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ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੩ ॥सलोकु मः ३ ॥श्लोक महला ३॥ ਹਉਮੈ ਜਲਤੇ ਜਲਿ ਮੁਏ ਭ੍ਰਮਿ ਆਏ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ॥हउमै जलते जलि मुए भ्रमि आए दूजै भाइ ॥अनेक जीव अहंकार की अग्नि में जलते हुए ही प्राण त्याग गए हैं, दुविधा में भटकते हुए अंतः गुरु के पास आए हैं। ਪੂਰੈ ਸਤਿਗੁਰਿ ਰਾਖਿ ਲੀਏ ਆਪਣੈ ਪੰਨੈ ਪਾਇ

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ਮਨ ਕਾਮਨਾ ਤੀਰਥ ਜਾਇ ਬਸਿਓ ਸਿਰਿ ਕਰਵਤ ਧਰਾਏ ॥मन कामना तीरथ जाइ बसिओ सिरि करवत धराए ॥वह अपनी मनोकामना हेतु तीर्थ-स्थान पर जाकर भी बसता है, अपने सिर को आरे के नीचे भी रखवाता है, ਮਨ ਕੀ ਮੈਲੁ ਨ ਉਤਰੈ ਇਹ ਬਿਧਿ ਜੇ ਲਖ ਜਤਨ ਕਰਾਏ ॥੩॥मन की मैलु न उतरै इह बिधि जे लख

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ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੩ ॥सोरठि महला ३ ॥सोरठि महला ३ ॥ ਹਰਿ ਜੀਉ ਸਬਦੇ ਜਾਪਦਾ ਭਾਈ ਪੂਰੈ ਭਾਗਿ ਮਿਲਾਇ ॥हरि जीउ सबदे जापदा भाई पूरै भागि मिलाइ ॥हे भाई ! परमात्मा तो गुरु के शब्द द्वारा ही ज्ञात होता है, जो पूर्ण भाग्य से ही मिलता है। ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਸੋਹਾਗਣੀ ਭਾਈ ਅਨਦਿਨੁ ਰਤੀਆ ਰੰਗੁ ਲਾਇ ॥੧॥सदा

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ਤਿਨਾ ਪਿਛੈ ਛੁਟੀਐ ਪਿਆਰੇ ਜੋ ਸਾਚੀ ਸਰਣਾਇ ॥੨॥तिना पिछै छुटीऐ पिआरे जो साची सरणाइ ॥२॥हे प्यारे ! जो लोग सत्य की शरण में आते हैं, उनका अनुसरण करते हुए हम भी मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं।॥ २॥ ਮਿਠਾ ਕਰਿ ਕੈ ਖਾਇਆ ਪਿਆਰੇ ਤਿਨਿ ਤਨਿ ਕੀਤਾ ਰੋਗੁ ॥मिठा करि कै खाइआ पिआरे तिनि तनि कीता रोगु

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ਮੇਰਾ ਤੇਰਾ ਛੋਡੀਐ ਭਾਈ ਹੋਈਐ ਸਭ ਕੀ ਧੂਰਿ ॥मेरा तेरा छोडीऐ भाई होईऐ सभ की धूरि ॥हे भाई ! ‘मेरा-तेरा’ की भावना त्याग देनी चाहिए और सबकी चरणों की धूल बन जाना चाहिए। ਘਟਿ ਘਟਿ ਬ੍ਰਹਮੁ ਪਸਾਰਿਆ ਭਾਈ ਪੇਖੈ ਸੁਣੈ ਹਜੂਰਿ ॥घटि घटि ब्रहमु पसारिआ भाई पेखै सुणै हजूरि ॥ईश्वर तो घट-घट में विद्यमान है

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ਹਉਮੈ ਮਾਰਿ ਮਨਸਾ ਮਨਹਿ ਸਮਾਣੀ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਪਛਾਤਾ ॥੪॥ हउमै मारि मनसा मनहि समाणी गुर कै सबदि पछाता ॥४॥ अपने आत्माभिमान को नष्ट करके एवं तृष्णा को मन में ही मिटा कर मैंने गुरु के शब्द द्वारा परम-सत्य को पहचान लिया है ॥४॥ Those who eradicated their ego and nipped their desire in the

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ਬਿਖੁ ਮਾਇਆ ਚਿਤੁ ਮੋਹਿਆ ਭਾਈ ਚਤੁਰਾਈ ਪਤਿ ਖੋਇ ॥बिखु माइआ चितु मोहिआ भाई चतुराई पति खोइ ॥हे प्रियवर ! विषैली माया ने मनुष्य के मन को मोहित कर दिया है और उसने चतुराई द्वारा अपनी इज्जत गंवा दी है। ਚਿਤ ਮਹਿ ਠਾਕੁਰੁ ਸਚਿ ਵਸੈ ਭਾਈ ਜੇ ਗੁਰ ਗਿਆਨੁ ਸਮੋਇ ॥੨॥चित महि ठाकुरु सचि वसै भाई

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ਹਉਮੈ ਮਾਰਿ ਮਨਸਾ ਮਨਹਿ ਸਮਾਣੀ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਪਛਾਤਾ ॥੪॥हउमै मारि मनसा मनहि समाणी गुर कै सबदि पछाता ॥४॥अपने आत्माभिमान को नष्ट करके एवं तृष्णा को मन में ही मिटा कर मैंने गुरु के शब्द द्वारा परम-सत्य को पहचान लिया है ॥४॥ ਅਚਿੰਤ ਕੰਮ ਕਰਹਿ ਪ੍ਰਭ ਤਿਨ ਕੇ ਜਿਨ ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਪਿਆਰਾ ॥अचिंत कम

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ਗੁਰੁ ਅੰਕਸੁ ਜਿਨਿ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਇਆ ਭਾਈ ਮਨਿ ਵਸਿਆ ਚੂਕਾ ਭੇਖੁ ॥੭॥गुरु अंकसु जिनि नामु द्रिड़ाइआ भाई मनि वसिआ चूका भेखु ॥७॥जो व्यक्ति गुरु के अंकुश द्वारा नाम को अपने भीतर दृढ़ करता है, उसका आडम्बर दूर हो जाता है और भगवान का उसके मन में निवास हो जाता है॥ ७॥ ਇਹੁ ਤਨੁ ਹਾਟੁ ਸਰਾਫ ਕੋ

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ਜਿਨ ਚਾਖਿਆ ਸੇਈ ਸਾਦੁ ਜਾਣਨਿ ਜਿਉ ਗੁੰਗੇ ਮਿਠਿਆਈ ॥जिन चाखिआ सेई सादु जाणनि जिउ गुंगे मिठिआई ॥जिसने ज्ञान को चखा है, वही इसके स्वाद को ऐसे जानता है जैसे गूंगे व्यक्ति के लिए मिठाई का स्वाद होता है। ਅਕਥੈ ਕਾ ਕਿਆ ਕਥੀਐ ਭਾਈ ਚਾਲਉ ਸਦਾ ਰਜਾਈ ॥अकथै का किआ कथीऐ भाई चालउ सदा रजाई ॥हे

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