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ਪੁਰਬੇ ਕਮਾਏ ਸ੍ਰੀਰੰਗ ਪਾਏ ਹਰਿ ਮਿਲੇ ਚਿਰੀ ਵਿਛੁੰਨਿਆ ॥पुरबे कमाए स्रीरंग पाए हरि मिले चिरी विछुंनिआ ॥ वही सर्वोत्तम प्राणी ईश्वर को पाता है, जिसके पूर्व जन्म के कर्म शुभ होते हैं, वह लम्बे वियोग से मुक्त होकर अपने भगवान में मिल जाता है। ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਸਰਬਤਿ ਰਵਿਆ ਮਨਿ ਉਪਜਿਆ ਬਿਸੁਆਸੋ ॥अंतरि बाहरि सरबति रविआ मनि

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ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਰੇ ਬਾਬੁਲਾ ਹਰਿ ਦੇਵਹੁ ਦਾਨੁ ਮੈ ਦਾਜੋ ॥हरि प्रभु मेरे बाबुला हरि देवहु दानु मै दाजो ॥  हे मेरे बाबुल ! मुझे दहेज में हरि-प्रभु के नाम का दान दो। ਹਰਿ ਕਪੜੋ ਹਰਿ ਸੋਭਾ ਦੇਵਹੁ ਜਿਤੁ ਸਵਰੈ ਮੇਰਾ ਕਾਜੋ ॥हरि कपड़ो हरि सोभा देवहु जितु सवरै मेरा काजो ॥वस्त्रों के स्थान पर हरि का

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ਇਹੁ ਮੋਹੁ ਮਾਇਆ ਤੇਰੈ ਸੰਗਿ ਨ ਚਾਲੈ ਝੂਠੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਲਗਾਈ ॥इहु मोहु माइआ तेरै संगि न चालै झूठी प्रीति लगाई ॥जिस मोह-माया के साथ तुमने लगन लगा रखी है, यह मिथ्या है, मृत्यु के समय यह तुम्हारा साथ नहीं देगी। ਸਗਲੀ ਰੈਣਿ ਗੁਦਰੀ ਅੰਧਿਆਰੀ ਸੇਵਿ ਸਤਿਗੁਰੁ ਚਾਨਣੁ ਹੋਇ ॥सगली रैणि गुदरी अंधिआरी सेवि सतिगुरु चानणु

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ਇਹੁ ਧਨੁ ਸੰਪੈ ਮਾਇਆ ਝੂਠੀ ਅੰਤਿ ਛੋਡਿ ਚਲਿਆ ਪਛੁਤਾਈ ॥इहु धनु स्मपै माइआ झूठी अंति छोडि चलिआ पछुताई ॥  यह धन-सम्पत्ति और मोह-माया सब झूठे हैं। जिसे अन्तकाल त्याग कर पश्चाताप करते हुए प्राणी चला जाता है। ਜਿਸ ਨੋ ਕਿਰਪਾ ਕਰੇ ਗੁਰੁ ਮੇਲੇ ਸੋ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸਮਾਲਿ ॥जिस नो किरपा करे गुरु मेले सो हरि

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ਅੰਤਿ ਕਾਲਿ ਪਛੁਤਾਸੀ ਅੰਧੁਲੇ ਜਾ ਜਮਿ ਪਕੜਿ ਚਲਾਇਆ ॥अंति कालि पछुतासी अंधुले जा जमि पकड़ि चलाइआ अज्ञानी प्राणी, अन्तकाल पश्चाताप करता है, जब यमदूत इसे आ पकड़ते हैं अर्थात् काल आने पर प्राणी पछतावा करने लगता है। ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਅਪੁਨਾ ਕਰਿ ਕਰਿ ਰਾਖਿਆ ਖਿਨ ਮਹਿ ਭਇਆ ਪਰਾਇਆ ॥सभु किछु अपुना करि करि राखिआ खिन महि भइआ

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ਦੂਜੈ ਪਹਰੈ ਰੈਣਿ ਕੈ ਵਣਜਾਰਿਆ ਮਿਤ੍ਰਾ ਵਿਸਰਿ ਗਇਆ ਧਿਆਨੁ ॥दूजै पहरै रैणि कै वणजारिआ मित्रा विसरि गइआ धिआनु ॥  हे मेरे वणजारे मित्र ! जीवन रूपी रात्रि के द्वितीय प्रहर में मनुष्य परमेश्वर के सिमरन को विस्मृत कर देता है। अर्थात्-जब प्राणी गर्भ से बाहर आता और जन्म लेता है तो गर्भ में की गई प्रार्थना

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ਸੁਣਿ ਗਲਾ ਗੁਰ ਪਹਿ ਆਇਆ ॥सुणि गला गुर पहि आइआ ॥  गुरु के शिष्यों से बातें सुनकर मैं गुरु के पास आया हूँ। ਨਾਮੁ ਦਾਨੁ ਇਸਨਾਨੁ ਦਿੜਾਇਆ ॥नामु दानु इसनानु दिड़ाइआ ॥ गुरु ने मुझे नाम, दान-पुण्य और स्नान निश्चित करवा दिया है।. ਸਭੁ ਮੁਕਤੁ ਹੋਆ ਸੈਸਾਰੜਾ ਨਾਨਕ ਸਚੀ ਬੇੜੀ ਚਾੜਿ ਜੀਉ ॥੧੧॥सभु मुकतु होआ सैसारड़ा नानक

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ਤੁਧੁ ਆਪੇ ਆਪੁ ਉਪਾਇਆ ॥तुधु आपे आपु उपाइआ ॥ हे भगवान ! तुमने स्वयं ही सृष्टि की रचना की है ਦੂਜਾ ਖੇਲੁ ਕਰਿ ਦਿਖਲਾਇਆ ॥दूजा खेलु करि दिखलाइआ ॥ और जगत् रूपी खेल को साज कर प्रत्यक्ष किया है। ਸਭੁ ਸਚੋ ਸਚੁ ਵਰਤਦਾ ਜਿਸੁ ਭਾਵੈ ਤਿਸੈ ਬੁਝਾਇ ਜੀਉ ॥੨੦॥सभु सचो सचु वरतदा जिसु भावै तिसै बुझाइ जीउ

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ਸੁਰਿ ਨਰ ਮੁਨਿ ਜਨ ਲੋਚਦੇ ਸੋ ਸਤਿਗੁਰਿ ਦੀਆ ਬੁਝਾਇ ਜੀਉ ॥੪॥सुरि नर मुनि जन लोचदे सो सतिगुरि दीआ बुझाइ जीउ ॥४॥  सतिगुरु ने मुझे उस प्रभु बारे बताया है जिस परमात्मा को पाने को देवता, मानव और ऋषि-मुनि कामना करते हैं। ॥४॥ ਸਤਸੰਗਤਿ ਕੈਸੀ ਜਾਣੀਐ ॥सतसंगति कैसी जाणीऐ ॥  सत्संगति किस प्रकार जानी जा सकती है? ਜਿਥੈ

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ਚਿਤਿ ਨ ਆਇਓ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਤਾ ਖੜਿ ਰਸਾਤਲਿ ਦੀਤ ॥੭॥चिति न आइओ पारब्रहमु ता खड़ि रसातलि दीत ॥७॥ तब भी यदि उसका मन पारब्रह्म के निर्मल नाम से रहित है तो उसे ले जाकर कुंभी नरक में फेंक दिया जाता है॥ ७॥ ਕਾਇਆ ਰੋਗੁ ਨ ਛਿਦ੍ਰੁ ਕਿਛੁ ਨਾ ਕਿਛੁ ਕਾੜਾ ਸੋਗੁ ॥काइआ रोगु न छिद्रु किछु ना

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