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ਜਿਨਾ ਗੁਰਸਿਖਾ ਕਉ ਹਰਿ ਸੰਤੁਸਟੁ ਹੈ ਤਿਨੀ ਸਤਿਗੁਰ ਕੀ ਗਲ ਮੰਨੀ ॥जिना गुरसिखा कउ हरि संतुसटु है तिनी सतिगुर की गल मंनी ॥जिन गुरु के शिष्यों पर भगवान परम संतुष्ट हैं, उन्होंने सतिगुरु की बात मानी है। ਜੋ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਦੇ ਤਿਨੀ ਚੜੀ ਚਵਗਣਿ ਵੰਨੀ ॥੧੨॥जो गुरमुखि नामु धिआइदे तिनी चड़ी चवगणि वंनी ॥१२॥जो गुरुमुख

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ਸਤਿਗੁਰੁ ਗਹਿਰ ਗਭੀਰੁ ਹੈ ਸੁਖ ਸਾਗਰੁ ਅਘਖੰਡੁ ॥सतिगुरु गहिर गभीरु है सुख सागरु अघखंडु ॥ सतिगुरु गहन, गंभीर एवं सुखों का सागर है और समस्त पापों का नाश करने वाले हैं। ਜਿਨਿ ਗੁਰੁ ਸੇਵਿਆ ਆਪਣਾ ਜਮਦੂਤ ਨ ਲਾਗੈ ਡੰਡੁ ॥जिनि गुरु सेविआ आपणा जमदूत न लागै डंडु ॥ जिस प्राणी ने अपने गुरु की सेवा का फल

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ਸੰਤਾ ਸੰਗਤਿ ਮਨਿ ਵਸੈ ਪ੍ਰਭੁ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਬਖਸਿੰਦੁ ॥संता संगति मनि वसै प्रभु प्रीतमु बखसिंदु ॥ संतों की संगति द्वारा क्षमावान प्रियतम प्रभु हृदय में बसता है।    ਜਿਨਿ ਸੇਵਿਆ ਪ੍ਰਭੁ ਆਪਣਾ ਸੋਈ ਰਾਜ ਨਰਿੰਦੁ ॥੨॥जिनि सेविआ प्रभु आपणा सोई राज नरिंदु ॥२॥  जिसने अपने प्रभु नाम का सिमरन किया है। वह राजाओं का भी राजा है॥ २॥    ਅਉਸਰਿ

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ਐਥੈ ਮਿਲਹਿ ਵਡਾਈਆ ਦਰਗਹਿ ਪਾਵਹਿ ਥਾਉ ॥੩॥ऐथै मिलहि वडाईआ दरगहि पावहि थाउ ॥३॥ यहाँ पर तुझे मान-सम्मान प्राप्त होगा और प्रभु के दरबार में भी श्रेष्ठ स्थान प्राप्त होगा ॥३॥    ਕਰੇ ਕਰਾਏ ਆਪਿ ਪ੍ਰਭੁ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਤਿਸ ਹੀ ਹਾਥਿ ॥करे कराए आपि प्रभु सभु किछु तिस ही हाथि ॥अकाल पुरुष स्वयं ही करने-करवाने वाला है। परमेश्वर

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ਮਾਇਆ ਮੋਹ ਪਰੀਤਿ ਧ੍ਰਿਗੁ ਸੁਖੀ ਨ ਦੀਸੈ ਕੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥माइआ मोह परीति ध्रिगु सुखी न दीसै कोइ ॥१॥ रहाउ ॥ मोह-माया की प्रीति को धिक्कार है। इससे कोई भी सुखी दिखाई नहीं देता ॥१॥ रहाउ॥    ਦਾਨਾ ਦਾਤਾ ਸੀਲਵੰਤੁ ਨਿਰਮਲੁ ਰੂਪੁ ਅਪਾਰੁ ॥दाना दाता सीलवंतु निरमलु रूपु अपारु ॥  वह परमेश्वर सर्वज्ञ, महान दाता, शीलवान, पवित्र, सुन्दर

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ਮੇਰੇ ਮਨ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ॥मेरे मन हरि हरि नामु धिआइ ॥   हे मेरे मन ! तू हरि-परमेश्वर के नाम का ध्यान किया करो।    ਨਾਮੁ ਸਹਾਈ ਸਦਾ ਸੰਗਿ ਆਗੈ ਲਏ ਛਡਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥नामु सहाई सदा संगि आगै लए छडाइ ॥१॥ रहाउ ॥  चूंकि भगवान का नाम-सिमरन ही सदैव साथ रहता है और सहायक होता है

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ਮੇਰੇ ਮਨ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ॥मेरे मन हरि हरि नामु धिआइ ॥   हे मेरे मन ! तू हरि-परमेश्वर के नाम का ध्यान किया करो।    ਨਾਮੁ ਸਹਾਈ ਸਦਾ ਸੰਗਿ ਆਗੈ ਲਏ ਛਡਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥नामु सहाई सदा संगि आगै लए छडाइ ॥१॥ रहाउ ॥  चूंकि भगवान का नाम-सिमरन ही सदैव साथ रहता है और सहायक होता है

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ਸਾਧੂ ਸੰਗੁ ਮਸਕਤੇ ਤੂਠੈ ਪਾਵਾ ਦੇਵ ॥साधू संगु मसकते तूठै पावा देव ॥हे गुरुदेव ! आपकी प्रसन्नता से ही साधु-संगति एवं नाम-सिमरन का कठिन परिश्रम किया जा सकता है। ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਵਸਗਤਿ ਸਾਹਿਬੈ ਆਪੇ ਕਰਣ ਕਰੇਵ ॥सभु किछु वसगति साहिबै आपे करण करेव ॥ सृष्टि के समस्त कार्य सच्चे पातशाह के अधीन हैं, वह स्वयं ही

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ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥सिरीरागु महला ५ ॥  श्रीरागु महला ५ ॥    ਭਲਕੇ ਉਠਿ ਪਪੋਲੀਐ ਵਿਣੁ ਬੁਝੇ ਮੁਗਧ ਅਜਾਣਿ ॥भलके उठि पपोलीऐ विणु बुझे मुगध अजाणि ॥  मनुष्य प्रतिदिन प्रातःकाल उठकर अपनी देहि का पालन-पोषण करता है, किन्तु जब तक ईश्वर बारे ज्ञान नहीं होता, वह मूर्ख तथा नासमझ ही बना रहता है।    ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਚਿਤਿ ਨ ਆਇਓ

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ਓਨੀ ਚਲਣੁ ਸਦਾ ਨਿਹਾਲਿਆ ਹਰਿ ਖਰਚੁ ਲੀਆ ਪਤਿ ਪਾਇ ॥ओनी चलणु सदा निहालिआ हरि खरचु लीआ पति पाइ ॥  वह सदैव मृत्यु को अपने नेत्रों के समक्ष रखते हैं और प्रवास हेतु व्यय के लिए परमेश्वर के नाम की राशि एकत्र करते हैं, जिससे लोकों में उन्हें मान-यश प्राप्त होता है।    ਗੁਰਮੁਖਿ ਦਰਗਹ ਮੰਨੀਅਹਿ ਹਰਿ ਆਪਿ

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