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ਤੋਟਿ ਨ ਆਵੈ ਕਦੇ ਮੂਲਿ ਪੂਰਨ ਭੰਡਾਰ ॥तोटि न आवै कदे मूलि पूरन भंडार ॥नाम रूपी पूंजी से भक्तों के भण्डार भरे हुए हैं और उनमें कभी कोई कमी नहीं आती। ਚਰਨ ਕਮਲ ਮਨਿ ਤਨਿ ਬਸੇ ਪ੍ਰਭ ਅਗਮ ਅਪਾਰ ॥੨॥चरन कमल मनि तनि बसे प्रभ अगम अपार ॥२॥प्रभु अगम्य एवं अपार है और उसके सुन्दर

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ਧੰਨੁ ਸੁ ਥਾਨੁ ਬਸੰਤ ਧੰਨੁ ਜਹ ਜਪੀਐ ਨਾਮੁ ॥धंनु सु थानु बसंत धंनु जह जपीऐ नामु ॥जहाँ परमात्मा का नाम जपा जाता है, वह स्थान धन्य है और वहाँ रहने वाले भी धन्य हैं। ਕਥਾ ਕੀਰਤਨੁ ਹਰਿ ਅਤਿ ਘਨਾ ਸੁਖ ਸਹਜ ਬਿਸ੍ਰਾਮੁ ॥੩॥कथा कीरतनु हरि अति घना सुख सहज बिस्रामु ॥३॥वहाँ हरि की कथा एवं

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ਨਾਨਕ ਕਉ ਕਿਰਪਾ ਭਈ ਦਾਸੁ ਅਪਨਾ ਕੀਨੁ ॥੪॥੨੫॥੫੫॥नानक कउ किरपा भई दासु अपना कीनु ॥४॥२५॥५५॥लेकिन नानक पर प्रभु की कृपा हो गई है और उसने उसे अपना दास बना लिया है ॥४॥२५॥५५॥ ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥बिलावलु महला ५ ॥बिलावलु महला ५ ॥ ਹਰਿ ਭਗਤਾ ਕਾ ਆਸਰਾ ਅਨ ਨਾਹੀ ਠਾਉ ॥हरि भगता का आसरा अन नाही

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ਸੁਣਿ ਸੁਣਿ ਜੀਵੈ ਦਾਸੁ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਬਾਣੀ ਜਨ ਆਖੀ ॥सुणि सुणि जीवै दासु तुम्ह बाणी जन आखी ॥हे परमेश्वर ! संत-भक्तजनों ने तेरी वाणी उच्चारण की है, जिसे सुन-सुनकर तेरा दास जी रहा है। ਪ੍ਰਗਟ ਭਈ ਸਭ ਲੋਅ ਮਹਿ ਸੇਵਕ ਕੀ ਰਾਖੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥प्रगट भई सभ लोअ महि सेवक की राखी ॥१॥ रहाउ ॥यह बात

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ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਕ੍ਰਿਪਾ ਨਿਧੇ ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਰੈ ॥੨॥दीन दइआल क्रिपा निधे सासि सासि सम्हारै ॥२॥भक्तजन उस दीनदयाल एवं कृपानिधि को श्वास-श्वास से स्मरण करते रहते हैं।॥ २॥ ਕਰਣਹਾਰੁ ਜੋ ਕਰਿ ਰਹਿਆ ਸਾਈ ਵਡਿਆਈ ॥करणहारु जो करि रहिआ साई वडिआई ॥सब करने वाला परमात्मा जो कुछ कर रहा है, यही उसका बड़प्पन है। ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਉਪਦੇਸਿਆ

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ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥बिलावलु महला ५ ॥बिलावलु महला ५ ॥ ਸ੍ਰਵਨੀ ਸੁਨਉ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰੇ ਠਾਕੁਰ ਜਸੁ ਗਾਵਉ ॥स्रवनी सुनउ हरि हरि हरे ठाकुर जसु गावउ ॥कानों से ‘हरि-हरि’ नाम सुनता रहूँ और ठाकुर जी का यश गाता रहूँ। ਸੰਤ ਚਰਣ ਕਰ ਸੀਸੁ ਧਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਵਉ ॥੧॥संत चरण कर सीसु धरि हरि नामु धिआवउ

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ਜਗਤ ਉਧਾਰਨ ਸਾਧ ਪ੍ਰਭ ਤਿਨੑ ਲਾਗਹੁ ਪਾਲ ॥जगत उधारन साध प्रभ तिन्ह लागहु पाल ॥प्रभु के साधु महात्मा जगत् का उद्धार करने में सक्षम हैं, अत: उनकी शरण में लग जाओ। ਮੋ ਕਉ ਦੀਜੈ ਦਾਨੁ ਪ੍ਰਭ ਸੰਤਨ ਪਗ ਰਾਲ ॥੨॥मो कउ दीजै दानु प्रभ संतन पग राल ॥२॥हे प्रभु ! मुझे संतों की चरण-धूलि का

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ਸ੍ਰਮੁ ਕਰਤੇ ਦਮ ਆਢ ਕਉ ਤੇ ਗਨੀ ਧਨੀਤਾ ॥੩॥स्रमु करते दम आढ कउ ते गनी धनीता ॥३॥जो व्यक्ति पहले आधे-आधे दाम के लिए मेहनत करते थे, अब वह धनवान माने जाते हैं। ३॥ ਕਵਨ ਵਡਾਈ ਕਹਿ ਸਕਉ ਬੇਅੰਤ ਗੁਨੀਤਾ ॥कवन वडाई कहि सकउ बेअंत गुनीता ॥हे बेअंत गुणों के भण्डार ! मैं तेरी कौन-कौन-सी बड़ाई

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ਜੈ ਜੈ ਕਾਰੁ ਜਗਤ੍ਰ ਮਹਿ ਲੋਚਹਿ ਸਭਿ ਜੀਆ ॥जै जै कारु जगत्र महि लोचहि सभि जीआ ॥सभी लोग जगत् में अपनी जय-जयकार ही चाहते हैं। ਸੁਪ੍ਰਸੰਨ ਭਏ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਭੂ ਕਛੁ ਬਿਘਨੁ ਨ ਥੀਆ ॥੧॥सुप्रसंन भए सतिगुर प्रभू कछु बिघनु न थीआ ॥१॥सतगुरु प्रभु सुप्रसन्न हो गया है, उसकी कृपा से किसी भी कार्य में विघ्न

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ਵਡੀ ਆਰਜਾ ਹਰਿ ਗੋਬਿੰਦ ਕੀ ਸੂਖ ਮੰਗਲ ਕਲਿਆਣ ਬੀਚਾਰਿਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥वडी आरजा हरि गोबिंद की सूख मंगल कलिआण बीचारिआ ॥१॥ रहाउ ॥उसने सुख, शान्ति एवं कल्याण का विचार करते हुए (बालक) हरिगोविन्द की आयु लंबी कर दी है॥ १॥ रहाउ ॥ ਵਣ ਤ੍ਰਿਣ ਤ੍ਰਿਭਵਣ ਹਰਿਆ ਹੋਏ ਸਗਲੇ ਜੀਅ ਸਾਧਾਰਿਆ ॥वण त्रिण त्रिभवण हरिआ होए

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