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ਓੁਂ ਨਮੋ ਭਗਵੰਤ ਗੁਸਾਈ ॥ओं नमो भगवंत गुसाई ॥ओम् को हमारा प्रणाम है, ਖਾਲਕੁ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਸਰਬ ਠਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥खालकु रवि रहिआ सरब ठाई ॥१॥ रहाउ ॥वह भगवंत, पृथ्वीपालक, स्रष्टा सब स्थानों पर बसा हुआ है॥ १॥ रहाउ॥ ਜਗੰਨਾਥ ਜਗਜੀਵਨ ਮਾਧੋ ॥जगंनाथ जगजीवन माधो ॥वह समूचे जगत् का मालिक है, जगत् को जीवन देने

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ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥रामकली महला ५ ॥रामकली महला ५ ॥ ਜਿਸ ਕੀ ਤਿਸ ਕੀ ਕਰਿ ਮਾਨੁ ॥जिस की तिस की करि मानु ॥जिस परमात्मा की यह सृष्टि, धन-सम्पदा इत्यादि है, ਆਪਨ ਲਾਹਿ ਗੁਮਾਨੁ ॥आपन लाहि गुमानु ॥उसकी ही मान और अपना घमण्ड छोड़ दो। ਜਿਸ ਕਾ ਤੂ ਤਿਸ ਕਾ ਸਭੁ ਕੋਇ ॥जिस का तू तिस

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ਸੰਤਨ ਕੇ ਪ੍ਰਾਣ ਅਧਾਰ ॥संतन के प्राण अधार ॥और वह संतों के प्राणों का आधार है। ਊਚੇ ਤੇ ਊਚ ਅਪਾਰ ॥੩॥ऊचे ते ऊच अपार ॥३॥वह सबसे ऊँचा एवं अपरम्पार है॥ ३॥ ਸੁ ਮਤਿ ਸਾਰੁ ਜਿਤੁ ਹਰਿ ਸਿਮਰੀਜੈ ॥सु मति सारु जितु हरि सिमरीजै ॥वही सुमति है, जिस द्वारा भगवान् का सिमरन किया जाता है। ਕਰਿ

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ਸੁੰਨ ਸਮਾਧਿ ਗੁਫਾ ਤਹ ਆਸਨੁ ॥सुंन समाधि गुफा तह आसनु ॥जिस गुफा में उसका आसन है, वहाँ उसने शून्य समाधि लगाई है। ਕੇਵਲ ਬ੍ਰਹਮ ਪੂਰਨ ਤਹ ਬਾਸਨੁ ॥केवल ब्रहम पूरन तह बासनु ॥वहाँ पर केवल पूर्ण ब्रह्म का ही निवास है। ਭਗਤ ਸੰਗਿ ਪ੍ਰਭੁ ਗੋਸਟਿ ਕਰਤ ॥भगत संगि प्रभु गोसटि करत ॥प्रभु वहाँ पर अपने

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ਨਾਮੁ ਸੁਨਤ ਜਨੁ ਬਿਛੂਅ ਡਸਾਨਾ ॥੨॥नामु सुनत जनु बिछूअ डसाना ॥२॥परमात्मा का नाम सुनकर ऐसे हो जाता है, जैसे बिच्छु ने डंक मार दिया है॥ २॥ ਮਾਇਆ ਕਾਰਣਿ ਸਦ ਹੀ ਝੂਰੈ ॥माइआ कारणि सद ही झूरै ॥वह माया के कारण सदा ही चिंतित रहता है किन्तु ਮਨਿ ਮੁਖਿ ਕਬਹਿ ਨ ਉਸਤਤਿ ਕਰੈ ॥मनि मुखि कबहि

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ਜਬ ਉਸ ਕਉ ਕੋਈ ਦੇਵੈ ਮਾਨੁ ॥जब उस कउ कोई देवै मानु ॥जब कोई मनुष्य माया को आदर देता है तो ਤਬ ਆਪਸ ਊਪਰਿ ਰਖੈ ਗੁਮਾਨੁ ॥तब आपस ऊपरि रखै गुमानु ॥वह अपने ऊपर बड़ा घमण्ड करती है। ਜਬ ਉਸ ਕਉ ਕੋਈ ਮਨਿ ਪਰਹਰੈ ॥जब उस कउ कोई मनि परहरै ॥जब कोई उसे अपने मन

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ਸਹਜ ਸਮਾਧਿ ਧੁਨਿ ਗਹਿਰ ਗੰਭੀਰਾ ॥सहज समाधि धुनि गहिर ग्मभीरा ॥वह सहज समाधि में अनहद ध्वनि को सुनता है और गहनगंभीर होता है। ਸਦਾ ਮੁਕਤੁ ਤਾ ਕੇ ਪੂਰੇ ਕਾਮ ॥सदा मुकतु ता के पूरे काम ॥वह सदा बंधनों से मुक्त रहता है और उसके सभी कार्य पूर्ण हो जाते हैं, ਜਾ ਕੈ ਰਿਦੈ ਵਸੈ ਹਰਿ

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ਤ੍ਰਿਤੀਅ ਬਿਵਸਥਾ ਸਿੰਚੇ ਮਾਇ ॥त्रितीअ बिवसथा सिंचे माइ ॥अपनी उम्र की तीसरी अवस्था में वह धन-दौलत संचित करता रहता है और ਬਿਰਧਿ ਭਇਆ ਛੋਡਿ ਚਲਿਓ ਪਛੁਤਾਇ ॥੨॥बिरधि भइआ छोडि चलिओ पछुताइ ॥२॥जब वह बूढ़ा हो जाता है तो धन इत्यादि सबकुछ छोड़कर पछताता हुआ यहाँ से चला जाता है।॥ २॥ ਚਿਰੰਕਾਲ ਪਾਈ ਦ੍ਰੁਲਭ ਦੇਹ ॥चिरंकाल

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ਨਿਹਚਲ ਆਸਨੁ ਬੇਸੁਮਾਰੁ ॥੨॥निहचल आसनु बेसुमारु ॥२॥उस अटल स्थान की कीर्ति बेअंत है ॥२॥ ਡਿਗਿ ਨ ਡੋਲੈ ਕਤਹੂ ਨ ਧਾਵੈ ॥डिगि न डोलै कतहू न धावै ॥वह स्थान कभी गिरता एवं डोलता नहीं और ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਕੋ ਇਹੁ ਮਹਲੁ ਪਾਵੈ ॥गुर प्रसादि को इहु महलु पावै ॥गुरु की कृपा से ही कोई इस स्थान को

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ਮਨੁ ਕੀਨੋ ਦਹ ਦਿਸ ਬਿਸ੍ਰਾਮੁ ॥मनु कीनो दह दिस बिस्रामु ॥किन्तु तेरा मन दसों दिशाओं में भटकता रहता है। ਤਿਲਕੁ ਚਰਾਵੈ ਪਾਈ ਪਾਇ ॥तिलकु चरावै पाई पाइ ॥तू शालिग्राम को तिलक लगाता है और उसके चरण छूता है। ਲੋਕ ਪਚਾਰਾ ਅੰਧੁ ਕਮਾਇ ॥੨॥लोक पचारा अंधु कमाइ ॥२॥यह तू लोगों को प्रसन्न करने का अन्धा कार्य

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