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ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਸਰਣਾਈ ਉਬਰੇ ਹਰਿ ਗੁਰ ਰਖਵਾਲਿਆ ॥੩੦॥नानक गुर सरणाई उबरे हरि गुर रखवालिआ ॥३०॥हे नानक ! गुरु परमेश्वर रखवाला है और गुरु की शरण में आने से बन्धनों से मुक्ति हो जाती है।॥३०॥ ਸਲੋਕ ਮਃ ੩ ॥सलोक मः ३ ॥श्लोक महला ३॥ ਪੜਿ ਪੜਿ ਪੰਡਿਤ ਵਾਦੁ ਵਖਾਣਦੇ ਮਾਇਆ ਮੋਹ ਸੁਆਇ ॥पड़ि पड़ि पंडित वादु

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ਅੰਤਿ ਹੋਵੈ ਵੈਰ ਵਿਰੋਧੁ ਕੋ ਸਕੈ ਨ ਛਡਾਇਆ ॥अंति होवै वैर विरोधु को सकै न छडाइआ ॥अंत में धन की वजह से वैर-विरोध ही होता है और कोई भी इससे बचा नहीं पाता। ਨਾਨਕ ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਧ੍ਰਿਗੁ ਮੋਹੁ ਜਿਤੁ ਲਗਿ ਦੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥੩੨॥नानक विणु नावै ध्रिगु मोहु जितु लगि दुखु पाइआ ॥३२॥हे नानक ! प्रभु-नाम

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ਪਾਪ ਬਿਕਾਰ ਮਨੂਰ ਸਭਿ ਲਦੇ ਬਹੁ ਭਾਰੀ ॥पाप बिकार मनूर सभि लदे बहु भारी ॥वह पाप-विकारों के सड़े लोहे का भारी भरकम बोझ लादकर घूमता है। ਮਾਰਗੁ ਬਿਖਮੁ ਡਰਾਵਣਾ ਕਿਉ ਤਰੀਐ ਤਾਰੀ ॥मारगु बिखमु डरावणा किउ तरीऐ तारी ॥संसार-समुद्र का रास्ता बहुत भयानक एवं मुश्किल है, इससे किस तरह पार हुआ जा सकता है ?

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ਪਉੜੀ ॥पउड़ी ॥पउड़ी॥ ਗੜ੍ਹ੍ਹਿ ਕਾਇਆ ਸੀਗਾਰ ਬਹੁ ਭਾਂਤਿ ਬਣਾਈ ॥गड़्हि काइआ सीगार बहु भांति बणाई ॥शरीर रूपी किले को अनेक प्रकार से श्रृंगार कर बनाया गया है। ਰੰਗ ਪਰੰਗ ਕਤੀਫਿਆ ਪਹਿਰਹਿ ਧਰ ਮਾਈ ॥रंग परंग कतीफिआ पहिरहि धर माई ॥जीव रंग-बिरंगे वस्त्र इस पर पहनता है। ਲਾਲ ਸੁਪੇਦ ਦੁਲੀਚਿਆ ਬਹੁ ਸਭਾ ਬਣਾਈ ॥लाल सुपेद दुलीचिआ

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ਮਃ ੧ ॥मः १ ॥महला १॥ ਮਨਹੁ ਜਿ ਅੰਧੇ ਕੂਪ ਕਹਿਆ ਬਿਰਦੁ ਨ ਜਾਣਨੑੀ ॥मनहु जि अंधे कूप कहिआ बिरदु न जाणन्ही ॥मन से अज्ञानांध लोग कुएं के समान हैं, वे अपने वचन का पालन नहीं करते। ਮਨਿ ਅੰਧੈ ਊਂਧੈ ਕਵਲਿ ਦਿਸਨੑਿ ਖਰੇ ਕਰੂਪ ॥मनि अंधै ऊंधै कवलि दिसन्हि खरे करूप ॥मन से अज्ञानांध लोगों

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ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਘਟਿ ਚਾਨਣਾ ਆਨੑੇਰੁ ਗਵਾਇਆ ॥गुर परसादी घटि चानणा आन्हेरु गवाइआ ॥गुरु की प्रसन्नता से हृदय में उजाला होता है और अज्ञान का अन्धेरा दूर हो जाता है। ਲੋਹਾ ਪਾਰਸਿ ਭੇਟੀਐ ਕੰਚਨੁ ਹੋਇ ਆਇਆ ॥लोहा पारसि भेटीऐ कंचनु होइ आइआ ॥(मनुष्य रूपी) लोहा (गुरु रूपी) पारस से मिलकर सोना हो जाता है। ਨਾਨਕ ਸਤਿਗੁਰਿ

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ਬੇਦੁ ਵਪਾਰੀ ਗਿਆਨੁ ਰਾਸਿ ਕਰਮੀ ਪਲੈ ਹੋਇ ॥बेदु वपारी गिआनु रासि करमी पलै होइ ॥वेद व्यापारी ही हैं, जो ज्ञान राशि का पूंजी के रूप में इस्तेमाल करते हैं, पर ज्ञान तो प्रभु-कृपा से प्राप्त होता है। ਨਾਨਕ ਰਾਸੀ ਬਾਹਰਾ ਲਦਿ ਨ ਚਲਿਆ ਕੋਇ ॥੨॥नानक रासी बाहरा लदि न चलिआ कोइ ॥२॥हे नानक ! ज्ञान-राशि

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ਲਿਖਿਆ ਹੋਵੈ ਨਾਨਕਾ ਕਰਤਾ ਕਰੇ ਸੁ ਹੋਇ ॥੧॥लिखिआ होवै नानका करता करे सु होइ ॥१॥नानक कथन करते हैं कि चाहे भाग्यानुसार होता है, परन्तु जो ईश्वर करता है, वही होता है॥१॥ ਮਃ ੧ ॥मः १ ॥महला १॥ ਰੰਨਾ ਹੋਈਆ ਬੋਧੀਆ ਪੁਰਸ ਹੋਏ ਸਈਆਦ ॥रंना होईआ बोधीआ पुरस होए सईआद ॥मासूम स्त्रियाँ दुर्बल हो गई हैं

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ਪੁਛਾ ਦੇਵਾਂ ਮਾਣਸਾਂ ਜੋਧ ਕਰਹਿ ਅਵਤਾਰ ॥पुछा देवां माणसां जोध करहि अवतार ॥देवताओं, मनुष्यों, योद्धाओं एवं अवतारों से तथ्य को पूछे । ਸਿਧ ਸਮਾਧੀ ਸਭਿ ਸੁਣੀ ਜਾਇ ਦੇਖਾਂ ਦਰਬਾਰੁ ॥सिध समाधी सभि सुणी जाइ देखां दरबारु ॥सिद्धों की समाधि में ईश्वर का यश सुन लूं, उसके दरबार का वैभव जाकर देखें। ਅਗੈ ਸਚਾ ਸਚਿ ਨਾਇ

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ਕੁੰਗੂ ਚੰਨਣੁ ਫੁਲ ਚੜਾਏ ॥कुंगू चंनणु फुल चड़ाए ॥वह केसर, चन्दन एवं फूल चढ़ाता है और ਪੈਰੀ ਪੈ ਪੈ ਬਹੁਤੁ ਮਨਾਏ ॥पैरी पै पै बहुतु मनाए ॥उनके पैरों में पड़-पड़कर मनाने का भरसक प्रयास करता है। ਮਾਣੂਆ ਮੰਗਿ ਮੰਗਿ ਪੈਨੑੈ ਖਾਇ ॥माणूआ मंगि मंगि पैन्है खाइ ॥(समाज की अजीब विडम्बना है कि) वह लोगों से

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