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ਮਃ ੩ ॥मः ३ ॥ महला ३॥ ਸਬਦਿ ਰਤੀ ਸੋਹਾਗਣੀ ਸਤਿਗੁਰ ਕੈ ਭਾਇ ਪਿਆਰਿ ॥सबदि रती सोहागणी सतिगुर कै भाइ पिआरि ॥ सुहागिन जीव-स्त्री सतिगुरु की रज़ा में प्रेमपूर्वक नाम में मग्न रहती है। ਸਦਾ ਰਾਵੇ ਪਿਰੁ ਆਪਣਾ ਸਚੈ ਪ੍ਰੇਮਿ ਪਿਆਰਿ ॥सदा रावे पिरु आपणा सचै प्रेमि पिआरि ॥ वह सत्य-प्रेम से अपने पति-प्रभु के साथ सदैव ही