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ਅੰਤਰ ਕੀ ਗਤਿ ਜਾਣੀਐ ਗੁਰ ਮਿਲੀਐ ਸੰਕ ਉਤਾਰਿ ॥अंतर की गति जाणीऐ गुर मिलीऐ संक उतारि ॥ अंतर्मन का रहस्य तभी जाना जा सकता है, जब सभी शंकाओं को दूर करके गुरु से मिला जाए। ਮੁਇਆ ਜਿਤੁ ਘਰਿ ਜਾਈਐ ਤਿਤੁ ਜੀਵਦਿਆ ਮਰੁ ਮਾਰਿ ॥मुइआ जितु घरि जाईऐ तितु जीवदिआ मरु मारि ॥मरणोपरांत जिस यम घर में

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ਪੰਚ ਭੂਤ ਸਚਿ ਭੈ ਰਤੇ ਜੋਤਿ ਸਚੀ ਮਨ ਮਾਹਿ ॥पंच भूत सचि भै रते जोति सची मन माहि ॥जिस सत्य स्वरूप के भय में पांचों भौतिक तत्व (सम्पूर्ण मानव शरीर) अनुरक्त हैं उस सत्य स्वरूप परमात्मा की परम ज्योति मन में निवास करती है। ਨਾਨਕ ਅਉਗਣ ਵੀਸਰੇ ਗੁਰਿ ਰਾਖੇ ਪਤਿ ਤਾਹਿ ॥੪॥੧੫॥नानक अउगण वीसरे गुरि

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ਦਰਿ ਘਰਿ ਢੋਈ ਨ ਲਹੈ ਦਰਗਹ ਝੂਠੁ ਖੁਆਰੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥दरि घरि ढोई न लहै दरगह झूठु खुआरु ॥१॥ रहाउ ॥जैसे पति से विमुख हुई स्त्री को उस के घर में समीपता प्राप्त नहीं होती, वैसे ही निरंकार की विमुखता के कारण अभागिन स्त्री की भाँति परलोक में भी झूठ में लिप्त जीव को अपमानित

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ਕੇਤੀਆ ਤੇਰੀਆ ਕੁਦਰਤੀ ਕੇਵਡ ਤੇਰੀ ਦਾਤਿ ॥केतीआ तेरीआ कुदरती केवड तेरी दाति ॥  हे निरंकार ! कितनी ही तेरी शक्तियां हैं और तेरा दिया हुआ दान भी कितना महान् है (यह सब अकथनीय है) । ਕੇਤੇ ਤੇਰੇ ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਿਫਤਿ ਕਰਹਿ ਦਿਨੁ ਰਾਤਿ ॥केते तेरे जीअ जंत सिफति करहि दिनु राति ॥ कितने ही असंख्य सूक्ष्म व

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ਹੁਕਮੁ ਸੋਈ ਤੁਧੁ ਭਾਵਸੀ ਹੋਰੁ ਆਖਣੁ ਬਹੁਤੁ ਅਪਾਰੁ ॥हुकमु सोई तुधु भावसी होरु आखणु बहुतु अपारु ॥ हे अनंत परमेश्वर ! तुम्हारी रज़ा से सांसारिक क्रिया हेतु आदेश होता है, अन्य निरर्थक बातों का करना निष्फल है। ਨਾਨਕ ਸਚਾ ਪਾਤਿਸਾਹੁ ਪੂਛਿ ਨ ਕਰੇ ਬੀਚਾਰੁ ॥੪॥नानक सचा पातिसाहु पूछि न करे बीचारु ॥४॥  सतिगुरु जी का फुरमान

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ਸੁਣਹਿ ਵਖਾਣਹਿ ਜੇਤੜੇ ਹਉ ਤਿਨ ਬਲਿਹਾਰੈ ਜਾਉ ॥सुणहि वखाणहि जेतड़े हउ तिन बलिहारै जाउ ॥ जितने पुरुष नाम के श्रोता व वाचक हैं, उन पर मैं कुर्बान जाता हूँ। ਤਾ ਮਨੁ ਖੀਵਾ ਜਾਣੀਐ ਜਾ ਮਹਲੀ ਪਾਏ ਥਾਉ ॥੨॥ता मनु खीवा जाणीऐ जा महली पाए थाउ ॥२॥इस नाम सिमरन रूपी मदिरा से मन मस्त हुआ तभी जाना

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ਨਾਨਕ ਕਾਗਦ ਲਖ ਮਣਾ ਪੜਿ ਪੜਿ ਕੀਚੈ ਭਾਉ ॥नानक कागद लख मणा पड़ि पड़ि कीचै भाउ ॥ सतगुरु जी कथन करते हैं कि लाखों मन कागज़ पढ़-पढ़ कर, अर्थात् अनेकानेक शास्त्रों व धर्म ग्रंथों का अध्ययन करके, ईश्वर से प्रेम किया जाए। ਮਸੂ ਤੋਟਿ ਨ ਆਵਈ ਲੇਖਣਿ ਪਉਣੁ ਚਲਾਉ ॥मसू तोटि न आवई लेखणि पउणु चलाउ

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ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है। ਰਾਗੁ ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ਪਹਿਲਾ ੧ ਘਰੁ ੧ ॥सिरीरागु महला पहिला १ घरु १ ॥सिरीरागु महला पहला १ घरु १ ॥ ਮੋਤੀ ਤ ਮੰਦਰ ਊਸਰਹਿ ਰਤਨੀ ਤ ਹੋਹਿ ਜੜਾਉ ॥मोती त मंदर ऊसरहि रतनी त होहि जड़ाउ ॥यदि

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ਨਾਨਕ ਕਰਤੇ ਕੇ ਕੇਤੇ ਵੇਸ ॥੨॥੨॥ नानक करते के केते वेस ॥२॥२॥ वैसे ही हे नानक ! कर्ता-पुरुष के उपरोक्त सब स्वरूप ही दिखाई पड़ते हैं II २ II २ II ਰਾਗੁ ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥रागु धनासरी महला १ ॥रागु धनासरी महला १ ॥ ਗਗਨ ਮੈ ਥਾਲੁ ਰਵਿ ਚੰਦੁ ਦੀਪਕ ਬਨੇ ਤਾਰਿਕਾ ਮੰਡਲ ਜਨਕ ਮੋਤੀ ॥गगन मै

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ਤੂ ਆਪੇ ਕਰਤਾ ਤੇਰਾ ਕੀਆ ਸਭੁ ਹੋਇ ॥तू आपे करता तेरा कीआ सभु होइ ॥तुम स्वयं रचयिता हो, तुम्हारे आदेश से ही सब कुछ होता है। ਤੁਧੁ ਬਿਨੁ ਦੂਜਾ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ॥तुधु बिनु दूजा अवरु न कोइ ॥तुम्हारे अतिरिक्त अन्य दूसरा कोई नहीं है। ਤੂ ਕਰਿ ਕਰਿ ਵੇਖਹਿ ਜਾਣਹਿ ਸੋਇ ॥तू करि करि वेखहि

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