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ਜਿਸੁ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਸਭੁ ਜਗਤੁ ਤਰਾਇਆ ॥जिसु प्रसादि सभु जगतु तराइआ ॥जिसकी कृपा से सारे जगत् का उद्धार हो जाता है। ਜਨ ਆਵਨ ਕਾ ਇਹੈ ਸੁਆਉ ॥जन आवन का इहै सुआउ ॥महापुरुष के आगमन का यही मनोरथ है कि ਜਨ ਕੈ ਸੰਗਿ ਚਿਤਿ ਆਵੈ ਨਾਉ ॥जन कै संगि चिति आवै नाउ ॥उसकी संगति में रहकर दूसरे

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ਬਨਿ ਤਿਨਿ ਪਰਬਤਿ ਹੈ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ॥बनि तिनि परबति है पारब्रहमु ॥पारब्रह्म-प्रभु वनों, तृणों एवं पर्वतों में व्यापक है। ਜੈਸੀ ਆਗਿਆ ਤੈਸਾ ਕਰਮੁ ॥जैसी आगिआ तैसा करमु ॥जैसी उसकी आज्ञा होती है, वैसे ही जीव के कर्म हैं। ਪਉਣ ਪਾਣੀ ਬੈਸੰਤਰ ਮਾਹਿ ॥पउण पाणी बैसंतर माहि ॥भगवान पवन, जल एवं अग्नि में विद्यमान है। ਚਾਰਿ ਕੁੰਟ

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ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭਿ ਆਪਹਿ ਮੇਲੇ ॥੪॥नानक हरि प्रभि आपहि मेले ॥४॥हे नानक ! हरि-प्रभु उसे अपने साथ मिला लेता है॥ ४॥ ਸਾਧਸੰਗਿ ਮਿਲਿ ਕਰਹੁ ਅਨੰਦ ॥साधसंगि मिलि करहु अनंद ॥साध संगत में मिलकर आनंद करो ਗੁਨ ਗਾਵਹੁ ਪ੍ਰਭ ਪਰਮਾਨੰਦ ॥गुन गावहु प्रभ परमानंद ॥और परमानन्द प्रभु की गुणस्तुति करते रहो। ਰਾਮ ਨਾਮ ਤਤੁ ਕਰਹੁ ਬੀਚਾਰੁ

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ਕੋਊ ਨਰਕ ਕੋਊ ਸੁਰਗ ਬੰਛਾਵਤ ॥कोऊ नरक कोऊ सुरग बंछावत ॥कोई नरक में जाने लगा और कोई स्वर्ग की अभिलाषा करने लगा। ਆਲ ਜਾਲ ਮਾਇਆ ਜੰਜਾਲ ॥आल जाल माइआ जंजाल ॥ईश्वर ने सांसारिक विवाद, धन-दौलत के जंजाल, ਹਉਮੈ ਮੋਹ ਭਰਮ ਭੈ ਭਾਰ ॥हउमै मोह भरम भै भार ॥अहंकार, मोह, दुविधा एवं भय के भार बना

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ਆਪਨ ਖੇਲੁ ਆਪਿ ਵਰਤੀਜਾ ॥आपन खेलु आपि वरतीजा ॥हे नानक ! (सृष्टि रूपी) अपनी लीला अकाल पुरुष ने स्वयं ही रची है, ਨਾਨਕ ਕਰਨੈਹਾਰੁ ਨ ਦੂਜਾ ॥੧॥नानक करनैहारु न दूजा ॥१॥इसके अलावा दूसरा कोई रचयिता नहीं ॥ १॥ ਜਬ ਹੋਵਤ ਪ੍ਰਭ ਕੇਵਲ ਧਨੀ ॥जब होवत प्रभ केवल धनी ॥जब जगत् का स्वामी परमात्मा केवल स्वयं

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ਸੋ ਕਿਉ ਬਿਸਰੈ ਜਿਨਿ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਦੀਆ ॥सो किउ बिसरै जिनि सभु किछु दीआ ॥वह ईश्वर क्यों विस्मृत हो, जिसने हमें सब कुछ दिया है। ਸੋ ਕਿਉ ਬਿਸਰੈ ਜਿ ਜੀਵਨ ਜੀਆ ॥सो किउ बिसरै जि जीवन जीआ ॥यह परमात्मा क्यों विस्मृत हो, जो जीवों के जीवन का आधार है। ਸੋ ਕਿਉ ਬਿਸਰੈ ਜਿ ਅਗਨਿ ਮਹਿ

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ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੇ ਕਿਲਬਿਖ ਜਾਹਿ ॥जनम जनम के किलबिख जाहि ॥तेरे जन्म-जन्मांतर के पाप दूर हो जाएँगे। ਆਪਿ ਜਪਹੁ ਅਵਰਾ ਨਾਮੁ ਜਪਾਵਹੁ ॥आपि जपहु अवरा नामु जपावहु ॥स्वयं ईश्वर के नाम का जाप कर और दूसरों से भी नाम का जाप करवा। ਸੁਨਤ ਕਹਤ ਰਹਤ ਗਤਿ ਪਾਵਹੁ ॥सुनत कहत रहत गति पावहु ॥सुनने, कहने एवं

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ਰਚਿ ਰਚਨਾ ਅਪਨੀ ਕਲ ਧਾਰੀ ॥रचि रचना अपनी कल धारी ॥सृष्टि की रचना करके प्रभु ने अपनी सत्ता टिकाई है। ਅਨਿਕ ਬਾਰ ਨਾਨਕ ਬਲਿਹਾਰੀ ॥੮॥੧੮॥अनिक बार नानक बलिहारी ॥८॥१८॥हे नानक ! मैं अनेक बार उस (प्रभु) पर कुर्बान जाता हूँ ॥८॥१८॥ ਸਲੋਕੁ ॥सलोकु ॥श्लोक ॥ ਸਾਥਿ ਨ ਚਾਲੈ ਬਿਨੁ ਭਜਨ ਬਿਖਿਆ ਸਗਲੀ ਛਾਰੁ ॥साथि न

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ਅਪਨੀ ਕ੍ਰਿਪਾ ਜਿਸੁ ਆਪਿ ਕਰੇਇ ॥अपनी क्रिपा जिसु आपि करेइ ॥हे नानक ! जिस पर गुरु जी स्वयं कृपा करते हैं, ਨਾਨਕ ਸੋ ਸੇਵਕੁ ਗੁਰ ਕੀ ਮਤਿ ਲੇਇ ॥੨॥नानक सो सेवकु गुर की मति लेइ ॥२॥वह सेवक गुरु की शिक्षा प्राप्त करता है॥ २॥ ਬੀਸ ਬਿਸਵੇ ਗੁਰ ਕਾ ਮਨੁ ਮਾਨੈ ॥बीस बिसवे गुर का मनु

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ਤਾ ਕਉ ਰਾਖਤ ਦੇ ਕਰਿ ਹਾਥ ॥ता कउ राखत दे करि हाथ ॥उसको वह अपना हाथ देकर बचा लेता है। ਮਾਨਸ ਜਤਨ ਕਰਤ ਬਹੁ ਭਾਤਿ ॥मानस जतन करत बहु भाति ॥मनुष्य अनेक विधियों से यत्न करता है, ਤਿਸ ਕੇ ਕਰਤਬ ਬਿਰਥੇ ਜਾਤਿ ॥तिस के करतब बिरथे जाति ॥परन्तु उसके काम असफल हो जाते हैं। ਮਾਰੈ

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