ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਨ ਪਾਇਆ ਜਨਮੁ ਬਿਰਥਾ ਗਵਾਇਆ ਨਾਨਕ ਜਮੁ ਮਾਰਿ ਕਰੇ ਖੁਆਰ ॥੨॥
हरि नामु न पाइआ जनमु बिरथा गवाइआ नानक जमु मारि करे खुआर ॥२॥
हे नानक ! वे हरि के नाम को प्राप्त नहीं करते एवं अपना अनमोल जन्म व्यर्थ ही गंवा देते हैं, इसलिए यमदूत उन्हें दण्ड देकर अपमानित करता है॥ २ ॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी।
ਆਪਣਾ ਆਪੁ ਉਪਾਇਓਨੁ ਤਦਹੁ ਹੋਰੁ ਨ ਕੋਈ ॥
आपणा आपु उपाइओनु तदहु होरु न कोई ॥
जब परमात्मा ने अपने आपको उत्पन्न किया, तब दूसरा कोई नहीं था।
ਮਤਾ ਮਸੂਰਤਿ ਆਪਿ ਕਰੇ ਜੋ ਕਰੇ ਸੁ ਹੋਈ ॥
मता मसूरति आपि करे जो करे सु होई ॥
वह अपने आप से ही तब सलाह-मशवरा करता था। वह जो कुछ करता था, वही होता था।
ਤਦਹੁ ਆਕਾਸੁ ਨ ਪਾਤਾਲੁ ਹੈ ਨਾ ਤ੍ਰੈ ਲੋਈ ॥
तदहु आकासु न पातालु है ना त्रै लोई ॥
तब न ही आकाश था, न ही पाताल था और न ही तीन लोक थे।
ਤਦਹੁ ਆਪੇ ਆਪਿ ਨਿਰੰਕਾਰੁ ਹੈ ਨਾ ਓਪਤਿ ਹੋਈ ॥
तदहु आपे आपि निरंकारु है ना ओपति होई ॥
तब केवल निराकार प्रभु आप ही विद्यमान था और कोई उत्पत्ति नहीं हुई थी।
ਜਿਉ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਤਿਵੈ ਕਰੇ ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ॥੧॥
जिउ तिसु भावै तिवै करे तिसु बिनु अवरु न कोई ॥१॥
जैसे उसे अच्छा लगता था, वैसे ही वह करता था एवं उसके अलावा दूसरा कोई नहीं था ॥१॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੩ ॥
सलोकु मः ३ ॥
श्लोक महला ३ ॥
ਸਾਹਿਬੁ ਮੇਰਾ ਸਦਾ ਹੈ ਦਿਸੈ ਸਬਦੁ ਕਮਾਇ ॥
साहिबु मेरा सदा है दिसै सबदु कमाइ ॥
मेरा साहिब परमात्मा सदा अमर है लेकिन उसके दर्शन ‘शब्द’ की साधना से होते हैं।
ਓਹੁ ਅਉਹਾਣੀ ਕਦੇ ਨਾਹਿ ਨਾ ਆਵੈ ਨਾ ਜਾਇ ॥
ओहु अउहाणी कदे नाहि ना आवै ना जाइ ॥
वह अनश्वर है और जन्म-मरण के चक्र में नहीं आता (अर्थात् न ही जन्म लेता है और न ही मरता है।)
ਸਦਾ ਸਦਾ ਸੋ ਸੇਵੀਐ ਜੋ ਸਭ ਮਹਿ ਰਹੈ ਸਮਾਇ ॥
सदा सदा सो सेवीऐ जो सभ महि रहै समाइ ॥
सदैव ही उस प्रभु का सिमरन करना चाहिए जो प्रत्येक हृदय में समा रहा है।
ਅਵਰੁ ਦੂਜਾ ਕਿਉ ਸੇਵੀਐ ਜੰਮੈ ਤੈ ਮਰਿ ਜਾਇ ॥
अवरु दूजा किउ सेवीऐ जमै तै मरि जाइ ॥
किसी दूसरे की क्यों सेवा-भक्ति करें ? जो जन्मता और मर जाता है।
ਨਿਹਫਲੁ ਤਿਨ ਕਾ ਜੀਵਿਆ ਜਿ ਖਸਮੁ ਨ ਜਾਣਹਿ ਆਪਣਾ ਅਵਰੀ ਕਉ ਚਿਤੁ ਲਾਇ ॥
निहफलु तिन का जीविआ जि खसमु न जाणहि आपणा अवरी कउ चितु लाइ ॥
उनका जीवन निष्फल है जो अपने मालिक-प्रभु को नहीं जानते तथा अपना चित्त दूसरों में लगाते हैं।
ਨਾਨਕ ਏਵ ਨ ਜਾਪਈ ਕਰਤਾ ਕੇਤੀ ਦੇਇ ਸਜਾਇ ॥੧॥
नानक एव न जापई करता केती देइ सजाइ ॥१॥
हे नानक ! इस बात का अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता कि विश्व का रचयिता उन्हें कितनी सजा देगा ? ॥ १॥
ਮਃ ੩ ॥
मः ३ ॥
महला ३ ॥
ਸਚਾ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈਐ ਸਭੋ ਵਰਤੈ ਸਚੁ ॥
सचा नामु धिआईऐ सभो वरतै सचु ॥
परमेश्वर सर्वव्यापक है, इसलिए उस परम-सत्य का नाम-सिमरन करना चाहिए।
ਨਾਨਕ ਹੁਕਮੁ ਬੁਝਿ ਪਰਵਾਣੁ ਹੋਇ ਤਾ ਫਲੁ ਪਾਵੈ ਸਚੁ ॥
नानक हुकमु बुझि परवाणु होइ ता फलु पावै सचु ॥
हे नानक ! प्रभु का हुक्म समझने से मनुष्य उसके दरबार में स्वीकार हो जाता है और तब उसे सत्य रूपी फल मिल जाता है।
ਕਥਨੀ ਬਦਨੀ ਕਰਤਾ ਫਿਰੈ ਹੁਕਮੈ ਮੂਲਿ ਨ ਬੁਝਈ ਅੰਧਾ ਕਚੁ ਨਿਕਚੁ ॥੨॥
कथनी बदनी करता फिरै हुकमै मूलि न बुझई अंधा कचु निकचु ॥२॥
किन्तु जो लोग निरर्थक बातें ही करते रहते हैं, प्रभु के मूल हुक्म को नहीं बूझते, वे ज्ञानहीन हैं तथा झूठी बातें ही करने वाले हैं।॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਸੰਜੋਗੁ ਵਿਜੋਗੁ ਉਪਾਇਓਨੁ ਸ੍ਰਿਸਟੀ ਕਾ ਮੂਲੁ ਰਚਾਇਆ ॥
संजोगु विजोगु उपाइओनु स्रिसटी का मूलु रचाइआ ॥
परमात्मा ने संयोग एवं वियोग का नियम बनाकर सृष्टि के मूल सिद्धांत की सृजना कर दी।
ਹੁਕਮੀ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਸਾਜੀਅਨੁ ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਮਿਲਾਇਆ ॥
हुकमी स्रिसटि साजीअनु जोती जोति मिलाइआ ॥
अपने हुक्म-अनुसार उसने सृष्टि की रचना की और जीवों में अपनी ज्योति प्रज्वलित कर दी।
ਜੋਤੀ ਹੂੰ ਸਭੁ ਚਾਨਣਾ ਸਤਿਗੁਰਿ ਸਬਦੁ ਸੁਣਾਇਆ ॥
जोती हूं सभु चानणा सतिगुरि सबदु सुणाइआ ॥
सच्चे गुरु ने यह शब्द सुनाया है कि ज्योति स्वरूप प्रभु की ज्योति से ही सारा प्रकाश उत्पन्न होता है।
ਬ੍ਰਹਮਾ ਬਿਸਨੁ ਮਹੇਸੁ ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਸਿਰਿ ਧੰਧੈ ਲਾਇਆ ॥
ब्रहमा बिसनु महेसु त्रै गुण सिरि धंधै लाइआ ॥
परमात्मा ने ब्रह्मा, विष्णु एवं शिवजी की उत्पत्ति करके उन्हें त्रिगुणात्मक-(सतोगुण, रजोगुण एवं तमोगुण) कार्यों में लगा दिया।
ਮਾਇਆ ਕਾ ਮੂਲੁ ਰਚਾਇਓਨੁ ਤੁਰੀਆ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥੨॥
माइआ का मूलु रचाइओनु तुरीआ सुखु पाइआ ॥२॥
प्रभु ने संयोग-वियोग रूपी माया का मूल रच दिया है। इस माया में रहकर ही मनुष्य ने तुरीयावस्था में पहुँचकर सुख प्राप्त किया है॥ २॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੩ ॥
सलोकु मः ३ ॥
श्लोक महला ३॥
ਸੋ ਜਪੁ ਸੋ ਤਪੁ ਜਿ ਸਤਿਗੁਰ ਭਾਵੈ ॥
सो जपु सो तपु जि सतिगुर भावै ॥
जो सच्चे गुरु को अच्छा लगता है, वही जप एवं वहीं तप है।
ਸਤਿਗੁਰ ਕੈ ਭਾਣੈ ਵਡਿਆਈ ਪਾਵੈ ॥
सतिगुर कै भाणै वडिआई पावै ॥
सतिगुरु की रज़ा अनुसार अनुसरण करने से जीव मान-सम्मान प्राप्त करता है।
ਨਾਨਕ ਆਪੁ ਛੋਡਿ ਗੁਰ ਮਾਹਿ ਸਮਾਵੈ ॥੧॥
नानक आपु छोडि गुर माहि समावै ॥१॥
हे नानक ! वह अभिमान को छोड़कर गुरु में ही समा जाता है।॥ १॥
ਮਃ ੩ ॥
मः ३ ॥
महला ३॥
ਗੁਰ ਕੀ ਸਿਖ ਕੋ ਵਿਰਲਾ ਲੇਵੈ ॥
गुर की सिख को विरला लेवै ॥
गुरु की शिक्षा कोई विरला जीव ही ग्रहण करता है।
ਨਾਨਕ ਜਿਸੁ ਆਪਿ ਵਡਿਆਈ ਦੇਵੈ ॥੨॥
नानक जिसु आपि वडिआई देवै ॥२॥
हे नानक ! गुरु-शिक्षा उसे ही प्राप्त होती है, जिसे प्रभु आप बड़ाई देता है॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥
ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਅਗਿਆਨੁ ਹੈ ਬਿਖਮੁ ਅਤਿ ਭਾਰੀ ॥
माइआ मोहु अगिआनु है बिखमु अति भारी ॥
माया-मोह तथा अज्ञान का सागर अत्यंत भारी एवं विषम है।
ਪਥਰ ਪਾਪ ਬਹੁ ਲਦਿਆ ਕਿਉ ਤਰੀਐ ਤਾਰੀ ॥
पथर पाप बहु लदिआ किउ तरीऐ तारी ॥
यदि जीवन की नैया पाप रूपी पत्थरों से अत्याधिक लदी हुई है तो यह संसार-सागर से कैसे पार होगी ?
ਅਨਦਿਨੁ ਭਗਤੀ ਰਤਿਆ ਹਰਿ ਪਾਰਿ ਉਤਾਰੀ ॥
अनदिनु भगती रतिआ हरि पारि उतारी ॥
लेकिन जो दिन-रात भक्ति में मग्न रहते हैं, हरि उन्हें संसार-सागर से पार कर देता है।
ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਮਨੁ ਨਿਰਮਲਾ ਹਉਮੈ ਛਡਿ ਵਿਕਾਰੀ ॥
गुर सबदी मनु निरमला हउमै छडि विकारी ॥
गुरु के शब्द द्वारा यदि मनुष्य अभिमान एवं विकारों को छोड़ देता है तो मन निर्मल हो जाता है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈਐ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਿਸਤਾਰੀ ॥੩॥
हरि हरि नामु धिआईऐ हरि हरि निसतारी ॥३॥
परमात्मा का नाम-सिमरन करते रहना चाहिए, क्योंकि परमात्मा का नाम उद्धार करने वाला है ॥३॥
ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
श्लोक ॥
ਕਬੀਰ ਮੁਕਤਿ ਦੁਆਰਾ ਸੰਕੁੜਾ ਰਾਈ ਦਸਵੈ ਭਾਇ ॥
कबीर मुकति दुआरा संकुड़ा राई दसवै भाइ ॥
हे कबीर ! मुक्ति का द्वार राई के दाने के दसवें भाग के समान संकुचित है।
ਮਨੁ ਤਉ ਮੈਗਲੁ ਹੋਇ ਰਹਾ ਨਿਕਸਿਆ ਕਿਉ ਕਰਿ ਜਾਇ ॥
मनु तउ मैगलु होइ रहा निकसिआ किउ करि जाइ ॥
यह मन मस्त हाथी बना हुआ है, फिर यह कैसे उस में से निकल सकता है ?
ਐਸਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਜੇ ਮਿਲੈ ਤੁਠਾ ਕਰੇ ਪਸਾਉ ॥
ऐसा सतिगुरु जे मिलै तुठा करे पसाउ ॥
यदि ऐसा सच्चा गुरु मिल जाए जो परम प्रसन्न होकर दया-दृष्टि कर दे तो
ਮੁਕਤਿ ਦੁਆਰਾ ਮੋਕਲਾ ਸਹਜੇ ਆਵਉ ਜਾਉ ॥੧॥
मुकति दुआरा मोकला सहजे आवउ जाउ ॥१॥
मुक्ति का द्वार बहुत खुला हो जाता है और सहज ही आया-जाया जा सकता है ॥१॥
ਮਃ ੩ ॥
मः ३ ॥
महला ३॥
ਨਾਨਕ ਮੁਕਤਿ ਦੁਆਰਾ ਅਤਿ ਨੀਕਾ ਨਾਨੑਾ ਹੋਇ ਸੁ ਜਾਇ ॥
नानक मुकति दुआरा अति नीका नान्हा होइ सु जाइ ॥
हे नानक ! मुक्ति का द्वार बहुत ही छोटा है परन्तु वही निकल सकता है जो बहुत छोटा अर्थात् विनीत हो जाए।
ਹਉਮੈ ਮਨੁ ਅਸਥੂਲੁ ਹੈ ਕਿਉ ਕਰਿ ਵਿਚੁ ਦੇ ਜਾਇ ॥
हउमै मनु असथूलु है किउ करि विचु दे जाइ ॥
अहंकार करने से मन अस्थूल हो गया है फिर यह कैसे इसमें से गुजर सकता है ?
ਸਤਿਗੁਰ ਮਿਲਿਐ ਹਉਮੈ ਗਈ ਜੋਤਿ ਰਹੀ ਸਭ ਆਇ ॥
सतिगुर मिलिऐ हउमै गई जोति रही सभ आइ ॥
सतिगुरु को मिलने से अहंकार दूर हो जाता है और प्रभु की ज्योति प्राणी के भीतर आ जाती है।