇ ਕਉ ਨਾਹੀ ਭਉ ਕੋਇ ॥
एके कउ नाही भउ कोइ ॥
परमात्मा की भक्ति करने वाले को कोई भय नहीं रहता।
ਕਰਤਾ ਕਰੇ ਕਰਾਵੈ ਸੋਇ ॥੩॥
करता करे करावै सोइ ॥३॥
एक ईश्वर ही सबकुछ करता है और वही दूसरों से करवाता है॥ ३॥
ਸਬਦਿ ਮੁਏ ਮਨੁ ਮਨ ਤੇ ਮਾਰਿਆ ॥
सबदि मुए मनु मन ते मारिआ ॥
जिनका अभिमान ब्रह्म-शब्द द्वारा समाप्त हो गया है, उसने अपने मन को मन द्वारा नियंत्रण में कर लिया है।
ਠਾਕਿ ਰਹੇ ਮਨੁ ਸਾਚੈ ਧਾਰਿਆ ॥
ठाकि रहे मनु साचै धारिआ ॥
जिन्होंने मन को विकारों की तरफ से काबू में कर रखा है, उन्होंने अपना मन सत्य में लीन कर लिया है।
ਅਵਰੁ ਨ ਸੂਝੈ ਗੁਰ ਕਉ ਵਾਰਿਆ ॥
अवरु न सूझै गुर कउ वारिआ ॥
मुझे कुछ भी नहीं सूझता, मैं तो गुरु पर ही न्यौछावर हूँ।
ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਨਿਸਤਾਰਿਆ ॥੪॥੩॥
नानक नामि रते निसतारिआ ॥४॥३॥
हे नानक ! प्रभु के नाम में लीन रहने वाले व्यक्ति का संसार से निस्तारा हो जाता है। ४॥ ३॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੧ ॥
बिलावलु महला १ ॥
बिलावलु महला १ ॥
ਗੁਰ ਬਚਨੀ ਮਨੁ ਸਹਜ ਧਿਆਨੇ ॥
गुर बचनी मनु सहज धिआने ॥
गुरु के वचनों द्वारा मन सहज ही परमात्मा के ध्यान में मग्न हो गया है और
ਹਰਿ ਕੈ ਰੰਗਿ ਰਤਾ ਮਨੁ ਮਾਨੇ ॥
हरि कै रंगि रता मनु माने ॥
हरि के रंग में लीन हुआ मेरा मन आनंदित हो गया है।
ਮਨਮੁਖ ਭਰਮਿ ਭੁਲੇ ਬਉਰਾਨੇ ॥
मनमुख भरमि भुले बउराने ॥
स्वेच्छाचारी व्यक्ति भ्रम में भूलकर पगले हो गए हैं।
ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਕਿਉ ਰਹੀਐ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਪਛਾਨੇ ॥੧॥
हरि बिनु किउ रहीऐ गुर सबदि पछाने ॥१॥
परमात्मा के चिंतन बिना में कैसे रहूँ? गुरु के शब्द द्वारा उसकी पहचान हो गई है॥ १॥
ਬਿਨੁ ਦਰਸਨ ਕੈਸੇ ਜੀਵਉ ਮੇਰੀ ਮਾਈ ॥
बिनु दरसन कैसे जीवउ मेरी माई ॥
हे माई ! भगवान् के दर्शन बिना मैं कैसे जिंदा रहूँ।
ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਜੀਅਰਾ ਰਹਿ ਨ ਸਕੈ ਖਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰਿ ਬੂਝ ਬੁਝਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि बिनु जीअरा रहि न सकै खिनु सतिगुरि बूझ बुझाई ॥१॥ रहाउ ॥
परमात्मा के सिमरन बिना मेरी जीवन साँसें क्षण भर के लिए रह नहीं सकती, चूंकि सतगुरु ने मुझे यह सूझ बता दी है॥ १॥ रहाउ॥
ਮੇਰਾ ਪ੍ਰਭੁ ਬਿਸਰੈ ਹਉ ਮਰਉ ਦੁਖਾਲੀ ॥
मेरा प्रभु बिसरै हउ मरउ दुखाली ॥
मेरा प्रभु मुझे विस्मृत हो जाता है तो मैं बहुत दुखी होकर मरती हूँ।
ਸਾਸਿ ਗਿਰਾਸਿ ਜਪਉ ਅਪੁਨੇ ਹਰਿ ਭਾਲੀ ॥
सासि गिरासि जपउ अपुने हरि भाली ॥
मैं अपने हरि को ढूंढती और श्वास-ग्रास से उसे ही जपती रहती हूँ।
ਸਦ ਬੈਰਾਗਨਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਨਿਹਾਲੀ ॥
सद बैरागनि हरि नामु निहाली ॥
मैं सदैव के लिए वैरागिन बनकर हरि नाम आनंदित रहती हूँ।
ਅਬ ਜਾਨੇ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਨਾਲੀ ॥੨॥
अब जाने गुरमुखि हरि नाली ॥२॥
गुरु के माध्यम से अब मैंने जान लिया है कि हरि मेरे साथ ही रहता है॥ २॥
ਅਕਥ ਕਥਾ ਕਹੀਐ ਗੁਰ ਭਾਇ ॥
अकथ कथा कहीऐ गुर भाइ ॥
हरि की अकथनीय कथा गुरु के प्रेम द्वारा ही कही जाती है।
ਪ੍ਰਭੁ ਅਗਮ ਅਗੋਚਰੁ ਦੇਇ ਦਿਖਾਇ ॥
प्रभु अगम अगोचरु देइ दिखाइ ॥
गुरु ने अगम्य, अगोचर प्रभु दिखा दिया है।
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਕਰਣੀ ਕਿਆ ਕਾਰ ਕਮਾਇ ॥
बिनु गुर करणी किआ कार कमाइ ॥
गुरु की करनी बिना आदमी क्या कार्य कर सकता है ?
ਹਉਮੈ ਮੇਟਿ ਚਲੈ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਸਮਾਇ ॥੩॥
हउमै मेटि चलै गुर सबदि समाइ ॥३॥
जो अपना अभिमान मिटाकर गुरु के निर्देशानुसार चलता है, वह गुरु-शब्द में ही समा जाता है॥ ३॥
ਮਨਮੁਖੁ ਵਿਛੁੜੈ ਖੋਟੀ ਰਾਸਿ ॥
मनमुखु विछुड़ै खोटी रासि ॥
मनमुख आदमी परमात्मा से बिछुड़ जाता है और वह झूठी पूंजी संचित करता रहता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮਿ ਮਿਲੈ ਸਾਬਾਸਿ ॥
गुरमुखि नामि मिलै साबासि ॥
मगर गुरुमुख को सत्य के दरबार में शाबाश मिलती है, जो नाम का लाभ हासिल करता है।
ਹਰਿ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੀ ਦਾਸਨਿ ਦਾਸ ॥
हरि किरपा धारी दासनि दास ॥
हरि ने कृपा करके अपने दासों का दास बना लिया है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਨਾਮ ਧਨੁ ਰਾਸਿ ॥੪॥੪॥
जन नानक हरि नाम धनु रासि ॥४॥४॥
हे नानक ! हरि नाम धन ही मेरी जीवन-पूंजी है।॥ ४॥ ४॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੩ ਘਰੁ ੧
बिलावलु महला ३ घरु १
बिलावलु महला ३ घरु १
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਧ੍ਰਿਗੁ ਧ੍ਰਿਗੁ ਖਾਇਆ ਧ੍ਰਿਗੁ ਧ੍ਰਿਗੁ ਸੋਇਆ ਧ੍ਰਿਗੁ ਧ੍ਰਿਗੁ ਕਾਪੜੁ ਅੰਗਿ ਚੜਾਇਆ ॥
ध्रिगु ध्रिगु खाइआ ध्रिगु ध्रिगु सोइआ ध्रिगु ध्रिगु कापड़ु अंगि चड़ाइआ ॥
उस आदमी का खाना, सोना, शरीर पर कपड़े इत्यादि पहनना सब धिक्कार योग्य है और
ਧ੍ਰਿਗੁ ਸਰੀਰੁ ਕੁਟੰਬ ਸਹਿਤ ਸਿਉ ਜਿਤੁ ਹੁਣਿ ਖਸਮੁ ਨ ਪਾਇਆ ॥
ध्रिगु सरीरु कुट्मब सहित सिउ जितु हुणि खसमु न पाइआ ॥
परिवार सहित उसका शरीर भी धिक्कार योग्य है, जिसने अब इस जन्म में परमेश्वर को नहीं पाया।
ਪਉੜੀ ਛੁੜਕੀ ਫਿਰਿ ਹਾਥਿ ਨ ਆਵੈ ਅਹਿਲਾ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇਆ ॥੧॥
पउड़ी छुड़की फिरि हाथि न आवै अहिला जनमु गवाइआ ॥१॥
हाथों से छूटी हुई पौड़ी पुनः हाथ में नहीं आती और उसने अपना दुर्लभ जन्म व्यर्थ ही गंवा लिया है॥ १॥
ਦੂਜਾ ਭਾਉ ਨ ਦੇਈ ਲਿਵ ਲਾਗਣਿ ਜਿਨਿ ਹਰਿ ਕੇ ਚਰਣ ਵਿਸਾਰੇ ॥
दूजा भाउ न देई लिव लागणि जिनि हरि के चरण विसारे ॥
जिसने भगवान् के सुन्दर चरण भुला दिए हैं, द्वैतभाव उसकी वृति भगवान् में लगने नहीं देता।
ਜਗਜੀਵਨ ਦਾਤਾ ਜਨ ਸੇਵਕ ਤੇਰੇ ਤਿਨ ਕੇ ਤੈ ਦੂਖ ਨਿਵਾਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जगजीवन दाता जन सेवक तेरे तिन के तै दूख निवारे ॥१॥ रहाउ ॥
हे जग के जीवन दाता ! जो तेरे भक्त एवं सेवक हैं, तूने उनके सब दुख समाप्त कर दिए हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਤੂ ਦਇਆਲੁ ਦਇਆਪਤਿ ਦਾਤਾ ਕਿਆ ਏਹਿ ਜੰਤ ਵਿਚਾਰੇ ॥
तू दइआलु दइआपति दाता किआ एहि जंत विचारे ॥
हे प्रभु ! तू बड़ा दयालु है, दयापति है और सबका दाता है। किन्तु ये जीव बेचारे कुछ भी करने में असमर्थ हैं।
ਮੁਕਤ ਬੰਧ ਸਭਿ ਤੁਝ ਤੇ ਹੋਏ ਐਸਾ ਆਖਿ ਵਖਾਣੇ ॥
मुकत बंध सभि तुझ ते होए ऐसा आखि वखाणे ॥
गुरु ने यह सत्य ही बखान किया है कि प्राणियों का मुक्ति-बन्धन तेरे हुक्म से ही होता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਵੈ ਸੋ ਮੁਕਤੁ ਕਹੀਐ ਮਨਮੁਖ ਬੰਧ ਵਿਚਾਰੇ ॥੨॥
गुरमुखि होवै सो मुकतु कहीऐ मनमुख बंध विचारे ॥२॥
जो गुरुमुख बन जाता है, उसे बन्धनों से मुक्त कहीं-जाता है किन्तु बेचारे मनमुखी इन्सान बन्धनों में फॅसे रहते हैं।॥ २॥
ਸੋ ਜਨੁ ਮੁਕਤੁ ਜਿਸੁ ਏਕ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ਸਦਾ ਰਹੈ ਹਰਿ ਨਾਲੇ ॥
सो जनु मुकतु जिसु एक लिव लागी सदा रहै हरि नाले ॥
वही आदमी मुक्त हैं, जिनकी वृति ईश्वर से लग चुकी है और वे सदैव हरि में लीन रहते हैं।
ਤਿਨ ਕੀ ਗਹਣ ਗਤਿ ਕਹੀ ਨ ਜਾਈ ਸਚੈ ਆਪਿ ਸਵਾਰੇ ॥
तिन की गहण गति कही न जाई सचै आपि सवारे ॥
सत्यस्वरूप परमात्मा ने उनका जीवन संवार दिया है और उनकी गहन गति वर्णन नहीं की जा सकती।