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ਗੁਰਮਤੀ ਘਟਿ ਚਾਨਣਾ ਆਨੇਰੁ ਬਿਨਾਸਣਿ ॥गुरमती घटि चानणा आनेरु बिनासणि ॥गुरु मतानुसार ही हृदय में ज्ञान का प्रकाश होता है और अज्ञान रूपी अंधेरे का बिनाश हो जाता है। ਹੁਕਮੇ ਹੀ ਸਭ ਸਾਜੀਅਨੁ ਰਵਿਆ ਸਭ ਵਣਿ ਤ੍ਰਿਣਿ ॥हुकमे ही सभ साजीअनु रविआ सभ वणि त्रिणि ॥ईश्वर ने अपने हुक्म से समूचे विश्व की रचना की

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ਸੋ ਸਹੁ ਸਾਂਤਿ ਨ ਦੇਵਈ ਕਿਆ ਚਲੈ ਤਿਸੁ ਨਾਲਿ ॥सो सहु सांति न देवई किआ चलै तिसु नालि ॥यदि मेरा प्रभु मुझे शांति नहीं देता तो उससे मेरा क्या जोर चल सकता है ? ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਹਰਿ ਧਿਆਈਐ ਅੰਤਰਿ ਰਖੀਐ ਉਰ ਧਾਰਿ ॥गुर परसादी हरि धिआईऐ अंतरि रखीऐ उर धारि ॥(उसकी सखी उसे समझाती है

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ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ਰਾਮਕਲੀ ਕੀ ਵਾਰ ਮਹਲਾ ੩ ॥रामकली की वार महला ३ ॥रामकली की वार महला ३ ॥ ਜੋਧੈ ਵੀਰੈ ਪੂਰਬਾਣੀ ਕੀ ਧੁਨੀ ॥जोधै वीरै पूरबाणी की धुनी ॥जोधै वीरै पूरबाणी की धुनी ॥ ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੩ ॥सलोकु मः ३ ॥श्लोक महला ३॥ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸਹਜੈ ਦਾ ਖੇਤੁ

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ਵਰਨੁ ਭੇਖੁ ਅਸਰੂਪੁ ਸੁ ਏਕੋ ਏਕੋ ਸਬਦੁ ਵਿਡਾਣੀ ॥वरनु भेखु असरूपु सु एको एको सबदु विडाणी ॥उस एक का रंग, वेष एवं स्वरूप बहुत सुन्दर है और स्वयं ही अद्भुत शब्द है। ਸਾਚ ਬਿਨਾ ਸੂਚਾ ਕੋ ਨਾਹੀ ਨਾਨਕ ਅਕਥ ਕਹਾਣੀ ॥੬੭॥साच बिना सूचा को नाही नानक अकथ कहाणी ॥६७॥हे नानक ! परम सत्य के बिना

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ਗੁਪਤੀ ਬਾਣੀ ਪਰਗਟੁ ਹੋਇ ॥गुपती बाणी परगटु होइ ॥हे नानक ! जिसके मन में अनहद शब्द रूपी गुप्त वाणी प्रगट हो जाती हैं, ਨਾਨਕ ਪਰਖਿ ਲਏ ਸਚੁ ਸੋਇ ॥੫੩॥नानक परखि लए सचु सोइ ॥५३॥वह सत्य की पहचान कर लेता है॥ ५३ ॥ ਸਹਜ ਭਾਇ ਮਿਲੀਐ ਸੁਖੁ ਹੋਵੈ ॥सहज भाइ मिलीऐ सुखु होवै ॥सहज स्वभाव परमात्मा

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ਪਵਨ ਅਰੰਭੁ ਸਤਿਗੁਰ ਮਤਿ ਵੇਲਾ ॥पवन अर्मभु सतिगुर मति वेला ॥(गुरु नानक देव जी उत्तर देते हैं कि) सृष्टि का आरम्भ पवन रूपी श्वास है। यह मानव-जीवन सतगुरु का उपदेश लेने का शुभावसर है। ਸਬਦੁ ਗੁਰੂ ਸੁਰਤਿ ਧੁਨਿ ਚੇਲਾ ॥सबदु गुरू सुरति धुनि चेला ॥शब्द मेरा गुरु है और शब्द की ध्वनि को सुनने वाली

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ਬਿਨੁ ਸਬਦੈ ਸਭਿ ਦੂਜੈ ਲਾਗੇ ਦੇਖਹੁ ਰਿਦੈ ਬੀਚਾਰਿ ॥बिनु सबदै सभि दूजै लागे देखहु रिदै बीचारि ॥अपने हृदय में भलीभांति विचार करके देख लो, ब्रह्म-शब्द के बिना लोग द्वैतभाव में ही लगे हुए हैं। ਨਾਨਕ ਵਡੇ ਸੇ ਵਡਭਾਗੀ ਜਿਨੀ ਸਚੁ ਰਖਿਆ ਉਰ ਧਾਰਿ ॥੩੪॥नानक वडे से वडभागी जिनी सचु रखिआ उर धारि ॥३४॥हे नानक !

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ਸੋ ਬੂਝੈ ਜਿਸੁ ਆਪਿ ਬੁਝਾਏ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਸੁ ਮੁਕਤੁ ਭਇਆ ॥सो बूझै जिसु आपि बुझाए गुर कै सबदि सु मुकतु भइआ ॥इस भेद को वही बुझता है, जिसे परमात्मा स्वयं ज्ञान देता है और गुरु के शब्द द्वारा ही जीव मुक्त हुआ है। ਨਾਨਕ ਤਾਰੇ ਤਾਰਣਹਾਰਾ ਹਉਮੈ ਦੂਜਾ ਪਰਹਰਿਆ ॥੨੫॥नानक तारे तारणहारा हउमै दूजा

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ਕਿਤੁ ਬਿਧਿ ਆਸਾ ਮਨਸਾ ਖਾਈ ॥कितु बिधि आसा मनसा खाई ॥तूने किस विधि द्वारा अपनी आशा एवं अभिलाषाओं को समाप्त कर लिया है और ਕਿਤੁ ਬਿਧਿ ਜੋਤਿ ਨਿਰੰਤਰਿ ਪਾਈ ॥कितु बिधि जोति निरंतरि पाई ॥किस विधि द्वारा परम-ज्योति प्राप्त कर ली है? ਬਿਨੁ ਦੰਤਾ ਕਿਉ ਖਾਈਐ ਸਾਰੁ ॥बिनु दंता किउ खाईऐ सारु ॥दाँतों के बिना

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ਤੀਰਥਿ ਨਾਈਐ ਸੁਖੁ ਫਲੁ ਪਾਈਐ ਮੈਲੁ ਨ ਲਾਗੈ ਕਾਈ ॥तीरथि नाईऐ सुखु फलु पाईऐ मैलु न लागै काई ॥हम तीर्थों में स्नान करते हैं और इसका सुख रूपी फल प्राप्त करते हैं और मन को जरा भी अहम् की मैल नहीं लगती। ਗੋਰਖ ਪੂਤੁ ਲੋਹਾਰੀਪਾ ਬੋਲੈ ਜੋਗ ਜੁਗਤਿ ਬਿਧਿ ਸਾਈ ॥੭॥गोरख पूतु लोहारीपा बोलै जोग

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