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ਸਬਦਿ ਰਤੇ ਸੇ ਨਿਰਮਲੇ ਚਲਹਿ ਸਤਿਗੁਰ ਭਾਇ ॥੭॥सबदि रते से निरमले चलहि सतिगुर भाइ ॥७॥वही व्यक्ति निर्मल हैं जो गुरु के शब्द में मग्न रहते हैं। वह सतिगुरु के निर्देशानुसार अनुसरण करते हैं।॥७॥ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਦਾਤਾ ਏਕੁ ਤੂੰ ਤੂੰ ਆਪੇ ਬਖਸਿ ਮਿਲਾਇ ॥हरि प्रभ दाता एकु तूं तूं आपे बखसि मिलाइ ॥हे मेरे प्रभु-परमेश्वर !

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ਸਬਦਿ ਮਨੁ ਰੰਗਿਆ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥सबदि मनु रंगिआ लिव लाइ ॥उसका मन नाम में मग्न रहता है और वह प्रभु में सुरति लगाकर रखता है। ਨਿਜ ਘਰਿ ਵਸਿਆ ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਰਜਾਇ ॥੧॥निज घरि वसिआ प्रभ की रजाइ ॥१॥प्रभु की इच्छा से वह अपने आत्मस्वरूप में ही रहता है।॥ १॥ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਿਐ ਜਾਇ ਅਭਿਮਾਨੁ ॥सतिगुरु सेविऐ

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ਨਾਮੁ ਨ ਚੇਤਹਿ ਉਪਾਵਣਹਾਰਾ ॥नामु न चेतहि उपावणहारा ॥वे सृजनहार प्रभु के नाम को स्मरण नहीं करते। ਮਰਿ ਜੰਮਹਿ ਫਿਰਿ ਵਾਰੋ ਵਾਰਾ ॥੨॥मरि जमहि फिरि वारो वारा ॥२॥इसलिए वह बार-बार जीवन मृत्यु के चक्र में फँसकर जन्म लेते और मरते हैं।॥ २॥                                                                  ਅੰਧੇ ਗੁਰੂ ਤੇ ਭਰਮੁ ਨ ਜਾਈ ॥अंधे गुरू ते भरमु न जाई ॥अज्ञानी

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ਤਤੁ ਨ ਚੀਨਹਿ ਬੰਨਹਿ ਪੰਡ ਪਰਾਲਾ ॥੨॥ततु न चीनहि बंनहि पंड पराला ॥२॥वह वास्तविकता को नहीं समझते और घास-फूस की गठरी सिर पर बांधते हैं।॥ २॥ ਮਨਮੁਖ ਅਗਿਆਨਿ ਕੁਮਾਰਗਿ ਪਾਏ ॥मनमुख अगिआनि कुमारगि पाए ॥अज्ञानी स्वेच्छाचारी जीव कुमार्ग ही पड़ा रहता है। ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਬਿਸਾਰਿਆ ਬਹੁ ਕਰਮ ਦ੍ਰਿੜਾਏ ॥हरि नामु बिसारिआ बहु करम द्रिड़ाए ॥वह

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ਗੁਰਮੁਖਿ ਵਿਚਹੁ ਹਉਮੈ ਜਾਇ ॥गुरमुखि विचहु हउमै जाइ ॥गुरमुख के मन से अहंकार निकल जाता है ।                                                             ਗੁਰਮੁਖਿ ਮੈਲੁ ਨ ਲਾਗੈ ਆਇ ॥गुरमुखि मैलु न लागै आइ ॥गुरमुख के मन को विकारों की मैल नहीं लगती।                                       ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਵਸੈ ਮਨਿ ਆਇ ॥੨॥गुरमुखि नामु वसै मनि आइ ॥२॥गुरमुख के मन में भगवान का नाम आकर बस

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ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥गउड़ी महला १ ॥गउड़ी महला १ ॥ ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਬੂਝਿ ਲੇ ਤਉ ਹੋਇ ਨਿਬੇਰਾ ॥गुर परसादी बूझि ले तउ होइ निबेरा ॥हे जिज्ञासु ! यदि गुरु की कृपा से प्राणी ईश्वर की महिमा को समझ ले तो उसे आवागमन से मुक्ति प्राप्त हो जाती है। ਘਰਿ ਘਰਿ ਨਾਮੁ ਨਿਰੰਜਨਾ ਸੋ ਠਾਕੁਰੁ ਮੇਰਾ

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ਹਉਮੈ ਬੰਧਨ ਬੰਧਿ ਭਵਾਵੈ ॥हउमै बंधन बंधि भवावै ॥अहंकार मनुष्य को बंधनों में जकड़ लेता है और उसको (जन्म-मरण के चक्र) आवागमन में भटकाता है। ਨਾਨਕ ਰਾਮ ਭਗਤਿ ਸੁਖੁ ਪਾਵੈ ॥੮॥੧੩॥नानक राम भगति सुखु पावै ॥८॥१३॥हे नानक ! राम की भक्ति करने से ही सुख उपलब्ध होता है॥ ८॥ १३ ॥ ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥गउड़ी

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ਪ੍ਰਭ ਪਾਏ ਹਮ ਅਵਰੁ ਨ ਭਾਰਿਆ ॥੭॥प्रभ पाए हम अवरु न भारिआ ॥७॥एक ईश्वर को मैंने पा लिया है और अब मैं किसी दूसरे को नहीं ढूंढता॥ ७॥                                                                       ਸਾਚ ਮਹਲਿ ਗੁਰਿ ਅਲਖੁ ਲਖਾਇਆ ॥साच महलि गुरि अलखु लखाइआ ॥गुरु जी ने मुझे अदृश्य प्रभु के सत्य मन्दिर में दर्शन करवा दिए हैं। ਨਿਹਚਲ ਮਹਲੁ ਨਹੀ

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ਪਰ ਘਰਿ ਚੀਤੁ ਮਨਮੁਖਿ ਡੋਲਾਇ ॥पर घरि चीतु मनमुखि डोलाइ ॥स्वेच्छाचारी इन्सान का मन पराई नारी की लालसा करता है। ਗਲਿ ਜੇਵਰੀ ਧੰਧੈ ਲਪਟਾਇ ॥गलि जेवरी धंधै लपटाइ ॥उसकी गर्दन पर मृत्यु का फँदा होता है और वह सांसारिक विवादों में फंसा रहता है। ਗੁਰਮੁਖਿ ਛੂਟਸਿ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਇ ॥੫॥गुरमुखि छूटसि हरि गुण गाइ ॥५॥गुरमुख

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ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਦੈਤ ਸੰਘਾਰੇ ॥दूजै भाइ दैत संघारे ॥ईश्वर ने द्वैतभाव के कारण मोह-माया में फँसे राक्षसों का विनाश कर दिया। ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਾਚਿ ਭਗਤਿ ਨਿਸਤਾਰੇ ॥੮॥गुरमुखि साचि भगति निसतारे ॥८॥उनकी सच्ची सेवा-भक्ति के कारण प्रभु ने गुरु के समक्ष आई पवित्र आत्माओं का कल्याण कर दिया ॥ ८॥ ਬੂਡਾ ਦੁਰਜੋਧਨੁ ਪਤਿ ਖੋਈ ॥बूडा दुरजोधनु पति

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