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ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੩ ॥सोरठि महला ३ ॥सोरठि महला ३ ॥ ਹਰਿ ਜੀਉ ਤੁਧੁ ਨੋ ਸਦਾ ਸਾਲਾਹੀ ਪਿਆਰੇ ਜਿਚਰੁ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਹੈ ਸਾਸਾ ॥हरि जीउ तुधु नो सदा सालाही पिआरे जिचरु घट अंतरि है सासा ॥हे हरि ! जब तक मेरे शरीर में जीवन सांसें हैं, तब तक मैं सर्वदा तेरी ही महिमा-स्तुति करता रहूँ। ਇਕੁ

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ਜੋ ਅੰਤਰਿ ਸੋ ਬਾਹਰਿ ਦੇਖਹੁ ਅਵਰੁ ਨ ਦੂਜਾ ਕੋਈ ਜੀਉ ॥जो अंतरि सो बाहरि देखहु अवरु न दूजा कोई जीउ ॥जो प्रभु अन्तर्मन में ही मौजूद है, उसके बाहर भी दर्शन करो, क्योंकि उसके अलावा दूसरा कोई भी नहीं। ਗੁਰਮੁਖਿ ਏਕ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਕਰਿ ਦੇਖਹੁ ਘਟਿ ਘਟਿ ਜੋਤਿ ਸਮੋਈ ਜੀਉ ॥੨॥गुरमुखि एक द्रिसटि करि देखहु घटि

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ਤੁਝ ਹੀ ਮਨ ਰਾਤੇ ਅਹਿਨਿਸਿ ਪਰਭਾਤੇ ਹਰਿ ਰਸਨਾ ਜਪਿ ਮਨ ਰੇ ॥੨॥तुझ ही मन राते अहिनिसि परभाते हरि रसना जपि मन रे ॥२॥मेरा मन दिन-रात प्रभातकाल तुझ में ही मग्न रहता है। हे मन ! अपनी रसना से हरि का जाप करो ॥ २॥ ਤੁਮ ਸਾਚੇ ਹਮ ਤੁਮ ਹੀ ਰਾਚੇ ਸਬਦਿ ਭੇਦਿ ਫੁਨਿ ਸਾਚੇ ॥तुम

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ਜਨਮ ਮਰਨ ਕਉ ਇਹੁ ਜਗੁ ਬਪੁੜੋ ਇਨਿ ਦੂਜੈ ਭਗਤਿ ਵਿਸਾਰੀ ਜੀਉ ॥जनम मरन कउ इहु जगु बपुड़ो इनि दूजै भगति विसारी जीउ ॥बेचारी यह दुनिया तो जन्म मरण के चक्र में ही पड़ी हुई है, चूंकि इसने द्वैतभाव में फंसकर प्रभु-भक्ति को ही भुला दिया है। ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਿਲੈ ਤ ਗੁਰਮਤਿ ਪਾਈਐ ਸਾਕਤ ਬਾਜੀ ਹਾਰੀ ਜੀਉ

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ਬੰਨੁ ਬਦੀਆ ਕਰਿ ਧਾਵਣੀ ਤਾ ਕੋ ਆਖੈ ਧੰਨੁ ॥बंनु बदीआ करि धावणी ता को आखै धंनु ॥बुराइयों की रोकथाम को अपना उद्यम बना तो ही लोग तुझे धन्य कहेंगे। ਨਾਨਕ ਵੇਖੈ ਨਦਰਿ ਕਰਿ ਚੜੈ ਚਵਗਣ ਵੰਨੁ ॥੪॥੨॥नानक वेखै नदरि करि चड़ै चवगण वंनु ॥४॥२॥हे नानक ! तब ही प्रभु तुझे कृपा-दृष्टि से देखेगा और तुझ

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ਸਬਦੈ ਸਾਦੁ ਨ ਆਇਓ ਨਾਮਿ ਨ ਲਗੋ ਪਿਆਰੁ ॥ सबदै सादु न आइओ नामि न लगो पिआरु ॥ जिस व्यक्ति को गुरु के शब्द का आनंद प्राप्त नहीं होता, भगवान के नाम से प्रेम नहीं लगाता, That person, who does not enjoy the taste of Guru’s word and has not been imbued with the love

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ਸਬਦੈ ਸਾਦੁ ਨ ਆਇਓ ਨਾਮਿ ਨ ਲਗੋ ਪਿਆਰੁ ॥सबदै सादु न आइओ नामि न लगो पिआरु ॥जिस व्यक्ति को गुरु के शब्द का आनंद प्राप्त नहीं होता, भगवान के नाम से प्रेम नहीं लगाता, ਰਸਨਾ ਫਿਕਾ ਬੋਲਣਾ ਨਿਤ ਨਿਤ ਹੋਇ ਖੁਆਰੁ ॥रसना फिका बोलणा नित नित होइ खुआरु ॥वह अपनी जीभ से कड़वा ही बोलता

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ਮਨਮੁਖਿ ਅੰਧ ਨ ਚੇਤਨੀ ਜਨਮਿ ਮਰਿ ਹੋਹਿ ਬਿਨਾਸਿ ॥ मनमुखि अंध न चेतनी जनमि मरि होहि बिनासि ॥ अन्धे मनमुख व्यक्ति भगवान को याद नहीं करते, जिसके कारण जन्म-मरण के चक्र में ही उनका विनाश हो जाता है। The spiritually blind, self-willed persons do not think of God, and are being spiritually destroyed by going

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ਮਨਮੁਖਿ ਅੰਧ ਨ ਚੇਤਨੀ ਜਨਮਿ ਮਰਿ ਹੋਹਿ ਬਿਨਾਸਿ ॥मनमुखि अंध न चेतनी जनमि मरि होहि बिनासि ॥अन्धे मनमुख व्यक्ति भगवान को याद नहीं करते, जिसके कारण जन्म-मरण के चक्र में ही उनका विनाश हो जाता है। ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਤਿਨੀ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ਜਿਨ ਕੰਉ ਧੁਰਿ ਪੂਰਬਿ ਲਿਖਿਆਸਿ ॥੨॥नानक गुरमुखि तिनी नामु धिआइआ जिन कंउ धुरि पूरबि

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ਸਭਿ ਘਟ ਭੋਗਵੈ ਅਲਿਪਤੁ ਰਹੈ ਅਲਖੁ ਨ ਲਖਣਾ ਜਾਈ ॥सभि घट भोगवै अलिपतु रहै अलखु न लखणा जाई ॥वह सभी के हृदय में रमण करता है लेकिन फिर भी उनसे निर्लिप्त रहता है। वह अदृष्य है और उसे देखा नहीं जा सकता। ਪੂਰੈ ਗੁਰਿ ਵੇਖਾਲਿਆ ਸਬਦੇ ਸੋਝੀ ਪਾਈ ॥पूरै गुरि वेखालिआ सबदे सोझी पाई ॥इस

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