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ਗਉੜੀ ਕਬੀਰ ਜੀ ॥गउड़ी कबीर जी ॥गउड़ी कबीर जी ॥ ਅੰਧਕਾਰ ਸੁਖਿ ਕਬਹਿ ਨ ਸੋਈ ਹੈ ॥अंधकार सुखि कबहि न सोई है ॥भगवान को विस्मृत करके अज्ञानता रूपी अंधेरे में कभी सुखपूर्वक नहीं सोया जा सकता। ਰਾਜਾ ਰੰਕੁ ਦੋਊ ਮਿਲਿ ਰੋਈ ਹੈ ॥੧॥राजा रंकु दोऊ मिलि रोई है ॥१॥राजा हो अथवा रंक हो, दोनों ही

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ਤੂੰ ਸਤਿਗੁਰੁ ਹਉ ਨਉਤਨੁ ਚੇਲਾ ॥तूं सतिगुरु हउ नउतनु चेला ॥हे मेरे मालिक ! तू सतिगुरु है और मैं तेरा नया चेला हूँ। ਕਹਿ ਕਬੀਰ ਮਿਲੁ ਅੰਤ ਕੀ ਬੇਲਾ ॥੪॥੨॥कहि कबीर मिलु अंत की बेला ॥४॥२॥कबीर जी कहते हैं – हे प्रभु ! अब तो जीवन के अन्तिम क्षण हैं, अपने दर्शन प्रदान कीजिए॥ ४॥

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ਨਾਨਕ ਲੜਿ ਲਾਇ ਉਧਾਰਿਅਨੁ ਦਯੁ ਸੇਵਿ ਅਮਿਤਾ ॥੧੯॥नानक लड़ि लाइ उधारिअनु दयु सेवि अमिता ॥१९॥हे नानक ! ऐसे अनन्त परमात्मा का चिन्तन कर, जो अपने साथ लगाकर तुझे (संसार सागर से) पार कर देगा ॥ १६॥ ਸਲੋਕ ਮਃ ੫ ॥सलोक मः ५ ॥श्लोक महला ५॥ ਧੰਧੜੇ ਕੁਲਾਹ ਚਿਤਿ ਨ ਆਵੈ ਹੇਕੜੋ ॥धंधड़े कुलाह चिति न

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ਜੀਵਨ ਪਦੁ ਨਿਰਬਾਣੁ ਇਕੋ ਸਿਮਰੀਐ ॥जीवन पदु निरबाणु इको सिमरीऐ ॥निर्वाण अवस्था वाली जीवन पदवी पाने के लिए एक पवित्र प्रभु की आराधना करो। ਦੂਜੀ ਨਾਹੀ ਜਾਇ ਕਿਨਿ ਬਿਧਿ ਧੀਰੀਐ ॥दूजी नाही जाइ किनि बिधि धीरीऐ ॥दूसरा कोई स्थान नहीं, (क्योंकि) किसी दूसरे से हमारी कैसे संतुष्टि हो सकती है? ਡਿਠਾ ਸਭੁ ਸੰਸਾਰੁ ਸੁਖੁ ਨ

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ਨਾਨਕ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਧਨੁ ਕੀਤਾ ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ॥੨॥नानक राम नामु धनु कीता पूरे गुर परसादि ॥२॥हे नानक ! पूर्ण गुरु की कृपा से उसने राम के नाम को अपना धन बनाया है॥ २॥ ਪਉੜੀ ॥पउड़ी ॥पउड़ी ॥ ਧੋਹੁ ਨ ਚਲੀ ਖਸਮ ਨਾਲਿ ਲਬਿ ਮੋਹਿ ਵਿਗੁਤੇ ॥धोहु न चली खसम नालि लबि मोहि विगुते ॥जगत्

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ਪਉੜੀ ॥पउड़ी ॥पउड़ी ॥ ਤਿਸੈ ਸਰੇਵਹੁ ਪ੍ਰਾਣੀਹੋ ਜਿਸ ਦੈ ਨਾਉ ਪਲੈ ॥तिसै सरेवहु प्राणीहो जिस दै नाउ पलै ॥हे प्राणियों ! उस गुरु की सेवा करो जिसके पास ईश्वर का नाम है। ਐਥੈ ਰਹਹੁ ਸੁਹੇਲਿਆ ਅਗੈ ਨਾਲਿ ਚਲੈ ॥ऐथै रहहु सुहेलिआ अगै नालि चलै ॥इस तरह तुम इहलोक में सुखपूर्वक रहोगे तथा परलोक में भी

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ਮਃ ੫ ॥मः ५ ॥महला ५॥ ਦਾਮਨੀ ਚਮਤਕਾਰ ਤਿਉ ਵਰਤਾਰਾ ਜਗ ਖੇ ॥दामनी चमतकार तिउ वरतारा जग खे ॥दुनिया का व्यवहार वैसा है, जैसे दामिनी की चमक है। ਵਥੁ ਸੁਹਾਵੀ ਸਾਇ ਨਾਨਕ ਨਾਉ ਜਪੰਦੋ ਤਿਸੁ ਧਣੀ ॥੨॥वथु सुहावी साइ नानक नाउ जपंदो तिसु धणी ॥२॥हे नानक ! केवल वही वस्तु सुन्दर है, जो उस मालिक-प्रभु

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ਗਉੜੀ ਕੀ ਵਾਰ ਮਹਲਾ ੫ ਰਾਇ ਕਮਾਲਦੀ ਮੋਜਦੀ ਕੀ ਵਾਰ ਕੀ ਧੁਨਿ ਉਪਰਿ ਗਾਵਣੀगउड़ी की वार महला ५ राइ कमालदी मोजदी की वार की धुनि उपरि गावणीगउड़ी की वार महला ५ राइ कमालदी मोजदी की वार की धुनि उपरि गावणी ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया

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ਜੋ ਮਾਰੇ ਤਿਨਿ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮਿ ਸੇ ਕਿਸੈ ਨ ਸੰਦੇ ॥जो मारे तिनि पारब्रहमि से किसै न संदे ॥जो मनुष्य पारब्रह्म द्वारा मृत हैं, वे किसी के (सगे) नहीं। ਵੈਰੁ ਕਰਨਿ ਨਿਰਵੈਰ ਨਾਲਿ ਧਰਮਿ ਨਿਆਇ ਪਚੰਦੇ ॥वैरु करनि निरवैर नालि धरमि निआइ पचंदे ॥यह धर्म का न्याय है कि जो लोग निर्वेरों के साथ वैर करते हैं,

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ਹਰਿ ਅੰਦਰਲਾ ਪਾਪੁ ਪੰਚਾ ਨੋ ਉਘਾ ਕਰਿ ਵੇਖਾਲਿਆ ॥हरि अंदरला पापु पंचा नो उघा करि वेखालिआ ॥भगवान ने तपस्वी का भीतरी पाप को पंचों को प्रकट करके दिखा दिया है। ਧਰਮ ਰਾਇ ਜਮਕੰਕਰਾ ਨੋ ਆਖਿ ਛਡਿਆ ਏਸੁ ਤਪੇ ਨੋ ਤਿਥੈ ਖੜਿ ਪਾਇਹੁ ਜਿਥੈ ਮਹਾ ਮਹਾਂ ਹਤਿਆਰਿਆ ॥धरम राइ जमकंकरा नो आखि छडिआ एसु तपे नो तिथै

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