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ਭਾਹਿ ਬਲੰਦੜੀ ਬੁਝਿ ਗਈ ਰਖੰਦੜੋ ਪ੍ਰਭੁ ਆਪਿ ॥भाहि बलंदड़ी बुझि गई रखंदड़ो प्रभु आपि ॥मेरे मन में प्रज्वलित तृष्णा की अग्नि बुझ गई है तथा प्रभु स्वयं ही मेरा रखवाला बना है। ਜਿਨਿ ਉਪਾਈ ਮੇਦਨੀ ਨਾਨਕ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਜਾਪਿ ॥੨॥जिनि उपाई मेदनी नानक सो प्रभु जापि ॥२॥हे नानक ! जिसने यह पृथ्वी उत्पन्न की है,

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ਹੋਇ ਪਵਿਤ੍ਰ ਸਰੀਰੁ ਚਰਨਾ ਧੂਰੀਐ ॥होइ पवित्र सरीरु चरना धूरीऐ ॥तेरी चरण-धूलि मिलने से मेरा यह शरीर पवित्र-पावन हो सकता है। ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਗੁਰਦੇਵ ਸਦਾ ਹਜੂਰੀਐ ॥੧੩॥पारब्रहम गुरदेव सदा हजूरीऐ ॥१३॥हे परब्रह्म, हे गुरुदेव ! करुणा करो ताकि मैं सर्वदा ही तेरी उपासना में उपस्थित रह सकूं ॥ १३॥ ਸਲੋਕ ॥सलोक ॥श्लोक॥ ਰਸਨਾ ਉਚਰੰਤਿ ਨਾਮੰ ਸ੍ਰਵਣੰ

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ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧਿ ਅਹੰਕਾਰਿ ਫਿਰਹਿ ਦੇਵਾਨਿਆ ॥काम क्रोधि अहंकारि फिरहि देवानिआ ॥वह काम, क्रोध एवं अहंकार में मग्न होकर पागलों की तरह घूम रहा है। ਸਿਰਿ ਲਗਾ ਜਮ ਡੰਡੁ ਤਾ ਪਛੁਤਾਨਿਆ ॥सिरि लगा जम डंडु ता पछुतानिआ ॥लेकिन जब मृत्यु की चोट इसके सिर पर आकर लगी तो वह पश्चाताप कर रहा है। ਬਿਨੁ ਪੂਰੇ ਗੁਰਦੇਵ

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ਸਲੋਕੁ ॥सलोकु ॥श्लोक॥ ਚਿਤਿ ਜਿ ਚਿਤਵਿਆ ਸੋ ਮੈ ਪਾਇਆ ॥चिति जि चितविआ सो मै पाइआ ॥जो कुछ मैंने अपने चित में चाहा था, वह मुझे मिल गया है। ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ਸੁਖ ਸਬਾਇਆ ॥੪॥नानक नामु धिआइ सुख सबाइआ ॥४॥हे नानक ! भगवान का ध्यान करने से मुझे सर्व सुख प्राप्त हो गया है॥ ४॥ ਛੰਤੁ

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ਮਨਿ ਵਸੰਦੜੋ ਸਚੁ ਸਹੁ ਨਾਨਕ ਹਭੇ ਡੁਖੜੇ ਉਲਾਹਿ ॥੨॥मनि वसंदड़ो सचु सहु नानक हभे डुखड़े उलाहि ॥२॥हे नानक ! ऐसे ही यदि हम परम-सत्य परमेश्वर को अपने हृदय में बसा लें तो दु:खों के अम्बार समाप्त हो जाते हैं।॥ २॥ ਪਉੜੀ ॥पउड़ी ॥पउड़ी॥ ਕੋਟਿ ਅਘਾ ਸਭਿ ਨਾਸ ਹੋਹਿ ਸਿਮਰਤ ਹਰਿ ਨਾਉ ॥कोटि अघा सभि नास

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ਪੇਖਨ ਸੁਨਨ ਸੁਨਾਵਨੋ ਮਨ ਮਹਿ ਦ੍ਰਿੜੀਐ ਸਾਚੁ ॥पेखन सुनन सुनावनो मन महि द्रिड़ीऐ साचु ॥उस परम-सत्य ईश्वर को मन में भली भांति याद करते रहना चाहिए, जो स्वयं ही सुनने, देखने एवं सुनाने वाला है। ਪੂਰਿ ਰਹਿਓ ਸਰਬਤ੍ਰ ਮੈ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਰੰਗਿ ਰਾਚੁ ॥੨॥पूरि रहिओ सरबत्र मै नानक हरि रंगि राचु ॥२॥हे नानक ! उस

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ਯਾਰ ਵੇ ਤੈ ਰਾਵਿਆ ਲਾਲਨੁ ਮੂ ਦਸਿ ਦਸੰਦਾ ॥यार वे तै राविआ लालनु मू दसि दसंदा ॥हे सज्जन ! तूने मेरे प्रियवर के साथ रमण किया है अतः मुझे उसके बारे में बताओ। ਲਾਲਨੁ ਤੈ ਪਾਇਆ ਆਪੁ ਗਵਾਇਆ ਜੈ ਧਨ ਭਾਗ ਮਥਾਣੇ ॥लालनु तै पाइआ आपु गवाइआ जै धन भाग मथाणे ॥जिनके माथे पर शुभ

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ਰਤਨੁ ਰਾਮੁ ਘਟ ਹੀ ਕੇ ਭੀਤਰਿ ਤਾ ਕੋ ਗਿਆਨੁ ਨ ਪਾਇਓ ॥रतनु रामु घट ही के भीतरि ता को गिआनु न पाइओ ॥राम-नाम रूपी रत्न हृदय में ही रहता है परन्तु इस बारे में कोई ज्ञान नहीं प्राप्त किया। ਜਨ ਨਾਨਕ ਭਗਵੰਤ ਭਜਨ ਬਿਨੁ ਬਿਰਥਾ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇਓ ॥੨॥੧॥जन नानक भगवंत भजन बिनु बिरथा जनमु गवाइओ

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ਅਭੈ ਪਦੁ ਦਾਨੁ ਸਿਮਰਨੁ ਸੁਆਮੀ ਕੋ ਪ੍ਰਭ ਨਾਨਕ ਬੰਧਨ ਛੋਰਿ ॥੨॥੫॥੯॥अभै पदु दानु सिमरनु सुआमी को प्रभ नानक बंधन छोरि ॥२॥५॥९॥हे मेरे स्वामी ! मुझे अभय पद एवं सिमरन का दान प्रदान करो। हे नानक ! वह प्रभु जीवों के बन्धन काटने वाला है ॥२॥५॥९॥ ਜੈਤਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥जैतसरी महला ५ ॥जैतसरी महला ५ ॥

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ਜੈਤਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੪ ਦੁਪਦੇजैतसरी महला ५ घरु ४ दुपदेजैतसरी महला ५ घरु ४ दुपदे ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है। ਅਬ ਮੈ ਸੁਖੁ ਪਾਇਓ ਗੁਰ ਆਗੵਿ ॥अब मै सुखु पाइओ गुर आग्यि ॥अब मैंने गुरु की आज्ञा में रहकर सुख प्राप्त

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