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ਜਪਿ ਮਨ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਰਸਨਾ ॥जपि मन राम नामु रसना ॥हे मन ! अपनी जीभ से राम-नाम जप। ਮਸਤਕਿ ਲਿਖਤ ਲਿਖੇ ਗੁਰੁ ਪਾਇਆ ਹਰਿ ਹਿਰਦੈ ਹਰਿ ਬਸਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥मसतकि लिखत लिखे गुरु पाइआ हरि हिरदै हरि बसना ॥१॥ रहाउ ॥मस्तक पर लिखे भाग्य लेखानुसार मैंने गुरु को पा लिया है और हृदय में भगवान्

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ਕਹਤ ਨਾਨਕੁ ਸਚੇ ਸਿਉ ਪ੍ਰੀਤਿ ਲਾਏ ਚੂਕੈ ਮਨਿ ਅਭਿਮਾਨਾ ॥कहत नानकु सचे सिउ प्रीति लाए चूकै मनि अभिमाना ॥नानक का कथन है कि जो सत्यस्वरुप परमात्मा से प्रीति लगाता है, उसके मन का अभिमान समाप्त हो जाता है। ਕਹਤ ਸੁਣਤ ਸਭੇ ਸੁਖ ਪਾਵਹਿ ਮਾਨਤ ਪਾਹਿ ਨਿਧਾਨਾ ॥੪॥੪॥कहत सुणत सभे सुख पावहि मानत पाहि निधाना ॥४॥४॥नाम

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ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਣੇ ਸਿ ਮਨਮੁਖ ਕਹੀਅਹਿ ਨਾ ਉਰਵਾਰਿ ਨ ਪਾਰੇ ॥੩॥भरमि भुलाणे सि मनमुख कहीअहि ना उरवारि न पारे ॥३॥उन्हें मनमुख कहा जाता है, जो भ्रम में फँसकर कुमार्गगामी हो गए हैं और इस तरह के व्यक्ति लोक-परलोक कहीं के भी नहीं रहते॥ ३॥ ਜਿਸ ਨੋ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਸੋਈ ਜਨੁ ਪਾਏ ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਲੇ ॥जिस

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ਐਸਾ ਨਾਮੁ ਨਿਰੰਜਨ ਦੇਉ ॥ ऐसा नामु निरंजन देउ ॥ हे पावनस्वरूप ! तेरा नाम सर्वसुख व मुक्ति प्रदाता है, अतः यही देना ! O’ God, Your Name is immaculate ; just like You, it is not allured by Maya. ਹਉ ਜਾਚਿਕੁ ਤੂ ਅਲਖ ਅਭੇਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हउ जाचिकु तू अलख अभेउ ॥१॥ रहाउ

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ੴ ਸਤਿ ਨਾਮੁ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰਭਉ ਨਿਰਵੈਰੁ ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਅਜੂਨੀ ਸੈਭੰ ਗੁਰਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ੴ सति नामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुरप्रसादि ॥ओंकार एक है, उसका नाम सत्य है, वह आदिपुरुष सृष्टि का रचयिता है, सर्वशक्तिमान है, उसे कोई भय नहीं, उसका किसी से कोई वैर नहीं, वह कालातीत ब्रह्म मूर्ति सदा शाश्वत

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ਕਿਆ ਤੂ ਸੋਇਆ ਜਾਗੁ ਇਆਨਾ ॥किआ तू सोइआ जागु इआना ॥हे नादान इन्सान ! तू क्यों अज्ञान की नींद में सोया हुआ है जाग जा। ਤੈ ਜੀਵਨੁ ਜਗਿ ਸਚੁ ਕਰਿ ਜਾਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥तै जीवनु जगि सचु करि जाना ॥१॥ रहाउ ॥तूने जगत् में जीवन को सत्य समझ लिया है॥ १॥ रहाउ ॥ ਜਿਨਿ ਜੀਉ

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ਸੂਹੀ ਕਬੀਰ ਜੀਉ ਲਲਿਤ ॥सूही कबीर जीउ ललित ॥सूही कबीर जीउ ललित ॥ ਥਾਕੇ ਨੈਨ ਸ੍ਰਵਨ ਸੁਨਿ ਥਾਕੇ ਥਾਕੀ ਸੁੰਦਰਿ ਕਾਇਆ ॥थाके नैन स्रवन सुनि थाके थाकी सुंदरि काइआ ॥हे जीव ! देख-देख कर तेरे नयन थक चुके हैं, सुन-सुनकर तेरे कान भी थक चुके हैं और तेरी सुन्दर काया भी थक चुकी है। ਜਰਾ

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ਕਿਉ ਨ ਮਰੀਜੈ ਰੋਇ ਜਾ ਲਗੁ ਚਿਤਿ ਨ ਆਵਹੀ ॥੧॥किउ न मरीजै रोइ जा लगु चिति न आवही ॥१॥जब तक तू मेरे चित्त में आकर नहीं बसता, तब तक क्यों न मैं रो रो कर मृत्यु को प्राप्त हो जाऊँ।१॥ ਮਃ ੨ ॥मः २ ॥महला २॥ ਜਾਂ ਸੁਖੁ ਤਾ ਸਹੁ ਰਾਵਿਓ ਦੁਖਿ ਭੀ ਸੰਮ੍ਹ੍ਹਾਲਿਓਇ ॥जां

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ਘਰੁ ਦਰੁ ਪਾਵੈ ਮਹਲੁ ਨਾਮੁ ਪਿਆਰਿਆ ॥घरु दरु पावै महलु नामु पिआरिआ ॥उसने नाम से प्रेम करके प्रभु का द्वार-घर पा लिया है। ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਾਇਆ ਨਾਮੁ ਹਉ ਗੁਰ ਕਉ ਵਾਰਿਆ ॥गुरमुखि पाइआ नामु हउ गुर कउ वारिआ ॥उसने गुरु के माध्यम से नाम को प्राप्त किया है, मैं उस गुरु पर न्यौछावर हूँ। ਤੂ ਆਪਿ

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ਸਲੋਕ ਮਃ ੧ ॥सलोक मः १ ॥श्लोक महला १॥ ਚੋਰਾ ਜਾਰਾ ਰੰਡੀਆ ਕੁਟਣੀਆ ਦੀਬਾਣੁ ॥चोरा जारा रंडीआ कुटणीआ दीबाणु ॥चोरों, व्यभिचारियों, वेश्याओं तथा दलालों के इतने गहरे रिश्ते होते हैं कि उनकी महफिल लगी ही रहती है। ਵੇਦੀਨਾ ਕੀ ਦੋਸਤੀ ਵੇਦੀਨਾ ਕਾ ਖਾਣੁ ॥वेदीना की दोसती वेदीना का खाणु ॥दुष्टों की दुष्ट लोगों से दोस्ती

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