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ਕੰਚਨ ਕਾਇਆ ਜੋਤਿ ਅਨੂਪੁ ॥कंचन काइआ जोति अनूपु ॥उसकी काया प्रभु की अनूप ज्योति से सोना हो जाती है और ਤ੍ਰਿਭਵਣ ਦੇਵਾ ਸਗਲ ਸਰੂਪੁ ॥त्रिभवण देवा सगल सरूपु ॥वह सभी तीन लोकों में प्रभु का स्वरूप देख लेता है। ਮੈ ਸੋ ਧਨੁ ਪਲੈ ਸਾਚੁ ਅਖੂਟੁ ॥੪॥मै सो धनु पलै साचु अखूटु ॥४॥मेरे दामन में प्रभु

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ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਕਰਮ ਕਮਾਉ ॥गुर परसादी करम कमाउ ॥गुरु की दया से शुभ कर्म करो। ਨਾਮੇ ਰਾਤਾ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਉ ॥੫॥नामे राता हरि गुण गाउ ॥५॥नाम में अनुरक्त होकर हरि का गुणगान करो।॥ ५॥ ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਤੇ ਆਪੁ ਪਛਾਤਾ ॥गुर सेवा ते आपु पछाता ॥गुरु की सेवा से मैंने अपने आत्मस्वरूप को समझ लिया है।

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ਸੁਖੁ ਮਾਨੈ ਭੇਟੈ ਗੁਰ ਪੀਰੁ ॥सुखु मानै भेटै गुर पीरु ॥जिसे गुरु-पीर मिल जाता है, वह सदा सुख भोगता है। ਏਕੋ ਸਾਹਿਬੁ ਏਕੁ ਵਜੀਰੁ ॥੫॥एको साहिबु एकु वजीरु ॥५॥एक परमात्मा ही दुनिया का बादशाह है और खुद ही अपना एक वजीर है॥ ५ ॥ ਜਗੁ ਬੰਦੀ ਮੁਕਤੇ ਹਉ ਮਾਰੀ ॥जगु बंदी मुकते हउ मारी ॥यह

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ਜੋ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਸੋ ਫੁਨਿ ਹੋਇ ॥जो तिसु भावै सो फुनि होइ ॥जो कुछ उसे अच्छा लगता है, संसार में वही होता है। ਸੁਣਿ ਭਰਥਰਿ ਨਾਨਕੁ ਕਹੈ ਬੀਚਾਰੁ ॥सुणि भरथरि नानकु कहै बीचारु ॥हे भर्तृहरि योगी ! सुन, नानक तुझे विचार की बात कहता है, ਨਿਰਮਲ ਨਾਮੁ ਮੇਰਾ ਆਧਾਰੁ ॥੮॥੧॥निरमल नामु मेरा आधारु ॥८॥१॥उस प्रभु

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ਸਭ ਕਉ ਤਜਿ ਗਏ ਹਾਂ ॥सभ कउ तजि गए हां ॥उसे सब लोग यहीं छोड़कर चले गए हैं। ਸੁਪਨਾ ਜਿਉ ਭਏ ਹਾਂ ॥सुपना जिउ भए हां ॥यह वस्तुएं उसे स्वप्न की भाँति लगती हैं ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਿਨੑਿ ਲਏ ॥੧॥हरि नामु जिन्हि लए ॥१॥जो हरि का नाम-सुमिरन करता है। १॥ ਹਰਿ ਤਜਿ ਅਨ ਲਗੇ ਹਾਂ ॥हरि

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ਅਲਖ ਅਭੇਵੀਐ ਹਾਂ ॥अलख अभेवीऐ हां ॥वह अलख एवं भेद-रहित है। ਤਾਂ ਸਿਉ ਪ੍ਰੀਤਿ ਕਰਿ ਹਾਂ ॥तां सिउ प्रीति करि हां ॥उसके साथ तू अपना प्रेम लगा। ਬਿਨਸਿ ਨ ਜਾਇ ਮਰਿ ਹਾਂ ॥बिनसि न जाइ मरि हां ॥उसका कभी नाश नहीं होता और वह जन्म-मरण से रहित है। ਗੁਰ ਤੇ ਜਾਨਿਆ ਹਾਂ ॥गुर ते जानिआ

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ਤਜਿ ਮਾਨ ਮੋਹ ਵਿਕਾਰ ਮਿਥਿਆ ਜਪਿ ਰਾਮ ਰਾਮ ਰਾਮ ॥तजि मान मोह विकार मिथिआ जपि राम राम राम ॥अपना अभिमान, मोह, पाप एवं झूठ को छोड़कर राम-नाम का जाप किया करो। ਮਨ ਸੰਤਨਾ ਕੈ ਚਰਨਿ ਲਾਗੁ ॥੧॥मन संतना कै चरनि लागु ॥१॥हे मन ! संतों के चरणों से लग जाओ॥ १॥ ਪ੍ਰਭ ਗੋਪਾਲ ਦੀਨ ਦਇਆਲ

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ਪ੍ਰਭ ਸੰਗਿ ਮਿਲੀਜੈ ਇਹੁ ਮਨੁ ਦੀਜੈ ॥प्रभ संगि मिलीजै इहु मनु दीजै ॥अपना यह मन प्रभु के समक्ष अर्पण करने से ही उससे मिला जा सकता है। ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਮਿਲੈ ਅਪਨੀ ਦਇਆ ਕਰਹੁ ॥੨॥੧॥੧੫੦॥नानक नामु मिलै अपनी दइआ करहु ॥२॥१॥१५०॥नानक का कथन है कि हे प्रभु जी ! अपनी दया करो ताकि मुझे तेरा नाम

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ਕਿਛੁ ਕਿਛੁ ਨ ਚਾਹੀ ॥੨॥किछु किछु न चाही ॥२॥इनमें से मुझे कुछ भी नहीं चाहिए॥ २॥ ਚਰਨਨ ਸਰਨਨ ਸੰਤਨ ਬੰਦਨ ॥ ਸੁਖੋ ਸੁਖੁ ਪਾਹੀ ॥चरनन सरनन संतन बंदन ॥ सुखो सुखु पाही ॥प्रभु-चरणों की शरण एवं संतों की-वन्दना इनमें ही मैं सुखों का सुख अनुभव करता हूँ। ਨਾਨਕ ਤਪਤਿ ਹਰੀ ॥ ਮਿਲੇ ਪ੍ਰੇਮ ਪਿਰੀ ॥੩॥੩॥੧੪੩॥नानक

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ਦਇਆ ਕਰਹੁ ਕਿਰਮ ਅਪੁਨੇ ਕਉ ਇਹੈ ਮਨੋਰਥੁ ਸੁਆਉ ॥੨॥दइआ करहु किरम अपुने कउ इहै मनोरथु सुआउ ॥२॥अपने तुच्छ कीड़े पर दया करो, केवल यही मेरा मनोरथ एवं प्रयोजन है॥ २॥ ਤਨੁ ਧਨੁ ਤੇਰਾ ਤੂੰ ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਰਾ ਹਮਰੈ ਵਸਿ ਕਿਛੁ ਨਾਹਿ ॥तनु धनु तेरा तूं प्रभु मेरा हमरै वसि किछु नाहि ॥हे मेरे प्रभु ! तू

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