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ਮਨ ਰੇ ਕਿਉ ਛੂਟਹਿ ਬਿਨੁ ਪਿਆਰ ॥lमन रे किउ छूटहि बिनु पिआर ॥हे मेरे मन ! प्रभु से प्रेम के बिना तेरी मुक्ति किस तरह होगी ? ਗੁਰਮੁਖਿ ਅੰਤਰਿ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਬਖਸੇ ਭਗਤਿ ਭੰਡਾਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥गुरमुखि अंतरि रवि रहिआ बखसे भगति भंडार ॥१॥ रहाउ ॥भगवान तो गुरु के हृदय में निवास करता है और

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ਸਾਹਿਬੁ ਅਤੁਲੁ ਨ ਤੋਲੀਐ ਕਥਨਿ ਨ ਪਾਇਆ ਜਾਇ ॥੫॥साहिबु अतुलु न तोलीऐ कथनि न पाइआ जाइ ॥५॥वह साहिब (प्रभु) अतुल्य है जिसे किसी वस्तु के समक्ष तोला नहीं जा सकता, उसकी प्राप्ति सिर्फ कहने या बाते करने से नहीं हो सकती ॥ ५ ॥ ਵਾਪਾਰੀ ਵਣਜਾਰਿਆ ਆਏ ਵਜਹੁ ਲਿਖਾਇ ॥वापारी वणजारिआ आए वजहु लिखाइ ॥जीव

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ਭਾਈ ਰੇ ਅਵਰੁ ਨਾਹੀ ਮੈ ਥਾਉ ॥भाई रे अवरु नाही मै थाउ ॥हे भाई ! गुरु के बिना मेरा अन्य कोई भी स्थान नहीं। ਮੈ ਧਨੁ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਹੈ ਗੁਰਿ ਦੀਆ ਬਲਿ ਜਾਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥मै धनु नामु निधानु है गुरि दीआ बलि जाउ ॥१॥ रहाउ ॥गुरु ने कृपा करके मुझे हरि-नाम की दौलत का

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ਤ੍ਰਿਭਵਣਿ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਜਾਣੀਐ ਸਾਚੋ ਸਾਚੈ ਨਾਇ ॥੫॥त्रिभवणि सो प्रभु जाणीऐ साचो साचै नाइ ॥५॥ सत्य प्रभु के नाम द्वारा वह उसे पहचान लेते हैं, जो पाताल, धरती एवं आकाश तीनों लोकों में रहता है॥ ५॥ ਸਾ ਧਨ ਖਰੀ ਸੁਹਾਵਣੀ ਜਿਨਿ ਪਿਰੁ ਜਾਤਾ ਸੰਗਿ ॥सा धन खरी सुहावणी जिनि पिरु जाता संगि ॥ वह जीव-स्त्री बहुत ही

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ਮੁਖਿ ਝੂਠੈ ਝੂਠੁ ਬੋਲਣਾ ਕਿਉ ਕਰਿ ਸੂਚਾ ਹੋਇ ॥मुखि झूठै झूठु बोलणा किउ करि सूचा होइ ॥  मुख झूठा हो तो झूठा मनुष्य असत्य वचन ही व्यक्त करता है, फिर वह किस तरह पवित्र-पावन हो सकता है?” ਬਿਨੁ ਅਭ ਸਬਦ ਨ ਮਾਂਜੀਐ ਸਾਚੇ ਤੇ ਸਚੁ ਹੋਇ ॥੧॥बिनु अभ सबद न मांजीऐ साचे ते सचु होइ ॥१॥ नाम

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ਹਰਿ ਜੀਉ ਸਬਦਿ ਪਛਾਣੀਐ ਸਾਚਿ ਰਤੇ ਗੁਰ ਵਾਕਿ ॥हरि जीउ सबदि पछाणीऐ साचि रते गुर वाकि ॥ नाम द्वारा इन्सान पूज्य प्रभु को पहचान लेता है और गुरु की वाणी द्वारा वह सत्य के रंग में लिवलीन हो जाता है। ਤਿਤੁ ਤਨਿ ਮੈਲੁ ਨ ਲਗਈ ਸਚ ਘਰਿ ਜਿਸੁ ਓਤਾਕੁ ॥तितु तनि मैलु न लगई सच घरि

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ਗਣਤ ਗਣਾਵਣਿ ਆਈਆ ਸੂਹਾ ਵੇਸੁ ਵਿਕਾਰੁ ॥गणत गणावणि आईआ सूहा वेसु विकारु ॥ जो अपने प्राणपति से अनुकंपा करने की जगह उससे हिसाब-किताब मोल करने आई हैं, उनका दुल्हन-वेष लाल पहरावा भी बेकार है, अर्थात् आडम्बर है l ਪਾਖੰਡਿ ਪ੍ਰੇਮੁ ਨ ਪਾਈਐ ਖੋਟਾ ਪਾਜੁ ਖੁਆਰੁ ॥੧॥पाखंडि प्रेमु न पाईऐ खोटा पाजु खुआरु ॥१॥ हे जीवात्मा ! आडम्बर

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ਭਾਈ ਰੇ ਸਾਚੀ ਸਤਿਗੁਰ ਸੇਵ ॥भाई रे साची सतिगुर सेव ॥ हे भाई ! केवल सतिगुरु की श्रद्धापूर्वक निष्काम सेवा ही सत्य है। ਸਤਿਗੁਰ ਤੁਠੈ ਪਾਈਐ ਪੂਰਨ ਅਲਖ ਅਭੇਵ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥सतिगुर तुठै पाईऐ पूरन अलख अभेव ॥१॥ रहाउ ॥जब सतिगुरु परम-प्रसन्न हो जाते हैं, तभी सर्वव्यापक अगाध, अदृश्य स्वामी प्राप्त होता है ॥१॥ रहाउ॥

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ਬੰਧਨ ਮੁਕਤੁ ਸੰਤਹੁ ਮੇਰੀ ਰਾਖੈ ਮਮਤਾ ॥੩॥बंधन मुकतु संतहु मेरी राखै ममता ॥३॥हे संतों ! वह मुझे समस्त बंधनों से मुक्ति प्रदान करता है और मेरे लिए ममता-प्यार रखता है ॥३॥ ਭਏ ਕਿਰਪਾਲ ਠਾਕੁਰ ਰਹਿਓ ਆਵਣ ਜਾਣਾ ॥भए किरपाल ठाकुर रहिओ आवण जाणा ॥मेरा ठाकुर बड़ा दयालु हो गया है और मेरा (जन्म-मरण) आवागमन मिट

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ਨਾਨਕ ਧੰਨੁ ਸੋਹਾਗਣੀ ਜਿਨ ਸਹ ਨਾਲਿ ਪਿਆਰੁ ॥੪॥੨੩॥੯੩॥नानक धंनु सोहागणी जिन सह नालि पिआरु ॥४॥२३॥९३॥हे नानक ! वह सुहागिनें (प्राणी) धन्य हैं, जिन्होंने अपने पति-परमेश्वर का प्रेम प्राप्त कर लिया है ॥४॥२३॥९३॥ ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੬ ॥सिरीरागु महला ५ घरु ६ ॥श्रीरागु महला ५ ॥ ਕਰਣ ਕਾਰਣ ਏਕੁ ਓਹੀ ਜਿਨਿ ਕੀਆ ਆਕਾਰੁ ॥करण कारण

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