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ਲਖ ਚਉਰਾਸੀਹ ਜੀਅ ਉਪਾਏ ॥लख चउरासीह जीअ उपाए ॥पारब्रह्म-प्रभु ने चौरासी लाख योनियों में अनंत जीव उत्पन्न किए हैं। ਜਿਸ ਨੋ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਤਿਸੁ ਗੁਰੂ ਮਿਲਾਏ ॥जिस नो नदरि करे तिसु गुरू मिलाए ॥जिस जीव पर वह अपनी दया-दृष्टि करता है, उसको गुरु से मिला देता है। ਕਿਲਬਿਖ ਕਾਟਿ ਸਦਾ ਜਨ ਨਿਰਮਲ ਦਰਿ ਸਚੈ ਨਾਮਿ

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ਸੇਵਾ ਸੁਰਤਿ ਸਬਦਿ ਚਿਤੁ ਲਾਏ ॥सेवा सुरति सबदि चितु लाए ॥फिर वह व्यक्ति अपनी सुरति प्रभु की सेवा में लगाता और अपना मन शब्द में जोड़ता है। ਹਉਮੈ ਮਾਰਿ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਚੁਕਾਵਣਿਆ ॥੧॥हउमै मारि सदा सुखु पाइआ माइआ मोहु चुकावणिआ ॥१॥वह अपने अहंकार को त्याग कर सदैव सुख पाता है और अपने

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ਮਾਂਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥मांझ महला ५ ॥मांझ महला ५ ॥ ਝੂਠਾ ਮੰਗਣੁ ਜੇ ਕੋਈ ਮਾਗੈ ॥झूठा मंगणु जे कोई मागै ॥यदि कोई व्यक्ति झूठी माया की याचना करे तो ਤਿਸ ਕਉ ਮਰਤੇ ਘੜੀ ਨ ਲਾਗੈ ॥तिस कउ मरते घड़ी न लागै ॥उसे मृत्युकाल में एक क्षण भी नहीं लगता। ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਜੋ ਸਦ ਹੀ ਸੇਵੈ ਸੋ

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ਜਨਮ ਜਨਮ ਕਾ ਰੋਗੁ ਗਵਾਇਆ ॥जनम जनम का रोगु गवाइआ ॥उन्होंने अपना जन्म-जन्मांतरों का पुराना रोग दूर कर लिया है। ਹਰਿ ਕੀਰਤਨੁ ਗਾਵਹੁ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਸਫਲ ਏਹਾ ਹੈ ਕਾਰੀ ਜੀਉ ॥੩॥हरि कीरतनु गावहु दिनु राती सफल एहा है कारी जीउ ॥३॥हे मानव ! दिन-रात भगवान का भजन करते रहो, क्योंकि यही कार्य फलदायक है॥३॥ ਦ੍ਰਿਸਟਿ

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ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥माझ महला ५ ॥माझ महला ५ ॥ ਕੀਨੀ ਦਇਆ ਗੋਪਾਲ ਗੁਸਾਈ ॥कीनी दइआ गोपाल गुसाई ॥सृष्टि के पालनहार गोपाल ने मुझ पर कृपा-दृष्टि की है और ਗੁਰ ਕੇ ਚਰਣ ਵਸੇ ਮਨ ਮਾਹੀ ॥गुर के चरण वसे मन माही ॥गुरु के चरण मेरे मन में स्थित हो गए हैं। ਅੰਗੀਕਾਰੁ ਕੀਆ ਤਿਨਿ ਕਰਤੈ

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ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪ੍ਰਭੁ ਭਗਤੀ ਲਾਵਹੁ ਸਚੁ ਨਾਨਕ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਏ ਜੀਉ ॥੪॥੨੮॥੩੫॥करि किरपा प्रभु भगती लावहु सचु नानक अम्रितु पीए जीउ ॥४॥२८॥३५॥हे प्रभु ! कृपा करके मुझे अपनी भक्ति में लगा लो जिससे हे नानक ! वह प्रभु के सत्य नाम रूपी अमृत का पान करता रहे॥ ४ ॥ २८ ॥ ३५ ॥ ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫

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ਆਸ ਮਨੋਰਥੁ ਪੂਰਨੁ ਹੋਵੈ ਭੇਟਤ ਗੁਰ ਦਰਸਾਇਆ ਜੀਉ ॥੨॥आस मनोरथु पूरनु होवै भेटत गुर दरसाइआ जीउ ॥२॥गुरु के दर्शन करने से समस्त मनोरथ व दिल की इच्छाएँ पूर्ण हो जाती हैं।॥ २॥ ਅਗਮ ਅਗੋਚਰ ਕਿਛੁ ਮਿਤਿ ਨਹੀ ਜਾਨੀ ॥अगम अगोचर किछु मिति नही जानी ॥अगम्य व अगोचर प्रभु का अंत जाना नहीं जा सकता। ਸਾਧਿਕ

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ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥माझ महला ५ ॥माझ महला ५ ॥ ਸਫਲ ਸੁ ਬਾਣੀ ਜਿਤੁ ਨਾਮੁ ਵਖਾਣੀ ॥सफल सु बाणी जितु नामु वखाणी ॥वहीं वाणी शुभ फलदायक है, जिससे हरि के नाम का जाप किया जाता है। ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਕਿਨੈ ਵਿਰਲੈ ਜਾਣੀ ॥गुर परसादि किनै विरलै जाणी ॥कोई विरला ही पुरुष है, जिसने गुरु की कृपा

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ਠਾਕੁਰ ਕੇ ਸੇਵਕ ਹਰਿ ਰੰਗ ਮਾਣਹਿ ॥ठाकुर के सेवक हरि रंग माणहि ॥परमात्मा के सेवक ईश्वर की प्रीति का आनन्द भोगते हैं। ਜੋ ਕਿਛੁ ਠਾਕੁਰ ਕਾ ਸੋ ਸੇਵਕ ਕਾ ਸੇਵਕੁ ਠਾਕੁਰ ਹੀ ਸੰਗਿ ਜਾਹਰੁ ਜੀਉ ॥੩॥जो किछु ठाकुर का सो सेवक का सेवकु ठाकुर ही संगि जाहरु जीउ ॥३॥जो कुछ परमात्मा का है, वही उसके

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ਜੋ ਜੋ ਪੀਵੈ ਸੋ ਤ੍ਰਿਪਤਾਵੈ ॥जो जो पीवै सो त्रिपतावै ॥जो कोई भी इस हरि-रस का पान करता है, वह प्रसन्न हो जाता है। ਅਮਰੁ ਹੋਵੈ ਜੋ ਨਾਮ ਰਸੁ ਪਾਵੈ ॥अमरु होवै जो नाम रसु पावै ॥जो नाम रस को प्राप्त कर लेता है, वह अमर हो जाता है। ਨਾਮ ਨਿਧਾਨ ਤਿਸਹਿ ਪਰਾਪਤਿ ਜਿਸੁ ਸਬਦੁ

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