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ਹਉ ਬਨਜਾਰੋ ਰਾਮ ਕੋ ਸਹਜ ਕਰਉ ਬੵਾਪਾਰੁ ॥हउ बनजारो राम को सहज करउ ब्यापारु ॥मैं राम का व्यापारी हूँ और सहज ही ज्ञान का व्यापार करता हूँ। ਮੈ ਰਾਮ ਨਾਮ ਧਨੁ ਲਾਦਿਆ ਬਿਖੁ ਲਾਦੀ ਸੰਸਾਰਿ ॥੨॥मै राम नाम धनु लादिआ बिखु लादी संसारि ॥२॥मैंने राम के नाम का पदार्थ लादा है परन्तु संसार ने माया-रूपी

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ਜਬ ਲਗੁ ਘਟ ਮਹਿ ਦੂਜੀ ਆਨ ॥जब लगु घट महि दूजी आन ॥लेकिन जब तक मनुष्य के हृदय में सांसारिक मोह की वासना है, ਤਉ ਲਉ ਮਹਲਿ ਨ ਲਾਭੈ ਜਾਨ ॥तउ लउ महलि न लाभै जान ॥तब तक वह प्रभु-चरणों की शरण में लग नहीं सकता। ਰਮਤ ਰਾਮ ਸਿਉ ਲਾਗੋ ਰੰਗੁ ॥रमत राम सिउ लागो

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ਜੁਗੁ ਜੁਗੁ ਜੀਵਹੁ ਅਮਰ ਫਲ ਖਾਹੁ ॥੧੦॥जुगु जुगु जीवहु अमर फल खाहु ॥१०॥इस परिश्रम का ऐसा फल मिलेगा जो कभी खत्म नहीं होगा, ऐसा सुन्दर जीवन जियोगे जो सदा स्थिर रहेगा ॥ १०॥ ਦਸਮੀ ਦਹ ਦਿਸ ਹੋਇ ਅਨੰਦ ॥दसमी दह दिस होइ अनंद ॥दसमी-दसों दिशाओं में आनन्द ही आनन्द विद्यमान है। ਛੂਟੈ ਭਰਮੁ ਮਿਲੈ ਗੋਬਿੰਦ

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ਬਾਵਨ ਅਖਰ ਜੋਰੇ ਆਨਿ ॥वन अखर जोरे आनि ॥मनुष्य ने बावन अक्षर जोड़ लिए हैं। ਸਕਿਆ ਨ ਅਖਰੁ ਏਕੁ ਪਛਾਨਿ ॥सकिआ न अखरु एकु पछानि ॥परन्तु वह ईश्वर के एक शब्द को नहीं पहचान सकता। ਸਤ ਕਾ ਸਬਦੁ ਕਬੀਰਾ ਕਹੈ ॥सत का सबदु कबीरा कहै ॥कबीर सत्य वचन कहता है कि ਪੰਡਿਤ ਹੋਇ ਸੁ ਅਨਭੈ

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ਬੰਦਕ ਹੋਇ ਬੰਧ ਸੁਧਿ ਲਹੈ ॥੨੯॥बंदक होइ बंध सुधि लहै ॥२९॥वह (प्रभु के द्वार का) स्तुति करने वाला (माया-मोह के) बन्धनों का रहस्य पा लेता है॥२९॥ ਭਭਾ ਭੇਦਹਿ ਭੇਦ ਮਿਲਾਵਾ ॥भभा भेदहि भेद मिलावा ॥भ-दुविधा को भेदने (दूर करने) से मनुष्य का प्रभु से मिलन हो जाता है। ਅਬ ਭਉ ਭਾਨਿ ਭਰੋਸਉ ਆਵਾ ॥अब भउ

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ਝਝਾ ਉਰਝਿ ਸੁਰਝਿ ਨਹੀ ਜਾਨਾ ॥झझा उरझि सुरझि नही जाना ॥झ-हे जीव ! तू दुनिया (के मोह) में उलझ गया है और अपने आपको इससे मुक्त करवाना नहीं जानता। ਰਹਿਓ ਝਝਕਿ ਨਾਹੀ ਪਰਵਾਨਾ ॥रहिओ झझकि नाही परवाना ॥तुम संकोच कर रहे हो और ईश्वर को स्वीकृत नहीं हुए। ਕਤ ਝਖਿ ਝਖਿ ਅਉਰਨ ਸਮਝਾਵਾ ॥कत झखि

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ਕਹਿ ਕਬੀਰ ਗੁਰ ਭੇਟਿ ਮਹਾ ਸੁਖ ਭ੍ਰਮਤ ਰਹੇ ਮਨੁ ਮਾਨਾਨਾਂ ॥੪॥੨੩॥੭੪॥कहि कबीर गुर भेटि महा सुख भ्रमत रहे मनु मानानां ॥४॥२३॥७४॥कबीर जी कहते हैं-गुरु को मिलकर मुझे महासुख प्राप्त हो गया है। मेरा मन दुविधा में भटकने से हटकर प्रसन्न हो गया है॥ ४॥ २३॥ ७४॥ ਰਾਗੁ ਗਉੜੀ ਪੂਰਬੀ ਬਾਵਨ ਅਖਰੀ ਕਬੀਰ ਜੀਉ ਕੀरागु गउड़ी

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ਸੰਕਟਿ ਨਹੀ ਪਰੈ ਜੋਨਿ ਨਹੀ ਆਵੈ ਨਾਮੁ ਨਿਰੰਜਨ ਜਾ ਕੋ ਰੇ ॥संकटि नही परै जोनि नही आवै नामु निरंजन जा को रे ॥हे जिज्ञासु ! सत्य यही है कि जिस भगवान का नाम निरंजन है, वह संकट में नहीं पड़ता और न ही कोई योनि धारण करता है। ਕਬੀਰ ਕੋ ਸੁਆਮੀ ਐਸੋ ਠਾਕੁਰੁ ਜਾ ਕੈ

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ਉਰ ਨ ਭੀਜੈ ਪਗੁ ਨਾ ਖਿਸੈ ਹਰਿ ਦਰਸਨ ਕੀ ਆਸਾ ॥੧॥उर न भीजै पगु ना खिसै हरि दरसन की आसा ॥१॥उसका हृदय प्रसन्न नहीं और भगवान के दर्शनों की आशा में वह अपने चरण पीछे नहीं हटाती॥ १॥ ਉਡਹੁ ਨ ਕਾਗਾ ਕਾਰੇ ॥उडहु न कागा कारे ॥हे काले कौए ! उड़ जा, ਬੇਗਿ ਮਿਲੀਜੈ ਅਪੁਨੇ

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ਝੂਠਾ ਪਰਪੰਚੁ ਜੋਰਿ ਚਲਾਇਆ ॥੨॥झूठा परपंचु जोरि चलाइआ ॥२॥लेकिन जीव सब झुठलाकर झूठा परपंच करके बैठ जाता है॥ २॥ ਕਿਨਹੂ ਲਾਖ ਪਾਂਚ ਕੀ ਜੋਰੀ ॥किनहू लाख पांच की जोरी ॥कई मनुष्यों ने पाँच लाख की सम्पति जोड़ ली है, ਅੰਤ ਕੀ ਬਾਰ ਗਗਰੀਆ ਫੋਰੀ ॥੩॥अंत की बार गगरीआ फोरी ॥३॥मृत्यु आने पर उनकी भी शरीर-रूपी

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