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ਬਿਖੈ ਬਾਚੁ ਹਰਿ ਰਾਚੁ ਸਮਝੁ ਮਨ ਬਉਰਾ ਰੇ ॥बिखै बाचु हरि राचु समझु मन बउरा रे ॥हे मूर्ख मन ! विषय-विकारों से बच, ईश्वर में लीन हो और यह उपदेश धारण कर ! ਨਿਰਭੈ ਹੋਇ ਨ ਹਰਿ ਭਜੇ ਮਨ ਬਉਰਾ ਰੇ ਗਹਿਓ ਨ ਰਾਮ ਜਹਾਜੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥निरभै होइ न हरि भजे मन बउरा रे

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ਤਾ ਸੋਹਾਗਣਿ ਜਾਣੀਐ ਗੁਰ ਸਬਦੁ ਬੀਚਾਰੇ ॥੩॥ता सोहागणि जाणीऐ गुर सबदु बीचारे ॥३॥केवल तभी वह (जीव स्त्री) सौभाग्यवती समझी जाती है यदि वह गुरु के शब्द का चिन्तन करती है॥ ३ ॥ ਕਿਰਤ ਕੀ ਬਾਂਧੀ ਸਭ ਫਿਰੈ ਦੇਖਹੁ ਬੀਚਾਰੀ ॥किरत की बांधी सभ फिरै देखहु बीचारी ॥(लेकिन हे भाई !) इसे क्या कहें ? यह

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ਦਹ ਦਿਸ ਬੂਡੀ ਪਵਨੁ ਝੁਲਾਵੈ ਡੋਰਿ ਰਹੀ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥੩॥दह दिस बूडी पवनु झुलावै डोरि रही लिव लाई ॥३॥(माया के विकारों में) डूबा हुआ प्राणी हवा में दसों दिशाओं में झूलता है परन्तु मैं प्रभु की प्रीति के धागे से जुड़ा हुआ हूँ॥ ३॥ ਉਨਮਨਿ ਮਨੂਆ ਸੁੰਨਿ ਸਮਾਨਾ ਦੁਬਿਧਾ ਦੁਰਮਤਿ ਭਾਗੀ ॥उनमनि मनूआ सुंनि समाना

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ਆਂਧੀ ਪਾਛੇ ਜੋ ਜਲੁ ਬਰਖੈ ਤਿਹਿ ਤੇਰਾ ਜਨੁ ਭੀਨਾਂ ॥आंधी पाछे जो जलु बरखै तिहि तेरा जनु भीनां ॥ज्ञान की अन्धेरी के पश्चात जो (नाम की) वर्षा होती है, उसमें तेरा भक्त भीग जाता है। ਕਹਿ ਕਬੀਰ ਮਨਿ ਭਇਆ ਪ੍ਰਗਾਸਾ ਉਦੈ ਭਾਨੁ ਜਬ ਚੀਨਾ ॥੨॥੪੩॥कहि कबीर मनि भइआ प्रगासा उदै भानु जब चीना ॥२॥४३॥कबीर जी

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ਕਉਨੁ ਕੋ ਪੂਤੁ ਪਿਤਾ ਕੋ ਕਾ ਕੋ ॥कउनु को पूतु पिता को का को ॥कौन कोई किसी का पुत्र है? कौन कोई किसी का पिता है? अर्थात् कोई किसी का रक्षक नहीं। ਕਉਨੁ ਮਰੈ ਕੋ ਦੇਇ ਸੰਤਾਪੋ ॥੧॥कउनु मरै को देइ संतापो ॥१॥कौन कोई मरता है और कौन कोई किसी को दुःख देता है ?

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ਜਬ ਨ ਹੋਇ ਰਾਮ ਨਾਮ ਅਧਾਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥जब न होइ राम नाम अधारा ॥१॥ रहाउ ॥जब राम के नाम का आधार नहीं होगा ॥ १॥ रहाउ ॥ ਕਹੁ ਕਬੀਰ ਖੋਜਉ ਅਸਮਾਨ ॥कहु कबीर खोजउ असमान ॥हे कबीर ! मैं आकाश तक खोज कर चुका हूँ ਰਾਮ ਸਮਾਨ ਨ ਦੇਖਉ ਆਨ ॥੨॥੩੪॥राम समान न देखउ

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ਮਨਹਿ ਮਾਰਿ ਕਵਨ ਸਿਧਿ ਥਾਪੀ ॥੧॥मनहि मारि कवन सिधि थापी ॥१॥अपने मन को मार कर कौन सिद्ध बना है ? ॥ १॥ ਕਵਨੁ ਸੁ ਮੁਨਿ ਜੋ ਮਨੁ ਮਾਰੈ ॥कवनु सु मुनि जो मनु मारै ॥वह कौन-सा मुनि है, जिसने अपने मन को मार दिया है? ਮਨ ਕਉ ਮਾਰਿ ਕਹਹੁ ਕਿਸੁ ਤਾਰੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥मन कउ

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ਗਉੜੀ ਕਬੀਰ ਜੀ ॥गउड़ी कबीर जी ॥गउड़ी कबीर जी ॥ ਜਾ ਕੈ ਹਰਿ ਸਾ ਠਾਕੁਰੁ ਭਾਈ ॥जा कै हरि सा ठाकुरु भाई ॥हे भाई ! जिसका भगवान जैसा ठाकुर मौजूद है, ਮੁਕਤਿ ਅਨੰਤ ਪੁਕਾਰਣਿ ਜਾਈ ॥੧॥मुकति अनंत पुकारणि जाई ॥१॥अनन्त मुक्तियाँ उसके समक्ष अपने आप न्योछावर होती हैं।॥ १॥ ਅਬ ਕਹੁ ਰਾਮ ਭਰੋਸਾ ਤੋਰਾ ॥अब

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ਤਨ ਮਹਿ ਹੋਤੀ ਕੋਟਿ ਉਪਾਧਿ ॥तन महि होती कोटि उपाधि ॥इस शरीर में करोड़ों ही रोग थे। ਉਲਟਿ ਭਈ ਸੁਖ ਸਹਜਿ ਸਮਾਧਿ ॥उलटि भई सुख सहजि समाधि ॥ईश्वर का नाम-सिमरन करने से अब वे भी सहज सुख एवं समाधि में बदल गए हैं। ਆਪੁ ਪਛਾਨੈ ਆਪੈ ਆਪ ॥आपु पछानै आपै आप ॥मेरे मन ने अपने

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ਐਸੇ ਘਰ ਹਮ ਬਹੁਤੁ ਬਸਾਏ ॥ऐसे घर हम बहुतु बसाए ॥उससे पहले मैंने ऐसे बहुत से शरीरों में निवास किया था॥ ਜਬ ਹਮ ਰਾਮ ਗਰਭ ਹੋਇ ਆਏ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥जब हम राम गरभ होइ आए ॥१॥ रहाउ ॥हे राम ! जब मैं अपनी माता के गर्भ में डाला गया था १॥ रहाउ ॥ ਜੋਗੀ ਜਤੀ

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