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ਏਹੁ ਜਗੁ ਜਲਤਾ ਦੇਖਿ ਕੈ ਭਜਿ ਪਏ ਸਤਿਗੁਰ ਸਰਣਾ ॥एहु जगु जलता देखि कै भजि पए सतिगुर सरणा ॥   इस संसार को मोह-तृष्णा की अग्नि में जलता देखकर जो जिज्ञासु प्राणी भागकर सतिगुरु की शरण लेते हैं। ਸਤਿਗੁਰਿ ਸਚੁ ਦਿੜਾਇਆ ਸਦਾ ਸਚਿ ਸੰਜਮਿ ਰਹਣਾ ॥सतिगुरि सचु दिड़ाइआ सदा सचि संजमि रहणा ॥  सतिगुरु उनकें हृदय में भगवान

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ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੩ ॥सिरीरागु महला ३ ॥  श्रीरागु महला ३ ॥ ਸਤਿਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਫੇਰੁ ਨ ਪਵੈ ਜਨਮ ਮਰਣ ਦੁਖੁ ਜਾਇ ॥सतिगुरि मिलिऐ फेरु न पवै जनम मरण दुखु जाइ ॥ यदि सतिगुरु मिल जाए तो प्राणी जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति प्राप्त कर लेता है। उसकी जन्म एवं मृत्यु की पीड़ा निवृत्त हो जाती है। ਪੂਰੈ ਸਬਦਿ

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ਮਨੁ ਤਨੁ ਅਰਪੀ ਆਪੁ ਗਵਾਈ ਚਲਾ ਸਤਿਗੁਰ ਭਾਏ ॥मनु तनु अरपी आपु गवाई चला सतिगुर भाए ॥ मैं अपनी आत्मा एवं देहि समर्पित करता हूँ और अपनी अहंकार-भावना त्यागता हूँ और सतिगुरु के उपदेशानुसार आचरण करता हूँ। ਸਦ ਬਲਿਹਾਰੀ ਗੁਰ ਅਪੁਨੇ ਵਿਟਹੁ ਜਿ ਹਰਿ ਸੇਤੀ ਚਿਤੁ ਲਾਏ ॥੭॥सद बलिहारी गुर अपुने विटहु जि हरि सेती चितु

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ਬਿਨੁ ਸਬਦੈ ਜਗੁ ਦੁਖੀਆ ਫਿਰੈ ਮਨਮੁਖਾ ਨੋ ਗਈ ਖਾਇ ॥बिनु सबदै जगु दुखीआ फिरै मनमुखा नो गई खाइ ॥नाम के अतिरिक्त सारा संसार दुखी है। माया मनमुखी प्राणियों को निगल गई है। ਸਬਦੇ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈਐ ਸਬਦੇ ਸਚਿ ਸਮਾਇ ॥੪॥सबदे नामु धिआईऐ सबदे सचि समाइ ॥४॥शब्द द्वारा मनुष्य नाम-सिमरन करता है और शब्द द्वारा ही वह

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ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੩ ॥सिरीरागु महला ३ ॥श्रीरागु महला ३ ॥ ਪੰਖੀ ਬਿਰਖਿ ਸੁਹਾਵੜਾ ਸਚੁ ਚੁਗੈ ਗੁਰ ਭਾਇ ॥पंखी बिरखि सुहावड़ा सचु चुगै गुर भाइ ॥जीव रूपी पक्षी, शरीर रूपी सुन्दर वृक्ष पर विराजमान होकर गुरु जी की इच्छानुसार सत्य नाम रूपी दाना चुगता है। ਹਰਿ ਰਸੁ ਪੀਵੈ ਸਹਜਿ ਰਹੈ ਉਡੈ ਨ ਆਵੈ ਜਾਇ ॥हरि रसु

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ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਿ ਗੁਣ ਨਿਧਾਨੁ ਪਾਇਆ ਤਿਸ ਕੀ ਕੀਮ ਨ ਪਾਈ ॥सतिगुरु सेवि गुण निधानु पाइआ तिस की कीम न पाई ॥जिसने सतिगुरु की भरपूर सेवा करके गुणों के भण्डार प्रभु को प्राप्त कर लिया है उसका मूल्य नहीं आंका जा सकता। ਪ੍ਰਭੁ ਸਖਾ ਹਰਿ ਜੀਉ ਮੇਰਾ ਅੰਤੇ ਹੋਇ ਸਖਾਈ ॥੩॥प्रभु सखा हरि जीउ मेरा अंते

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ਸਭੁ ਜਗੁ ਕਾਜਲ ਕੋਠੜੀ ਤਨੁ ਮਨੁ ਦੇਹ ਸੁਆਹਿ ॥सभु जगु काजल कोठड़ी तनु मनु देह सुआहि ॥यह संसार कालिख की कुटिया है। शरीर, आत्मा एवं मनुष्य तन सब उसके साथ काले हो जाते हैं। ਗੁਰਿ ਰਾਖੇ ਸੇ ਨਿਰਮਲੇ ਸਬਦਿ ਨਿਵਾਰੀ ਭਾਹਿ ॥੭॥गुरि राखे से निरमले सबदि निवारी भाहि ॥७॥लेकिन जिनकी गुरु जी स्वयं रक्षा करते

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ਮਨਮੁਖੁ ਜਾਣੈ ਆਪਣੇ ਧੀਆ ਪੂਤ ਸੰਜੋਗੁ ॥मनमुखु जाणै आपणे धीआ पूत संजोगु ॥कुमार्गी पुरुष पुत्र-पुत्रियों एवं सगे-संबंधियों को अपना मान बैठता है ਨਾਰੀ ਦੇਖਿ ਵਿਗਾਸੀਅਹਿ ਨਾਲੇ ਹਰਖੁ ਸੁ ਸੋਗੁ ॥नारी देखि विगासीअहि नाले हरखु सु सोगु ॥वह अपनी गृहलक्ष्मी पत्नी को देख कर बड़ा प्रसन्न होता है। उसे हर्ष-शोक दोनों का सामना करना पड़ता है।

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ਸਰਬੇ ਥਾਈ ਏਕੁ ਤੂੰ ਜਿਉ ਭਾਵੈ ਤਿਉ ਰਾਖੁ ॥सरबे थाई एकु तूं जिउ भावै तिउ राखु ॥हे जगत के पालनहार ! तुम सर्वव्यापक हो, संसार के कण-कण में तुम विद्यमान हो। जिस तरह तुझे लुभाता है उसी तरह मेरी रक्षा करो। ਗੁਰਮਤਿ ਸਾਚਾ ਮਨਿ ਵਸੈ ਨਾਮੁ ਭਲੋ ਪਤਿ ਸਾਖੁ ॥गुरमति साचा मनि वसै नामु भलो

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ਸਾਚਿ ਸਹਜਿ ਸੋਭਾ ਘਣੀ ਹਰਿ ਗੁਣ ਨਾਮ ਅਧਾਰਿ ॥साचि सहजि सोभा घणी हरि गुण नाम अधारि ॥सत्य ईश्वर के यशोगान से उन्हें सहज अवस्था की उपलब्धि होती है और मनुष्य बहुत शोभा प्राप्त करता है। वे हरि नाम के सहारे रहते हैं। ਜਿਉ ਭਾਵੈ ਤਿਉ ਰਖੁ ਤੂੰ ਮੈ ਤੁਝ ਬਿਨੁ ਕਵਨੁ ਭਤਾਰੁ ॥੩॥जिउ भावै तिउ

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