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ਇਨ ਬਿਧਿ ਹਰਿ ਮਿਲੀਐ ਵਰ ਕਾਮਨਿ ਧਨ ਸੋਹਾਗੁ ਪਿਆਰੀ ॥इन बिधि हरि मिलीऐ वर कामनि धन सोहागु पिआरी ॥इस तरीके से जीव रूपी कामिनी को हरि रूपी वर मिलता है और उस प्यारी को सुहाग मिल जाता है। ਜਾਤਿ ਬਰਨ ਕੁਲ ਸਹਸਾ ਚੂਕਾ ਗੁਰਮਤਿ ਸਬਦਿ ਬੀਚਾਰੀ ॥੧॥जाति बरन कुल सहसा चूका गुरमति सबदि बीचारी ॥१॥गुरु-मत

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ਰਾਗੁ ਸਾਰਗ ਚਉਪਦੇ ਮਹਲਾ ੧ ਘਰੁ ੧रागु सारग चउपदे महला १ घरु १रागु सारग चउपदे महला १ घरु १ ੴ ਸਤਿ ਨਾਮੁ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰਭਉ ਨਿਰਵੈਰੁ ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਅਜੂਨੀ ਸੈਭੰ ਗੁਰਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ੴ सति नामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुरप्रसादि ॥वह परमपिता परमेश्वर अद्वितीय है, नाम उसका ‘सत्य’ है, वह कर्ता पुरुष

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ਨਾਰਾਇਣੁ ਸੁਪ੍ਰਸੰਨ ਹੋਇ ਤ ਸੇਵਕੁ ਨਾਮਾ ॥੩॥੧॥नाराइणु सुप्रसंन होइ त सेवकु नामा ॥३॥१॥नामदेव जी कहते हैं कि यदि ईश्वर परम प्रसन्न हो जाए तो ही सेवक की सेवा सफल होती है॥ ३ ॥१॥ ਲੋਭ ਲਹਰਿ ਅਤਿ ਨੀਝਰ ਬਾਜੈ ॥लोभ लहरि अति नीझर बाजै ॥हे ईश्वर ! लोभ की लहरें बहुत उछल रही हैं और ਕਾਇਆ

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ਜਿਹ ਘਟੈ ਮੂਲੁ ਨਿਤ ਬਢੈ ਬਿਆਜੁ ॥ ਰਹਾਉ ॥जिह घटै मूलु नित बढै बिआजु ॥ रहाउ ॥जिसे करने से मूलधन घट जाए और ब्याज में नित्य बढ़ौत्तरी हो।॥रहाउ॥। ਸਾਤ ਸੂਤ ਮਿਲਿ ਬਨਜੁ ਕੀਨ ॥सात सूत मिलि बनजु कीन ॥दरअसल इन व्यापारियों ने साथ मिलकर बहुत प्रकार के सूतों (विकारों) का व्यापार कर लिया है और

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ਹਣਵੰਤੁ ਜਾਗੈ ਧਰਿ ਲੰਕੂਰੁ ॥हणवंतु जागै धरि लंकूरु ॥लम्बी पूँछ वाले भक्त हनुमान मोह-माया से सावधान बने रहे। ਸੰਕਰੁ ਜਾਗੈ ਚਰਨ ਸੇਵ ॥संकरु जागै चरन सेव ॥ईश्वर की चरण सेवा में शिवशंकर जागृत हैं। ਕਲਿ ਜਾਗੇ ਨਾਮਾ ਜੈਦੇਵ ॥੨॥कलि जागे नामा जैदेव ॥२॥कलियुग में भक्त नामदेव और भक्त जयदेव प्रभु-भक्ति में जागृत कहे जा सकते

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ਜਾ ਕੈ ਕੀਨੑੈ ਹੋਤ ਬਿਕਾਰ ॥जा कै कीन्है होत बिकार ॥जिस धन दौलत को इकठ्ठा करने में पाप करता है, ਸੇ ਛੋਡਿ ਚਲਿਆ ਖਿਨ ਮਹਿ ਗਵਾਰ ॥੫॥से छोडि चलिआ खिन महि गवार ॥५॥उसे मूर्ख मनुष्य पल में ही छोड़कर चला जाता है।॥५॥ ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਬਹੁ ਭਰਮਿਆ ॥माइआ मोहि बहु भरमिआ ॥माया मोह की वजह से

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ਲਬੁ ਅਧੇਰਾ ਬੰਦੀਖਾਨਾ ਅਉਗਣ ਪੈਰਿ ਲੁਹਾਰੀ ॥੩॥लबु अधेरा बंदीखाना अउगण पैरि लुहारी ॥३॥लालच मनुष्य के लिए घोर अंधेरा एवं कैदखाना है और उसके पैर में अवगुणों की बेड़ी पड़ी हुई है॥३॥ ਪੂੰਜੀ ਮਾਰ ਪਵੈ ਨਿਤ ਮੁਦਗਰ ਪਾਪੁ ਕਰੇ ਕੋੁਟਵਾਰੀ ॥पूंजी मार पवै नित मुदगर पापु करे कोटवारी ॥मनुष्य की दौलत यह है कि हर रोज

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ਗੁਰ ਸਬਦੁ ਬੀਚਾਰਹਿ ਆਪੁ ਜਾਇ ॥गुर सबदु बीचारहि आपु जाइ ॥जब गुरु उपदेश का चिंतन कर अहम् दूर होता है तो ਸਾਚ ਜੋਗੁ ਮਨਿ ਵਸੈ ਆਇ ॥੮॥साच जोगु मनि वसै आइ ॥८॥मन में सच्चा योग बस जाता है।॥८॥ ਜਿਨਿ ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਦਿਤਾ ਤਿਸੁ ਚੇਤਹਿ ਨਾਹਿ ॥जिनि जीउ पिंडु दिता तिसु चेतहि नाहि ॥हे मूर्ख !

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ਹਰਿ ਰਸਿ ਰਾਤਾ ਜਨੁ ਪਰਵਾਣੁ ॥੭॥हरि रसि राता जनु परवाणु ॥७॥जो व्यक्ति ईश्वर की भक्ति में लीन रहता है, वही सफल होता है॥७॥ ਇਤ ਉਤ ਦੇਖਉ ਸਹਜੇ ਰਾਵਉ ॥इत उत देखउ सहजे रावउ ॥हे मालिक ! इधर-उधर तुझे ही देखता हूँ और सहज स्वभाव तेरी भक्ति में लीन हूँ। ਤੁਝ ਬਿਨੁ ਠਾਕੁਰ ਕਿਸੈ ਨ ਭਾਵਉ

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ਮਨੁ ਭੂਲਉ ਭਰਮਸਿ ਭਵਰ ਤਾਰ ॥मनु भूलउ भरमसि भवर तार ॥भूला हुआ मन भंवरे की तरह भटकता है और ਬਿਲ ਬਿਰਥੇ ਚਾਹੈ ਬਹੁ ਬਿਕਾਰ ॥बिल बिरथे चाहै बहु बिकार ॥व्यर्थ ही बहुत सारे विकारों की चाह करता है। ਮੈਗਲ ਜਿਉ ਫਾਸਸਿ ਕਾਮਹਾਰ ॥मैगल जिउ फाससि कामहार ॥इसका हाल तो इस तरह है ज्यों हाथी कामवासना

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