Hindi Page 670

ਜਪਿ ਮਨ ਸਤਿ ਨਾਮੁ ਸਦਾ ਸਤਿ ਨਾਮੁ ॥
जपि मन सति नामु सदा सति नामु ॥
हे मेरे मन ! परमात्मा का नाम सदैव ही सत्य है इसलिए सत्य-नाम का ही जाप करो।

ਹਲਤਿ ਪਲਤਿ ਮੁਖ ਊਜਲ ਹੋਈ ਹੈ ਨਿਤ ਧਿਆਈਐ ਹਰਿ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰੰਜਨਾ ॥ ਰਹਾਉ ॥
हलति पलति मुख ऊजल होई है नित धिआईऐ हरि पुरखु निरंजना ॥ रहाउ ॥
यदि निरंजन परमपुरुष परमात्मा का नित्य ही ध्यान-मनन किया जाए तो इहलोक एवं परलोक में मुख उज्ज्वल होता है, अर्थात् प्रशंसा प्राप्त होती है ॥ रहाउ ॥

ਜਹ ਹਰਿ ਸਿਮਰਨੁ ਭਇਆ ਤਹ ਉਪਾਧਿ ਗਤੁ ਕੀਨੀ ਵਡਭਾਗੀ ਹਰਿ ਜਪਨਾ ॥
जह हरि सिमरनु भइआ तह उपाधि गतु कीनी वडभागी हरि जपना ॥
जहाँ भी भगवान का सिमरन हुआ है, वहाँ से सब दुःख-तकलीफें दूर हो गई हैं।भगवान का भजन-सिमरन तो अहोभाग्य से ही होता है।

ਜਨ ਨਾਨਕ ਕਉ ਗੁਰਿ ਇਹ ਮਤਿ ਦੀਨੀ ਜਪਿ ਹਰਿ ਭਵਜਲੁ ਤਰਨਾ ॥੨॥੬॥੧੨॥
जन नानक कउ गुरि इह मति दीनी जपि हरि भवजलु तरना ॥२॥६॥१२॥
गुरु ने नानक को यह मति दी है कि परमात्मा का जाप करने से ही भवसागर से पार हुआ जाता है॥२॥६॥१२॥

ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
धनासरी महला ४ ॥
धनासरी महला ४ ॥

ਮੇਰੇ ਸਾਹਾ ਮੈ ਹਰਿ ਦਰਸਨ ਸੁਖੁ ਹੋਇ ॥
मेरे साहा मै हरि दरसन सुखु होइ ॥
हे मेरे स्वामी ! मैं तो तेरे दर्शन करके ही सुखी होता हूँ।

ਹਮਰੀ ਬੇਦਨਿ ਤੂ ਜਾਨਤਾ ਸਾਹਾ ਅਵਰੁ ਕਿਆ ਜਾਨੈ ਕੋਇ ॥ ਰਹਾਉ ॥
हमरी बेदनि तू जानता साहा अवरु किआ जानै कोइ ॥ रहाउ ॥
मेरी वेदना तू ही जानता है, अन्य कोई क्या जान सकता है॥ रहाउ ॥

ਸਾਚਾ ਸਾਹਿਬੁ ਸਚੁ ਤੂ ਮੇਰੇ ਸਾਹਾ ਤੇਰਾ ਕੀਆ ਸਚੁ ਸਭੁ ਹੋਇ ॥
साचा साहिबु सचु तू मेरे साहा तेरा कीआ सचु सभु होइ ॥
हे मेरे स्वामी ! तू ही सच्चा मालिक है, सदैव सत्य है और जो कुछ तू करता है, वह सब सत्य है।

ਝੂਠਾ ਕਿਸ ਕਉ ਆਖੀਐ ਸਾਹਾ ਦੂਜਾ ਨਾਹੀ ਕੋਇ ॥੧॥
झूठा किस कउ आखीऐ साहा दूजा नाही कोइ ॥१॥
हे स्वामी ! जब तेरे सिवाय दूसरा कोई है ही नहीं, फिर झूठा किसे कहा जाए ? ॥१॥

ਸਭਨਾ ਵਿਚਿ ਤੂ ਵਰਤਦਾ ਸਾਹਾ ਸਭਿ ਤੁਝਹਿ ਧਿਆਵਹਿ ਦਿਨੁ ਰਾਤਿ ॥
सभना विचि तू वरतदा साहा सभि तुझहि धिआवहि दिनु राति ॥
सब में तू ही समाया हुआ है और सभी तुझे दिन-रात स्मरण करते रहते हैं।

ਸਭਿ ਤੁਝ ਹੀ ਥਾਵਹੁ ਮੰਗਦੇ ਮੇਰੇ ਸਾਹਾ ਤੂ ਸਭਨਾ ਕਰਹਿ ਇਕ ਦਾਤਿ ॥੨॥
सभि तुझ ही थावहु मंगदे मेरे साहा तू सभना करहि इक दाति ॥२॥
हे स्वामी ! सभी तुझ से ही दान माँगते हैं और एक तू ही सब को देता रहता है॥ २॥

ਸਭੁ ਕੋ ਤੁਝ ਹੀ ਵਿਚਿ ਹੈ ਮੇਰੇ ਸਾਹਾ ਤੁਝ ਤੇ ਬਾਹਰਿ ਕੋਈ ਨਾਹਿ ॥
सभु को तुझ ही विचि है मेरे साहा तुझ ते बाहरि कोई नाहि ॥
हे मेरे मालिक ! सभी जीव तेरे हुक्म में हैं और कोई भी तेरे हुक्म से बाहर नहीं है।

ਸਭਿ ਜੀਅ ਤੇਰੇ ਤੂ ਸਭਸ ਦਾ ਮੇਰੇ ਸਾਹਾ ਸਭਿ ਤੁਝ ਹੀ ਮਾਹਿ ਸਮਾਹਿ ॥੩॥
सभि जीअ तेरे तू सभस दा मेरे साहा सभि तुझ ही माहि समाहि ॥३॥
सभी जीव तेरे हैं, तू सबका स्वामी है और सभी तुझ में ही विलीन हो जाते हैं।॥३॥

ਸਭਨਾ ਕੀ ਤੂ ਆਸ ਹੈ ਮੇਰੇ ਪਿਆਰੇ ਸਭਿ ਤੁਝਹਿ ਧਿਆਵਹਿ ਮੇਰੇ ਸਾਹ ॥
सभना की तू आस है मेरे पिआरे सभि तुझहि धिआवहि मेरे साह ॥
हे मेरे प्यारे स्वामी ! तू सबकी आशा है और सभी जीव तेरा ध्यान-मनन करते रहते हैं।

ਜਿਉ ਭਾਵੈ ਤਿਉ ਰਖੁ ਤੂ ਮੇਰੇ ਪਿਆਰੇ ਸਚੁ ਨਾਨਕ ਕੇ ਪਾਤਿਸਾਹ ॥੪॥੭॥੧੩॥
जिउ भावै तिउ रखु तू मेरे पिआरे सचु नानक के पातिसाह ॥४॥७॥१३॥
हे प्यारे ! जैसे तुझे अच्छा लगता है, वैसे ही तू मुझे रख।हे नानक के पातशाह ! तू सदैव सत्य है ॥४॥७॥१३॥

ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੧ ਚਉਪਦੇ
धनासरी महला ५ घरु १ चउपदे
धनासरी महला ५ घरु १ चउपदे

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।

ਭਵ ਖੰਡਨ ਦੁਖ ਭੰਜਨ ਸ੍ਵਾਮੀ ਭਗਤਿ ਵਛਲ ਨਿਰੰਕਾਰੇ ॥
भव खंडन दुख भंजन स्वामी भगति वछल निरंकारे ॥
हे निराकार परमात्मा ! तू जीवों का जन्म-मरण का चक्र काटने वाला, सब दुःख नाश करने वाला, सबका मालिक एवं भक्तवत्सल है।

ਕੋਟਿ ਪਰਾਧ ਮਿਟੇ ਖਿਨ ਭੀਤਰਿ ਜਾਂ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਸਮਾਰੇ ॥੧॥
कोटि पराध मिटे खिन भीतरि जां गुरमुखि नामु समारे ॥१॥
यदि कोई गुरु के सान्निध्य में रहकर तेरा नाम-स्मरण करे तो क्षण में उसके करोड़ों अपराध मिट जाते हैं।॥१॥

ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਲਾਗਾ ਹੈ ਰਾਮ ਪਿਆਰੇ ॥
मेरा मनु लागा है राम पिआरे ॥
मेरा मन प्यारे राम से लग गया है।

ਦੀਨ ਦਇਆਲਿ ਕਰੀ ਪ੍ਰਭਿ ਕਿਰਪਾ ਵਸਿ ਕੀਨੇ ਪੰਚ ਦੂਤਾਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
दीन दइआलि करी प्रभि किरपा वसि कीने पंच दूतारे ॥१॥ रहाउ ॥
दीनदयाल प्रभु ने मुझ पर अपनी अपार कृपा की है, जिससे कामादिक शत्रु-काम, क्रोध, लालच, मोह तथा अहंकार मेरे नियंत्रण में कर दिए हैं ॥१॥ रहाउ ॥

ਤੇਰਾ ਥਾਨੁ ਸੁਹਾਵਾ ਰੂਪੁ ਸੁਹਾਵਾ ਤੇਰੇ ਭਗਤ ਸੋਹਹਿ ਦਰਬਾਰੇ ॥
तेरा थानु सुहावा रूपु सुहावा तेरे भगत सोहहि दरबारे ॥
हे परमात्मा ! तेरा निवास स्थान अति सुन्दर है, तेरा रूप भी बड़ा सुहावना है और तेरे भक्त तेरे दरबार में बहुत सुन्दर लगते हैं।

ਸਰਬ ਜੀਆ ਕੇ ਦਾਤੇ ਸੁਆਮੀ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਲੇਹੁ ਉਬਾਰੇ ॥੨॥
सरब जीआ के दाते सुआमी करि किरपा लेहु उबारे ॥२॥
हे सर्व जीवों के दाता-स्वामी ! अपनी कृपा करके मुझे (भवसागर में डूबने से) बचा लो॥ २॥

ਤੇਰਾ ਵਰਨੁ ਨ ਜਾਪੈ ਰੂਪੁ ਨ ਲਖੀਐ ਤੇਰੀ ਕੁਦਰਤਿ ਕਉਨੁ ਬੀਚਾਰੇ ॥
तेरा वरनु न जापै रूपु न लखीऐ तेरी कुदरति कउनु बीचारे ॥
हे परमेश्वर ! तेरा कोई रंग दिखाई नहीं देता, तेरा कोई रूप समझा नहीं जाता। तेरी कुदरत की कौन विचार कर सकता है ?

ਜਲਿ ਥਲਿ ਮਹੀਅਲਿ ਰਵਿਆ ਸ੍ਰਬ ਠਾਈ ਅਗਮ ਰੂਪ ਗਿਰਧਾਰੇ ॥੩॥
जलि थलि महीअलि रविआ स्रब ठाई अगम रूप गिरधारे ॥३॥
हे अगम्य रूप गिरिधारी ! तू जल, धरती एवं आकाश में सर्वव्यापी है

ਕੀਰਤਿ ਕਰਹਿ ਸਗਲ ਜਨ ਤੇਰੀ ਤੂ ਅਬਿਨਾਸੀ ਪੁਰਖੁ ਮੁਰਾਰੇ ॥
कीरति करहि सगल जन तेरी तू अबिनासी पुरखु मुरारे ॥
तेरे सब भक्तजन तेरी स्तुति करते हैं। हे मुरारि ! तू अविनाशी परमपुरुष है।

ਜਿਉ ਭਾਵੈ ਤਿਉ ਰਾਖਹੁ ਸੁਆਮੀ ਜਨ ਨਾਨਕ ਸਰਨਿ ਦੁਆਰੇ ॥੪॥੧॥
जिउ भावै तिउ राखहु सुआमी जन नानक सरनि दुआरे ॥४॥१॥
हे मेरे स्वामी ! जैसे तुझे उपयुक्त लगता है, वैसे ही मेरी रक्षा करो क्योंकि नानक ने तो तेरे ही द्वार की शरण ली है॥ ४॥ १॥

ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
धनासरी महला ५ ॥
धनासरी महला ५ ॥

ਬਿਨੁ ਜਲ ਪ੍ਰਾਨ ਤਜੇ ਹੈ ਮੀਨਾ ਜਿਨਿ ਜਲ ਸਿਉ ਹੇਤੁ ਬਢਾਇਓ ॥
बिनु जल प्रान तजे है मीना जिनि जल सिउ हेतु बढाइओ ॥
जल के बिना मछली ने अपने प्राण त्याग दिये हैं, क्योंकि उसने जल के साथ अत्याधिक मोह-लगाव बढ़ाया हुआ था।

ਕਮਲ ਹੇਤਿ ਬਿਨਸਿਓ ਹੈ ਭਵਰਾ ਉਨਿ ਮਾਰਗੁ ਨਿਕਸਿ ਨ ਪਾਇਓ ॥੧॥
कमल हेति बिनसिओ है भवरा उनि मारगु निकसि न पाइओ ॥१॥
कमल-फूल के मोह में भैवरा नाश हो गया है, चूंकि उसे फूल में से बाहर निकलने का मार्ग नहीं मिला।॥१॥

ਅਬ ਮਨ ਏਕਸ ਸਿਉ ਮੋਹੁ ਕੀਨਾ ॥
अब मन एकस सिउ मोहु कीना ॥
अब मेरे मन ने एक परमेश्वर से ही अपना मोह-प्यार लगाया हुआ है,

ਮਰੈ ਨ ਜਾਵੈ ਸਦ ਹੀ ਸੰਗੇ ਸਤਿਗੁਰ ਸਬਦੀ ਚੀਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मरै न जावै सद ही संगे सतिगुर सबदी चीना ॥१॥ रहाउ ॥
वह न तो कभी मरता है, न ही जन्म लेता है, वह तो सदैव मेरे साथ ही रहता है। सतगुरु के शब्द द्वारा मैंने उसे समझ लिया है ॥१॥ रहाउ ॥

error: Content is protected !!