ਖਾਨ ਪਾਨ ਸੀਗਾਰ ਬਿਰਥੇ ਹਰਿ ਕੰਤ ਬਿਨੁ ਕਿਉ ਜੀਜੀਐ ॥
खान पान सीगार बिरथे हरि कंत बिनु किउ जीजीऐ ॥
मेरा खानपान तथा सभी श्रृंगार व्यर्थ हैं, अपने पति-प्रभु के बिना जीना असंभव है।
ਆਸਾ ਪਿਆਸੀ ਰੈਨਿ ਦਿਨੀਅਰੁ ਰਹਿ ਨ ਸਕੀਐ ਇਕੁ ਤਿਲੈ ॥
आसा पिआसी रैनि दिनीअरु रहि न सकीऐ इकु तिलै ॥
मैं रात-दिन उसके दर्शनों की आशा में प्यासी रहती हूँ, उसके बिना मैं क्षण भर के लिए भी नहीं रह सकती।
ਨਾਨਕੁ ਪਇਅੰਪੈ ਸੰਤ ਦਾਸੀ ਤਉ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਮੇਰਾ ਪਿਰੁ ਮਿਲੈ ॥੨॥
नानकु पइअ्मपै संत दासी तउ प्रसादि मेरा पिरु मिलै ॥२॥
नानक प्रार्थना करता है कि हे संत जनो ! मैं आपकी दासी हूँ, मेरा प्रियतम-प्रभु आपकी कृपा से ही मिल सकता है॥ २॥
ਸੇਜ ਏਕ ਪ੍ਰਿਉ ਸੰਗਿ ਦਰਸੁ ਨ ਪਾਈਐ ਰਾਮ ॥
सेज एक प्रिउ संगि दरसु न पाईऐ राम ॥
अपने प्रिय प्रभु के साथ ही मेरी सेज है किन्तु फिर भी उनके दर्शनों की प्राप्ति नहीं होती।
ਅਵਗਨ ਮੋਹਿ ਅਨੇਕ ਕਤ ਮਹਲਿ ਬੁਲਾਈਐ ਰਾਮ ॥
अवगन मोहि अनेक कत महलि बुलाईऐ राम ॥
मुझमें अनेक अवगुण विद्यमान हैं, जिसके फलस्वरूप मेरा पति-प्रभु अपने दरबार में कैसे आमंत्रित कर सकता है ?
ਨਿਰਗੁਨਿ ਨਿਮਾਣੀ ਅਨਾਥਿ ਬਿਨਵੈ ਮਿਲਹੁ ਪ੍ਰਭ ਕਿਰਪਾ ਨਿਧੇ ॥
निरगुनि निमाणी अनाथि बिनवै मिलहु प्रभ किरपा निधे ॥
निर्गुण, विनीत तथा अनाथ जीवात्मा विनती करती है कि हे कृपानिधि ! मुझे दर्शन देकर कृतार्थ कीजिए।
ਭ੍ਰਮ ਭੀਤਿ ਖੋਈਐ ਸਹਜਿ ਸੋਈਐ ਪ੍ਰਭ ਪਲਕ ਪੇਖਤ ਨਵ ਨਿਧੇ ॥
भ्रम भीति खोईऐ सहजि सोईऐ प्रभ पलक पेखत नव निधे ॥
एक पल भर के लिए भी नवनिधि के स्वामी प्रभु के दर्शन करने से भ्रम की दीवार ध्वस्त हो जाती है और मैं सहज सुख में सोती हूँ।
ਗ੍ਰਿਹਿ ਲਾਲੁ ਆਵੈ ਮਹਲੁ ਪਾਵੈ ਮਿਲਿ ਸੰਗਿ ਮੰਗਲੁ ਗਾਈਐ ॥
ग्रिहि लालु आवै महलु पावै मिलि संगि मंगलु गाईऐ ॥
यदि मेरा प्रियतम प्रभु मेरे हृदय-घर में आ जाए तो वहाँ टिक कर मैं उसके साथ मिलकर मंगल गीत गायन करूँगी।
ਨਾਨਕੁ ਪਇਅੰਪੈ ਸੰਤ ਸਰਣੀ ਮੋਹਿ ਦਰਸੁ ਦਿਖਾਈਐ ॥੩॥
नानकु पइअ्मपै संत सरणी मोहि दरसु दिखाईऐ ॥३॥
नानक संतों के चरण छूता है और उनकी शरण में पड़ता है, हे संतजनो ! मुझे प्रभु के दर्शन करा दो ॥ ३॥
ਸੰਤਨ ਕੈ ਪਰਸਾਦਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ਰਾਮ ॥
संतन कै परसादि हरि हरि पाइआ राम ॥
संतजनों की अपार कृपा से मैंने भगवान को पा लिया है।
ਇਛ ਪੁੰਨੀ ਮਨਿ ਸਾਂਤਿ ਤਪਤਿ ਬੁਝਾਇਆ ਰਾਮ ॥
इछ पुंनी मनि सांति तपति बुझाइआ राम ॥
मेरी इच्छा पूर्ण हो गई है, मन को शांति मिलने से तृष्णा की जलन बुझ गई है।
ਸਫਲਾ ਸੁ ਦਿਨਸ ਰੈਣੇ ਸੁਹਾਵੀ ਅਨਦ ਮੰਗਲ ਰਸੁ ਘਨਾ ॥
सफला सु दिनस रैणे सुहावी अनद मंगल रसु घना ॥
वह दिन बड़ा शुभ है, वह रात भी सुहावनी है, आनंद, मंगल तथा हर्षोल्लास अधिकतर है,
ਪ੍ਰਗਟੇ ਗੁਪਾਲ ਗੋਬਿੰਦ ਲਾਲਨ ਕਵਨ ਰਸਨਾ ਗੁਣ ਭਨਾ ॥
प्रगटे गुपाल गोबिंद लालन कवन रसना गुण भना ॥
जब प्रियतम गोपाल गोबिन्द मेरे हृदय में प्रगट हुआ है, किस रसना से मैं उसके गुणों का उच्चारण कर सकती हूँ?
ਭ੍ਰਮ ਲੋਭ ਮੋਹ ਬਿਕਾਰ ਥਾਕੇ ਮਿਲਿ ਸਖੀ ਮੰਗਲੁ ਗਾਇਆ ॥
भ्रम लोभ मोह बिकार थाके मिलि सखी मंगलु गाइआ ॥
मेरा भ्रम, लोभ, मोह तथा विकार नष्ट हो गए हैं तथा अपनी ज्ञानेन्द्रियाँ रूपी सखियों के साथ मिलकर मंगल गीत गाती हूँ।
ਨਾਨਕੁ ਪਇਅੰਪੈ ਸੰਤ ਜੰਪੈ ਜਿਨਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਸੰਜੋਗਿ ਮਿਲਾਇਆ ॥੪॥੨॥
नानकु पइअ्मपै संत ज्मपै जिनि हरि हरि संजोगि मिलाइआ ॥४॥२॥
नानक उन संतों के चरणों में पड़ता है और उनके समक्ष प्रार्थना करता है, जिन्होंने संयोग बनाकर उसे भगवान से मिला दिया है ॥४॥२॥
ਬਿਹਾਗੜਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिहागड़ा महला ५ ॥
बिहागड़ा महला ५ ॥
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਗੁਰ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਪੂਰੇ ਅਨਦਿਨੁ ਨਾਮੁ ਵਖਾਣਾ ਰਾਮ ॥
करि किरपा गुर पारब्रहम पूरे अनदिनु नामु वखाणा राम ॥
हे मेरे पूर्ण गुरु परब्रह्म ! मुझ पर ऐसी कृपा करो ताकि रात-दिन तेरा नाम ही याद करता रहूँ।
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬਾਣੀ ਉਚਰਾ ਹਰਿ ਜਸੁ ਮਿਠਾ ਲਾਗੈ ਤੇਰਾ ਭਾਣਾ ਰਾਮ ॥
अम्रित बाणी उचरा हरि जसु मिठा लागै तेरा भाणा राम ॥
मैं अमृत वाणी उच्चरित करूँ और हरि-यश द्वारा तेरी रज़ा मुझे मीठी लगे।
ਕਰਿ ਦਇਆ ਮਇਆ ਗੋਪਾਲ ਗੋਬਿੰਦ ਕੋਇ ਨਾਹੀ ਤੁਝ ਬਿਨਾ ॥
करि दइआ मइआ गोपाल गोबिंद कोइ नाही तुझ बिना ॥
हे गोपाल गोबिन्द ! मुझ पर दया एवं कृपा करो, क्योंकि तेरे बिना मेरा कोई भी आधार नहीं।
ਸਮਰਥ ਅਗਥ ਅਪਾਰ ਪੂਰਨ ਜੀਉ ਤਨੁ ਧਨੁ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਮਨਾ ॥
समरथ अगथ अपार पूरन जीउ तनु धनु तुम्ह मना ॥
हे सर्वशक्तिमान, अकथनीय, अपार तथा सर्वव्यापक परमेश्वर ! मेरे प्राण, तन, धन एवं मन सभी तेरे ही दिए हैं।
ਮੂਰਖ ਮੁਗਧ ਅਨਾਥ ਚੰਚਲ ਬਲਹੀਨ ਨੀਚ ਅਜਾਣਾ ॥
मूरख मुगध अनाथ चंचल बलहीन नीच अजाणा ॥
मैं मूर्ख, विमूढ़, अनाथ, चंचल, बलहीन, तुच्छ तथा नासमझ जीव हूँ।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਸਰਣਿ ਤੇਰੀ ਰਖਿ ਲੇਹੁ ਆਵਣ ਜਾਣਾ ॥੧॥
बिनवंति नानक सरणि तेरी रखि लेहु आवण जाणा ॥१॥
नानक प्रार्थना करते हैं कि हे परमेश्वर ! मैंने तेरी ही शरण ली है, मेरी जन्म-मरण के चक्र से रक्षा करो ॥ १॥
ਸਾਧਹ ਸਰਣੀ ਪਾਈਐ ਹਰਿ ਜੀਉ ਗੁਣ ਗਾਵਹ ਹਰਿ ਨੀਤਾ ਰਾਮ ॥
साधह सरणी पाईऐ हरि जीउ गुण गावह हरि नीता राम ॥
साधुओं की शरण में आने से परमेश्वर की लब्धि हो जाती है, जहाँ नित्य ही परमेश्वर का गुणगान किया जाता है।
ਧੂਰਿ ਭਗਤਨ ਕੀ ਮਨਿ ਤਨਿ ਲਗਉ ਹਰਿ ਜੀਉ ਸਭ ਪਤਿਤ ਪੁਨੀਤਾ ਰਾਮ ॥
धूरि भगतन की मनि तनि लगउ हरि जीउ सभ पतित पुनीता राम ॥
हे पूज्य परमेश्वर ! यदि तेरे भक्तों की चरण-धूलि मन एवं तन को लग जाए तो सभी पतित जीव पावन हो जाते हैं।
ਪਤਿਤਾ ਪੁਨੀਤਾ ਹੋਹਿ ਤਿਨੑ ਸੰਗਿ ਜਿਨੑ ਬਿਧਾਤਾ ਪਾਇਆ ॥
पतिता पुनीता होहि तिन्ह संगि जिन्ह बिधाता पाइआ ॥
जिन्होंने अपने विधाता को प्राप्त कर लिया है, उनकी संगति करने से पतित व्यक्ति पावन हो जाते हैं।
ਨਾਮ ਰਾਤੇ ਜੀਅ ਦਾਤੇ ਨਿਤ ਦੇਹਿ ਚੜਹਿ ਸਵਾਇਆ ॥
नाम राते जीअ दाते नित देहि चड़हि सवाइआ ॥
परमेश्वर के नाम में अनुरक्त हुए वे भक्तजन जीवों को नित्य ही आध्यात्मिक दान देते रहते हैं और उनका दान प्रतिदिन बढ़ता रहता है।
ਰਿਧਿ ਸਿਧਿ ਨਵ ਨਿਧਿ ਹਰਿ ਜਪਿ ਜਿਨੀ ਆਤਮੁ ਜੀਤਾ ॥
रिधि सिधि नव निधि हरि जपि जिनी आतमु जीता ॥
जो प्राणी हरि नाम का जाप करते हुए अपने मन को जीत लेते हैं, उन्हें ऋद्धियाँ-सिद्धियाँ एवं नवनिधियों मिल जाती हैं।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕੁ ਵਡਭਾਗਿ ਪਾਈਅਹਿ ਸਾਧ ਸਾਜਨ ਮੀਤਾ ॥੨॥
बिनवंति नानकु वडभागि पाईअहि साध साजन मीता ॥२॥
नानक प्रार्थना करते हैं कि अहोभाग्य से ही साधु रूपी साजन तथा मित्र मिलते हैं।॥ २॥
ਜਿਨੀ ਸਚੁ ਵਣੰਜਿਆ ਹਰਿ ਜੀਉ ਸੇ ਪੂਰੇ ਸਾਹਾ ਰਾਮ ॥
जिनी सचु वणंजिआ हरि जीउ से पूरे साहा राम ॥
हे प्रभु जी ! जो तेरे सत्य-नाम का व्यापार करते हैं, वही पूर्ण साहूकार हैं।
ਬਹੁਤੁ ਖਜਾਨਾ ਤਿੰਨ ਪਹਿ ਹਰਿ ਜੀਉ ਹਰਿ ਕੀਰਤਨੁ ਲਾਹਾ ਰਾਮ ॥
बहुतु खजाना तिंन पहि हरि जीउ हरि कीरतनु लाहा राम ॥
हे श्रीहरि ! उनके पास तेरे नाम का अपार खजाना है और वे हरि-कीर्तन का लाभ प्राप्त करते हैं।
ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਨ ਲੋਭੁ ਬਿਆਪੈ ਜੋ ਜਨ ਪ੍ਰਭ ਸਿਉ ਰਾਤਿਆ ॥
कामु क्रोधु न लोभु बिआपै जो जन प्रभ सिउ रातिआ ॥
जो व्यक्ति प्रभु के प्रेम-रंग में अनुरक्त हुए हैं, वे काम, क्रोध तथा लोभ से दूर ही रहते हैं।
ਏਕੁ ਜਾਨਹਿ ਏਕੁ ਮਾਨਹਿ ਰਾਮ ਕੈ ਰੰਗਿ ਮਾਤਿਆ ॥
एकु जानहि एकु मानहि राम कै रंगि मातिआ ॥
वे केवल एक परमेश्वर को ही जानते हैं, उस एक पर ही आस्था धारण करते हैं और उसके रंग में मग्न रहते हैं।
ਲਗਿ ਸੰਤ ਚਰਣੀ ਪੜੇ ਸਰਣੀ ਮਨਿ ਤਿਨਾ ਓਮਾਹਾ ॥
लगि संत चरणी पड़े सरणी मनि तिना ओमाहा ॥
वे संतों के चरण-स्पर्श करते हैं, उनकी शरण लेते हैं तथा उनके मन में उमंग होती है।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕੁ ਜਿਨ ਨਾਮੁ ਪਲੈ ਸੇਈ ਸਚੇ ਸਾਹਾ ॥੩॥
बिनवंति नानकु जिन नामु पलै सेई सचे साहा ॥३॥
नानक प्रार्थना करता है कि जिनके पास परमात्मा का नाम है, वही सच्चे साहूकार हैं।॥ ३॥
ਨਾਨਕ ਸੋਈ ਸਿਮਰੀਐ ਹਰਿ ਜੀਉ ਜਾ ਕੀ ਕਲ ਧਾਰੀ ਰਾਮ ॥
नानक सोई सिमरीऐ हरि जीउ जा की कल धारी राम ॥
हे नानक ! उस पूज्य परमेश्वर की ही आराधना करनी चाहिए, जिसकी शक्ति समूचे जगत में क्रियाशील है।