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ਇਹੁ ਜੀਉ ਸਦਾ ਮੁਕਤੁ ਹੈ ਸਹਜੇ ਰਹਿਆ ਸਮਾਇ ॥੨॥इहु जीउ सदा मुकतु है सहजे रहिआ समाइ ॥२॥यह जीवात्मा तो सदा मुक्त है और सहज ही (प्रभु में) लीन रहती है ॥२॥ ਪਉੜੀ ॥पउड़ी ॥पउड़ी ॥ ਪ੍ਰਭਿ ਸੰਸਾਰੁ ਉਪਾਇ ਕੈ ਵਸਿ ਆਪਣੈ ਕੀਤਾ ॥प्रभि संसारु उपाइ कै वसि आपणै कीता ॥प्रभु ने संसार पैदा करके इसे

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ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਨ ਪਾਇਆ ਜਨਮੁ ਬਿਰਥਾ ਗਵਾਇਆ ਨਾਨਕ ਜਮੁ ਮਾਰਿ ਕਰੇ ਖੁਆਰ ॥੨॥हरि नामु न पाइआ जनमु बिरथा गवाइआ नानक जमु मारि करे खुआर ॥२॥हे नानक ! वे हरि के नाम को प्राप्त नहीं करते एवं अपना अनमोल जन्म व्यर्थ ही गंवा देते हैं, इसलिए यमदूत उन्हें दण्ड देकर अपमानित करता है॥ २ ॥ ਪਉੜੀ

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ਜਿਉ ਬੋਲਾਵਹਿ ਤਿਉ ਬੋਲਹ ਸੁਆਮੀ ਕੁਦਰਤਿ ਕਵਨ ਹਮਾਰੀ ॥जिउ बोलावहि तिउ बोलह सुआमी कुदरति कवन हमारी ॥हे स्वामी ! जैसे तुम बुलाते हो, वैसे ही हम बोलते हैं, अन्यथा हमारी क्या समर्था है कि हम कुछ बोल सकें ? ਸਾਧਸੰਗਿ ਨਾਨਕ ਜਸੁ ਗਾਇਓ ਜੋ ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਅਤਿ ਪਿਆਰੀ ॥੮॥੧॥੮॥साधसंगि नानक जसु गाइओ जो प्रभ की

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ਸਨਕ ਸਨੰਦਨ ਨਾਰਦ ਮੁਨਿ ਸੇਵਹਿ ਅਨਦਿਨੁ ਜਪਤ ਰਹਹਿ ਬਨਵਾਰੀ ॥सनक सनंदन नारद मुनि सेवहि अनदिनु जपत रहहि बनवारी ॥सनक, सनंदन एवं नारद मुनि इत्यादि बनवारी प्रभु की सेवा-उपासना करते हैं और रात-दिन प्रभु-नाम का जाप करने में मग्न हैं। ਸਰਣਾਗਤਿ ਪ੍ਰਹਲਾਦ ਜਨ ਆਏ ਤਿਨ ਕੀ ਪੈਜ ਸਵਾਰੀ ॥੨॥सरणागति प्रहलाद जन आए तिन की पैज सवारी

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ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਹਿਰਦੈ ਪਵਿਤ੍ਰੁ ਪਾਵਨੁ ਇਹੁ ਸਰੀਰੁ ਤਉ ਸਰਣੀ ॥੭॥हरि नामु हिरदै पवित्रु पावनु इहु सरीरु तउ सरणी ॥७॥हे हरि ! मेरा यह शरीर तेरी शरण में है और तेरा पवित्र पावन नाम मेरे हृदय में बसता है ॥७ ॥ ਲਬ ਲੋਭ ਲਹਰਿ ਨਿਵਾਰਣੰ ਹਰਿ ਨਾਮ ਰਾਸਿ ਮਨੰ ॥लब लोभ लहरि निवारणं हरि नाम रासि

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ਸਤਿਗੁਰ ਵਾਕਿ ਹਿਰਦੈ ਹਰਿ ਨਿਰਮਲੁ ਨਾ ਜਮ ਕਾਣਿ ਨ ਜਮ ਕੀ ਬਾਕੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥सतिगुर वाकि हिरदै हरि निरमलु ना जम काणि न जम की बाकी ॥१॥ रहाउ ॥सतगुरु की वाणी द्वारा मैंने निर्मल हरि को अपने हृदय में बसा लिया है, अब मुझे न ही यम की अधीनता रही है और न ही यमराज

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ਪਵਣੁ ਪਾਣੀ ਅਗਨਿ ਤਿਨਿ ਕੀਆ ਬ੍ਰਹਮਾ ਬਿਸਨੁ ਮਹੇਸ ਅਕਾਰ ॥पवणु पाणी अगनि तिनि कीआ ब्रहमा बिसनु महेस अकार ॥उस ईश्वर ने ही पवन, पानी, अग्नि की रचना की है और ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश उसी की रचना हैं। ਸਰਬੇ ਜਾਚਿਕ ਤੂੰ ਪ੍ਰਭੁ ਦਾਤਾ ਦਾਤਿ ਕਰੇ ਅਪੁਨੈ ਬੀਚਾਰ ॥੪॥सरबे जाचिक तूं प्रभु दाता दाति करे अपुनै

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ਕਵਲ ਪ੍ਰਗਾਸ ਭਏ ਸਾਧਸੰਗੇ ਦੁਰਮਤਿ ਬੁਧਿ ਤਿਆਗੀ ॥੨॥कवल प्रगास भए साधसंगे दुरमति बुधि तिआगी ॥२॥साधु की संगति करने से हृदय कमल खिल गया है और खोटी बुद्धि त्याग दी है॥ २॥ ਆਠ ਪਹਰ ਹਰਿ ਕੇ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਸਿਮਰੈ ਦੀਨ ਦੈਆਲਾ ॥आठ पहर हरि के गुण गावै सिमरै दीन दैआला ॥जो प्राणी आठों प्रहर हरि का

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ਦੁਖ ਅਨੇਰਾ ਭੈ ਬਿਨਾਸੇ ਪਾਪ ਗਏ ਨਿਖੂਟਿ ॥੧॥दुख अनेरा भै बिनासे पाप गए निखूटि ॥१॥मेरे दु:ख, अज्ञानता का अंधेरा एवं भय विनष्ट हो गए हैं और मेरे पाप भी नाश हो गए हैं। १ ॥ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮ ਕੀ ਮਨਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ॥हरि हरि नाम की मनि प्रीति ॥मेरे मन में हरि-नाम की प्रीति लगी हुई

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ਧੰਧਾ ਕਰਤ ਬਿਹਾਨੀ ਅਉਧਹਿ ਗੁਣ ਨਿਧਿ ਨਾਮੁ ਨ ਗਾਇਓ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥धंधा करत बिहानी अउधहि गुण निधि नामु न गाइओ ॥१॥ रहाउ ॥दुनिया के कामकाज करते हुए धन की खातिर तेरा समूचा जीवन बीत गया है और कभी गुणों के भण्डार नाम का स्तुतिगान नहीं किया ॥ १॥ रहाउ ॥ ਕਉਡੀ ਕਉਡੀ ਜੋਰਤ ਕਪਟੇ ਅਨਿਕ

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