ਮਨਮੁਖ ਮੁਗਧੁ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਨ ਚੇਤੈ ਬਿਰਥਾ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇਆ ॥
मनमुख मुगधु हरि नामु न चेतै बिरथा जनमु गवाइआ ॥
मनमुख विमूढ़ व्यक्ति परमात्मा के नाम को स्मरण नहीं करता और अपना जीवन व्यर्थ ही गंवा देता है।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਭੇਟੇ ਤਾ ਨਾਉ ਪਾਏ ਹਉਮੈ ਮੋਹੁ ਚੁਕਾਇਆ ॥੩॥
सतिगुरु भेटे ता नाउ पाए हउमै मोहु चुकाइआ ॥३॥
लेकिन यदि उसकी सतिगुरु से भेंट हो जाए तो वह नाम प्राप्त कर लेता है, जिससे उसका अहंकार एवं मोह दूर हो जाते हैं।३॥
ਹਰਿ ਜਨ ਸਾਚੇ ਸਾਚੁ ਕਮਾਵਹਿ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਵੀਚਾਰੀ ॥
हरि जन साचे साचु कमावहि गुर कै सबदि वीचारी ॥
हरि के सेवक सत्यशील हैं, वे सत्य की साधना करते हैं और गुरु के शब्द पर चिंतन करते हैं।
ਆਪੇ ਮੇਲਿ ਲਏ ਪ੍ਰਭਿ ਸਾਚੈ ਸਾਚੁ ਰਖਿਆ ਉਰ ਧਾਰੀ ॥
आपे मेलि लए प्रभि साचै साचु रखिआ उर धारी ॥
सच्चा प्रभु उन्हें स्वयं ही अपने साथ मिला लेता है और वे सत्य को अपने हृदय से लगाकर रखते हैं।
ਨਾਨਕ ਨਾਵਹੁ ਗਤਿ ਮਤਿ ਪਾਈ ਏਹਾ ਰਾਸਿ ਹਮਾਰੀ ॥੪॥੧॥
नानक नावहु गति मति पाई एहा रासि हमारी ॥४॥१॥
हे नानक ! नाम के माध्यम से हमें गति एवं ज्ञान मिला है और यही हमारी पूँजी है ॥४॥१॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੩ ॥
सोरठि महला ३ ॥
सोरठि महला ३ ॥
ਭਗਤਿ ਖਜਾਨਾ ਭਗਤਨ ਕਉ ਦੀਆ ਨਾਉ ਹਰਿ ਧਨੁ ਸਚੁ ਸੋਇ ॥
भगति खजाना भगतन कउ दीआ नाउ हरि धनु सचु सोइ ॥
परमात्मा ने अपनी भक्ति का खजाना भक्तों को दिया है और हरि का नाम ही उनका सच्चा धन है।
ਅਖੁਟੁ ਨਾਮ ਧਨੁ ਕਦੇ ਨਿਖੁਟੈ ਨਾਹੀ ਕਿਨੈ ਨ ਕੀਮਤਿ ਹੋਇ ॥
अखुटु नाम धनु कदे निखुटै नाही किनै न कीमति होइ ॥
यह अक्षय नाम-धन कदापि खत्म नहीं होता और न ही इसका मूल्यांकन किया जा सकता है।
ਨਾਮ ਧਨਿ ਮੁਖ ਉਜਲੇ ਹੋਏ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ਸਚੁ ਸੋਇ ॥੧॥
नाम धनि मुख उजले होए हरि पाइआ सचु सोइ ॥१॥
हरि के नाम-धन से भक्तजनों के मुख उज्ज्वल हो गए हैं और उन्हें सत्य स्वरूप हरि मिल गया है ॥१॥
ਮਨ ਮੇਰੇ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ਜਾਇ ॥
मन मेरे गुर सबदी हरि पाइआ जाइ ॥
हे मेरे मन ! गुरु के शब्द द्वारा ही श्रीहरि पाया जाता है।
ਬਿਨੁ ਸਬਦੈ ਜਗੁ ਭੁਲਦਾ ਫਿਰਦਾ ਦਰਗਹ ਮਿਲੈ ਸਜਾਇ ॥ ਰਹਾਉ ॥
बिनु सबदै जगु भुलदा फिरदा दरगह मिलै सजाइ ॥ रहाउ ॥
यह दुनिया शब्द के बिना दुविधा में पड़कर भटकती ही रहती है और हरि के दरबार में कठोर दण्ड प्राप्त करती है ॥ रहाउ ॥
ਇਸੁ ਦੇਹੀ ਅੰਦਰਿ ਪੰਚ ਚੋਰ ਵਸਹਿ ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਲੋਭੁ ਮੋਹੁ ਅਹੰਕਾਰਾ ॥
इसु देही अंदरि पंच चोर वसहि कामु क्रोधु लोभु मोहु अहंकारा ॥
इस शरीर के अन्दर पाँच चोर-कामवासना, क्रोध, लालच, मोह एवं अहंकार निवास करते हैं।
ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਲੂਟਹਿ ਮਨਮੁਖ ਨਹੀ ਬੂਝਹਿ ਕੋਇ ਨ ਸੁਣੈ ਪੂਕਾਰਾ ॥
अम्रितु लूटहि मनमुख नही बूझहि कोइ न सुणै पूकारा ॥
वे नाम रूपी अमृत को लूटते रहते हैं, लेकिन मनमुख व्यक्ति इस तथ्य को नहीं समझते और कोई भी उनकी फरियाद नहीं सुनता।
ਅੰਧਾ ਜਗਤੁ ਅੰਧੁ ਵਰਤਾਰਾ ਬਾਝੁ ਗੁਰੂ ਗੁਬਾਰਾ ॥੨॥
अंधा जगतु अंधु वरतारा बाझु गुरू गुबारा ॥२॥
यह दुनिया अन्धी अर्थात् ज्ञानहीन है और इसके व्यवहार भी अन्धे हैं और गुरु के बिना घोर अन्धेरा है ॥२॥
ਹਉਮੈ ਮੇਰਾ ਕਰਿ ਕਰਿ ਵਿਗੁਤੇ ਕਿਹੁ ਚਲੈ ਨ ਚਲਦਿਆ ਨਾਲਿ ॥
हउमै मेरा करि करि विगुते किहु चलै न चलदिआ नालि ॥
अहंकार में मैं-मेरा करते हुए प्राणी पीड़ित होते रहते हैं किन्तु जब मृत्यु का समय आता है तो कुछ भी उनके साथ नहीं जाता।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਵੈ ਸੁ ਨਾਮੁ ਧਿਆਵੈ ਸਦਾ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸਮਾਲਿ ॥
गुरमुखि होवै सु नामु धिआवै सदा हरि नामु समालि ॥
जो व्यक्ति गुरुमुख बन जाता है वह नाम का ही ध्यान करता है और सदैव हरि-नाम की ही आराधना करता रहता है।
ਸਚੀ ਬਾਣੀ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਨਦਰੀ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲਿ ॥੩॥
सची बाणी हरि गुण गावै नदरी नदरि निहालि ॥३॥
वह सच्ची वाणी के द्वारा हरि का गुणगान करता है और करुणा के घर परमात्मा की करुणा-दृष्टि से कृतार्थ हो जाता है ॥३॥
ਸਤਿਗੁਰ ਗਿਆਨੁ ਸਦਾ ਘਟਿ ਚਾਨਣੁ ਅਮਰੁ ਸਿਰਿ ਬਾਦਿਸਾਹਾ ॥
सतिगुर गिआनु सदा घटि चानणु अमरु सिरि बादिसाहा ॥
सतगुरु का दिया हुआ ज्ञान हमेशा ही उसके हृदय को रोशन करता है और परमात्मा का हुक्म बादशाहों के सिर पर भी है।
ਅਨਦਿਨੁ ਭਗਤਿ ਕਰਹਿ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਸਚੁ ਲਾਹਾ ॥
अनदिनु भगति करहि दिनु राती राम नामु सचु लाहा ॥
भक्त रात-दिन प्रभु की भक्ति करते रहते हैं और राम-नाम रूपी सच्चा लाभ प्राप्त करते हैं।
ਨਾਨਕ ਰਾਮ ਨਾਮਿ ਨਿਸਤਾਰਾ ਸਬਦਿ ਰਤੇ ਹਰਿ ਪਾਹਾ ॥੪॥੨॥
नानक राम नामि निसतारा सबदि रते हरि पाहा ॥४॥२॥
हे नानक ! राम-नाम के फलस्वरूप ही मनुष्य की मुक्ति हो जाती है और शब्द में मग्न होने से हरि मिल जाता है।॥४॥२॥
ਸੋਰਠਿ ਮਃ ੩ ॥
सोरठि मः ३ ॥
सोरठि मः ३ ॥
ਦਾਸਨਿ ਦਾਸੁ ਹੋਵੈ ਤਾ ਹਰਿ ਪਾਏ ਵਿਚਹੁ ਆਪੁ ਗਵਾਈ ॥
दासनि दासु होवै ता हरि पाए विचहु आपु गवाई ॥
यदि मनुष्य दासों का दास बन जाए तो उसे परमात्मा मिल जाता है और वह अपने मन से आत्माभिमान को गंवा देता है।
ਭਗਤਾ ਕਾ ਕਾਰਜੁ ਹਰਿ ਅਨੰਦੁ ਹੈ ਅਨਦਿਨੁ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਈ ॥
भगता का कारजु हरि अनंदु है अनदिनु हरि गुण गाई ॥
भक्तों का मुख्य कार्य तो आनंद रूप श्रीहरि ही है, इसलिए वे रात-दिन हरि का ही गुणगान करते रहते हैं।
ਸਬਦਿ ਰਤੇ ਸਦਾ ਇਕ ਰੰਗੀ ਹਰਿ ਸਿਉ ਰਹੇ ਸਮਾਈ ॥੧॥
सबदि रते सदा इक रंगी हरि सिउ रहे समाई ॥१॥
शब्द के साथ मग्न हुए वे हमेशा एक ही रंग में लीन रहते हैं और हरि में समाए रहते हैं।॥१॥
ਹਰਿ ਜੀਉ ਸਾਚੀ ਨਦਰਿ ਤੁਮਾਰੀ ॥
हरि जीउ साची नदरि तुमारी ॥
हे श्री हरि ! तुम्हारी कृपा-दृष्टि सच्ची है।
ਆਪਣਿਆ ਦਾਸਾ ਨੋ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਿ ਪਿਆਰੇ ਰਾਖਹੁ ਪੈਜ ਹਮਾਰੀ ॥ ਰਹਾਉ ॥
आपणिआ दासा नो क्रिपा करि पिआरे राखहु पैज हमारी ॥ रहाउ ॥
हे प्यारे ! अपने सेवकों पर कृपा करो और हमारी लाज-प्रतिष्ठा भी बरकरार रखो॥ रहाउ॥
ਸਬਦਿ ਸਲਾਹੀ ਸਦਾ ਹਉ ਜੀਵਾ ਗੁਰਮਤੀ ਭਉ ਭਾਗਾ ॥
सबदि सलाही सदा हउ जीवा गुरमती भउ भागा ॥
शब्द द्वारा स्तुतिगान करने से मैं सदैव जीवित रहता हूँ और गुरु के उपदेश द्वारा मेरा भय दूर हो गया है।
ਮੇਰਾ ਪ੍ਰਭੁ ਸਾਚਾ ਅਤਿ ਸੁਆਲਿਉ ਗੁਰੁ ਸੇਵਿਆ ਚਿਤੁ ਲਾਗਾ ॥
मेरा प्रभु साचा अति सुआलिउ गुरु सेविआ चितु लागा ॥
मेरा सच्चा प्रभु अत्यंत सुन्दर है और गुरु की सेवा करने से मेरा चित्त उसमें लग गया है।
ਸਾਚਾ ਸਬਦੁ ਸਚੀ ਸਚੁ ਬਾਣੀ ਸੋ ਜਨੁ ਅਨਦਿਨੁ ਜਾਗਾ ॥੨॥
साचा सबदु सची सचु बाणी सो जनु अनदिनु जागा ॥२॥
जो व्यक्ति सच्चे शब्द एवं परम सच्ची वाणी का बोध करता है, वह दिन-रात चेतन रहता है ॥२॥
ਮਹਾ ਗੰਭੀਰੁ ਸਦਾ ਸੁਖਦਾਤਾ ਤਿਸ ਕਾ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਇਆ ॥
महा ग्मभीरु सदा सुखदाता तिस का अंतु न पाइआ ॥
भगवान महा गंभीर और सर्वदा सुखों का दाता है और उसका कोई भी जीव अन्त नहीं पा सकता।
ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਕੀ ਸੇਵਾ ਕੀਨੀ ਅਚਿੰਤੁ ਹਰਿ ਮੰਨਿ ਵਸਾਇਆ ॥
पूरे गुर की सेवा कीनी अचिंतु हरि मंनि वसाइआ ॥
जिसने पूर्ण गुरु की सेवा की है, उसने चिन्ता से रहित हरि को अपने मन में बसा लिया है।
ਮਨੁ ਤਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਅੰਤਰਿ ਵਿਚਹੁ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਇਆ ॥੩॥
मनु तनु निरमलु सदा सुखु अंतरि विचहु भरमु चुकाइआ ॥३॥
उसका मन, तन निर्मल हो गया है और अन्तर्मन सदा सुखी रहता है और मन से सन्देह भी दूर हो गया है ॥३॥
ਹਰਿ ਕਾ ਮਾਰਗੁ ਸਦਾ ਪੰਥੁ ਵਿਖੜਾ ਕੋ ਪਾਏ ਗੁਰ ਵੀਚਾਰਾ ॥
हरि का मारगु सदा पंथु विखड़ा को पाए गुर वीचारा ॥
भगवान (की उपलब्धि) का मार्ग सर्वदा ही एक विषम पथ है और कोई विरला पुरुष ही गुरु के विचार द्वारा चिंतन करते हुए इसे प्राप्त करता है।
ਹਰਿ ਕੈ ਰੰਗਿ ਰਾਤਾ ਸਬਦੇ ਮਾਤਾ ਹਉਮੈ ਤਜੇ ਵਿਕਾਰਾ ॥
हरि कै रंगि राता सबदे माता हउमै तजे विकारा ॥
हरि के प्रेम-रंग में लीन एवं शब्द में मस्त हुआ व्यक्ति अपने अहंकार एवं विकारों को त्याग देता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਰਤਾ ਇਕ ਰੰਗੀ ਸਬਦਿ ਸਵਾਰਣਹਾਰਾ ॥੪॥੩॥
नानक नामि रता इक रंगी सबदि सवारणहारा ॥४॥३॥
नानक तो प्रभु के नाम-रंग में रंगकर एक रंग हो गया है और ब्रह्म-शब्द उसे संवारने वाला है ॥४॥३॥