ਹਉ ਮੁਠੜੀ ਧੰਧੈ ਧਾਵਣੀਆ ਪਿਰਿ ਛੋਡਿਅੜੀ ਵਿਧਣਕਾਰੇ ॥
हउ मुठड़ी धंधै धावणीआ पिरि छोडिअड़ी विधणकारे ॥
मैं ठगी हुई पत्नी सांसारिक कार्यों के पीछे भाग रही हूँ। मैं विधवा वाले अशुभ कर्म करती हूँ और पति ने मुझे त्याग दिया है।
ਘਰਿ ਘਰਿ ਕੰਤੁ ਮਹੇਲੀਆ ਰੂੜੈ ਹੇਤਿ ਪਿਆਰੇ ॥
घरि घरि कंतु महेलीआ रूड़ै हेति पिआरे ॥
प्रत्येक घर में पति-परमेश्वर की स्त्रियाँ हैं। सच्ची स्त्रियाँ अपने सुन्दर पति के साथ स्नेह एवं प्रेम करती है।
ਮੈ ਪਿਰੁ ਸਚੁ ਸਾਲਾਹਣਾ ਹਉ ਰਹਸਿਅੜੀ ਨਾਮਿ ਭਤਾਰੇ ॥੭॥
मै पिरु सचु सालाहणा हउ रहसिअड़ी नामि भतारे ॥७॥
मैं अपने सच्चे पति-परमेश्वर की महिमा-स्तुति करती हूँ और अपने स्वामी के नाम द्वारा ही प्रसन्न होती हूँ ॥७॥
ਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਵੇਸੁ ਪਲਟਿਆ ਸਾ ਧਨ ਸਚੁ ਸੀਗਾਰੋ ॥
गुरि मिलिऐ वेसु पलटिआ सा धन सचु सीगारो ॥
गुरु को मिलने से जीवात्मा की वेशभूषा बदल जाती है अर्थात् जीवन संवर जाता है और वह सत्य से अपने आपको श्रृंगार लेती है।
ਆਵਹੁ ਮਿਲਹੁ ਸਹੇਲੀਹੋ ਸਿਮਰਹੁ ਸਿਰਜਣਹਾਰੋ ॥
आवहु मिलहु सहेलीहो सिमरहु सिरजणहारो ॥
हे मेरी सखियों ! आओ, हम मिलकर सृजनहार प्रभु को याद करें।
ਬਈਅਰਿ ਨਾਮਿ ਸੋੁਹਾਗਣੀ ਸਚੁ ਸਵਾਰਣਹਾਰੋ ॥
बईअरि नामि सोहागणी सचु सवारणहारो ॥
प्रभु-पति के नाम द्वारा जीव-स्त्री अपने स्वामी की सुहागिन बन जाती है और सत्यनाम उसको सुन्दर बनाने वाला है।
ਗਾਵਹੁ ਗੀਤੁ ਨ ਬਿਰਹੜਾ ਨਾਨਕ ਬ੍ਰਹਮ ਬੀਚਾਰੋ ॥੮॥੩॥
गावहु गीतु न बिरहड़ा नानक ब्रहम बीचारो ॥८॥३॥
इसलिए विरह के गीत मत गायन करो अपितु हे नानक ! ब्रह्म का चिन्तन करो।॥८॥३॥
ਵਡਹੰਸੁ ਮਹਲਾ ੧ ॥
वडहंसु महला १ ॥
वडहंसु महला १ ॥
ਜਿਨਿ ਜਗੁ ਸਿਰਜਿ ਸਮਾਇਆ ਸੋ ਸਾਹਿਬੁ ਕੁਦਰਤਿ ਜਾਣੋਵਾ ॥
जिनि जगु सिरजि समाइआ सो साहिबु कुदरति जाणोवा ॥
जो जगत की रचना करके स्वयं भी उसमें ही समाया हुआ है, वह मालिक अपनी कुदरत से ही जाना जाता है।
ਸਚੜਾ ਦੂਰਿ ਨ ਭਾਲੀਐ ਘਟਿ ਘਟਿ ਸਬਦੁ ਪਛਾਣੋਵਾ ॥
सचड़ा दूरि न भालीऐ घटि घटि सबदु पछाणोवा ॥
सत्यस्वरूप परमेश्वर को कहीं दूर नहीं खोजना चाहिए, क्योंकि वह तो प्रत्येक हृदय में विद्यमान है, इसलिए अपने हृदय में ही शब्द रूप में पहचानो।
ਸਚੁ ਸਬਦੁ ਪਛਾਣਹੁ ਦੂਰਿ ਨ ਜਾਣਹੁ ਜਿਨਿ ਏਹ ਰਚਨਾ ਰਾਚੀ ॥
सचु सबदु पछाणहु दूरि न जाणहु जिनि एह रचना राची ॥
जिसने यह सृष्टि-रचना की है, उसे सच्चे परमेश्वर को सच्चे शब्द द्वारा पहचानो एवं उसे दूर मत समझो।
ਨਾਮੁ ਧਿਆਏ ਤਾ ਸੁਖੁ ਪਾਏ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਪਿੜ ਕਾਚੀ ॥
नामु धिआए ता सुखु पाए बिनु नावै पिड़ काची ॥
जब मनुष्य परमात्मा के नाम का ध्यान-मनन करता है तो वह सुख प्राप्त करता है, अन्यथा नाम के बिना वह पराजित होने वाली जीवन खेल खेलता है।
ਜਿਨਿ ਥਾਪੀ ਬਿਧਿ ਜਾਣੈ ਸੋਈ ਕਿਆ ਕੋ ਕਹੈ ਵਖਾਣੋ ॥
जिनि थापी बिधि जाणै सोई किआ को कहै वखाणो ॥
जो सृष्टि की रचना करता है, वही इसे आधार देने की विधि जानता है। कोई क्या कथन एवं वर्णन कर सकता है।
ਜਿਨਿ ਜਗੁ ਥਾਪਿ ਵਤਾਇਆ ਜਾਲੋੁ ਸੋ ਸਾਹਿਬੁ ਪਰਵਾਣੋ ॥੧॥
जिनि जगु थापि वताइआ जालो सो साहिबु परवाणो ॥१॥
जिसने संसार की रचना करके उस पर मोह-माया का जाल डाला हुआ है, उसे ही अपना मालिक मानना चाहिए॥ १ ॥
ਬਾਬਾ ਆਇਆ ਹੈ ਉਠਿ ਚਲਣਾ ਅਧ ਪੰਧੈ ਹੈ ਸੰਸਾਰੋਵਾ ॥
बाबा आइआ है उठि चलणा अध पंधै है संसारोवा ॥
हे बाबा ! जो भी जीव दुनिया में आया है, उसने अवश्य ही उठकर चले जाना है। यह दुनिया एक बीच का आधा पड़ाव है अर्थात् जन्म-मरण का चक्र है।
ਸਿਰਿ ਸਿਰਿ ਸਚੜੈ ਲਿਖਿਆ ਦੁਖੁ ਸੁਖੁ ਪੁਰਬਿ ਵੀਚਾਰੋਵਾ ॥
सिरि सिरि सचड़ै लिखिआ दुखु सुखु पुरबि वीचारोवा ॥
जीवों के पूर्व जन्म के शुभाशुभ कर्मों का विचार करके परमात्मा उनके मस्तक पर दुःख-सुख की तकदीर लिख देता है।
ਦੁਖੁ ਸੁਖੁ ਦੀਆ ਜੇਹਾ ਕੀਆ ਸੋ ਨਿਬਹੈ ਜੀਅ ਨਾਲੇ ॥
दुखु सुखु दीआ जेहा कीआ सो निबहै जीअ नाले ॥
जीवों के किए हुए कर्मों के फलस्वरूप परमेश्वर दुःख-सुख प्रदान करता है और वे जीव के साथ रहते हैं।
ਜੇਹੇ ਕਰਮ ਕਰਾਏ ਕਰਤਾ ਦੂਜੀ ਕਾਰ ਨ ਭਾਲੇ ॥
जेहे करम कराए करता दूजी कार न भाले ॥
कर्ता-प्रभु जैसे कर्म जीवों से करवाता है, वह वैसे ही कर्म करते हैं और वे किसी अन्य कार्य की तलाश भी नहीं करते।
ਆਪਿ ਨਿਰਾਲਮੁ ਧੰਧੈ ਬਾਧੀ ਕਰਿ ਹੁਕਮੁ ਛਡਾਵਣਹਾਰੋ ॥
आपि निरालमु धंधै बाधी करि हुकमु छडावणहारो ॥
परमेश्वर स्वयं तो दुनिया से निर्लिप्त है किन्तु दुनिया मोह-माया के बंधनों में फँसी हुई है। अपने हुक्म अनुसार ही वह जीवों को मुक्ति प्रदान करता है।
ਅਜੁ ਕਲਿ ਕਰਦਿਆ ਕਾਲੁ ਬਿਆਪੈ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਵਿਕਾਰੋ ॥੨॥
अजु कलि करदिआ कालु बिआपै दूजै भाइ विकारो ॥२॥
जीव द्वैतभाव से जुड़कर पाप करता रहता है और परमात्मा के सिमरन को आज अथवा कल को करने का टालते-टालते आयु निकल जाती है और मृत्यु आकर घेर लेती है॥ २॥
ਜਮ ਮਾਰਗ ਪੰਥੁ ਨ ਸੁਝਈ ਉਝੜੁ ਅੰਧ ਗੁਬਾਰੋਵਾ ॥
जम मारग पंथु न सुझई उझड़ु अंध गुबारोवा ॥
मृत्यु का मार्ग बड़ा निर्जन एवं घोर अन्धेरे वाला है और जीव को मार्ग दिखाई नहीं देता।
ਨਾ ਜਲੁ ਲੇਫ ਤੁਲਾਈਆ ਨਾ ਭੋਜਨ ਪਰਕਾਰੋਵਾ ॥
ना जलु लेफ तुलाईआ ना भोजन परकारोवा ॥
वहाँ न तो जल मिलता है, न ही विश्राम के लिए ओढ़ने हेतु चादर एवं तोशक और न ही विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन पदार्थ खाने को मिलते हैं।
ਭੋਜਨ ਭਾਉ ਨ ਠੰਢਾ ਪਾਣੀ ਨਾ ਕਾਪੜੁ ਸੀਗਾਰੋ ॥
भोजन भाउ न ठंढा पाणी ना कापड़ु सीगारो ॥
वहाँ जीव को न ही भोजन, शीतल जल मिलता है और न ही वस्त्र एवं श्रृंगार पदार्थ मिलते हैं।
ਗਲਿ ਸੰਗਲੁ ਸਿਰਿ ਮਾਰੇ ਊਭੌ ਨਾ ਦੀਸੈ ਘਰ ਬਾਰੋ ॥
गलि संगलु सिरि मारे ऊभौ ना दीसै घर बारो ॥
वहाँ जीव की गर्दन जंजीर से जकड़ी जाती है, यमदूत सिर पर खड़ा होकर उसे मारता है और वहाँ कोई भी घर बार सुख का स्थान बचने के लिए नहीं मिलता।
ਇਬ ਕੇ ਰਾਹੇ ਜੰਮਨਿ ਨਾਹੀ ਪਛੁਤਾਣੇ ਸਿਰਿ ਭਾਰੋ ॥
इब के राहे जमनि नाही पछुताणे सिरि भारो ॥
इस मार्ग के बोए हुए बीज नहीं फलते अर्थात् सभी प्रयास व्यर्थ हो जाते हैं। जीव पापों का बोझ अपने सिर पर उठाकर पश्चाताप करता है।
ਬਿਨੁ ਸਾਚੇ ਕੋ ਬੇਲੀ ਨਾਹੀ ਸਾਚਾ ਏਹੁ ਬੀਚਾਰੋ ॥੩॥
बिनु साचे को बेली नाही साचा एहु बीचारो ॥३॥
केवल यही सच्चा विचार है कि सच्चे परमेश्वर के बिना मनुष्य का कोई भी सज्जन नहीं ॥ ३॥
ਬਾਬਾ ਰੋਵਹਿ ਰਵਹਿ ਸੁ ਜਾਣੀਅਹਿ ਮਿਲਿ ਰੋਵੈ ਗੁਣ ਸਾਰੇਵਾ ॥
बाबा रोवहि रवहि सु जाणीअहि मिलि रोवै गुण सारेवा ॥
हे बाबा ! वास्तव में वैरागी होकर वही रोते एवं विलाप करते समझे जाते हैं, जो मिलकर प्रभु का यशोगान करते हुए अक्षु बहाते हैं।
ਰੋਵੈ ਮਾਇਆ ਮੁਠੜੀ ਧੰਧੜਾ ਰੋਵਣਹਾਰੇਵਾ ॥
रोवै माइआ मुठड़ी धंधड़ा रोवणहारेवा ॥
मोह-माया के ठगे हुए एवं अपने सांसारिक कार्यों की खातिर रोने वाले रोते ही रहते हैं।
ਧੰਧਾ ਰੋਵੈ ਮੈਲੁ ਨ ਧੋਵੈ ਸੁਪਨੰਤਰੁ ਸੰਸਾਰੋ ॥
धंधा रोवै मैलु न धोवै सुपनंतरु संसारो ॥
वे सांसारिक कार्यों हेतु रोते हैं और अपनी विकारों की मैल को नहीं धोते। उन्हें यह नहीं पता कि यह संसार तो एक स्वप्न की भाँति है।
ਜਿਉ ਬਾਜੀਗਰੁ ਭਰਮੈ ਭੂਲੈ ਝੂਠਿ ਮੁਠੀ ਅਹੰਕਾਰੋ ॥
जिउ बाजीगरु भरमै भूलै झूठि मुठी अहंकारो ॥
जैसे बाजीगर भ्रम भरी खेल में भूल जाता है, वैसे ही मनुष्य झूठ एवं कपट के अहंकार में ग्रस्त हैं।
ਆਪੇ ਮਾਰਗਿ ਪਾਵਣਹਾਰਾ ਆਪੇ ਕਰਮ ਕਮਾਏ ॥
आपे मारगि पावणहारा आपे करम कमाए ॥
परमात्मा स्वयं ही सन्मार्ग प्रदान करता है और स्वयं ही कर्म कराने वाला है।
ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਰਾਖੇ ਨਾਨਕ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਏ ॥੪॥੪॥
नामि रते गुरि पूरै राखे नानक सहजि सुभाए ॥४॥४॥
हे नानक ! जो व्यक्ति परमात्मा के नाम में लीन रहते हैं, पूर्ण गुरु उनकी सहज-स्वभाव रक्षा करता है॥ ४॥ ४॥
ਵਡਹੰਸੁ ਮਹਲਾ ੧ ॥
वडहंसु महला १ ॥
वडहंसु महला १ ॥
ਬਾਬਾ ਆਇਆ ਹੈ ਉਠਿ ਚਲਣਾ ਇਹੁ ਜਗੁ ਝੂਠੁ ਪਸਾਰੋਵਾ ॥
बाबा आइआ है उठि चलणा इहु जगु झूठु पसारोवा ॥
हे बाबा ! जो कोई भी इस दुनिया में जन्म लेकर आया है, उसने एक दिन अवश्य ही यहाँ से चले जाना है, चूंकि यह क्षणभंगुर दुनिया तो झूठ का प्रसार है।
ਸਚਾ ਘਰੁ ਸਚੜੈ ਸੇਵੀਐ ਸਚੁ ਖਰਾ ਸਚਿਆਰੋਵਾ ॥
सचा घरु सचड़ै सेवीऐ सचु खरा सचिआरोवा ॥
सच्चे परमेश्वर की भक्ति करने से ही सच्चा घर मिलता है और सत्यवादी होने से सत्य मिल जाता है।
ਕੂੜਿ ਲਬਿ ਜਾਂ ਥਾਇ ਨ ਪਾਸੀ ਅਗੈ ਲਹੈ ਨ ਠਾਓ ॥
कूड़ि लबि जां थाइ न पासी अगै लहै न ठाओ ॥
झूठ एवं लालच के द्वारा मनुष्य स्वीकृत नहीं होता और उसे परलोक में भी शरण नहीं मिलती।
ਅੰਤਰਿ ਆਉ ਨ ਬੈਸਹੁ ਕਹੀਐ ਜਿਉ ਸੁੰਞੈ ਘਰਿ ਕਾਓ ॥
अंतरि आउ न बैसहु कहीऐ जिउ सुंञै घरि काओ ॥
उसे भीतर आने के लिए कोई नहीं कहता अर्थात् कोई भी उसका स्वागत नहीं करता: अपितु वह तो सूने घर में कौए की भाँति है।
ਜੰਮਣੁ ਮਰਣੁ ਵਡਾ ਵੇਛੋੜਾ ਬਿਨਸੈ ਜਗੁ ਸਬਾਏ ॥
जमणु मरणु वडा वेछोड़ा बिनसै जगु सबाए ॥
मनुष्य जन्म-मरण के चक्र में फँसकर प्रभु से लम्बे समय के लिए बिछुड़ जाता है। इसी तरह ही सारा संसार नष्ट हो रहा है।
ਲਬਿ ਧੰਧੈ ਮਾਇਆ ਜਗਤੁ ਭੁਲਾਇਆ ਕਾਲੁ ਖੜਾ ਰੂਆਏ ॥੧॥
लबि धंधै माइआ जगतु भुलाइआ कालु खड़ा रूआए ॥१॥
लालच में माया के प्रपंच ने जगत को भुलाया हुआ है और काल (मृत्यु) सिर-पर खड़ा होकर दुनिया को रुला रहा है॥ १॥