Hindi Page 596

ਬੰਨੁ ਬਦੀਆ ਕਰਿ ਧਾਵਣੀ ਤਾ ਕੋ ਆਖੈ ਧੰਨੁ ॥
बंनु बदीआ करि धावणी ता को आखै धंनु ॥
बुराइयों की रोकथाम को अपना उद्यम बना तो ही लोग तुझे धन्य कहेंगे।

ਨਾਨਕ ਵੇਖੈ ਨਦਰਿ ਕਰਿ ਚੜੈ ਚਵਗਣ ਵੰਨੁ ॥੪॥੨॥
नानक वेखै नदरि करि चड़ै चवगण वंनु ॥४॥२॥
हे नानक ! तब ही प्रभु तुझे कृपा-दृष्टि से देखेगा और तुझ पर चौगुना रूप रंग चढ़ जाएगा। ॥४॥२॥

ਸੋਰਠਿ ਮਃ ੧ ਚਉਤੁਕੇ ॥
सोरठि मः १ चउतुके ॥
सोरठि मः १ चउतुके ॥

ਮਾਇ ਬਾਪ ਕੋ ਬੇਟਾ ਨੀਕਾ ਸਸੁਰੈ ਚਤੁਰੁ ਜਵਾਈ ॥
माइ बाप को बेटा नीका ससुरै चतुरु जवाई ॥
माता-पिता को अपना बेटा एवं ससुर को अपना चतुर दामाद बहुत प्रिय है।

ਬਾਲ ਕੰਨਿਆ ਕੌ ਬਾਪੁ ਪਿਆਰਾ ਭਾਈ ਕੌ ਅਤਿ ਭਾਈ ॥
बाल कंनिआ कौ बापु पिआरा भाई कौ अति भाई ॥
बाल कन्या को अपना पिता बहुत प्यारा है तथा भाई को अपना भाई अच्छा लगता है।

ਹੁਕਮੁ ਭਇਆ ਬਾਹਰੁ ਘਰੁ ਛੋਡਿਆ ਖਿਨ ਮਹਿ ਭਈ ਪਰਾਈ ॥
हुकमु भइआ बाहरु घरु छोडिआ खिन महि भई पराई ॥
लेकिन परमात्मा का हुक्म होने पर (मृत्यु का निमंत्रण आने पर) प्राणी ने घर-बाहर हरेक को त्याग दिया और एक क्षण में ही सब कुछ पराया हो गया है।

ਨਾਮੁ ਦਾਨੁ ਇਸਨਾਨੁ ਨ ਮਨਮੁਖਿ ਤਿਤੁ ਤਨਿ ਧੂੜਿ ਧੁਮਾਈ ॥੧॥
नामु दानु इसनानु न मनमुखि तितु तनि धूड़ि धुमाई ॥१॥
मनमुख मनुष्य ने भगवान के नाम का सिमरन नहीं किया, न ही दान-पुण्य किया है, न ही स्नान को महत्व दिया है, जिसके फलस्वरूप उसका शरीर धूल में ही फिरता रहता है अर्थात् नष्ट ही होता रहता है॥ १ ॥

ਮਨੁ ਮਾਨਿਆ ਨਾਮੁ ਸਖਾਈ ॥
मनु मानिआ नामु सखाई ॥
मेरा मन भगवान के नाम को सहायक बनाकर सुखी हो गया है।

ਪਾਇ ਪਰਉ ਗੁਰ ਕੈ ਬਲਿਹਾਰੈ ਜਿਨਿ ਸਾਚੀ ਬੂਝ ਬੁਝਾਈ ॥ ਰਹਾਉ ॥
पाइ परउ गुर कै बलिहारै जिनि साची बूझ बुझाई ॥ रहाउ ॥
मैं उस गुरु के चरण छूकर उन पर कुर्बान जाता हूँ, जिसने मुझे सच्ची सूझ-सुमति दी है॥ रहाउ ॥

ਜਗ ਸਿਉ ਝੂਠ ਪ੍ਰੀਤਿ ਮਨੁ ਬੇਧਿਆ ਜਨ ਸਿਉ ਵਾਦੁ ਰਚਾਈ ॥
जग सिउ झूठ प्रीति मनु बेधिआ जन सिउ वादु रचाई ॥
मनमुख मनुष्य दुनिया के झूठे प्रेम से बंधा हुआ है और भक्तजनों के साथ वाद-विवाद में क्रियाशील रहता है।

ਮਾਇਆ ਮਗਨੁ ਅਹਿਨਿਸਿ ਮਗੁ ਜੋਹੈ ਨਾਮੁ ਨ ਲੇਵੈ ਮਰੈ ਬਿਖੁ ਖਾਈ ॥
माइआ मगनु अहिनिसि मगु जोहै नामु न लेवै मरै बिखु खाई ॥
माया में मग्न हुआ वह दिन-रात्रि केवल माया का मार्ग ही देखता रहता है तथा भगवान का नाम नहीं लेता और माया रूपी विष खाकर प्राण त्याग देता है।

ਗੰਧਣ ਵੈਣਿ ਰਤਾ ਹਿਤਕਾਰੀ ਸਬਦੈ ਸੁਰਤਿ ਨ ਆਈ ॥
गंधण वैणि रता हितकारी सबदै सुरति न आई ॥
वह अभद्र बातों में ही मस्त रहता है और हितकारी शब्द की ओर ध्यान नहीं लगाता।

ਰੰਗਿ ਨ ਰਾਤਾ ਰਸਿ ਨਹੀ ਬੇਧਿਆ ਮਨਮੁਖਿ ਪਤਿ ਗਵਾਈ ॥੨॥
रंगि न राता रसि नही बेधिआ मनमुखि पति गवाई ॥२॥
न ही वह भगवान के रंग में रंगा है, न ही वह नाम के रस से बिंधा गया है। इस तरह मनमुख अपनी इज्जत गंवा देता है। ॥२॥

ਸਾਧ ਸਭਾ ਮਹਿ ਸਹਜੁ ਨ ਚਾਖਿਆ ਜਿਹਬਾ ਰਸੁ ਨਹੀ ਰਾਈ ॥
साध सभा महि सहजु न चाखिआ जिहबा रसु नही राई ॥
साधुओं की सभा में वह सहजावस्था को नहीं चखता और उसकी जिव्हा में कण-मात्र भी मधुरता नहीं।

ਮਨੁ ਤਨੁ ਧਨੁ ਅਪੁਨਾ ਕਰਿ ਜਾਨਿਆ ਦਰ ਕੀ ਖਬਰਿ ਨ ਪਾਈ ॥
मनु तनु धनु अपुना करि जानिआ दर की खबरि न पाई ॥
वह मन, तन एवं धन को अपना मानकर जानता है लेकिन भगवान के दरबार का उसे कोई ज्ञान नहीं।

ਅਖੀ ਮੀਟਿ ਚਲਿਆ ਅੰਧਿਆਰਾ ਘਰੁ ਦਰੁ ਦਿਸੈ ਨ ਭਾਈ ॥
अखी मीटि चलिआ अंधिआरा घरु दरु दिसै न भाई ॥
हे भाई! ऐसा मनुष्य अपनी आँखें बन्द करके अज्ञानता के अन्धेरे में चल देता है और उसे अपना घर द्वार दिखाई नहीं देता।

ਜਮ ਦਰਿ ਬਾਧਾ ਠਉਰ ਨ ਪਾਵੈ ਅਪੁਨਾ ਕੀਆ ਕਮਾਈ ॥੩॥
जम दरि बाधा ठउर न पावै अपुना कीआ कमाई ॥३॥
मृत्यु के द्वार पर उस बंधे हुए मनुष्य को कोई ठिकाना नहीं मिलता और वह अपने किए हुए कर्मों का फल भोगता है।॥३॥

ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਤਾ ਅਖੀ ਵੇਖਾ ਕਹਣਾ ਕਥਨੁ ਨ ਜਾਈ ॥
नदरि करे ता अखी वेखा कहणा कथनु न जाई ॥
यद्यपि भगवान अपनी कृपा-दृष्टि करे तो ही मैं अपनी आँखों से उसके दर्शन कर सकता हूँ, जिसका कथन एवं वर्णन नहीं किया जा सकता।

ਕੰਨੀ ਸੁਣਿ ਸੁਣਿ ਸਬਦਿ ਸਲਾਹੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਰਿਦੈ ਵਸਾਈ ॥
कंनी सुणि सुणि सबदि सलाही अम्रितु रिदै वसाई ॥
अपने कानों से मैं भगवान की महिमा सुन-सुनकर शब्द द्वारा उसकी स्तुति करता हूँ और उसका अमृत नाम मैंने अपने हृदय में बसाया है।

ਨਿਰਭਉ ਨਿਰੰਕਾਰੁ ਨਿਰਵੈਰੁ ਪੂਰਨ ਜੋਤਿ ਸਮਾਈ ॥
निरभउ निरंकारु निरवैरु पूरन जोति समाई ॥
निर्भीक, निराकार, निरवैर प्रभु की पूर्ण ज्योति सारे जगत में समाई हुई है।

ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਵਿਣੁ ਭਰਮੁ ਨ ਭਾਗੈ ਸਚਿ ਨਾਮਿ ਵਡਿਆਈ ॥੪॥੩॥
नानक गुर विणु भरमु न भागै सचि नामि वडिआई ॥४॥३॥
हे नानक ! गुरु के बिना मन का भ्रम दूर नहीं होता और सत्य-नाम से ही प्रशंसा प्राप्त होती है।॥४॥३॥

ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੧ ਦੁਤੁਕੇ ॥
सोरठि महला १ दुतुके ॥
सोरठि महला १ दुतुके ॥

ਪੁੜੁ ਧਰਤੀ ਪੁੜੁ ਪਾਣੀ ਆਸਣੁ ਚਾਰਿ ਕੁੰਟ ਚਉਬਾਰਾ ॥
पुड़ु धरती पुड़ु पाणी आसणु चारि कुंट चउबारा ॥
हे ईश्वर ! यह जगत रूपी चौबारा तेरा निवास स्थान है। चारों दिशाएँ इस चौबारें की दीवारें हैं, इसका एक पाट धरती है और एक पाट पानी है।

ਸਗਲ ਭਵਣ ਕੀ ਮੂਰਤਿ ਏਕਾ ਮੁਖਿ ਤੇਰੈ ਟਕਸਾਲਾ ॥੧॥
सगल भवण की मूरति एका मुखि तेरै टकसाला ॥१॥
तेरे मुँह से उच्चरित हुआ शब्द ही एक टकसाल है, जिसमें सब भवनों के जीवों की मूर्तियाँ बनाई गई हैं। १ ।

ਮੇਰੇ ਸਾਹਿਬਾ ਤੇਰੇ ਚੋਜ ਵਿਡਾਣਾ ॥
मेरे साहिबा तेरे चोज विडाणा ॥
हे मेरे मालिक ! तेरी लीलाएँ बड़ी अद्भुत हैं।

ਜਲਿ ਥਲਿ ਮਹੀਅਲਿ ਭਰਿਪੁਰਿ ਲੀਣਾ ਆਪੇ ਸਰਬ ਸਮਾਣਾ ॥ ਰਹਾਉ ॥
जलि थलि महीअलि भरिपुरि लीणा आपे सरब समाणा ॥ रहाउ ॥
तू समुद्र, धरती एवं गगन में भरपूर होकर स्वयं ही सब में समाया हुआ है॥ रहाउ ॥

ਜਹ ਜਹ ਦੇਖਾ ਤਹ ਜੋਤਿ ਤੁਮਾਰੀ ਤੇਰਾ ਰੂਪੁ ਕਿਨੇਹਾ ॥
जह जह देखा तह जोति तुमारी तेरा रूपु किनेहा ॥
जहाँ-जहाँ भी देखता हूँ, वहाँ तुम्हारी ही ज्योति विद्यमान है। तेरा रूप कैसा है?”

ਇਕਤੁ ਰੂਪਿ ਫਿਰਹਿ ਪਰਛੰਨਾ ਕੋਇ ਨ ਕਿਸ ਹੀ ਜੇਹਾ ॥੨॥
इकतु रूपि फिरहि परछंना कोइ न किस ही जेहा ॥२॥
तेरा एक ही रूप कितना विलक्ष्ण है और तू गुप्त तौर पर सबमें भ्रमण करता है। तेरी रचना में कोई भी जीव किसी एक जैसा नहीं।२ ।

ਅੰਡਜ ਜੇਰਜ ਉਤਭੁਜ ਸੇਤਜ ਤੇਰੇ ਕੀਤੇ ਜੰਤਾ ॥
अंडज जेरज उतभुज सेतज तेरे कीते जंता ॥
अण्डज, जेरज, उद्धृभिज और स्वदेज से पैदा हुए समस्त जीव तूने ही पैदा किए हैं।

ਏਕੁ ਪੁਰਬੁ ਮੈ ਤੇਰਾ ਦੇਖਿਆ ਤੂ ਸਭਨਾ ਮਾਹਿ ਰਵੰਤਾ ॥੩॥
एकु पुरबु मै तेरा देखिआ तू सभना माहि रवंता ॥३॥
मैंने तेरी एक विचित्र लीला देखी है कि तू सब जीवों में व्यापक है।३॥

ਤੇਰੇ ਗੁਣ ਬਹੁਤੇ ਮੈ ਏਕੁ ਨ ਜਾਣਿਆ ਮੈ ਮੂਰਖ ਕਿਛੁ ਦੀਜੈ ॥
तेरे गुण बहुते मै एकु न जाणिआ मै मूरख किछु दीजै ॥
हे भगवान ! तेरे गुण अनन्त हैं परन्तु मैं तो तेरे एक गुण को भी नहीं जानता, मुझ मूर्ख को कुछ सद्बुद्धि दीजिए।

ਪ੍ਰਣਵਤਿ ਨਾਨਕ ਸੁਣਿ ਮੇਰੇ ਸਾਹਿਬਾ ਡੁਬਦਾ ਪਥਰੁ ਲੀਜੈ ॥੪॥੪॥
प्रणवति नानक सुणि मेरे साहिबा डुबदा पथरु लीजै ॥४॥४॥
नानक प्रार्थना करता है कि हे मेरे मालिक ! सुनो, मुझ डूबते हुए पत्थर को बचा लीजिए। ॥४॥४॥

ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੧ ॥
सोरठि महला १ ॥
सोरठि महला १ ॥

ਹਉ ਪਾਪੀ ਪਤਿਤੁ ਪਰਮ ਪਾਖੰਡੀ ਤੂ ਨਿਰਮਲੁ ਨਿਰੰਕਾਰੀ ॥
हउ पापी पतितु परम पाखंडी तू निरमलु निरंकारी ॥
हे मालिक ! मैं बड़ा पापी, पतित एवं परम पाखंडी हूँ, पर तू निर्मल और निराकार है।

ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਚਾਖਿ ਪਰਮ ਰਸਿ ਰਾਤੇ ਠਾਕੁਰ ਸਰਣਿ ਤੁਮਾਰੀ ॥੧॥
अम्रितु चाखि परम रसि राते ठाकुर सरणि तुमारी ॥१॥
हे ठाकुर जी ! मैं तुम्हारी शरण में हूँ और नामामृत को चख कर मैं परम-रस में मग्न रहता हूँ॥ १ ॥

ਕਰਤਾ ਤੂ ਮੈ ਮਾਣੁ ਨਿਮਾਣੇ ॥
करता तू मै माणु निमाणे ॥
हे कर्ता प्रभु! मुझ दीन-तुच्छ का तू ही मान-सम्मान है।

ਮਾਣੁ ਮਹਤੁ ਨਾਮੁ ਧਨੁ ਪਲੈ ਸਾਚੈ ਸਬਦਿ ਸਮਾਣੇ ॥ ਰਹਾਉ ॥
माणु महतु नामु धनु पलै साचै सबदि समाणे ॥ रहाउ ॥
जिनके दामन में भगवान का नाम रूपी धन है, उनका आदर सत्कार है और वे सच्चे शब्द में लीन रहते है॥ रहाउ ॥

ਤੂ ਪੂਰਾ ਹਮ ਊਰੇ ਹੋਛੇ ਤੂ ਗਉਰਾ ਹਮ ਹਉਰੇ ॥
तू पूरा हम ऊरे होछे तू गउरा हम हउरे ॥
हे स्वामी ! तू परिपूर्ण है और हम अधूरे तथा अयोग्य हैं। तू गंभीर है और हम बड़े हल्के हैं।

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