Hindi Page 544

ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਨਹੁ ਨ ਵੀਸਰੈ ਹਰਿ ਜੀਉ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਮੁਰਾਰੀ ਰਾਮ ॥
गुरमुखि मनहु न वीसरै हरि जीउ करता पुरखु मुरारी राम ॥
गुरुमुख व्यक्ति अपने मन से जगत के रचयिता श्री हरि, मुरारि को विस्मृत नहीं करते।

ਦੂਖੁ ਰੋਗੁ ਨ ਭਉ ਬਿਆਪੈ ਜਿਨੑੀ ਹਰਿ ਹਰਿ ਧਿਆਇਆ ॥
दूखु रोगु न भउ बिआपै जिन्ही हरि हरि धिआइआ ॥
जिन्होंने परमेश्वर का ध्यान किया है, उन्हें कोई दुःख, रोग तथा भय नहीं लगता।

ਸੰਤ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਤਰੇ ਭਵਜਲੁ ਪੂਰਬਿ ਲਿਖਿਆ ਪਾਇਆ ॥
संत प्रसादि तरे भवजलु पूरबि लिखिआ पाइआ ॥
संतों की अपार कृपा से वे भयानक संसार-सागर से तर जाते हैं तथा जो उनके लिए परमात्मा ने प्रारम्भ से लिखा होता है, उन्हें प्राप्त हो जाता है।

ਵਜੀ ਵਧਾਈ ਮਨਿ ਸਾਂਤਿ ਆਈ ਮਿਲਿਆ ਪੁਰਖੁ ਅਪਾਰੀ ॥
वजी वधाई मनि सांति आई मिलिआ पुरखु अपारी ॥
अपार परमात्मा को मिलने से उन्हें शुभकामनाएं मिलती हैं तथा मन को शांति प्राप्त होती है।

ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕੁ ਸਿਮਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਇਛ ਪੁੰਨੀ ਹਮਾਰੀ ॥੪॥੩॥
बिनवंति नानकु सिमरि हरि हरि इछ पुंनी हमारी ॥४॥३॥
नानक विनती करते हैं कि भगवान की आराधना करने से हमारी मनोकामना पूरी हो गई है॥ ४॥ ३॥

ਬਿਹਾਗੜਾ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੨
बिहागड़ा महला ५ घरु २
बिहागड़ा महला ५ घरु २

ੴ ਸਤਿ ਨਾਮੁ ਗੁਰਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सति नामु गुरप्रसादि ॥
ੴ सति नामु गुर प्रसादि ॥

ਵਧੁ ਸੁਖੁ ਰੈਨੜੀਏ ਪ੍ਰਿਅ ਪ੍ਰੇਮੁ ਲਗਾ ॥
वधु सुखु रैनड़ीए प्रिअ प्रेमु लगा ॥
हे सुखदायिनी रात्रि ! तू बहुत लम्बी हो जा, चूंकि प्रिय प्रभु के संग मेरा अपार प्रेम लग चुका है।

ਘਟੁ ਦੁਖ ਨੀਦੜੀਏ ਪਰਸਉ ਸਦਾ ਪਗਾ ॥
घटु दुख नीदड़ीए परसउ सदा पगा ॥
हे दुखदायी निंद्रा ! तू छोटी हो जा ताकि मैं नित्य ही प्रभु चरणों में लीन रहूं।

ਪਗ ਧੂਰਿ ਬਾਂਛਉ ਸਦਾ ਜਾਚਉ ਨਾਮ ਰਸਿ ਬੈਰਾਗਨੀ ॥
पग धूरि बांछउ सदा जाचउ नाम रसि बैरागनी ॥
में सदा परमात्मा की चरण धूलि की कामना करती हूँ एवं उसके नाम दान की अभिलाषा करती हूँ, जिस हेतु मैं वैरागिन बनी हूँ।

ਪ੍ਰਿਅ ਰੰਗਿ ਰਾਤੀ ਸਹਜ ਮਾਤੀ ਮਹਾ ਦੁਰਮਤਿ ਤਿਆਗਨੀ ॥
प्रिअ रंगि राती सहज माती महा दुरमति तिआगनी ॥
अपने प्रिय प्रभु के प्रेम रंग में अनुरक्त होकर सहजता में मतवाली होकर मैंने महादुर्गति त्याग दी है।

ਗਹਿ ਭੁਜਾ ਲੀਨੑੀ ਪ੍ਰੇਮ ਭੀਨੀ ਮਿਲਨੁ ਪ੍ਰੀਤਮ ਸਚ ਮਗਾ ॥
गहि भुजा लीन्ही प्रेम भीनी मिलनु प्रीतम सच मगा ॥
मुझ प्रेम-रस में भीगी हुई की भुजा प्रिय प्रभु ने पकड़ ली है और प्रियतम का मिलन ही सच्चा-मार्ग है।

ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਧਾਰਿ ਕਿਰਪਾ ਰਹਉ ਚਰਣਹ ਸੰਗਿ ਲਗਾ ॥੧॥
बिनवंति नानक धारि किरपा रहउ चरणह संगि लगा ॥१॥
नानक विनय करता है कि हे ईश्वर ! मुझ पर अपनी कृपा धारण करो ताकि मैं तेरे चरणों के संग सदैव लगा रहूं ॥ १ ॥

ਮੇਰੀ ਸਖੀ ਸਹੇਲੜੀਹੋ ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਚਰਣਿ ਲਗਹ ॥
मेरी सखी सहेलड़ीहो प्रभ कै चरणि लगह ॥
हे मेरी सखी-सहेलियों ! आओ, हम मिलकर हरि परमात्मा के चरणों में लीन रहें।

ਮਨਿ ਪ੍ਰਿਅ ਪ੍ਰੇਮੁ ਘਣਾ ਹਰਿ ਕੀ ਭਗਤਿ ਮੰਗਹ ॥
मनि प्रिअ प्रेमु घणा हरि की भगति मंगह ॥
मन में प्रियतम प्रभु हेतु अत्यंत प्रेम है, आओ, हम मिलकर हरि की भक्ति की कामना करें।

ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਪਾਈਐ ਪ੍ਰਭੁ ਧਿਆਈਐ ਜਾਇ ਮਿਲੀਐ ਹਰਿ ਜਨਾ ॥
हरि भगति पाईऐ प्रभु धिआईऐ जाइ मिलीऐ हरि जना ॥
हरि-भक्ति प्राप्त करके प्रभु का ध्यान करें और जाकर भक्तों से मिलें।

ਮਾਨੁ ਮੋਹੁ ਬਿਕਾਰੁ ਤਜੀਐ ਅਰਪਿ ਤਨੁ ਧਨੁ ਇਹੁ ਮਨਾ ॥
मानु मोहु बिकारु तजीऐ अरपि तनु धनु इहु मना ॥
आओ, हम मान, मोह, एवं विकारो को छोड़कर अपना यह तन, मन धन परमात्मा को अर्पित कर दें।

ਬਡ ਪੁਰਖ ਪੂਰਨ ਗੁਣ ਸੰਪੂਰਨ ਭ੍ਰਮ ਭੀਤਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਮਿਲਿ ਭਗਹ ॥
बड पुरख पूरन गुण स्मपूरन भ्रम भीति हरि हरि मिलि भगह ॥
परमेश्वर बड़ा महान, सर्वशक्तिमान सर्वव्यापक तथा सर्वगुणसम्पनं है, जिसे मिलने से भृम की दीवार ध्वस्त हो जाती है।

ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਸੁਣਿ ਮੰਤ੍ਰੁ ਸਖੀਏ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਨਿਤ ਨਿਤ ਨਿਤ ਜਪਹ ॥੨॥
बिनवंति नानक सुणि मंत्रु सखीए हरि नामु नित नित नित जपह ॥२॥
नानक विनय करता है की हे सखियों ! मेरा उपदेश ध्यानपूर्वक सुनो, हमने नित्य निशदिन ही हरि-नाम का जप करते रहना है।२ ॥

ਹਰਿ ਨਾਰਿ ਸੁਹਾਗਣੇ ਸਭਿ ਰੰਗ ਮਾਣੇ ॥
हरि नारि सुहागणे सभि रंग माणे ॥
हरि की पत्नी सदैव ही सुहागिन रहती है, वह सर्व प्रकार से ऐश्वर्य-सुख भोगती है।

ਰਾਂਡ ਨ ਬੈਸਈ ਪ੍ਰਭ ਪੁਰਖ ਚਿਰਾਣੇ ॥
रांड न बैसई प्रभ पुरख चिराणे ॥
वह कभी विधवा होकर नहीं बैठती चूंकि उसका स्वामी प्रभु चिरजीवी है।

ਨਹ ਦੂਖ ਪਾਵੈ ਪ੍ਰਭ ਧਿਆਵੈ ਧੰਨਿ ਤੇ ਬਡਭਾਗੀਆ ॥
नह दूख पावै प्रभ धिआवै धंनि ते बडभागीआ ॥
वह पति प्रभु को याद करती रहती है और कोई भी दु:ख प्राप्त नहीं करती, ऐसी जीव-स्त्री धन्य एवं भाग्यशाली है।

ਸੁਖ ਸਹਜਿ ਸੋਵਹਿ ਕਿਲਬਿਖ ਖੋਵਹਿ ਨਾਮ ਰਸਿ ਰੰਗਿ ਜਾਗੀਆ ॥
सुख सहजि सोवहि किलबिख खोवहि नाम रसि रंगि जागीआ ॥
वह सहज सुख में विश्राम करती है और उसके तमाम दु:ख-क्लेश नष्ट हो जाते हैं, वह तो नाम रस में रंगकर जागती है।

ਮਿਲਿ ਪ੍ਰੇਮ ਰਹਣਾ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਗਹਣਾ ਪ੍ਰਿਅ ਬਚਨ ਮੀਠੇ ਭਾਣੇ ॥
मिलि प्रेम रहणा हरि नामु गहणा प्रिअ बचन मीठे भाणे ॥
यह उसके प्रेम में लीन रहती है और हरि का नाम उसका अमूल्य आभूषण है, प्रियतम प्रभु के वचन उसे बड़े मीठे तथा भले लगते हैं।

ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਮਨ ਇਛ ਪਾਈ ਹਰਿ ਮਿਲੇ ਪੁਰਖ ਚਿਰਾਣੇ ॥੩॥
बिनवंति नानक मन इछ पाई हरि मिले पुरख चिराणे ॥३॥
नानक प्रार्थना करता है कि मेरी मनोकामना पूर्ण हो गई है, क्योंकि मुझे चिरजीवी पति-परमेश्वर मिल गया है ।३ ।

ਤਿਤੁ ਗ੍ਰਿਹਿ ਸੋਹਿਲੜੇ ਕੋਡ ਅਨੰਦਾ ॥
तितु ग्रिहि सोहिलड़े कोड अनंदा ॥
उस घर हृदय में बड़े मंगल गीत, कौतुक तथा आनंद उल्लास हैं,

ਮਨਿ ਤਨਿ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਪ੍ਰਭ ਪਰਮਾਨੰਦਾ ॥
मनि तनि रवि रहिआ प्रभ परमानंदा ॥
जिस मन, तन में परमानंद प्रभु निवास करता है।

ਹਰਿ ਕੰਤ ਅਨੰਤ ਦਇਆਲ ਸ੍ਰੀਧਰ ਗੋਬਿੰਦ ਪਤਿਤ ਉਧਾਰਣੋ ॥
हरि कंत अनंत दइआल स्रीधर गोबिंद पतित उधारणो ॥
मेरा हरि-कांत अनंत दयालु है, हे श्रीधर ! हे गोविन्द! तू पतित जीवों का उद्धार करने वाला है।

ਪ੍ਰਭਿ ਕ੍ਰਿਪਾ ਧਾਰੀ ਹਰਿ ਮੁਰਾਰੀ ਭੈ ਸਿੰਧੁ ਸਾਗਰ ਤਾਰਣੋ ॥
प्रभि क्रिपा धारी हरि मुरारी भै सिंधु सागर तारणो ॥
प्रभु सब पर कृपा करने वाला है और वह हरि मुरारी भयानक संसार सागर से जीवों को पार करने वाला है।

ਜੋ ਸਰਣਿ ਆਵੈ ਤਿਸੁ ਕੰਠਿ ਲਾਵੈ ਇਹੁ ਬਿਰਦੁ ਸੁਆਮੀ ਸੰਦਾ ॥
जो सरणि आवै तिसु कंठि लावै इहु बिरदु सुआमी संदा ॥
यह उस स्वामी का विरद है कि जो कोई भी उसकी शरण में आता है, वह उसे अपने गले से लगा लेता है।

ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਕੰਤੁ ਮਿਲਿਆ ਸਦਾ ਕੇਲ ਕਰੰਦਾ ॥੪॥੧॥੪॥
बिनवंति नानक हरि कंतु मिलिआ सदा केल करंदा ॥४॥१॥४॥
नानक विनय करता है कि मेरा कांत (पति) हरि मुझे मिल गया है जो सदा ही आनंद-क्रीड़ा में क्रियाशील है ॥४॥१॥४॥

ਬਿਹਾਗੜਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिहागड़ा महला ५ ॥
बिहागड़ा महला ५ ॥

ਹਰਿ ਚਰਣ ਸਰੋਵਰ ਤਹ ਕਰਹੁ ਨਿਵਾਸੁ ਮਨਾ ॥
हरि चरण सरोवर तह करहु निवासु मना ॥
हे मेरे मन ! भगवान के चरण पावन सरोवर हैं, यहां पर अपना निवास करो।

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