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ਸੇਜ ਏਕ ਏਕੋ ਪ੍ਰਭੁ ਠਾਕੁਰੁ ਮਹਲੁ ਨ ਪਾਵੈ ਮਨਮੁਖ ਭਰਮਈਆ ॥सेज एक एको प्रभु ठाकुरु महलु न पावै मनमुख भरमईआ ॥हृदय रूपी सेज एक ही है और एक ठाकुर प्रभु ही उस पर आ बसता है लेकिन मनमुखी जीव भ्रमों में ही भटकता रहता है और उसे आत्मस्वरूप नहीं मिलता। ਗੁਰੁ ਗੁਰੁ ਕਰਤ ਸਰਣਿ ਜੇ

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ਮਨ ਕੀ ਬਿਰਥਾ ਮਨ ਹੀ ਜਾਣੈ ਅਵਰੁ ਕਿ ਜਾਣੈ ਕੋ ਪੀਰ ਪਰਈਆ ॥੧॥मन की बिरथा मन ही जाणै अवरु कि जाणै को पीर परईआ ॥१॥मन की व्यथा मन ही जानता है, अन्य कोई पराई पीड़ा को क्या जान सकता है॥ १॥ ਰਾਮ ਗੁਰਿ ਮੋਹਨਿ ਮੋਹਿ ਮਨੁ ਲਈਆ ॥राम गुरि मोहनि मोहि मनु लईआ ॥प्यारे गुरु

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ਹਰਿ ਹਰਿ ਉਸਤਤਿ ਕਰੈ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਰਖਿ ਰਖਿ ਚਰਣ ਹਰਿ ਤਾਲ ਪੂਰਈਆ ॥੫॥हरि हरि उसतति करै दिनु राती रखि रखि चरण हरि ताल पूरईआ ॥५॥में हरि-चरणों को अपने मन में बसाकर तथा पैर स्वर ताल में टिका कर हरि की स्तुति करता रहता हूँ॥ ५॥ ਹਰਿ ਕੈ ਰੰਗਿ ਰਤਾ ਮਨੁ ਗਾਵੈ ਰਸਿ ਰਸਾਲ ਰਸਿ ਸਬਦੁ

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ਮਿਲਿ ਸਤਸੰਗਤਿ ਪਰਮ ਪਦੁ ਪਾਇਆ ਮੈ ਹਿਰਡ ਪਲਾਸ ਸੰਗਿ ਹਰਿ ਬੁਹੀਆ ॥੧॥मिलि सतसंगति परम पदु पाइआ मै हिरड पलास संगि हरि बुहीआ ॥१॥संतों की संगति में मिलकर मैंने परमपद पा लिया है। जैसे एरण्ड एवं ढाक के वृक्ष चंदन की संगति करके चंदन बन जाते हैं, वैसे ही मैं भी हरि से मिलकर सुगन्धित हो

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ਸਾਚਾ ਨਾਮੁ ਸਾਚੈ ਸਬਦਿ ਜਾਨੈ ॥साचा नामु साचै सबदि जानै ॥सच्चे शब्द द्वारा ही सत्य-नाम को जाना जाता है। ਆਪੈ ਆਪੁ ਮਿਲੈ ਚੂਕੈ ਅਭਿਮਾਨੈ ॥आपै आपु मिलै चूकै अभिमानै ॥फिर वह स्वयं ही जीव को अपने साथ मिला लेता है, जिससे सारा अभिमान समाप्त हो जाता है। ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਸਦਾ ਸਦਾ ਵਖਾਨੈ ॥੫॥गुरमुखि नामु सदा

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ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੧ ॥बिलावलु महला १ ॥बिलावलु महला १ ॥ ਮਨ ਕਾ ਕਹਿਆ ਮਨਸਾ ਕਰੈ ॥मन का कहिआ मनसा करै ॥जो मन कहता है, वही संकल्प करता है। ਇਹੁ ਮਨੁ ਪੁੰਨੁ ਪਾਪੁ ਉਚਰੈ ॥इहु मनु पुंनु पापु उचरै ॥यह मन ही पाप-पुण्य की बात कहता है। ਮਾਇਆ ਮਦਿ ਮਾਤੇ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਨ ਆਵੈ ॥माइआ मदि माते

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ਜੋਗ ਜਗ ਨਿਹਫਲ ਤਿਹ ਮਾਨਉ ਜੋ ਪ੍ਰਭ ਜਸੁ ਬਿਸਰਾਵੈ ॥੧॥जोग जग निहफल तिह मानउ जो प्रभ जसु बिसरावै ॥१॥जो प्रभु का यश भुला देता है, उसके योग एवं यज्ञ करने को निष्फल ही समझो।॥ १॥ ਮਾਨ ਮੋਹ ਦੋਨੋ ਕਉ ਪਰਹਰਿ ਗੋਬਿੰਦ ਕੇ ਗੁਨ ਗਾਵੈ ॥मान मोह दोनो कउ परहरि गोबिंद के गुन गावै ॥हे नानक

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ਅਨਿਕ ਭਗਤ ਅਨਿਕ ਜਨ ਤਾਰੇ ਸਿਮਰਹਿ ਅਨਿਕ ਮੁਨੀ ॥अनिक भगत अनिक जन तारे सिमरहि अनिक मुनी ॥अनेक भक्त, अनेक संतजन एवं अनेक मुनि उसका सिमरन करते हुए भवसागर से तर गए हैं। ਅੰਧੁਲੇ ਟਿਕ ਨਿਰਧਨ ਧਨੁ ਪਾਇਓ ਪ੍ਰਭ ਨਾਨਕ ਅਨਿਕ ਗੁਨੀ ॥੨॥੨॥੧੨੭॥अंधुले टिक निरधन धनु पाइओ प्रभ नानक अनिक गुनी ॥२॥२॥१२७॥हे नानक ! प्रभु गुणों

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ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥बिलावलु महला ५ ॥बिलावलु महला ५ ॥ ਅਪਨੇ ਸੇਵਕ ਕਉ ਕਬਹੁ ਨ ਬਿਸਾਰਹੁ ॥अपने सेवक कउ कबहु न बिसारहु ॥हे स्वामी प्रभु ! अपने सेवक को कभी न भुलाओ, ਉਰਿ ਲਾਗਹੁ ਸੁਆਮੀ ਪ੍ਰਭ ਮੇਰੇ ਪੂਰਬ ਪ੍ਰੀਤਿ ਗੋਬਿੰਦ ਬੀਚਾਰਹੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥उरि लागहु सुआमी प्रभ मेरे पूरब प्रीति गोबिंद बीचारहु ॥१॥ रहाउ ॥मेरे

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ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਸਮਰਥਾ ਕਾਰਨ ਕਰਨ ॥तुम्ह समरथा कारन करन ॥हे गोविंद ! तू समर्थ एवं सर्वकर्ता है, ਢਾਕਨ ਢਾਕਿ ਗੋਬਿਦ ਗੁਰ ਮੇਰੇ ਮੋਹਿ ਅਪਰਾਧੀ ਸਰਨ ਚਰਨ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ढाकन ढाकि गोबिद गुर मेरे मोहि अपराधी सरन चरन ॥१॥ रहाउ ॥मेरे अवगुण ढंक ले, मैं अपराधी तेरे चरणों की शरण में आया हूँ॥ १ ॥ रहाउ ॥

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